अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस 08 मार्च 2016 पर विशेष
अक्सर हम देश या दुनिया के किसी कोने में बाढ़, अकाल, सूखी नदियों, अचानक बड़ी संख्या में जीव जन्तुओं की मृत्यु, ग्लेशियर्स पिघल कर गाँवों कस्बों की जल समाधि, भू-स्खलन या अन्य प्राकृतिक आपदाओं का कहर बरपाते देखते हैं, तो भीतर तक सिहर उठते हैं और हमारे मुँह से निकल पड़ता है, ‘उफ, ये तो पर्यावरण के नाश के नतीजे हैं। हम अब भी नहीं चेते तो दुनिया बर्बाद हो जाएगी।’ हम तो बस कह कर रह जाते हैं, लेकिन दुनिया की कई महिलाओं ने पर्यावरण की रक्षा के लिये काफी कुछ किया है। हम चाहें तो इन पर्यावरण मित्र महिलाओं से प्रेरणा लेकर खुद भी बहुत कुछ कर सकते हैं। जानते हैं कुछ ऐसी महिलाओं के बारे में।
रोहिणी निलेकणी
रोहिणी निलेकणी, चैरिटेबल ट्रस्ट अर्घ्यम फाउंडेशन की संस्थापक चेयरपर्सन हैं। पानी-पर्यावरण के क्षेत्र में उनका योगदान देश-दुनिया में जाना जाता है। पिछले एक दशक में उन्होंने पानी-पर्यावरण, शिक्षा और सेनिटेशन जैसे विभिन्न सेक्टरों में बड़ा निवेश किया है। यह निवेश किसी कारोबार के लिये नहीं बल्कि परोपकार और दान देने के लिये है। पानी और स्वच्छता जैसे मुद्दों पर काम करने वाले लोगों और संस्थाओं को स्वदेशी मदद देने के लिये ही अर्घ्यम जैसी संस्था बनाई। रोहिणी ने पर्यावरण के क्षेत्र में बड़ी दानदाता के रूप में अपनी छवि बनाई है।
इतना ही नहीं इंफोसिस के अपने शेयर बेचकर रोहिणी इन क्षेत्रों में आर्थिक मदद कर रही हैं। प्रथम फाउंडेशन के माध्यम से उन्होंने नौनिहालों को शिक्षा देने का भी जिम्मा उठाया। हाल ही में अपने एक नए इनिशिएटिव एकस्टेप के जरिए रोहिणी हर बच्चे के हाथ में किताब देखना चाहती हैं। उनका कहना है कि पढ़ा-लिखा समाज बेहतर समझ के साथ बेहतर कल का निर्माण कर सकता है। रोहिणी खुद भी एक पत्रकार हैं और आज भी हिन्दू और मिन्ट जैसे समाचारपत्रों में कॉलम लिखती हैं।
मीनाक्षी अरोड़ा
मीनाक्षी अरोड़ा इंडिया वाटर पोर्टल हिन्दी की संचालिका और संपादिका हैं। इस पोर्टल के माध्यम से उन्होंने पानी पर्यावरण के जटिल मुद्दों को सरल और आम जन की भाषा में जन-जन तक पहुँचाने का सफल प्रयास किया है। इस पोर्टल के माध्यम से उन्होंने पानी-पर्यावरण के मुद्दों पर 50,000 से भी अधिक ज्ञान सामग्री का संपादन किया है और साथ ही विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में 500 से ज्यादा आलोखों का लेखन किया है।
उन्होंने पत्रकारिता जगत में अपने कैरियर की शुरुआत जन सरोकार के विकासात्मक मुद्दों से ही की और अब पिछले 10 वर्षों से पूरी तरह से पानी - पर्यावरण के मुद्दों को समर्पित लेखन कर रही हैं।लेखन के अलावा मीनाक्षी बुंदेलखंड की सूखी धरती को पानीदार बनाने का बीड़ा भी उठाए हुए हैं। बुंदेलखंड में अपना तालाब अभियान के साथ मिलकर राज और समाज को साथ लाकर किसानों के खेतों में बूँद-बूँद सहेजने का काम भी बाखूबी किया है।
