एक देशी कृषि वैज्ञानिक की त्रासद कथा

Submitted by Shivendra on Sat, 09/13/2014 - 11:18
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न्यूज बेंच, सितंबर 2014
. केंद्र सरकार हो चाहे राज्य सरकारें, किसानों और कृषि की हालात सुधारने के प्रति कितनी ईमानदार हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सूखाग्रस्त क्षेत्रों को बिना डीजल व बिजली के चलने वाले सिंचाई यंत्र ‘मंगल टरबाइन’ की सौगात देने वाला वैज्ञानिक दर-दर की ठोकरें खा रहा है।

उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिला के भैलोनी लोध गांव के किसान व सामाजिक कार्यकर्ता मंगल सिंह को बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त इलाकों को हरा-भरा बनाने का सपना देखना महंगा पड़ा। उन्हें शोहरत तो मिली लेकिन परेशानी भी झेलनी पड़ी।

करीब दो दशक पूर्व मंगल सिंह ने एक ऐसा टरबाइन विकसित किया जिसके जरिए बहते हुए पानी को तेज प्रवाह के साथ एक किलोमीटर तक ले जाया जा सकता है। वह भी बिना बिजली या डीजल के इस्तेमाल के। इसके अलावा भी कई कार्य किए जा सकते हैं। यह पर्यावरण मित्र आविष्कार देश के तमाम कृषि क्षेत्रों के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है। लेकिन सरकारी तंत्र इस उपकरण के आविष्कारक को प्रोत्साहित करने की जगह उल्टे प्रताड़ित कर रहा है।

गैर-सरकारी संगठनों ने उनके आविष्कार पर अपना लेबल लगाने का प्रयास किया। सरकारी एजेंसियों ने बुंदेलखंड के इलाकों में टरबाइन लगाने के लिए कमीशन की मांग की। उन्हें कापार्ट से दो प्रोजेक्ट तो मिले लेकिन कमीशन के चक्कर में स्वीकृत राशि का भुगतान रुकवा दिया।

मंगल सिंह कृषि वैज्ञानिक के साथ एंटी करप्शन एक्टीविस्ट भी हैं। उन्होंने इसकी शिकायत की तो विरोध में एक और मोर्चा खड़ा हो गया। उनके आविष्कार में खामियां निकाली जाने लगीं। तरह-तरह के आरोप लगाए जाने लगे। आरोपों की जांच के लिए केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास विभाग ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट के पूर्व निदेशक बीपी मैथानी के नेतृत्व में एक जांच समिति गठित की लेकिन समिति ने जांच में सारे आरोप निराधार पाए और उपकरण को कृषि उद्योग के विकास के लिए काफी उपयोगी बताया। इसके बावजूद उनके कई टरबाइन नष्ट करा दिए गए। कापार्ट जैसी संस्था को प्रभावित कर उनके 47 लाख रूपए का भुगतान रुकवा दिया गया।

मैथानी समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि उस अवधि में कापार्ट द्वारा स्वीकृत कृषि संबंधी तमाम परियोजनाओं में अड़ंगा डालने का प्रयास किया गया। कुछ स्वार्थी अधिकारी असामाजिक तत्वों के साथ मिलकर ऐसा कर रहे हैं और कापार्ट से स्वीकृत परियोजनाओं में बाधा डाल रहे हैं।

रिपोर्ट में कापार्ट को सुझाव दिया गया है कि कोर्ट के बाहर समझौता कर मंगल सिंह को हुए आर्थिक नुकसान की क्षतिपूर्ति कर दे। केंद्र और राज्य सरकार से भी उनके विरुद्ध मुकदमों को वापस लेने और इस आविष्कार के लिए पुरस्कृत करने की अनुशंसा की। पूर्व वन एवं पर्यावरण मंत्री के स्पष्ट आदेश के बावजूद स्वीकृत रकम की अदायगी नहीं की गई। आज हालत यह है कि मंगल सिंह कर्ज में डूब चुके हैं। उनकी पूरी जमीन नीलाम कराई जा चुकी है।

भारत में भले ही सरकारी स्तर पर एक साधारण किसान के आविष्कार को महत्व नहीं दिया जा रहा हो लेकिन कई वैज्ञानिकों और विकास से जुड़े अधिकारियों ने उनके उपकरण को देखा, जांचा और सराहना की। अमेरिका और रोम ने मंगल सिंह को इस आविष्कार के लिए फेलोशिप से नवाजा। कई देशों के वैज्ञानिकों ने इस टरबाइन का निरीक्षण किया और संतुष्ट हुए। मंगल सिंह सैकड़ों एकड़ बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर उकरण की उपयोगिता को सिद्ध कर चुके हैं।

लकड़ी या स्टील से निर्मित होने वाले इस टरबाइन से ईख के अलावा तेल को पेराई और गेहूं की पिसाई की मशीन भी चलाई जा सकती है। यहां तक कि विद्युत उत्पादन भी किया जा सकता है। मंगल सिंह ने मंगल टरबाइन के नाम से इसका राष्ट्रीय पेटेंट भी करा रखा है। साधन के अभाव में अंतरराष्ट्रीय पेटेंट नहीं करा सके हैं।

