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लोकसभा टीवी
भारतीय सभ्यता, संस्कृति, धर्म और अध्यात्म की बातें गंगा की चर्चा किये बिना अधूरी हैं। सदियों से भारत की धरती पर बहती हुई गंगा इस देश की पहचान बनी हुई हैं, वह पहचान अब खोती जा रही है। धर्म ग्रथों में पढ़ते व महापुरुषों से सुनते आये हैं कि जब धरती से गंगा विलुप्त होंगी, तब प्रलयकाल निश्चित है। क्या पता वह प्रलयकाल अब आ गया हो! कहा गया है कि विनाशकाले विपरीत बुद्धि! हमारे देश की पहचान मिटाने वालों ने अब गंगा पर भी हमला बोल दिया।पहले गंदगी व सीवर के नाले गंगा के मुहाने पर खोल दिये गये। गंगा तब भी विचलित नहीं हुई और अविरल बहती रहीं। फिर आधुनिकता का लबादा ओढ़े पढ़े-लिखों ने अविरल बहती गंगा के प्रवाह को ही अवरुद्ध कर दिया और अनेक बांध बना दिये। जल तो जीवन है। इसे बचपन से बच्चों को पढ़ाया, सिखाया जाता है। फिर पवित्र व धार्मिक गंगा नदी पर बांध बनाकर गंगा का गला घोंटने जैसा आत्मघाती व दु:साहसपूर्ण कदम क्यों उठाया गया? अब गंगा को तो प्रदूषित होना ही था और गंगा प्रदूषित भी हों गईं। बांध बनाने के कदम के बाद प्रदूषित हुई गंगा को प्रदूषणमुक्त करने के लिए हजारो करोड़ की परियोजनाएं बनाकर देश की जनता को अंधेरे में रखने का कुप्रयास जारी है। काशी में गंगा पूरी तरह शांत है! गंगा में पहले-सी चंचलता नहीं है।
गंगा नदी में गंगा का पानी नहीं है। आज इस देश में कोई स्त्री हृदय से यह गीत गाने की हिम्मत नहीं कर सकती- गंगा मइया में जब तक कि पानी रहे, मेरे सजना तेरी जिन्दगानी रहे। क्योंकि भारतीय स्त्री अपने पति का साथ सात जन्मों के लिए मांगती है। कितना विश्वास था इस देश की जनता को कि गंगा का जल कभी समाप्त नहीं होगा। बीसवीं और इक्कीसवीं सदी के कपूतों ने गंगा मां को न सिर्फ कैद किया बल्कि उनका गला घोंट दिया। हजारों-लाखों वर्षो से गंगा करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं से जुड़ी हुई हैं। यह धार्मिक सत्य है कि गंगा को धरती पर राजा भगीरथ लेकर आये थे न कि ये आधुनिक वैज्ञानिक। अभी कुछ वर्षो पूर्व तक गंगा जल को बोतल में बंद कर महीनों-वर्षो तक रखने पर भी उसमें कीड़े नहीं पड़ते थे। अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। गंगा प्रदूषित हो चुकी हैं। चौंकाने वाली स्थिति यह है कि काशी में गंगा विपरीत बह रही हैं। क्या उलटी गंगा बहा रहे हो वाला मुहावरा काशी में आज वास्तव में सच हो रहा है। दु:ख के साथ कहना पड़ रहा है कि गंगा को कैद कर गंगा की ऐसी दुर्दशा तक पहुंचाने वाले ये लोग वैज्ञानिक हों या कोई और हों, लेकिन वे हैं इसी देश के और उनकी आंखों पर अहं की पट्टी चढ़ी हुई है और वे बहरे हो गये हैं।
देश की जनता धर्मभीरू है। जिस दिन उसे यह आभास हो गया कि वास्तव में गंगा के साथ ही देश का अस्तित्व भी जुड़ा हुआ है, उस दिन वह सड़कों पर होगी और किसी की नहीं सुनेगी। स्थिति की गंभीरता को पूर्ण विवेक के साथ समझने की जरूरत है। आखिर संतों को कुछ तो आभास हुआ होगा जिसके कारण वे अनशनरत होकर प्राण देने पर आमादा हैं। गंगा पर जितने भी बांध बने या बनाये जा रहे हैं। टिहरी तक आते-आते स्थिति पूरी तरह बिगड़ गई है। टिहरी में तो गंगा का गला ही घोंट दिया गया है। टिहरी में गंगा को कैद करते समय देश की जनता को काफी सब्जबाग दिखाये गये कि बिजली का कष्ट दूर हो जाएगा। लेकिन टिहरी परियोजना का सच यह है कि टिहरी बांध के पूर्व और उसके बाद भी विद्युत आपूर्ति काफी दयनीय है। जल विद्युत परियोजनाओं की पुनर्समीक्षा किये जाने का यही उचित समय है। गंगा प्रदूषण दूर करने के लिए यदि गंगा के बराबर भी धन बहा दिया जाय, तब भी गंगा प्रदूषण मुक्त नहीं होंगी। गंगा प्रदूषण मुक्त होकर अपनी अविरलता को पुन: तभी प्राप्त कर सकेंगी जब उनकी धारा बांधों से मुक्त कर पुन: प्रवाहित किया जाएगा।