मीनाक्षी अन्तरराष्ट्रीय संस्था वाटरकीपर एलायंस की सदस्या भी है जो दुनिया भर में नदियों को बचाने की मुहिम चलाए हुए है। धरती को बचाने के लिये फिक्रमंद मीनाक्षी कईं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त कर चुकी हैं। पत्रकारिता के लिये उन्हें हाल ही में काकासाहेब कालेलकर पत्रकारिता सम्मान से नवाजा गया है। इसके अलावा वाटर डाइजेस्ट अवार्ड, वाटर चैम्पियन अवार्ड, ग्रीन एप्पल इंटरनेशनल एनवायर्नमेंट अवार्ड आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त करने का श्रेय भी आपको प्राप्त है।
बीजा देवी (फार्म मैनेजर)
आने वाली पीढ़ियों के लिये बीज बचाती है बीजा देवी। इनके ‘बीज बैंक’ में कोई 1400 तरह के अनाज, दालों, फलों और सब्जियों के बीज सुरक्षित रखे हैं। हालांकि ये इनके वैज्ञानिक नामों से परिचित नहीं लेकिन इनके महत्त्व और उपयोग के बारे में बखूबी जानती हैं।
बीजा देवी 7 साल की उम्र से खेती का कम कर रही हैं। इन्होंने कभी स्कूल का मुँह नहीं देखा पर इन्हें अच्छी तरह पता है कि वे उन महिलाओं द्वारा छेड़े गए एक महत्त्वपूर्ण और विश्वव्यापी आन्दोलन की मुखिया है जो फसलों और पौधों को विलुप्त होने से बचाने के लिये प्रयासरत है। वे खेती के आधुनिक तौर-तरीकों की देश भर से तरह-तरह के बीजों का संग्रह और संकलन करने के साथ-साथ बीजादेवी किसानों को खेती के नए प्रयोग भी सिखाती हैं।
इस आन्दोलन को ‘नवदान्य’ नाम दिया गया है। यह नाम दक्ष्णि भारत की उस खास परम्परा से प्रेरित है जिसके तहत साल के पहले दिन नौ प्रकार के बीजों को एक गमले में रोपा जाता है। इस पात्र को नौ दिन बाद नदी पर ले जाया जाता है और वहाँ परिवारों में आपस में बीजों का आदान-प्रदान किया जाता है।
आज बीजा देवी के देहरादून स्थित 40 एकड़ वाले फार्म से बीज लेने के लिये किसानों की लाइन लगी रहती है। इन्होंने वर्षों पहले यह प्रोजेक्ट इकोलॉजिस्ट वंदना शिवा के साथ शुरू किया था। बीजा देवी के 13 राज्यों में बीज बैंक हैं। इनके काम को इकोलॉजिस्ट देबल देब का भी पूरा समर्थन मिल रहा है।
विकी बक (एंटरप्रेन्योर)
र्इंधन का बेतरतीब इस्तेमाल से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। दुनिया भर के पर्यावरण चिन्तक वैज्ञानिक कोई ऐसा वैकल्पिक र्इंधन खोजने की कोशिश में जुटे रहेते हैं, जिससे प्रदूषण न हो। ऐसे में न्यूजीलैंड की एक छोटी सी कम्पनी एक्वाफ्लो की पार्टनर विकी बक ने बायोफ्यूल बनाने के लिये एक अनूठा प्रयोग किया, जो पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाए। उन्होंने सीवेज तालाबों में जंगली एल्गी (काई, घास) की खेती और उससे कार, विमान आदि के लिये र्इंधन बनाने का आयडिया और तकनीक खोज ली।
