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गोरखपुर एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप, 2011
सूखे परिक्षेत्र में बेकार बहने वाला पानी सूखा को और बढ़ाता ही है। यही सोचकर जालौन के डांग खजूरी गांव की महिलाओं ने आर्टीजन वेल से बेकार बहने वाले पानी को नियंत्रित किया, जिसने अन्य लोगों को प्रेरणा देने का काम किया।
बुंदेलखंड क्षेत्र अपनी भौगोलिक बनावट के अनुसार एक तरफ जहां, नदी, नाले, पहाड़, जंगल आदि प्राकृतिक सम्पदाओं से भरपूर है, वहीं दूसरी तरफ यहां की ज़मीन काफी उबड़-खाबड़ है, जिससे प्रकृति प्रदत्त इन सुविधाओं का भरपूर लाभ नहीं मिल पाता है। इसके साथ ही मानव जनित अनेक कारण ऐसे हैं, जो यहां की विषम परिस्थितियों को और विषम बनाते हैं। तालाबों को पाटने, अवैध कब्ज़ा आदि कुछ ऐसी मानवीय प्रवृत्तियां हैं, जिसने बुंदेलखंड की जटिलताओं में गुणात्मक वृद्धि की है। ऐसे सूखे परिक्षेत्र में पानी का बेकार बहना असुरक्षित भविष्य की ओर ले जाने वाला निश्चित कदम साबित होता है। एक तरफ तो हम पानी की कमी का रोना रोयें और दूसरी तरफ पानी निरंतर व बेकार बहे, तो इस पर गंभीरता से सोचना आवश्यक हो जाता है और कुछ ऐसी ही सोच उत्पन्न हुई कोंच तहसील के डांग खजूरी गांव की श्रीमती बिटोली देवी के मन में।
जनपद जालौन के कोंच तहसील में पहुज नदी क्षेत्र में बसा गांव डांग खजूरी भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत उबड़-खाब़ एवं ढालू है। यहां के खेत बहुत ही छोटे एवं ढालू होने से खेती बहुत फायदेमंद नहीं होती। यहां बसने वाले लोगों में 95 प्रतिशत लघु एवं सीमांत किसान हैं, जिनके लिए खेती ही आजीविका का एकमात्र विकल्प है और जो अपनी छोटी जोत के कारण निरंतर आर्थिक विपन्नता की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यहां सिंचाई के बहुत से साधन नहीं हैं और जो हैं भी उनका समुचित प्रबंधन न होने के कारण बहुत उपयोगी नहीं हो पाता है। कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से जूझती श्रीमती बिटोली देवी ने बेकार बह रहे पानी के संरक्षण की अनोखी तकनीक निकाली।
पानी संरक्षण की पृष्ठभूमि
1990-2000 के दशक में सरकार ने बुंदेलखंड संभाग में लोगों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए निःशुल्क बोरिंग योजना चलाई। इसमें डांग खजूरी गांव परिक्षेत्र में 24 आर्टीजन वेल लगे। जिसके तहत 25 फीट लंबी व चार इंच चौड़ी पाइप को ज़मीन में बोरिंग करके डाल दिया गया, जिसके माध्यम से पानी ऊपर आने लगा। इसी दौरान हाईब्रिड बीजो का विस्तार भी हुआ। लोगों ने रबी खरीफ दोनों सीजन में फसलें उगानी प्रारम्भ की। अधिक उत्पादन की चाह में ज्यादा पानी चाहने वाली प्रजातियों की खेती भी की। इस योजना का मकसद लोगों को रबी सीजन में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराकर उनकी आर्थिक संपन्नता को बढ़ाना था और ऐसा हुआ भी। परंतु पानी का समुचित प्रबंधन न होने के कारण गांव को सूखे की चपेट में लाने का कारण भी यही आर्टीजन वेल बने। कारण कि इन पाइपों से निरंतर पानी अपनी पूरी गति से बहता रहता था। सिंचाई के समय तो ठीक, परंतु अन्य समय में पानी का बेकार बहाव स्थिति की भयावहता का निश्चित संकेत था जिसे लोग महसूस भी करने लगे थे।
