गली प्लग (लूज बोल्डर चेकडैम) एवं मेड़बंदी से परती / बंजर ज़मीन में फसलें लहलहाई

Submitted by Hindi on Fri, 04/19/2013 - 10:40
खेतों का सुधार मसलन भूमि समतलीकरण, मेड़बंदी आदि सूखा से निपटने में एक बेहतर कदम साबित हो सकता है और यही मानते हुए तिंदौली के किसानों ने मृदा व नमी संरक्षण कार्य को प्राथमिकता दी।

संदर्भ


महोबा जनपद का ग्राम तिंदौली महोबा-छतरपुर रोड पर मुख्यालय से 16 किमी. की दूरी पर स्थित है। गांव की आबादी 2430 है, जिसमें धोबी, ढीमर, लोधी, चमार, मुसलमान, बसोर, नाई आदि जातियां निवास करती हैं। गांव का कृषि योग्य क्षेत्रफल लगभग 650 हेक्टेयर है। भूमि को तीन भागों में बाँटा जा सकता है। ऊसर भूमि 30 प्रतिशत्, लाल पथरीली 35 प्रतिशत व काबर भूमि (काली मिट्टी) 35 प्रतिशत है। यहां का मुख्य व्यवसाय कृषि होते हुए भी सिंचाई के नाम पर वर्ष 1978 में पास के ही गांव सलारपुर में बने एक बांध से नहर निकली है, जिसकी गांव से दूरी 2 किमी. है। सलारपुर डैम को भरने के लिए मध्य प्रदेश की सीमा पर बने हुए उर्मिल डैम से पानी छोड़ा जाता है, जो कम ही भर पाता है। लगभग 40 प्रतिशत जमीन उबड़-खाबड़ तथा ऊसर व कटाव वाली होने के कारण बेकार पड़ी रहती थी। ज़मीन खराब होते हुए भी प्रशासन द्वारा कभी भी मेड़बंदी या भूमि सुधार की कोई योजना गांव में नहीं संचालित की गयी।

विगत 7 वर्षों से निरंतर सूखा पड़ने के कारण वर्ष 2007 में गांव की स्थिति अत्यंत भयावह हो गयी। गांव के तालाब, कुएं, हैंडपम्प सभी सूख गये, लोगों ने अपने पशुओं को खुला छोड़ दिया। चारे-पानी के अभाव में अधिकांश पशु भाग गये या मर गये। लोगों को पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा।

प्रक्रिया


ऐसी ही विषम परिस्थिति में गांव की एक महिला श्रीमती शीला देवी ने पहल करते हुए गांव में एक बैठक आयोजित करवाई, जिसमें ग्रामोन्नति संस्थान से जुड़े लोगों ने भी शिरकत की और समस्या से निपटने हेतु गांव स्तर पर उपाय खोजे जाने लगे। काफी चर्चा के बाद किसानों की तरफ से यह सुझाव आया कि अगर खेत सुधर जायें तो स्थिति थोड़ी अच्छी हो सकती है, क्योंकि ज़मीन उबड़-खाबड़ होने के कारण पानी रुकता नहीं, साथ ही ऊसर भूमि होने के कारण भी पैदावार नहीं मिल पाती है। तय हुआ कि प्रथम चरण में मृदा एवं नमी संरक्षण हेतु खेतों की मेड़बंदी तथा गली प्लग बनाये जायेंगे तथा द्वितीय चरण में भूगर्भ जलस्तर बढ़ाने हेतु टूटी हुई बंधियों पर चेकडैम व गली प्लग बनाने का काम किया जायेगा। यह भी तय हुआ कि कुल व्यय का 25 प्रतिशत किसानों द्वारा स्वयं वहन किया जायेगा, शेष धनराशि ग्रामोन्नति संस्थान द्वारा व्यय किया जायेगा।

क्षेत्र का चुनाव


सूरा चौकी से तिंदौली जाने वाले सड़क के दोनों किनारों से ऊसर, परती एवं अधिक कटाव वाली भूमि का 125 एकड़ क्षेत्र कार्य करने के लिए चयनित किया गया।

मृदा संरक्षण एवं नमी संरक्षण हेतु किये गये कार्य


अधिक कटाव वाली भूमि जैसे नाला/नाली आदि को समतल बनाने हेतु गली प्लग (लूज बोल्डर चेकडैम) व एक से डेढ़ मीटर ढाल वाले क्षेत्र में मेड़बंदी का कार्य किया गया।

