देहिंग पटकईः खतरें में पूर्वी भारत का रेन-फाॅरेस्ट

Submitted by Shivendra on Mon, 06/01/2020 - 11:33

फोटो - ffo.gov.in

हर साल पांच जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ का आयोजन किया जाता है। पर्यावरण दिवस का आयोजन अपने-आप में ही इस बात का प्रमाण है कि हमारी सरकारों के लिए पर्यावरण संरक्षण कभी प्राथमिकता नहीं रहा है, बल्कि विभिन्न आयोजन और विज्ञापन के नाम पर बजट खर्च करने का एक माध्यम मात्र है। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रकृति को बचाने के लिए जो वादे, घोषणाएं, नियम-कानून व योजनाएं लागू की जाती हैं, वो धरातल पर नजर नहीं आती। यही कारण है कि भारत सहित पूरा विश्व प्रकृति से दूर होता जा रहा है, जिसका परिणाम अमेजन और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की आग, भारत में अम्फाॅन महाचक्रवात और हर साल विभिन्न राज्यों में आने वाली बाढ़ सहित विभिन्न आपदाओं के रूप में हम देख चुके हैं। इसके बाद भी सरकारों ने सीख नहीं ली और अब पूर्वी भारत (असम) के अमेजन फाॅरेस्ट कहे जाने वाले ‘देहिंग पटकई एलिफेंट रिजर्व’ को तबाह करने की तैयारी शुरू कर दी है। इससे देहिंग नदी का अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है। 

देहिंग पटकई एलिफेंट रिजर्व लगभग 575 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। देहिंग पटकई वाइल्ड लाइफ सेंचुरी और सलेकी रिजर्व फाॅरेस्ट भी इसका हिस्सा हैं। यहां हर साल 250 सेंटीमीटर से 450 सेंटीमीटर तक बारिश होती है। ये असम का एकमात्र रिजर्व रेन फाॅरेस्ट है। इसी वर्षावन के 111.19 वर्ग किलोमीटर इलाको को 13 जून 2004 को ‘देहिंग पटकई वन्यजीव अभयारण्य’ घोषित कर दिया गया था। ये जंगल बायो डायवर्सिटी (जैव विविधता) का असीम भंडार है, जहां चिड़ियों की 300 से ज्यादा प्रजातियां हैं, जिनमे हाॅर्नबिल की चार और 8 प्रजातियां किंग फिशर की भी है। स्तनधारियों की 47 प्रजातियाँ हैं, जिनमें प्राइमेट्स की 7 प्रजातियाँ और बिल्लियों की भी 7 प्रजातियाँ शामिल हैं। दुनिया भर में बिल्लियों की सबसे ज्यादा प्रजातियां देहिंग पटकई में ही पाई जाती हैं। यहां पाए जाने वाले जानवरों में हूलाॅक गिब्बन, स्लो लोरिस, असमी मैकाक, स्टंप-टेल्ड मैकाक, कैप्ड लंगूर, एशियाटिक हाथी, शाही बंगाल टाइगर, भारतीय तेंदुआ, गौर, चाइनीज पैंगोलिन, हिमालयन काले भालू, लाल विशाल उड़ने वाली गिलहरी, तेंदुआ, क्लाउडेड तेंदुआ, साही, सांबर, सन बियर, भौंकने वाले हिरण, गोल्डन कैट और मार्बल्ड कैट आदि जीव शामिल हैं। सांप की 40 से ज्यादा प्रजातियां, तितलियों की 155 से ज्यादा तथा मछलियों की 35 से ज्यादा प्रजातियां हैं। वनस्पतियों की विविधता तो यहां अद्वितीय है। असम के राज्य वृक्ष होलोंग सहित 94 प्रमुख पेड़ यहां पाए जाते हैं, जिनमें मुख्य रूप से मेकाई, नहोर, धौना, भीर, संकोथल, उदीयम, डिमोरु आदि पेड़ शामिल हैं। पौधों की 300 प्रजातियां, ऑर्किड की 110 प्रजातियां, जिनमें असम के राज्य फूल ‘फाॅक्सटेल ऑर्किड’ भी शामिल हैं। बड़ी संख्या में यहां हाथी पाए जाते हैं। एक तरह से हाथियों का घर है ये रेनफाॅरेस्ट। इतनी जैव विविधता है तो जाहिर सी बात है कि सैंकड़ों की संख्या में प्राकृतिक जल स्रोत भी होंगे।