विकी बक के कामयाब फार्मूले को अपनाकर प्रति एकड़ दस हजार गैलन एल्गी आॅयल उत्पन्न किया जा सकता है, जबकि इससे पहले पाम आयल से बायोफ्यूल की जो परिकल्पना की गई उसमें प्रति एकड़ पाम की खेती से मात्र 680 गैलन बायोफ्यूल ही तैयार किया जा सकता था। इनकी एक वेबसाइट भी है, सेल्सियल डॉट काम। विकी बक एक और महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। न्यूजीलैंड में कई बिलियन जानवरों से जो मीथेन गैस उत्सर्जित होती है, वे उसकी मात्रा कम करने की लिये जानवारों की डाइट में बदलाव की संभावनाएँ तलाश रही हैं।
मैरिना सिल्वा (राजनीतिज्ञ)
ब्राजील की पर्यावरण मंत्री का पद सम्भाल चुकी मैरिना एक रबड़ टैपर की बेटी हैं। वे बचपन से ही अमेजन के जंगलों से रबर इकट्ठा करने की शौकीन रही हैं और अवैध रूप से जंगलों की कटाई करने वालों के खिलाफ प्रदर्शन करती रही है। दिलचस्प बात यह है कि वे 16 वर्ष की उम्र तक निरक्षर रहीं और बाद में ब्राजील की सबसे युवा सीनेटर बन गर्इं।
आज की तारीख में मैरिना अमेजन के जंगलों की कटाई की सबसे बड़ी विरोधी हैं और उनकी कोशिशों के कारण ही जंगलों की कटाई पर 75 फीसदी तक कमी आ चुकी है। जंगल की कई मिलियन वर्ग मील जमीन वहाँ के आदिवासियों के हवाले कर दी गई है। मैरिना सिल्वा में सैकड़ों बड़ी कम्पनियों पर छापामारी करवा कर लाखों क्यूबिक मीटर लकड़ी बरामद करवाई, जिससे अवैध कटाई का काम बुरी तरह हतोत्साहित हुआ।
मेसूमे एब्टेकर (राजनीतिज्ञ)
1997 में ईरान के राष्ट्रपति द्वारा पहली महिला उप राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त मेसूमे एब्टेकर बाद में वहाँ की पर्यावरण मंत्री बनी। वैसे मेसूमे किशोरावस्था से ही सामाजिक और राजनीतिक रूप से सक्रिय रही हैं। 1979 में मात्र 19 वर्ष की उम्र में वे तेहरान में यूएस एम्बेसी के 444 दिवसीय संकट के दौरान प्रमुख इंटरप्रेटर बनीं। बाद में वे तेहरान की नगर पार्षद बनीं और सेंटर फॉर पीस एंड एंवायरमेंट की मुखिया भी।
ईरान के शहर प्रदूषण से तबाह होने लगे थे, तब मेसूमे से रहा न गया। वे सक्रिय हो उठीं और देखते-ही-देखते महिलाओं की अगुवाई वाले हजारों पर्यावरण ग्रुप खड़े कर दिये। उनकी मेहनत रंग लाई। उनके द्वारा खड़े किये गए आन्दोलन की वजह से स्थिति में बड़ा बदलाव आया।
रेबेका होस्किंग (कैमरा आॅपरेटर)
बीबीसी की युवा कैमरा आॅपरेटेर रेबेका होस्किंग को शुरू से ही पर्यावरण से प्रेम था। एक बार वे काम के सिलसिले हवाई गर्इं, तो वहाँ प्लास्टिक के कचरे का ढेर और प्लास्टिक के टुकड़े खा-खाकर मर रहे पशुओं के देखकर बहुत परेशान हो गर्इं। उन्होंने वहाँ के पर्यावरण की घातक स्थिति की जीवन्त तस्वीरें लीं और एक लघु फिल्म बनाकर उसका प्रसारण किया।
