केवल मंत्रालय का नाम बदलने से गंगा नहीं बचेगी

Submitted by Shivendra on Thu, 10/17/2019 - 16:25

राजेंद्र सिंह (जल पुरुष)

देश विदेश के किसी भी मंच पर जब भी गंगा नदी के संरक्षण की बात होगी, तो स्वामी सानंद के बलिदान को याद किया जाता रहेगा। स्वामी सानंद का ये बलिदान कई सोए हुए जल योद्धाओं को जगाने का कार्य तो कर गया, लेकिन अभी तक अपेक्षाकृत परिणाम प्राप्त नहीं हुए हैं। स्वामी सानंद का जैसा मानना था, उसका दस प्रतिशत कार्य भी अभी तक सरकार की तरफ से नहीं हुआ है और न ही जनता में कोई जागरुकता नजर आ रही है, लेकिन कई नए लोग हैं, तो स्वामी सानंद के इस अभियान से जुड़ रहे हैं और मातृसदन के साथ कंधे-कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। इसके स्वामी सानंद के मित्र और जल पुरुष के नाम से विख्यात डाॅ. राजेंद्र सिंह भी हैं। पेश है डाॅ. राजेंद्र सिंह की हिमांशु भट्ट से बातचीत-


स्वामी सानंद के निधन के एक साल बाद क्या बदलाव आया ?

मां गंगा की रक्षा के लिए स्वामी सानंद उर्फ प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के निधन को एक साल हो गया है। मां गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए अपने जाने से पहले स्वामी सानंद सोच रहे थे कि उनके बलिदान के बाद मां गंगा की आत्मा को बचाने के लिए ये देश/समाज खुद जग जाएगा, लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ हुआ नहीं। हालाकि उनके बलिदान के बाद देश के सभी भागों - उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में गंगा के संरक्षण के लिए चर्चा होने लगी है। स्वामी सानंद ने गंगा के लिए कठिन तप किया, लेकिन सरकार की अनदेखी में जिम्मेदारी को समझा नहीं गया। परिणामतः सरकार ने जो भी पैसा गंगा पर खर्च किया, उससे बांध और घाट आदि बनाए गए, जो आज भी निरंतर जारी है। इससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार को मां गंगा की असली बीमारी के बारे में नहीं पता है। मां गंगा को हृदय रोग की बीमारी है। हृदय रोग प्रवाह रुकने से होता है, लेकिन इसका इलाज करने वाले दांतों के डाॅक्टर हैं। इलाज के नाम पर घाट बनाए जा रहे है। स्वामी सानंद को भी इसी बात का दुख था। 

प्रवाह रोकने से गंगा में गंगत्व समाप्त हो गया है, इसलिए स्वामी सानंद गंगा की धारा में अविरलता चाहते थे। इसके लिए वे एक कानून बनाना चाहते थे। उन्होंने और हम सबने मिलकर वर्ष 2011 में गंगा का एक ड्राफ्ट बनाया और फिर 2012 में भी बनाया। उसके बाद फिर 2014 में हम सोच रहे थे कि ड्राफ्ट पास हो जाएगा। ड्राफ्ट को देखकर प्रधानमंत्री ने गंगा के प्राकृतिक प्रवाह के लिए एक कमेटी बनाई। उस कमेटी में मैं भी था। हम लोगों ने तब उस कमेटी की एक्पर्ट कमेट में ये सुझाव दिया था कि मां गंगा ‘ए श्रेणी’ की नदी है और ‘ए श्रेणी’ की नदी को गंगा के विज्ञान के अनुसार 62 प्रतिशत प्राकृतिक प्रवाह चाहिए, लेकिन दस अक्टूबर 2018 को भारत सरकार ने जो प्राकृतिक प्रवाह अधिसूचित किया उसमें केवल लीन सीजन में 20 प्रतिशत जल प्रवाह देने का निश्चय हुआ। इससे स्वामी सानंद काफी परेशान हुए। इसके बाद ही उन्हें जीने का मन नहीं किया, लेकिन अस्पताल में स्वामी सानंद के साथ जो हुआ वो दुर्भाग्पूर्ण है। ये किसी व्यक्ति विशेष का नुकसान नहीं बल्कि देश का नुकसान है। ये सरकार अच्छी सरकार तभी मानी जाएगी जब अपनी गंगा को अविरल बनाए, गंगा की अविरलता हो और फिर देश की अविरलता हो। 

हाल ही में ‘जलशक्ति मंत्रालय’’ का गठन किया गया है, तो मंत्रालयों का नाम बदलने से कितना फर्क पड़ेगा ? क्या इससे नदियों और जल को संरक्षित करने में सफलता मिलेगी ?

केवल मंत्रालयों के नाम बदलने से काम नहीं होता। मंत्रालयों का नाम बदलने से उलझन और जनता में अविश्वास पैदा होता है, कि आपने पिछली बार तो कहा था कि ‘‘मैं गंगा का बेटा हूं। मां गंगा ने मुझे बुलाया है। गंगा ने मुझे कुछ बनाया है, तो मैं गंगा को अविरल-निर्मल बना दूंगा।’’ लेकिन इस साल गंगा को भूल गए और उसी मंत्रालय का नाम बदलकर जलशक्ति मंत्रालय रख दिया। इससे जनता में अविश्वास होगा कि क्यों मंत्रालयों का बार-बार नाम बदला जा रहा है। गंगा को यदि पुनर्जीवित करने का संकल्प था, पुनर्जीवित करने के लिए मंत्रालय बनाया था, तो वो काम क्यों नहीं किया ? क्यों उस काम में इतना पैसा बर्बाद किया जा रहा है ? केवल ठेकेदारों की जेब में पैसा जा रहा है, लेकिन गंगा का कुछ भला नहीं हो रहा है, किंतु अभी भी समय है, गंगा को बचाया जा सकता है। गंगा पर जो बांध बन गए हैं, उन बांधों पर इंजीनियरिंग और तकनीकी तौर पर फिर से प्राकृतिक प्रवाह देने के सिस्टम बनाए जा सकते हैं, वो भी बांधों को तोड़े बिना। नए बांधों को रद्द कर दिया जाए और भविष्य में कोई बांध नहीं बनना चाहिए। ये कार्य सरकार को करना चाहिए। सौर ऊर्जा पर अधिक से अधिक कार्य करने की आवश्यकता है।

देश को बेपानी होने से कैसे बचाया जा सकता  है ?

पानी के लिए यदि काम करना है तो फिर हमें वास्तव में काम करना पड़ता है, लेकिन आज जो हम बेपानी होते जा रहे हैं, इसका कारण पानी का ठीक से प्रबंधन न होना है। हमें इस समय विकेंद्रीकृत जल प्रबंधन का कार्य करने की जरूरत है, जो ठेकेदार और काॅर्पोरेट फ्री काम है। भूजल को रिचार्ज करने के प्रबंध करने की व्यवस्था करनी होगी। देश के प्रत्येक नागरिक को जल संरक्षण के प्रति खुद की जिम्मेदारी और कर्तव्य को समझना होगा।
 

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