सूखे की वर्तमान परिस्थिति को झेलते और आगामी भयावह स्थिति की कल्पना कर रहे ग्रामीणों को झकझोरने का काम किया समर्पण जन कल्याण समिति ने। पानी की कमी से होने वाली समस्याओं एवं संरक्षण पर चलाये गये जागरुकता अभियान ने डांग खजूरी गांव के लोगों में नव चेतना जागृत की एवं पानी बचाने की मुहिम शुरू हुई। गांव की एक बैठक कर लोगों ने इस समस्या एवं समर्पण जन कल्याण समिति द्वारा चलाये गये अभियान की समीक्षा करने के दौरान बिटोली ने कहा कि हमारे गांव में 24 आर्टीजन वेल हैं, जिनसे निरंतर पानी बहता रहता है, क्या उनके संरक्षण की बात की जा सकती है, जिससे हमारा भविष्य सुरक्षित हो सके। सभी ने इस विचार पर सहमति व्यक्त की। तत्पश्चात् कार्यों को सुचारु रूप से गति प्रदान करने के लिए समूह का गठन किया गया, जिसका नेतृत्व बिटोली देवी ने किया और शुरू हुआ पानी संरक्षण अभियान।
इस अभियान के तहत् गांव के किसान अपने साथ कुल्हाड़ी लेकर खेतों की ओर निकल पड़े। सर्वप्रथम इन्होंने पाइप की चौड़ाई से थोड़ा छोटा लकड़ी का खूंटा बनाकर आर्टीजन वेल के मुंह पर लगा दिया। इससे पानी पूरी तरह तो नहीं बंद बुआ, परंतु पानी की गति पर अंकुश लग गया। अब पानी रिसकर बहुत न्यून मात्रा में ही बर्बाद होता है। खूंटे से मुंह बंद करने के पीछे की सोच यह भी थी कि जब सिंचाई की आवश्यकता हो, तो पाइप में से खूंटे को निकाल कर पूरा पानी प्राप्त किया जा सकता है। 24 आर्टीजन वेल को बंद करने में कुल 3 दिन का समय लगा। वह भी इसलिए कि लकड़ी काटना और फिर उसे खूंटे के आकार में बदलने में अधिक समय लगा।
एक आर्टीजन वेल से कितना पानी बेकार बह जाता है और उपरोक्त तकनीक से कितने पानी का संरक्षण किया जा सकता है। इसे जानने की प्रक्रिया में समूह की महिलाएं समय देखने हेतु घड़ी, पानी रोकने के लिए बाल्टी एवं पानी नापने के लिए लीटर लेकर एक आर्टीजन वेल पर पहुंची। निश्चित समय में पानी रोककर उसे नापकर देखा गया कि एक आर्टीजन वेल से औसतन 1 मिनट में 71 लीटर पानी निकलता है। इसे एक घंटे में परिवर्तित कर इस प्रकार देखा जा सकता है कि 71 ली. X 60 मिनट = 4260 लीटर। इस प्रकार एक घंटे में एक आर्टीजन वेल से लगभग 4260 लीटर पानी बर्बाद होता है। समूह की महिलाओं ने यह भी गणना किया कि पूरे वर्ष में सिंचाई करने, पशुओं को पानी पिलाने एवं ईंट निर्माण कार्य में पानी का उपयोग 7088 घंटे होता है। शेष 1672 घंटे में सभी आर्टीजन वेलों से बेकार बहने वाले पानी की गणना कुछ इस तरह से है –
4260 ली. X 1672 घंटे x 24 आर्टीजन वेल = 170945280 लीटर
इस पानी संरक्षण से निम्नलिखित लाभ हो रहे हैं-
दीर्घकालिक तौर पर दिखने वाला लाभ यह है कि भूगर्भीय जल स्तर की सुरक्षा हुई है।
