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राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान
पर्याप्त निकासी तंत्र की व्यवस्था किये बिना सिंचाई परियोजनाओं के निष्पादन से भूजल पुनःपूरण एवं निस्सरण के बीच साम्यता प्रभावित हो गयी है, जिसके परिणाम स्वरूप भारत में सेच्य क्षेत्र में भूजल स्तर में अभिवृद्धि पायी गयी है। तवा सेच्य क्षेत्र सिंचाई अधिकता एवं नहर तंत्र से रिसाव के कारण जल बंधता की समस्या का सामना कर रहा है।
तवा सेच्य क्षेत्र में आई.आर.एस. एवं ऐ-लिस-1 आंकड़ों का उपयोग करते हुए जल बंधित क्षेत्र की व्युत्पत्ति के लिए यह अध्ययन आरम्भ किया गया। आई.आर.एस.-1 ऐ-लिस-1, 20 नवम्बर, 1989 तथा 23 मार्च 1989 की एफ.सी.सी. का उपयोग करते हुए तवा सेच्य क्षेत्र के लिए भूमि उपयोग एवं निकासी मानचित्र भी तैयार किये गये। जल बंधता से प्रभावित क्षेत्र तथा जल बंधता के प्रति संवेदनशील क्षेत्र की व्युत्पत्ति के लिए 19 मई 1988, 20 अक्टूबर 1988 तथा 20 नवम्बर 1989 के आई.आर.एस.-लिस-1 अंकीय आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। आई.आर.एस. द्वारा व्युत्पत्ति किये गये जल बंधित क्षेत्र को उपलब्ध भूजल स्तर गहराई आंकड़ों के साथ सत्यापन का प्रयास भी किया गया।
जल बंधित क्षेत्र की व्युत्पत्ति के लिए घनता खंडन एक उपयोगी अंकीय तकनीक हो सकती है। अध्ययन के परिणाम संकेत करते हैं कि अक्टूबर 1988 में 80 वर्ग किमी. का क्षेत्र जल बंधता से ग्रस्त था तथा लगभग 140 वर्ग किमी. क्षेत्र जल बंधता के प्रति संवेदनशील था, जहां भूजल स्तर 0 से 3 मीटर के बीच था। यह सुझाव दिया गया कि नियमित अंतराल पर सुदूर संवेदी तकनीकों का उपयोग करते हुए जल बंधित क्षेत्र का निर्धारण किया जाना चाहिए।
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तवा सेच्य क्षेत्र में आई.आर.एस. एवं ऐ-लिस-1 आंकड़ों का उपयोग करते हुए जल बंधित क्षेत्र की व्युत्पत्ति के लिए यह अध्ययन आरम्भ किया गया। आई.आर.एस.-1 ऐ-लिस-1, 20 नवम्बर, 1989 तथा 23 मार्च 1989 की एफ.सी.सी. का उपयोग करते हुए तवा सेच्य क्षेत्र के लिए भूमि उपयोग एवं निकासी मानचित्र भी तैयार किये गये। जल बंधता से प्रभावित क्षेत्र तथा जल बंधता के प्रति संवेदनशील क्षेत्र की व्युत्पत्ति के लिए 19 मई 1988, 20 अक्टूबर 1988 तथा 20 नवम्बर 1989 के आई.आर.एस.-लिस-1 अंकीय आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। आई.आर.एस. द्वारा व्युत्पत्ति किये गये जल बंधित क्षेत्र को उपलब्ध भूजल स्तर गहराई आंकड़ों के साथ सत्यापन का प्रयास भी किया गया।
जल बंधित क्षेत्र की व्युत्पत्ति के लिए घनता खंडन एक उपयोगी अंकीय तकनीक हो सकती है। अध्ययन के परिणाम संकेत करते हैं कि अक्टूबर 1988 में 80 वर्ग किमी. का क्षेत्र जल बंधता से ग्रस्त था तथा लगभग 140 वर्ग किमी. क्षेत्र जल बंधता के प्रति संवेदनशील था, जहां भूजल स्तर 0 से 3 मीटर के बीच था। यह सुझाव दिया गया कि नियमित अंतराल पर सुदूर संवेदी तकनीकों का उपयोग करते हुए जल बंधित क्षेत्र का निर्धारण किया जाना चाहिए।
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