एल-मोमेन्ट्स एवं पारम्परिक तकनीकों द्वारा विभिन्न प्रत्यागमन काल के लिए आंकलित बाढ़ की तुलना

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राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, चतुर्थ राष्ट्रीय जल संगोष्ठी, 16-17 दिसम्बर 2011
विभिन्न प्रकार की जल संसाधन परियोजनाओं/जलविज्ञानीय संरचनाओं जैसे कि बाँध, स्पिलवे, सड़क एवं रेलवे पुल, पुलिया, शहरी निकासी तन्त्र तथा विभिन्न संरचनात्मक उपायों जैसे कि बाढ़ क्षेत्र का निर्धारण, बाढ़ सुरक्षा परियोजनाओं का आर्थिक मूल्यांकन इत्यादि के लिए बाढ़ परिमाण एवं उनकी आवृत्ति सम्बन्धित सूचना की आवश्यकता होती है। सत्रहवीं शताब्दी में वैज्ञानिक जलविज्ञान की शुरूआत के समय से ही वैज्ञानिकों एवं अभियन्ताओं के लिए एक गम्भीर समस्या रही है कि आंकड़ों की उपलब्धता न होने की स्थिति में बेसिन में प्रवाह का पूर्वानुमान कैसे किया जाये।

जब कभी किसी महत्व के स्थान के नजदीक के वर्षा अथवा नदी प्रवाह के आंकडें उपलब्ध नहीं होते वैज्ञानिकों एवं अभियन्ताओं के लिए विश्वसनीय अभिकल्प बाढ़ आंकलन करना मुश्किल कार्य होता है। ऐसी स्थिति में क्षेत्र के लिए विकसित क्षेत्रीय बाढ़ आवृत्ति सह-सम्बन्ध, अभिकल्प बाढ़ के पूर्वानुमान, विशेषकर लघु एवं मध्यम आवाह क्षेत्र के लिए, एक वैकल्पिक विधि हो सकती है।

आवाह क्षेत्रों में पूर्वानुमान के महत्व को देखते हुए जलविज्ञानी विज्ञान की अन्तर्राष्ट्रीय संस्था (आइ.ए.एच.एस) ने एक विषेश कार्यक्रम “अमापित बेसिनों का पूर्वानुमान (पब्स)” की शुरूआत की तथा वर्तमान दशक को पब्स का दशक घोषित किया। भारतीय मानक ब्यूरो (बी.आइ.एस.) के अनुसार जलविज्ञानीय अभिकल्प मापदण्ड आवृत्ति आधारित बाढ़ का लगभग सभी जल विज्ञानीय संरचनाओं जैसे कि लघु आकार बाँध, बैराज, सड़क एवं रेलवे पुल, निकासी संरचनाएं, बाढ़ नियंत्रण संरचनाएं इत्यादि के लिए अभिकल्प बाढ़ के आंकलन में अनुप्रयोग होता है।

विशाल एवं मध्यम आकार के बाँधों के अभिकल्प के लिए क्रमशः संभावित अधिकतम बाढ़ तथा मानक परियोजना बाढ़ का अनुप्रयोग होता है। अधिकतर लघु आवाह क्षेत्र अमापित अथवा निम्न मापित होते हैं। इस अध्ययन में हिम एवं वर्षा पोषित क्षेत्र के आंकड़ों का उपयोग करते हुए एल-मोमेन्टस एवं पारम्परिक न्यूनतम वर्ग आधारित EVI वितरण विधि तथा पी.टी.-III विधि द्वारा विभिन्न प्रत्यागमन काल के लिए बाढ़ का आंकलन किया गया तथा प्राप्त परिणामों की तुलना की गई है।

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