गृहवाटिका से महिलाओं ने किया सूखे का मुकाबला

Submitted by Hindi on Sat, 04/13/2013 - 15:28
Source
गोरखपुर एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप, 2011
सूखा हो या बाढ़ सर्वाधिक दिक्कत महिलाओं को ही होती है। अतः महिलाओं ने दैनिक उपभोग के पानी के पुनः उपयोग को ध्यान में रखते हुए गृहवाटिका को बढ़ावा देने का काम किया।

परिचय


विगत पांच-छः वर्षों से पड़ रहे सूखे के कारण लोगों की आजीविका प्रभावित हुई। लोग खेती से विमुख होने लगे। ऐसे में महिलाओं ने अपनी सोच का दायरा बदला। खेती के लिए पानी नहीं था, परंतु लोगों के दैनिक कामों में खर्च होने वाला पानी तो था। महिलाओं ने इसी पानी को अपनी सोच का केंद्र बिन्दु बनाया और नहाने, कपड़े, बर्तन आदि धोने से निकलने वाले पानी के पुनरुपयोग के विषय में चर्चा की। इनका मानना था कि गृहवाटिका तो हमारी पारंपरिक क्रिया है, परंतु उसे थोड़ा और विस्तारित करते हुए उसमें उत्पन्न होने वाली सब्जियों के लिए पानी की आवश्यकता पूर्ति इसी पानी से करके आमदनी बढ़ाई जा सकती है। इसी सोच के तहत् घर के आस-पास खाली पड़ी जमीनों पर इसी बेकार पानी के उपयोग से सब्ज़ियाँ आदि उगाने का काम ग्राम गौसगंज, विकास खंड अमरौधा, जनपद कानपुर देहात की महिलाओं ने शुरू किया।

प्रक्रिया


घर के आस-पास खाली पड़ी ज़मीन में लौकी, कद्दू, सेम, करेला, नेनुआ, कुंदरू, भिंडी, पालक, पोई, मूली, शलजम आदि सब्जियों के बीजों को लगा दिया जाता है। लतादार सब्जियों को घर की छान, छत पर चढ़ा देते हैं, उसके लिए अलग से कोई ढांचा बनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सिंचाई के लिए घर में प्रयुक्त होने वाले पानी को एकत्र करने के लिए एक गड्ढा बना देते हैं। उसी में पानी इकट्ठा होता रहता है और नाली बनाकर क्यारियों में पानी जाने का रास्ता बना देते हैं। समय-समय पर निराई, गुड़ाई व देख-भाल का काम महिलाएं अपने अन्य कार्यों में से समय निकाल कर करती रहती हैं और समय-समय पर तैयार सब्जियों की तुड़ाई, उनका प्रयोग एवं बिक्री कार्य भी महिलाएं ही करती हैं।

बीज रखने का तरीका एवं बिक्री


फल को पूरा पकने के बाद तोड़ कर छाया में सुखा कर उसे ऐसी जगह रखते हैं, जहां चूहा आदि न खा सके। बीज बोने के समय पुनः धूप में सूखाकर तब विक्रय करते हैं।