सूखे से निपटने हेतु बंधी बांधने का एकल प्रयास

Submitted by Hindi on Thu, 04/18/2013 - 12:01
Source
गोरखपुर एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप, 2011
सूखे से निपटने हेतु एक परिवार ने अपनी क्षमता प्रदर्शित करते हुए अपनी खेती के बीचों-बीच से बहने वाले नाले को बांधा। जिससे न सिर्फ खेत की उर्वरता बहने से रुकी वरन् इनकी खेती भी दो फसली हो गई।

संदर्भ


विंध्य क्षेत्र के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों की आजीविका का मुख्य साधन खेती होते हुए भी लोग खेती से विमुख हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण स्थानीय भौगोलिक बनावट के साथ मौसम के प्राकृतिक बदलाव का ताल-मेल स्थापित न हो पाना है। यहां की जमीनें सामान्यतया उबड़-खाबड़ होने के कारण यहां पर पानी ठहर नहीं पाता, नतीजतन बारिश तो होती है, परंतु उसका कोई लाभ नहीं मिल पाता। दूसरे बदलती परिस्थितियों में बारिश कम होने से स्थितियाँ और भी दुरूह होती जा रही हैं। ऐसे समय में यहां की पहली प्राथमिकता पानी एकत्र करने की प्रक्रिया को प्रारम्भ करना, उसे मज़बूती से स्थापित करना है। आज जबकि मानवीय संवेदनाओं का सबसे संक्रमित काल चल रहा है। ऐसे समय में सामूहिक प्रयास की आस में बैठना कतई बुद्धिमानी नहीं होगी इसी सोच के साथ बंधी बांधने का कार्य अकेले किया जाना अनुकरणीय है।

प्रक्रिया


किसान की पृष्ठभूमि
जनपद चंदौली, विकास खंड नौगढ़, ग्राम होरिला के निवासी श्री छोटेलाल पुत्र श्री रामधनी जाति के चमार हैं। इनके परिवार के कुल 6 सदस्यों की आजीविका का साधन 1.6 एकड़ खेती है। अति विपन्नता झेल रहे श्री छोटेलाल की गरीबी का मुख्य कारण ज़मीन की कमी नहीं वरन् जमीन का समुचित प्रबंध न होना है। इनकी ज़मीन पहाड़ के नीचे है, जिसके बींचो-बीच से नाला बहता है। नाले में 3 किमी. दूर जंगल एवं पहाड़ से बरसात का पानी बहकर आता है, जो सीधे नदी में चला जाता है। इन्होंने बताया कि पानी की कमी तो नहीं थी, परंतु उसका उचित प्रबंधन न होने के कारण बहुत लाभदायक स्थिति नहीं थी। खरीफ की फसल में दान की खेती होती थी। वह भी सिंचाई के अभाव में बहुत अच्छा उत्पादन नहीं दे पाती थी, जिससे परिवार का खर्च मात्र 6 माह तक ही चल पाता था। शेष समय जीवनयापन के लिए वनोत्पादों एवं मजदूरी पर आधारित होना पड़ता था। ये जंगल से तेंदूपत्ता, महुआ, लकड़ी आदि लाकर उसे बाजार में बेचकर खाने का जुगाड़ करते थे। सिंचाई के अभाव में रबी की खेती एकदम ही नहीं हो पाती थी। इस स्थिति से निकलने हेतु इन्होंने विचार बनाया कि यदि खेत के बीचों-बीच बह रहे नाले के पानी को रोककर मोड़ दिया जाये, तो उसके माध्यम से खेत की सिंचाई हो सकती है। इससे एक तो हम दोनों फ़सलों का लाभ ले सकेंगे और दूसरे मिट्टी की कटान भी रुकेगी। इस विचार को मूर्त रूप देने के लिए उन्होंने नाले पर बंधी बनाया।

नाले पर बंधी निर्माण


तत्पश्चात् परिवार के सभी सदस्यों ने थोड़ा-थोड़ा सहयोग किया और 25 मीटर लम्बा, 3.125 मीटर ऊंचा एवं 6.25 मीटर चौड़ी बंधी बांधी गयी। इस बंधी के बांधने में लगे समय व श्रम का आंकलन किया जाये तो कुल 50 दिनों तक 4 व्यक्तियों ने काम कर इस बंधी को तैयार किया। बंधी में लगी लागत का विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है –

200 दिन x 60 रु. प्रतिदिन = 12000.00 लगा। उपरोक्त धनराशि छोटेलाल सहित उनके परिवार के 4 सदस्यों द्वारा किये गये श्रमदान का आंकलन है।

सिंचाई की सुविधा


बंधी बन जाने से अब उसमें एकत्र पानी से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो गयी है, जिससे छोटे लाल अपने खेत में दोनों सीजन में फसल उत्पादन कर पा रहे हैं। इसके साथ ही गर्मी के दिनों में पशुओं के पीने के लिए पानी की उपलब्धता भी सहज हो गयी है। खेत की मिट्टी एवं नमी भी संरक्षित हो रही है।

लाभ


वर्तमान में वर्षा का पानी बंधी में रोककर धान की फसल का अच्छा उत्पादन हो रहा है। तुलनात्मक तौर पर देखें तो पहले जहां एक एकड़ में 15 कुंतल की पैदावार होती थी, आज उसी खेत में एक एकड़ में 22 कुंतल की पैदावार हो रही है।

इसको बांधने से मिट्टी की कटान रुकी है। सबसे बड़ा फायदा तो यह हुआ कि यह अपनी 5 बिस्वा ज़मीन, जो पथरीली हो गयी थी, उस पर भी मिट्टी पाटकर खेती कर रहे हैं।

सब्जियों की खेती भी प्रारम्भ कर दिया है, जिससे बाजार से जुड़ाव भी रहता है और आर्थिक निर्भरता भी बनी रहती है। 2 बिस्वा खेत में मिर्च, टमाटर एवं बैगन की खेती कर रहे हैं।

नाला बंध जाने से ज़मीन भी मिली है। इन्होंने जंगल में अपनी ज़मीन भी बढ़ा लिया है।

खेती में बेहतर लाभ होने से पशुओं की संख्या भी बढ़ाई है। आज इनके पास 10 गाय है। धान का पुआल पशुओं को खिलाते हैं। इसके साथ ही पशुओं के लिए चरी भी अपने खेत में बो लेते हैं।

सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि अब इनके पास 12 महीने खाने का अनाज उपलब्ध हो जाता है। साथ ही सब्जियों की खेती से कुछ आर्थिक आय भी जाती है।