इसी वर्षावन से देहिंग नदी भी बहती है। नदी को जीवन यहां की जैवविविधता और प्राकृतिक जलस्रोतों से ही मिलता है, लेकिन इंसान हमेशा से ही अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के प्रति लालची रहा है। इंसानों ने प्रकृति के हर नियम को तोड़ते हुए संसाधनों का अति दोहन किया है, जिसमें कोयले का खनन भी शामिल है। कोयले के खनन के लिए ही देहिंग पटकई के 98.59 हेक्टेयर क्षेत्र को ‘कोल इंडिया लिमिटेड’ को देने की तैयारी चल रही है। इससे न केवल असम का एकमात्र वर्षावन खतरे में है, बल्कि देहिंग नदी के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। अपने जंगलों को बचाने के लिए बड़े स्तर पर स्टूडेंट्स ऑनलाइन कैंपेन चला रहे हैं।

क्या है मामला

देहिंग पटकई फाॅरेस्ट के कई इलाकों में भारी मात्रा में कोयला निकलता है, लेकिन यहां कोयला खनन का मामला नया नहीं है। यहां कोयला खनन का इतिहास 46 साल पुराना है, यानी यहां 46 सालों से कोयले का खनन चल रहा है। कोल इंडिया लिमिटेड की एक यूनिट ‘‘नार्थ ईस्टर्न कोलफील्ड्स’’ यहां खनन का कार्य करती है। कंपनी द्वारा यहां खनन करने की शुरूआत 1973 में हुई थी। ‘नार्थ ईस्टर्न कोलफील्ड्स’ को 1973 से 2003 तक सलेकी फाॅरेस्ट में खनन की अनुमति 30 साल के लिए लीज पर मिली थी, लेकिन कंपनी ने 2003 में लीज खत्म होने के बाद भी अवैध रूप से खनन करती रही। हैरानी की बात है कि लीज खत्म होने के बाद 16 साल तक कंपनी खनन करती रही, लेकिन वन विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की।

पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2012 में कोल इंडिया लिमिटेड ने खनन की अनुमति के लिए अपील की, लेकिन अपील खारिज हो गई। कंपनी ने 2019 फिर से अपील की। इस बार क्लियरेंस के लिए अधिक क्षेत्र की मांग कंपनी ने की थी। कोल इंडिया लिमिटेड 98.59 हेक्टेयर जमीन पर क्लियरेंस चाहती थी, लेकिन इसमें से सैंकड़ों हेक्टेयर जमीन पर पहले से ही खनन हो रहा था। 

जैसा कि भारत में पर्यावरण के संदर्भ में भारत में हमेशा होता है, यहां भी वहीं हुआ और पर्यावरण के प्रति शासन-प्रशासन की गंभीरता नहीं दिखाई दी। खनन करने के लिए कंपनी के प्रपोजल को केंद्र के पास भेज दिया गया। ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के मुताबिक, नेशनल बोर्ड फाॅर वाइल्ड लाइफ ने जुलाई 2016 में एक कमेटी बनाई। कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा दिए गए प्रपोजल पर कमेटी ने विचार करना शुरू कर दिया। नेशनल बोर्ड फाॅर वाइल्ड लाइफ ‘केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय’ के अंतर्गत ही काम करता है। इसके करीब चार महीने बाद यानी दिसंबर 2019 को पीटीआई की एक रिपोर्ट आती है, जिसमें बताया गया कि ‘‘कोल इंडिया लिमिटेड को 28 शर्तों के साथ 57.20 हेक्टेयर जमीन पर क्लियरेंस मिल गई है।’’ इसी साल अप्रैल में लाॅकडाउन के दौरान नेशनल बोर्ड फाॅर वाइल्ड लाइफ की कमेटी की बैठक हुई। बैठक में ये बात निकलकर सामने आई कि जिस 98.59 हेक्टेयर जमीन पर खनन की अनुमति मांगी गई है, उसमें से 57.20 हेक्टेयर जमीन तो पहले से ही खनन के लिए इस्तेमाल हो रही है। 41.39 हेक्टेयर जमीन ताजी यानी फ्रेश है और इसमें विभिन्न प्रकार के जीव जंतु रहते हैं। इसके बावजूद भी पर्यावरण संरक्षण की बात करने वाले इन विभागों के बीच लंबी बहस चली। इसमें सारा खेल नेशनल बोर्ड फाॅर वाइल्ड लाइफ का ही नजर आ रहा है और इसी बोर्ड ने अंत में कोल इंडिया लिमिटेड का 98.59 हेक्टेयर जमीन पर खनन करने के प्रस्ताव का सपोर्ट किया। नेशनल बोर्ड फाॅर वाइल्ड लाइफ ने अपनी तरफ से खनन करने की अनुमति दे दी। हालांकि अभी फाइनल अनमुति मिलना बाकी है। सवाल ये उठता है कि आखिर ये विभाग पर्यावरण को बर्बाद करने की अनुमति कैसे दे सकते हैं ? वो भी उस कंपनी को जो पहले से ही लीज खत्म होने के बाद भी वहां अवैध खनन कर रही है ? इसलिए इसका विरोध हो रहा है। 

