मानसून ने अब तक पूरे भारत को कवर किया है, लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पंजाब, गुजरात, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सहित नौ राज्यों के जलाशयों में जल स्तर अभी भी पिछले साल की तुलना में काफी कम है इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नागालैंड और छत्तीसगढ़ में भी पानी सामान्य से नीचे आ गया है।
सामान्य से कम पानी वाले प्रमुख राज्यों में पंजाब, ओडिशा, राजस्थान और मध्य प्रदेश शामिल है जिनमें 27 प्रतिशत, 15 प्रतिशत, 13 प्रतिशत और 13 प्रतिशत की कमी के साथ सबसे अधिक अंतर देखा गया। हालांकि पानी की सबसे अधिक गंभीर स्थिति नागालैंड और हिमाचल प्रदेश में है, जहां सामान्य से 46 फीसदी और 39 फीसदी पानी कम हो गया है
अर्थव्यवस्था के विभिन्न दृष्टिकोण से सिंचाई, बिजली और पेयजल आपूर्ति के लिए तजलाशय का स्तर महत्वपूर्ण हो जाता है। देश भर में सिंचाई प्रणालियों के बढ़ते उपयोग का मतलब है कि भारत के कृषि उत्पादन के लिए पानी का भंडारण बेहद जरुरी हो गए है। पंजाब, मध्य प्रदेश, यूपी, गुजरात, ओडिशा और राजस्थान जैसे महत्वपूर्ण कृषि राज्यों में खाद्य उत्पादन में कमी आने की संभावना है क्योंकि ये राज्य दलहन और तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों का सबसे अधिक उत्पादन करते है। यह उत्पादन मुद्रास्फीति को और अधिक बढ़ावा देगा, दालों और तिलहनों की बाजार कीमतें पिछले साल की तुलना में पहले ही अधिक हुई हैं।
जल शक्ति मंत्रालय के पूर्व सचिव शशि शेखर द्वारा एक निजी न्यूज़ एजेंसी को दिए गए इंटरव्यू में बताया कि
“जलाशय के पानी का उपयोग खरीफ और विशेष रूप से धान की खेती के लिए किया जाता है और यह दो बारिश के बीच के अंतराल में जल की आपूर्ति करता है। मानसून के देर से आने और बांधों में पानी का स्तर कम होने के चलते पिछले साल की तुलना में इस साल बुवाई में काफी कमी देखी गई है"
उन्होंने कहा कि मानसून के समय जलविद्युत संयंत्र अधिक बिजली पैदा करते हैं, बांधों में अधिक पानी जमा होने के बाद उन्हें छोड़ दिया जाता है ।
"हालांकि, पानी की निम्न स्तर होने के कारण, बिजली उत्पादन भी बाधित हुआ है क्योंकि जलाशयों को रबी फसलों के लिए भी पानी उपलब्ध कराना है ऐसे में जलाशयों का पूरा पानी बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते है"
कृषि मंत्रालय के अनुसार, वर्षा आधारित कृषि देश के कुल बोए गए क्षेत्र का 51 प्रतिशत है और कुल खाद्य उत्पादन का लगभग 40 प्रतिशत है।देश भर में 130 जलाशयों पर केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के नए आंकड़े बताते है कि , 29 जुलाई तक भारत के मध्य क्षेत्र राज्य - एमपी, यूपी, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में जलाशयों का भंडारण पिछले साल की तुलना में कम हुआ है ।
इन क्षेत्रों में पानी का मौजूदा स्तर भी इसी अवधि में पिछले दशक के औसत से भी कम हुआ है।उत्तरी क्षेत्र - हिमाचल प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के जलाशयों की अमूमन यही स्थिति है। इस क्षेत्र के आठ जलाशयों में भंडारण का स्तर कुल भंडारण क्षमता का 33 प्रतिशत है। पिछले वर्ष जहाँ जलाशयों में भंडारण 44 प्रतिशत था,वही पिछले दशक में इसकी औसत भंडारण 48 प्रतिशत के करीब था ।
वही सिंधु और नर्मदा जैसी प्रमुख नदियों में भी बेसिन के भंडारण की स्थिति में कमी आई है। सीडब्ल्यूसी के आंकड़ों के अनुसार, नर्मदा, मध्य प्रदेश में एक बड़े जल निकासी क्षेत्र के आलावा भारत की सबसे बड़ी नदियों में से एक है, जिसमें इस वर्ष अब तक 25.85 प्रतिशत बेसिन में पानी का भंडारण है,जो पिछले वर्ष 26.74 प्रतिशत था।
अगर आगे भी यही स्तिथि रही तो मध्य प्रदेश में प्रमुख आगामी फसलों की बुवाई और उत्पादन में बाधा आएगी, जो पहले से ही कम जलाशय भंडारण का सामना कर रहा है।राज्य सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो खाना पकाने के तेल और पोल्ट्री फीड के प्रमुख स्रोतों में से एक है। हालांकि, बीज कीमतों में उछाल और कम वर्षा के कारण सोयाबीन की पैदावार कम हुई है और इससे मध्यप्रदेश उत्पादक राज्य की शीर्ष श्रेणी में अब नही रहा है।
अगर आगे यही स्थिति बरकरार रहती है तो इस साल खाना पकाने के तेल, पोल्ट्री फीड और पोल्ट्री उत्पादों की कीमतें और अधिक बढ़ सकती है, जो पहले से ही रिकॉर्ड-उच्च कीमतों को छू रहे है।