गाजर घास से बन सकता है जैविक खाद

Submitted by Hindi on Wed, 08/31/2011 - 15:02
Source
याहू जागरण, 27 अगस्त 2011

सहरसा : मनुष्यों व पशुओं में एलर्जी पैदा करने वाला गाजर घास खेतों के लिए वरदान साबित हो सकता है। इससे कम लागत में जैविक खाद बनाकर किसान भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ा सकते हैं। खरपतवार विज्ञान अनुसंधान निदेशालय ने गाजर घास से कम्पोस्ट बनाने की पहल शुरू की है।

 

 

क्या है गाजर घास


गाजर घास खेतों की मेढ़ से लेकर हर जगह दिखाई देता है। इसका वैज्ञानिक नाम पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस है। वैसे तो यह पर्यावरण व जैव विविधता के लिए भी बड़ा खतरा है। लेकिन कम्पोस्ट तैयार होने के बाद इससे विषाक्त रसायन पार्थेनिन का पूर्णत: विघटन हो जाता है। मंडन भारती कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. आरसी यादव कहते हैं कि इस घास के परागकण से एग्जिमा, अस्थमा, त्वचा की बीमारी हो सकती है। इसके एक पौधे से 25 हजार बीज पैदा होते हैं जो कृषि उत्पादन को प्रभावित करता है।

 

 

 

 

कैसे बनता है कम्पोस्ट


गाजर घास से कम्पोस्ट तैयार करने के लिए वैसे खेत में तीन फुट का गढ्डा बनाकर समतल करना है जहां जलजमाव नहीं होता हो। फिर गढ्डे में गाजर घास को डालने के बाद सौ किलोग्राम गोबर, पांच से दस किलो यूरिया व एक ड्रम पानी डालना है। इसके अपघटन के लिए ट्राइकोडर्मा विरिड पाउडर डालना चाहिए। उसके बाद गढ्ड़े को गोबर, मिट्टी, भूसा आदि के मिश्रण के लेप से बंद कर दिया जाए। पांच-छह माह में गढ्ड़ा खोलने के बाद कम्पोस्ट निकालकर उसे धूप में सुखाकर थोड़ी देर ट्रैक्टर से रौंदा जाता है ताकि मोटे रेशे युक्त तने बारीक हो जाएं। इस कंपोस्ट को 2-2 सेमी छिद्रों वाली जाली से छानने के बाद इसे जैविक खाद के रुप में प्रयोग किया जा सकता है।

 

 

 

 

उपयोग के कई फायदे


इसके उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ ही उत्पादकता में वृद्धि होती है। इससे तैयार कम्पोस्ट में गोबर से दोगुनी मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त होता है। इसमें 1.05 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.84 फास्फोरस, 0.90 कैल्शियम, 0.55 मैग्नीशियम रहता है। इसका प्रयोग खेत की तैयारी व सब्जियों में पौधा रोपण या बीज बोने के दौरान किया जाता है।

जिला कृषि पदाधिकारी उपेन्द्र कुमार ने कहा कि किसानों को विभिन्न बैठक व सेमिनार में इसकी जानकारी दी जाती है। ''गाजर घास से जैविक खाद बनाकर पर्यावरण की सुरक्षा के साथ धनोपार्जन भी कर सकते हैं।''

डॉ. मनोज कुमार, कृषि विशेषज्ञ

 

 

 

 

वीडियो साभारः- कृषि और हम




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