बैन प्लास्टिक बैग्स मिशन पर निकली रेबेका सफल हुर्इं। मई 2007 में मोडबरी (डेवोन) पहला प्लास्टिक मुक्त शहर बना। इसके बाद लगभग 80 दूसरे कस्बे भी इस उदाहरण से प्रेरित हुए। रेबेका ने जनता में जागृति जगाई और उन्हें इस बात की प्रेरणा दी कि प्लास्टिक बैग्स का उपयोग न करने के लिये सरकारी आदेश का इन्तजार न करें और खुद पर यह अनुशासन लागू करें। उनका प्रयोग सफल रहा।
वांगारी माथाई (पर्यावरणविद)
नैरोबी, केन्या की नोबेल पुरस्कार विजेता, यह पर्यावरण प्रेमी महिला आज भले ही हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन इन्होंने लाखों लोगों को पर्यावरण की रक्षा की प्रेरणा दी है। ये न सिर्फ पर्यावरणविद बल्कि राजनीतिक कार्यकर्ता और लेखिका भी थीं। वांगारी की पढ़ाई-लिखाई अमेरिका और नैरोबी दोनों जगह हुई। 70 के दशक में वांगारी ने ग्रीन बेल्ट आन्दोलन की शुरुआत की।
यह गैर सरकारी संगठन लोगों को वृक्षारोपण और वन संरक्षण की प्रेरणा देने के साथ-साथ महिला अधिकारों के प्रति भी सचेत करता था। नोबेल शान्ति पुरस्कार जीतने वाली यह पहली अफ्रीकी महिला थीं, जो इन्हें प्रजातंत्र की रक्षा और शान्ति के प्रयासों के लिये मिला। ये केन्या की संसद सदस्य और कुछ समय के लिये पर्यावरण मंत्रालय में सहायक मंत्री भी रहीं।
वांगारी ने मेक्सिको की सेना, जापानी महिलाओं, फ्रांस की सेलीब्रिटीज, मलेशिया के हजारों स्कूलों, तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति और बच्चों को वृक्षारोपण के लिये प्रेरित किया। साल भर में इन्होंने लाखों लोगों को वृक्षारोपण के लिये तैयार कर लिया। करीब 50 देश इनसे प्रेरित हुए।
देश भर में स्वच्छ भारत की इन पर जिम्मेदारी
रोहिणी सिंधुरी, आईएएस
वे तमिलनाडु की रहने वाली हैं। उनका नाम पहली बार देश में तब सामने आया था, जब कर्नाटक के एक आईएस डीके रवि ने आत्महत्या कर ली थी। 2009 में आईएएस के लिये चुनी गई थीं। कुछ माह पहले वे प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किये गए स्वच्छ भारत मिशन को सम्भालने लगी हैं। अब क्या - भारी विरोध के बीच राजस्थान और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता मिशन शुरू किया। शुरुआत मांड्या जिले में की थी। स्वच्छता को स्वाभिमान और आवश्यकता से जोड़कर देश के सामने पेश किया है।
अकेले भिड़ीं पेस्टीसाइड लॉबी से
टी वी अनुपमा आईएएस
15 महीने पहले खाद्य सुरक्षा कमिश्नर के रूप में उन्होंने पूरे केरल में एक अभियान शुरू किया। उन्होंने प्रदेश में शक्तिशाली पेस्टीसाइड लॉबी से भिड़ंत की, जिसके कारण खाने में मिलावट हो रही थी। कई बड़े ब्रांड के उत्पादों को उन्होंने उघाड़कर रख दिया। हल्दी, मिर्च, धनिया पाउडर व अन्य सैम्पल को खंगाला।
अब क्या - पेस्टीसाइड लॉबी से सीधी टक्कर के कारण उन्हें पद से हटा दिया गया और केरल पर्यटन विभाग के अतिरिक्त निदेशक का पद सौंपा गया। इसके बाद पूरे केरल के लोगों ने आन्दोलन कर दिया। अब लोगों ने मुख्यमंत्री के घर के बाहर धरना दे दिया, जो अभी भी जारी है।
राष्ट्रीय सहारा एवं दैनिक भास्कर से साभार