जितनी आवश्यकता हो उतना ही पानी लेने से आस-पास पानी फैलता नहीं और इससे ज़मीन एवं फसल बर्बाद नहीं हो पाती है।
संदर्भ
बुंदेलखंड क्षेत्र अपनी भौगोलिक बनावट के अनुसार एक तरफ जहां, नदी, नाले, पहाड़, जंगल आदि प्राकृतिक सम्पदाओं से भरपूर है, वहीं दूसरी तरफ यहां की ज़मीन काफी उबड़-खाबड़ है, जिससे प्रकृति प्रदत्त इन सुविधाओं का भरपूर लाभ नहीं मिल पाता है। इसके साथ ही मानव जनित अनेक कारण ऐसे हैं, जो यहां की विषम परिस्थितियों को और विषम बनाते हैं। तालाबों को पाटने, अवैध कब्ज़ा आदि कुछ ऐसी मानवीय प्रवृत्तियां हैं, जिसने बुंदेलखंड की जटिलताओं में गुणात्मक वृद्धि की है। ऐसे सूखे परिक्षेत्र में पानी का बेकार बहना असुरक्षित भविष्य की ओर ले जाने वाला निश्चित कदम साबित होता है। एक तरफ तो हम पानी की कमी का रोना रोयें और दूसरी तरफ पानी निरंतर व बेकार बहे, तो इस पर गंभीरता से सोचना आवश्यक हो जाता है और कुछ ऐसी ही सोच उत्पन्न हुई कोंच तहसील के डांग खजूरी गांव की श्रीमती बिटोली देवी के मन में।
जनपद जालौन के कोंच तहसील में पहुज नदी क्षेत्र में बसा गांव डांग खजूरी भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत उबड़-खाब़ एवं ढालू है। यहां के खेत बहुत ही छोटे एवं ढालू होने से खेती बहुत फायदेमंद नहीं होती। यहां बसने वाले लोगों में 95 प्रतिशत लघु एवं सीमांत किसान हैं, जिनके लिए खेती ही आजीविका का एकमात्र विकल्प है और जो अपनी छोटी जोत के कारण निरंतर आर्थिक विपन्नता की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यहां सिंचाई के बहुत से साधन नहीं हैं और जो हैं भी उनका समुचित प्रबंधन न होने के कारण बहुत उपयोगी नहीं हो पाता है। कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से जूझती श्रीमती बिटोली देवी ने बेकार बह रहे पानी के संरक्षण की अनोखी तकनीक निकाली।
प्रक्रिया
पानी संरक्षण की पृष्ठभूमि
1990-2000 के दशक में सरकार ने बुंदेलखंड संभाग में लोगों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए निःशुल्क बोरिंग योजना चलाई। इसमें डांग खजूरी गांव परिक्षेत्र में 24 आर्टीजन वेल लगे। जिसके तहत 25 फीट लंबी व चार इंच चौड़ी पाइप को ज़मीन में बोरिंग करके डाल दिया गया, जिसके माध्यम से पानी ऊपर आने लगा। इसी दौरान हाईब्रिड बीजो का विस्तार भी हुआ। लोगों ने रबी खरीफ दोनों सीजन में फसलें उगानी प्रारम्भ की। अधिक उत्पादन की चाह में ज्यादा पानी चाहने वाली प्रजातियों की खेती भी की। इस योजना का मकसद लोगों को रबी सीजन में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराकर उनकी आर्थिक संपन्नता को बढ़ाना था और ऐसा हुआ भी। परंतु पानी का समुचित प्रबंधन न होने के कारण गांव को सूखे की चपेट में लाने का कारण भी यही आर्टीजन वेल बने। कारण कि इन पाइपों से निरंतर पानी अपनी पूरी गति से बहता रहता था। सिंचाई के समय तो ठीक, परंतु अन्य समय में पानी का बेकार बहाव स्थिति की भयावहता का निश्चित संकेत था जिसे लोग महसूस भी करने लगे थे।