काॅलेजों के स्टूडेंट्स चला रहे कैंपेन

अपने जंगलों को बचाने के लिए असम में विरोध तेजी हो गया है। लाॅकडाउन के बीच गुवाहाटी यूनिवर्सिटी समेत कई काॅलेज और यूनिवर्सिटी के छात्र एक कैंपेन चला रहे हैं। आप ट्विटर पर सेव देहिंग पटकाई, सेव एमेजाॅन ऑफ ईस्ट, देहिंग पटकई, एलिफेंट रिजर्व और कोल इंडिया जैसे कई हैशटैग देख सकते हैं, जो जंगल को बचाने के लिए ट्रेंड कर रहे हैं। चेज डाॅट ओरआरजी पर एक ऑनलाइन पीटिशन भी चल रही है। अभी तक इस पीटिशन पर 77 हजार से ज्यादा लोग साइन कर चुके हैं। इसके अलावा कई पर्यावरणविद और गायक भी जंगल बचाने के लिए आग आए हैं। असम के जाने-माने सिंगर अंगराग महंता, यानी पापोन भी सोशल मीडिया पर चले इस कैंपेन के सपोर्ट में हैं। एक्टर आदिल हुसैन भी इससे जुड़ गए हैं। सभी लोग अब इस अभियान में आगे आ रहे हैं। 

लोगों ने प्रकृति की धरोहरों का बचाने के लिए आगे आना भी चाहिए, लेकिन सवाल सरकारों पर भी खड़ा होता है, क्योंकि भारत पर्यावरण संरक्षण के तमाम वादे करता है। मरुस्थलीकरण पर काॅप 14 की मेजबानी भी इस बार भारत ने की थी और विश्व से साथ मिलकर पर्यावरण संरक्षण की अपील की थी। तमाम वादे किए गए, लेकिन जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ और ही है। ऐसे में सरकारी विभाग ही इस प्रकार पर्यावरण को बर्बाद करने के हितैषी बनेंगे तो सरकार पर सवाल तो उठेगा ही। हालांकि असम के मुख्यमंत्री का कहना है कि सरकार पर्यावरण को बचाने और सतत विकास के लिए प्रतिबद्ध है। इसके अलावा वन विभाग नींद से जागा है और जो कंपनी 16 साल से वन विभाग की नाक के नीचे अवैध रूप से खनन कर रही थी, उस पर 43 करोड़ 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।

दरअसल, अभियान के कारण देहिंग पटकई का मामला राष्ट्रीय मुद्दा बन गया है। जिस कराण शायद सरकार और प्रशासन की सक्रियता केवल नाकामी छिपना प्रतीत हो रही है। हालांकि ये मामला केवल असम का नहीं है, बल्कि देश दुनिया में विभिन्न स्थानों पर पर्यावरण को इसी तरह बर्बाद किया जा रहा है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के इन कार्यों के खिलाफ जनता को अपने अपने स्तर पर आवाज उठाने की जरूरत हैं। क्योंकि देहिंग पटकई को नुकसान पहुंचने से देहिंग नदी पर भी संकट गहराएगा। लाखों जीव जंतु मर जाएंगे और यदि ऐसा ही चलता रहा, जो जलवायु परिवर्तन की घटनाएं और बढ़ेंगी। ऐसे में देश के हर नागरिक को पर्यावरण संरक्षण के प्रति दृढ़ता से संकल्पित होने की जरूरत है। तभी हम पर्यावरण को बचा पाएंगे और पर्यावरण दिवस का वास्तविक उद्देश्य पूरा होगा, अन्यथा हम हर साल यूं ही पर्यावरण के बिना पर्यावरण दिवसर मनाते रह जाएंगे।


हिमांशु भट्ट (8057170025)