स्वामी सांनद उर्फ प्रो. जीडी अग्रवाल का पूरा जीवन नदियों के संरक्षण को लेकर ही समर्पित रहा और गंगा की रक्षा के लिए ही उन्होंने बीते वर्ष 11 अक्टूबर को अनशन के 112वे दिन ऋषिकेश स्थित एम्स में प्राण त्याग दिए थे, लेकिन गंगा पुत्र (स्वामी सानंद) के निधन के एक वर्ष बाद भी कुछ नहीं बदला। सरकार ने उनकी मांगों को अभी तक नहीं माना। नदियों का प्राकृतिक प्रवाह निर्धारित नहीं किया गया। हरिद्वार में भोगपुर से बिशनपुर कुंडी तक गंगा के पांच किलोमीटर के दायरे में प्रतिबंध के बावजूद भी खनन धड़ल्ले से चल रहा है। नेशनल मिशन फाॅर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) के आदेश को हरिद्वार जिला प्रशासन ने ताक पर रखा हुआ है। तो वहीं उत्तराखंड की वादियों में बांध बनाकर पर्यावरण को क्षति पहुंचाने का कार्य भी जारी है, लेकिन गंगा का प्राकृतिक प्रवाह निर्धारित न करने का नुकसान ये हुआ की मानवीय गतिविधियों के कारण गंगा दूषित होती चली गई और गंगा अपने प्राकृतिक स्वरूप को भी खोती जा रही है। इसलिए गंगा के प्राकृतिक प्रवाह को लेकर स्वामी सानंद ने 11 अक्टूबर को निधन से एक घंटे पहले गंगा के प्राकृतिक प्रवाह को लेकर अस्पताल से ही एक वीडियो जारी किया था। जो कि स्वामी सांनद का अंतिम वीडिया संदेश है।
वीडिया के माध्यम से स्वामी सानंद ने कहा कि वर्ष 1916 में स्वर्गीय पंडित मदन मोहन मालवीय सहित 32 हिंदु प्रतिनिधियों की समिति जब गंगा के अविरल प्रवाह के बारे में चर्चा कर रही थी तो हरकी पैड़ी पर वर्ष के किसी भी समय और किसी भी मौसम में गंगा का प्रवाह एक हजार घन फीट पानी प्रति सेकेंड रखने पर समझौता हुआ था। इस प्रवाह को कई लोगों ने बाद में पूरे देश में लागू किए जाने वाला प्रवाह समझ लिया और समझौते के अनुसार पूरे देश में इसी प्रवाह को लागू किए जाने की बात कही, लेकिन जब कृष्ण मोहन मालवीय विगत 23 जुलाई 2018 को स्वामी सांनद से मिलने हरिद्वार स्थित मातृसदन आए तो उन्हें यह बात समझ आयी कि सभी स्थानों पर गंगा का प्रवाह एक-सा नहीं रखा जा सकता।
स्वामी सानंद ने कहा था कि आईआईटी के कई वैज्ञानिक व विशेषज्ञों की टीम ने शोध कर वैज्ञानिक आधार पर गंगा का प्रवाह 50 प्रतिशत निर्धारित किए जाने की बात कही थी, लेकिन सरकार ने आईआईटी कानपुर के एक समूह को वर्ष 2010-11 में एक ड्राफ्ट सौंपा था जिसमें वैज्ञानिक आधार दर्शाए बिना ही जून से सितंबर तक गंगा का प्रवाह 30 प्रतिशत, अक्टूबर, अप्रैल और मई में 25 प्रतिशत और नवंबर से मार्च तक न्यूनतम 20 प्रतिशत रखना दर्शाया गया था, जो गंगा का अपमान है। वीडिया में कहा गया कि बरसात की अपेक्षा अन्य मौसम में पानी का प्रवाह गंगा में अधिक होना चाहिए।
प्राकृतिक प्रवाह को लेकर समझौते की पूरी जानकारी के लिए पूरा वीडियो देखें ..................
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