समूह गठन एवं पानी संरक्षण की तकनीक
सूखे की वर्तमान परिस्थिति को झेलते और आगामी भयावह स्थिति की कल्पना कर रहे ग्रामीणों को झकझोरने का काम किया समर्पण जन कल्याण समिति ने। पानी की कमी से होने वाली समस्याओं एवं संरक्षण पर चलाये गये जागरुकता अभियान ने डांग खजूरी गांव के लोगों में नव चेतना जागृत की एवं पानी बचाने की मुहिम शुरू हुई। गांव की एक बैठक कर लोगों ने इस समस्या एवं समर्पण जन कल्याण समिति द्वारा चलाये गये अभियान की समीक्षा करने के दौरान बिटोली ने कहा कि हमारे गांव में 24 आर्टीजन वेल हैं, जिनसे निरंतर पानी बहता रहता है, क्या उनके संरक्षण की बात की जा सकती है, जिससे हमारा भविष्य सुरक्षित हो सके। सभी ने इस विचार पर सहमति व्यक्त की। तत्पश्चात् कार्यों को सुचारु रूप से गति प्रदान करने के लिए समूह का गठन किया गया, जिसका नेतृत्व बिटोली देवी ने किया और शुरू हुआ पानी संरक्षण अभियान।
इस अभियान के तहत् गांव के किसान अपने साथ कुल्हाड़ी लेकर खेतों की ओर निकल पड़े। सर्वप्रथम इन्होंने पाइप की चौड़ाई से थोड़ा छोटा लकड़ी का खूंटा बनाकर आर्टीजन वेल के मुंह पर लगा दिया। इससे पानी पूरी तरह तो नहीं बंद बुआ, परंतु पानी की गति पर अंकुश लग गया। अब पानी रिसकर बहुत न्यून मात्रा में ही बर्बाद होता है। खूंटे से मुंह बंद करने के पीछे की सोच यह भी थी कि जब सिंचाई की आवश्यकता हो, तो पाइप में से खूंटे को निकाल कर पूरा पानी प्राप्त किया जा सकता है। 24 आर्टीजन वेल को बंद करने में कुल 3 दिन का समय लगा। वह भी इसलिए कि लकड़ी काटना और फिर उसे खूंटे के आकार में बदलने में अधिक समय लगा।
आर्टीजन वेल से संरक्षित पानी की गणना
एक आर्टीजन वेल से कितना पानी बेकार बह जाता है और उपरोक्त तकनीक से कितने पानी का संरक्षण किया जा सकता है। इसे जानने की प्रक्रिया में समूह की महिलाएं समय देखने हेतु घड़ी, पानी रोकने के लिए बाल्टी एवं पानी नापने के लिए लीटर लेकर एक आर्टीजन वेल पर पहुंची। निश्चित समय में पानी रोककर उसे नापकर देखा गया कि एक आर्टीजन वेल से औसतन 1 मिनट में 71 लीटर पानी निकलता है। इसे एक घंटे में परिवर्तित कर इस प्रकार देखा जा सकता है कि 71 ली. X 60 मिनट = 4260 लीटर। इस प्रकार एक घंटे में एक आर्टीजन वेल से लगभग 4260 लीटर पानी बर्बाद होता है। समूह की महिलाओं ने यह भी गणना किया कि पूरे वर्ष में सिंचाई करने, पशुओं को पानी पिलाने एवं ईंट निर्माण कार्य में पानी का उपयोग 7088 घंटे होता है। शेष 1672 घंटे में सभी आर्टीजन वेलों से बेकार बहने वाले पानी की गणना कुछ इस तरह से है –
4260 ली. X 1672 घंटे x 24 आर्टीजन वेल = 170945280 लीटर
लाभ
इस पानी संरक्षण से निम्नलिखित लाभ हो रहे हैं-
दीर्घकालिक तौर पर दिखने वाला लाभ यह है कि भूगर्भीय जल स्तर की सुरक्षा हुई है।
जितनी आवश्यकता हो उतना ही पानी लेने से आस-पास पानी फैलता नहीं और इससे ज़मीन एवं फसल बर्बाद नहीं हो पाती है।