आमरण अनशनरत प्रो. जीडी अग्रवाल (जो स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद के नाम से विख्यात थे) के बीती ग्यारह अक्टूबर को निधन ने सभी को बेहद व्यथित कर दिया है। वह गंगा के लिये अलग से एक्ट तथा उत्तराखण्ड में तमाम जलविद्युत परियोजनाओं को रद्द करने की माँग को लेकर बीती 22 जून से आमरण अनशन पर बैठे थे। सरल और मृदुभाषी प्रो. जीडी अग्रवाल (स्वामी सानंद) आत्मबल के धनी थे। गंगा नदी को शुद्ध करने की मुहिम में जुटे थे। इस लड़ाई को अकेले दम लड़ रहे थे।
इससे पहले भी यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान वे पाँच दफा-2008, 2009, 2010, 2012 तथा 2013 में- अनशन पर बैठे थे। इन अनशनों के उपरान्त भारत सरकार ने भगीरथी नदी पर निर्माणाधीन अनेक जल विद्युत परियोजनाओं को रद्द करने का फैसला किया था। साथ ही, गोमुख से उत्तरकाशी तक नदी के 135 किमी लम्बे हिस्से को पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील घोषित किया था।
23 अगस्त, 2010 को तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने डॉ. अग्रवाल को भेजे पत्र में बताया था कि भारत सरकार ने तीन जल विद्युत परियोजनाओं को रद्द करने का फैसला किया है। साथ ही, पर्यावरण अधिनियम, 1986 के तहत नदी के गोमुख से उत्तरकाशी तक के 135 किमी लम्बे हिस्से को पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील घोषित करने का भी निर्णय लिया है। अपने फैसलों का औचित्य स्पष्ट करते हुए वित्त मंत्री ने प्रो. अग्रवाल को बताया था कि हमारे जीवन और संस्कृति में गंगा को पावन माने जाने तथा हमारी सभ्यता का मूलाधार होने के चलते हमने ये फैसले किये हैं।
प्रो. अग्रवाल पूर्व में इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर में शिक्षक थे। वह केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव का दायित्व भी निभा चुके थे। इन शुरुआती वर्षों में उनके सम्पर्क में आये लोग आज उन्हें बड़ी शिद्दत से याद कर रहे हैं। उनके कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते नहीं थक रहे। जून माह से पूर्व उन्होंने 24 फरवरी, 2018 को भी अनशन किया था। तब प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था। ‘मेरे प्रिय अनुज नरेन्द्र मोदी’ के सम्बोधन से अपने पत्र को आरम्भ करते हुए उन्होंने घोषणा की थी कि वह अपनी माँगों को लेकर 22 जून, 2018 से आमरण अनशन पर बैठने की योजना बना रहे हैं।
मोदी को उनके चुनावी वादे का स्मरण कराते हुए उन्होंने कहा था कि यकीनन मोदी नदी के उद्धार के लिये कुछ-न-कुछ जरूर करेंगे क्योंकि वह स्वयं को गंगापुत्र कह चुके हैं। उम्मीद जताई थी कि नदी को निर्मल बनाने की गरज से मोदी सरकार अवश्य ही कोई प्रभावी उपाय करेगी। लेकिन वे गहरी निराशा में डूब गए।
गुस्से से तमतमाए, जो उनका स्वभाव नहीं था, प्रो. अग्रवाल ने मोदी को पत्र लिखा कि गंगा की धारा को निर्मल करने के बजाय वे या तो जलमार्ग बनाने में जुटे हैं या नदी की धारा को मोड़ रहे हैं, बेतहाशा ड्रेजिंग कर रहे हैं, नए-नए प्रोजेक्ट्स तैयार करा रहे हैं यानी कहना यह कि नित नए अनुबन्ध कर रहे हैं। अग्रवाल ने हिन्दी में लिखे अपने पत्र में अपनी माँगों का उल्लेख किया था।
