बीडीओ और अन्य अफसर आए तो अचरज से भर गए। लेकिन, योगेश और केशव निर्मल ग्राम पुरस्कार लेने नहीं गए। उस सरपंच को भेजा, जो राजनीतिक रंजिश में सारे कामों में पलीता लगाए हुए था। वह लौटा तो इस टीम का फैन बन गया। वह दिन था और आज का दिन है, गाँव में कोई गुट नहीं बचा।
किसी भी गाँव की साफ-सफाई में शौचालय का होना बेहद महत्त्वपूर्ण है। अगर गाँव वाले खुले में शौच करें तो गंदगी घर, शरीर और दिमाग में कब्ज़ा कर लेती है। वलनी तो आदर्श गाँव योजना में शामिल था। लेकिन, उसकी हालत भी दूसरे गाँव की तरह थी। लोग खुले में शौच करते। हमेशा बदबू आना गाँव का अभिशाप था। लेकिन, क्या हो सकता था? सब चाहते थे कि घर में ही शौचालय हो, पर सबसे बड़ी समस्या थी पानी का अभाव। एक बार शौचालय जाने में दो बाल्टी पानी खर्च होता। गाँव का एकमात्र हैण्डपम्प सैकड़ों बार चलने पर एक बाल्टी पानी देता। ये सबके बूते के बाहर था। तालाब के काम के लिये योगेश और केशव एक दिन बीडीओ के पास गए तो उन्होंने बताया कि निर्मल ग्राम पुरस्कार मिलने वाला है। एक लाख रुपये मिलेंगे। लेकिन, यहाँ के किसी गाँव को नहीं मिल सकता क्योंकि किसी भी गाँव में 100 फीसदी शौचालय नहीं हैं। योगेश और केशव ने कहा, हमारे गाँव को मिल सकता है। बीडीओ चकित। बोले-नहीं मिल सकता, क्योंकि 98 फ़ीसदी घरों में शौचालय नहीं हैं। योगेश-केशव ने कहा-बन जाएंगे। बीडीओ ने कहा-अगर ऐसा हो जाए तो क्या बात है। मैं अपनी जेब से 5000 रुपये दूंगा।
योगेश-केशव गाँव लौट आये। गाँव वालों के साथ बैठक की। गांव वालों ने कहा-नहीं हो सकता। सब हो जाए, पर मिस्त्री कहाँ है? बाकी का पैसा कहाँ से आएगा। योगेश ने अपनी जेब से 20000 रुपये देने का वादा किया तो तब तक उप सरपंच बन चुके केशव ने पंचायत से ईंट, रेत, सीमेंट देने की बात पक्की कर दी। हर शौचालय पर सरकारी हिसाब से 400 रुपये अनुदान भी मिलना था। हर शौचालय बनाने पर कुल खर्च 4000 रुपये आना था। यानी तकरीबन 1500 रुपये हर घर के मालिक को लगाने थे। वे तैयार हो गए। अब सवाल मिस्त्री का था। योगेश ने इस समस्या का हल भी निकल लिया। कहा- वे नागपुर से मिस्त्री लाएंगे, पर 5 बाई 5 बाई 5 का गड्ढा खुद खोदना होगा और मिस्त्री के साथ कुली का काम करना होगा। सब तैयार हो गए। फिर क्या था- रोज़ सुबह नागपुर के गिट्टीखदान चौराहे से योगेश अपनी मारुति-800 कर में 5 मिस्त्री लादकर गाँव तक लाते और गाँव के दो मिस्त्री। सात मिस्त्री रोज़ गाँव में हर दिन सात शौचालय तैयार कर देते। महीना बीतते-बीतते 120 शौचालय तैयार हो गए। बीडीओ और अन्य अफसर आए तो अचरज से भर गए। लेकिन, योगेश और केशव निर्मल ग्राम पुरस्कार लेने नहीं गए। उस सरपंच को भेजा, जो राजनीतिक रंजिश में सारे कामों में पलीता लगाए हुए था। वह लौटा तो इस टीम का फैन बन गया। वह दिन था और आज का दिन है, गाँव में कोई गुट नहीं बचा। हाल ही में आदर्श गाँव समिति की बैठक में इस उपलब्धि पर इतनी तालियाँ बजीं कि बहुप्रशंसित करोड़पति गाँव हिवरे बाज़ार के करता-धर्ता पोपटराव पवार भी शर्मा गए। उनके गाँव में तीन माह में तीन शौचालय ही बन पाए हैं। बस केशव डम्भारे को एक ही दुःख है कि दो घर अब भी छूट गए हैं।
(सुनील सोनी स्वभाव से कवि हैं और पेशे से पत्रकार। नागपुर से ही प्रकाशित हिंदी दैनिक लोकमत समाचार में मुख्य उपसंपादक हैं और जन-विषयों पर खूब लिखते हैं। उनसे 9922427728 पर संपर्क किया जा सकता है।)