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दैनिक भास्कर ईपेपर, 02 जून 2012

डॉ. श्कोब और उनके सहयोगियों ने बीते दिनों अपनी एक नई शोध के नतीजों के बारे में जानकारी देते हुए लिखा है कि सूर्य किरणें दिखाना पानी को सुरक्षित बनाने का आसान और प्रभावी उपाय है। यूनीसेफ ने भी इसका महत्व समझते हुए इसे निम्न आय देशों में नीति के रूप में अपनाया है। अगर पॉलीथिन टेरीथैलेट; पेट प्लास्टिक की बोतल में पेयजल को भरकर आधे घंटे के लिए सूर्य की किरणों में रख दिया जाए तो इससे रोग पैदा करने वाले बहुत से बैक्टीरिया मर जाते हैं। डॉ. श्कोब के दल की नई खोज यह है कि अगर पेय जल को सूर्य की किरणों में रखने से पहले उसमें नींबू का रस निचोड़ दिया जाए तो यह नुस्खा और अधिक प्रभावी बन जाता है।
अमेरिकन जर्नल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड हाइजिन के ताजा अंक में प्रकाशित शोध के अनुसार अगर दो लीटर पानी में आधा नींबू निचोड़ दिया जाए और उसे 30 मिनट के लिए सूर्य की किरणों में छोड़ दिया जाए तो उससे एशेरिशया कोलाई, एमएस-2 बैक्टीरियाफैज जैसे सूक्ष्म रोग-कारक जीव बड़ी संख्या में नष्ट हो जाते हैं। यह सरल नुस्खा उन प्रदेशों के लिए बहुत उपयोगी है, जहां राज्य सरकारें सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने में नाकामयाब रही हैं। यह सवाल भी उठता है कि क्या हमारे पूर्वज पहले से ही इस सच से वाकिफ थे? मेहमानों को नींबू पानी पिलाने की परंपरा देश में सदियों से है। अब डॉ. श्कोब की खोज से इसे एक नया आयाम मिला है।