पहली माँग थी, अलकनन्दा नदी पर निर्माणाधीन विष्णुगाड पिपलकोटी जल परियोजना पर कार्य रोका जाये; मन्दाकिनी नदी पर निर्माणाधीन सिंगोली भटवाड़ी तथा फाटा व्योंग जल परियोजनाओं पर काम रोका जाये। साथी ही अलकनन्दा नदी की जल वाहिकाओं पर निर्माणाधीन सभी परियोजनाओं पर काम रोका जाये। दूसरी माँग थी, दो वर्ष पूर्व एनडीए सरकार द्वारा गठित जस्टिस गिरधर मालवीय कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक गंगा संरक्षण बिल का मसौदा तैयार करके संसद में पेश किया जाये। इसे पारित कराकर क्रियान्वित किया जाये।
इस कार्य में हुए विलम्ब को जवाबदेही तय करते हुए दोषी सभी अधिकारियों और मंत्री को उनके पदों से हटाया जाये। तीसरी माँग थी, बीस सदस्यीय गंगा काउंसिल गठित की जाये, जिसमें गंगा के उद्धार के लिये प्रतिबद्ध सरकारी और गैर-सरकारी व्यक्तियों को रखा जाये। काउंसिल को वैधानिक दर्जा दिया जाये ताकि नदी को प्रभावित करने वाले किसी भी मसले पर वह अपने स्तर पर फैसले करने में सक्षम हो। अग्रवाल ने अपने पत्र में स्पष्ट कर दिया था कि वह सरकार के जवाब का गंगा अवतरण दिवस (गंगा का जन्मदिन) 22 जून तक इन्तजार करेंगे।
सरकार ने शिथिलता दिखाई तो उस दिन से आमरण अनशन पर बैठ जाएँगे। उन्होंने कहा कि उनके लिये गंगा से ज्यादा कुछ नहीं। यदि उन्हें प्राण त्यागने पड़े तो माँ गंगा और भगवान राम से विनती करुँगा कि मोदी को उनके अग्रज की मृत्यु के लिये अवश्य दंडित करें। अग्रवाल को सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। उन्होंने 13 जून, 1918 को एक और पत्र मोदी को लिखा।
मातृसदन हरिद्वार से लिखे गए पत्र में अगवाल ने अपनी माँगों को दोहराया। माँग की कि अलकनन्दा, मन्दाकिनी, धौलीगंगा, नन्दाकिनी और पिंडरगंगा पर निर्माणाधीन सभी जलविद्युत परियोजनाओं को तत्काल रोका जाये। यह भी माँग की गंगा के किनारे से रेत उत्खनन खासकर हरिद्वार के निकट किये जा रहे रेत उत्खनन को रोका जाये। उन्होंने फिर से 22 जून की अन्तिम तारीख लिखी कि उस दिन तक उनकी माँगों पर गौर नहीं किया तो वे भोजन त्याग कर प्राण त्याग देंगे जिसके लिये प्रधानमंत्री जिम्मेदार होंगे।
सरकार की ओर से उसके बाद भी कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला तो वे 22 जून, 2018 को आमरण अनशन पर बैठते हुए अपना तीसरा पत्र (पूर्व में लिखे गए दोनों पत्रों की प्रतियाँ इसके सात संलग्न करते हुए) प्रधानमंत्री को लिखा। तीन अगस्त 2018 को केन्द्रीय मंत्री उमा भारती ने अग्रवाल से भेंट की लेकिन उनकी माँगों पर कोई खास चर्चा नहीं हुई।
अग्रवाल ने फिर से प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। भारती के जरिए भेजे गए इस पत्र में उन्होंने कहा कि बीते चार साल में मोदी सरकार के कार्यकाल में गंगा जी को बचाने के लिये कुछ नहीं किया गया। नौ अक्टूबर को जल त्याग देने के समय भी उन्होंने सरकार को पत्र लिखा तो सरकार ने उन्हें जबरन उठाकर 10 अक्टूबर को एम्स ऋषिकेश में भर्ती करा दिया जहाँ उन्होंने अन्तिम साँस ली।
जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरोद्धार मंत्री नितिन गडकरी से उन्नाव तक गंगा के बेसिन को स्वच्छ रखने सम्बन्धी अधिसूचना जारी करते हुए अग्रवाल से आग्रह किया कि गंगा को स्वच्छ और निर्मल रखे जाने के इस उपाय के बाद तो उन्हें अपना अनशन त्याग देना चाहिए। लेकिन गाँधी जी के अनुयायी प्रो. जीडी अग्रवाल ने गाँधी जी के जन्म के 150वें वर्ष में इस नश्वर संसार से विदा ले ली। अब उनके अधूरे कार्य को आगे बढ़ाने के लिये जन-जन को आगे आना होगा।
(लेखक साऊथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम, रिवर्स और पीपुल्स के समन्वयक हैं)
Source
राष्ट्रीय सहारा, 13 अक्टूबर, 2018