मंगल सिंह कृषि वैज्ञानिक के साथ एंटी करप्शन एक्टीविस्ट भी हैं। उन्होंने इसकी शिकायत की तो विरोध में एक और मोर्चा खड़ा हो गया। उनके आविष्कार में खामियां निकाली जाने लगीं। तरह-तरह के आरोप लगाए जाने लगे। आरोपों की जांच के लिए केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास विभाग ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट के पूर्व निदेशक बीपी मैथानी के नेतृत्व में एक जांच समिति गठित की लेकिन समिति ने जांच में सारे आरोप निराधार पाए और उपकरण को कृषि उद्योग के विकास के लिए काफी उपयोगी बताया।दिल्ली आईआईटी के ‘सेंटर फॉर रूरल डेवलपमेंट एंड टेकनोलॉजी’ तथा ‘विज्ञान शिक्षण केंद्र’ ने टरबाइन के निरीक्षण के बाद अपनी रिपोर्ट में 500 ऐसी जगहें चिन्हित की थी, जहां इसके जरिए हाइड्रो पावर प्लांट चलाया जा सकता है। इनसे 25 मेगावाट बिजली का उत्पादन कर 10 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई की जा सकती है। ‘इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च’ के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर जनरल (इंजीनियरिंग) डॉ. टी.डी. ओझा ने टरबाइन का निरीक्षण करने के बाद कहा था, ‘यह टरबाइन अपार संभावनाएं जगाता है। यह सिंचाई, मत्स्य पालन, वन विकास और पेयजल के लिए जलस्रोतों के जल को निर्दिष्ट स्थलों तक पहुंचाने में उपयोगी हो सकता है।’ मंगल टरबाइन एक दिन में 11 घंटे चलाया जाए तो इससे 44 लीटर डीजल की बचत होती है। नियमतः 25 एचपी का डीजल पंप चलाने के लिए प्रति घंटे चार लीटर डीजल की जरूरत पड़ती है।

मंगल सिंह बताते हैं, ‘शुरुआत में सरकारी एजेंसियों और गैर-सरकारी संगठनों ने प्रोत्साहित किया। अंतरराष्ट्रीय एनजीओ वालों ने पांच सितारा होटलों में निमंत्रित किया और कहा कि वे मेरे साथ काम करना चाहते हैं लेकिन टरबाइन का मालिकाना हक उनका होगा। वे अपने मंच से उन्हें प्रचारित करेंगे। मैंने असहमति व्यक्त की तो वे विरोध में खड़े हो गए।’

इन तमाम परेशानियों के बाद भी मंगल सिंह अपने अभियान से एक कदम भी पीछे हीं हटे हैं। उनका कहना है कि सूखाग्रस्त इलाकों को हरा-भरा बनाने का उनका अभियान चलता रहेगा। उन्हें किसी पुरस्कार की लालसा नहीं है। न ही विपरीत परिस्थितियां उन्हें विचलित कर सकती हैं।

टरबाइन का प्रयोग राष्ट्रहित में : नरेश सिरोही


वर्ष 2002 में ही मैंने सुदर्शन जी के साथ मंगल सिंह के गांव का दौरा कर टरबाइन का जायजा लिया था। हम हैरान रह गए थे कि बिना बिजली और डीजल के और बिना पर्यावरण को कोई नुकसान पहुंचाए मंगल टरबाइन एक किलोमीटर तक पानी पहुंचा रहा था। हम इस आविष्कार से काफी प्रभावित हुए और इसे प्रोत्साहित करने का भरपूर प्रयास किया लेकिन उस समय यूपीए सरकार थी जिसने इसके महत्व को नहीं समझा।


मंगल टरबाइनमंगल टरबाइनपूरी दुनिया में जिसे सराहा गया उसे भारत में सरकारी भ्रष्टाचार के कारण नजरअंदाज ही नहीं किया गया बल्कि उसके आविष्कारक को काफी प्रताड़ित भी किया गया। अभी देश में कुल कृषि योग्य भूमि का 60 प्रतिशत हिस्सा असिंचित है। उसमें भी 25 प्रतिशत पठारी इलाके में अवस्थित है। ऐसे इलाकों में मंगल टरबाइन काफी कारगर हो सकता है। हाल में वे इस संबंध में हम नितिन गडकरी से मिले थे। उन्होंने इसे प्रोत्साहन देने का वायदा किया है।

हमारी कोशिश है कि इस टरबाइन को प्रधानमंत्री सिंचाई योजना में शामिल करा दिया जाए। कृषि क्षेत्र में सिंचाई के लिए हर साल डीजल और बिजली के मद में करोड़ों का खर्च होता है। यदि इस टरबाइन का इस्तेमाल किया जाए तो इसमें बचत की जा सकती है। कई कृषि और घरेलु कार्यों में इसका उपयोग किया जा सकता है। इसके विकास की अपार संभावनाएं हैं, यह पूरी तरह राष्ट्रहित में है।

(नरेश सिरोही भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं कृषि विशेषज्ञ हैं)