लूज बोल्डर चेकडैम की प्रक्रिया


पश्चिम दिशा में गया धोबी के खेत के पास से नाले का उद्गम था, जिसके कारण किसान रामसिंह, गजराज, रामरती, रामश्री, शंकर आदि की लगभग 15 एकड़ ज़मीन असमतल तथा कटान होने के कारण बेकार पड़ी रहती थी। उस भूमि पर उपरोक्त किसानों ने सर्वप्रथम सूखे पत्थरों के गली प्लग नाले में सात स्थानों पर बनाये, जिनकी लागत 15,000.00 रुपये के लगभग आयी, जिसमें किसानों द्वारा श्रम एवं भाड़े के रूप में लगभग 5500.00 रु. का काम सामूहिक रूप से किया गया।

मेड़बंदी कार्य


गली प्लग बनाने के बाद उपरोक्त किसानों के खेतों पर खेत को ढाल के अनुसार भागों में विभाजित करके मेड़ डालने का काम शुरू किया गया, जिसमें किसानों द्वारा स्वयं अपने खेतों में 0.75 मीटर से 1.5 मीटर तक ऊंचाई की मेड़ बनाई गयी। किसानों ने अपने यहां पानी के बहाव तथा आमद को देखते हुए मेड़ों की चौड़ाई भी 8 से 15 फुट रखी। मेड़ों पर पानी के अतिरिक्त निकास के लिए आउटलेट बनाये गये हैं।

कार्य के पीछे सोच


निरंतर सूखा पड़ने के कारण उस समय किसानों के पास न तो कोई काम था और न ही भोजन पानी की कोई व्यवस्था थी। आजीविका के लिए लोग पलायन कर रहे थे। सूखे से निपटने तथा आजीविका के लिए कोई प्रयास शासन द्वारा नहीं किया गया था। गांव में बैठक के दौरान किसानों ने यह निश्चित किया था कि अगर पानी बरसता और खेतों की बुवाई होती, तो हम परिवार सहित खेतों में काम करते। अभी भी हम अपने खेतों में मेड़ बनाने का काम परिवार सहित करेंगे। एक दिन में पति-पत्नी दोनों मिलकर 200 घन फुट मिट्टी डालेंगे तो उसकी मजदूरी रु. 200.00 बनती है। जिसमें से 34 प्रतिशत अंशदान करने के बाद भी हमें 132.00 रु. की आमदनी प्रतिदिन होगी। 2.5 एकड़ भूमि में मेड़बंदी करने में दो व्यक्तियों को 30 से 45 दिन तक का समय लगता है। इस प्रकार अगर 30 दिन भी काम करेंगे तो 30x132.00 = 3960.00 रु. एक महीने में हमे मिलेगा, जिससे हमारी दो माह की आजीविका सुरक्षित होगी, हमारे खेतों का सुधार होगा तथा हमें किसी और की मजदूरी भी नहीं करनी पड़ेगी।

कार्य का परिणाम


लूज बोल्डर चेकडैम बनाने से पानी के वेग में कमी आई है और कटाव रुकने के साथ-साथ पानी के साथ बहकर आयी मिट्टी का वहां जमाव हुआ, जिससे ज़मीन समतल हुई। मेड़बंदी करने से बरसात का पानी खेत में अधिक समय तक रुका, जिससे खेत में नमी संरक्षित हुई और खेत की उपजाऊ मिट्टी भी बहकर नहीं जा पाई, साथ ही आस-पास के कुओं का जलस्तर भी बढ़ा।

उपरोक्त पद्धति को देखकर गांव के 36 किसानों द्वारा अपने खेतों पर इस तरह के काम किये गये, जिसमें लगभग 130 एकड़ ज़मीन का सुधार हुआ। इसमें से 50 एकड़ ऊसर एवं परती भूमि को खेती योग्य बनाया गया।

उपरोक्त काम को देखकर गांव तिंदौली के अतिरिक्त कुम्हाईन, चुरबरा, मामना, मुगौरा, रतौली आदि के किसानों द्वारा यह विधि अपनाई जा रही है। सलारपुर गांव के एक किसान श्री बड़ी सिंह ने तो विगत वर्ष अपने तीन खेतों में सुबह, शाम मेड़ डालने का काम किया और दिन में मजदूरी की।

मेड़बंदी के कार्य से लोगों को काम तो मिला ही, साथ ही खेतों का भी सुधार हुआ और उन खेतों में आज गेहूं, चना, लाही आदि की फसल हो रही है। सिंचाई की आवश्यकता कम हुई है।