मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, प. बंगाल, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कश्मीर, लद्दाख...तमाम राज्यों में मौजूदा दक्षिण पश्चिम मानसून में भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर बारिश सामान्य से 10 प्रतिशत कम दर्ज किए जाने से गुजरात, पश्चिमी राजस्थान, केरल, ओडिशा और पूर्वोत्तर भारत में सुखाड़ का अंदेशा पैदा हो गया है। बाढ़ ने कुछ राज्यों में हाहाकार मचा दिया और कई मामलों में नदियों में जलस्तर अप्रत्याशित स्तर तक बढ़ गया।
ध्यान से देखें तो भीषण बाढ़ की करीब-करीब सभी घटनाओं के बीच मानव-निर्मित कारक थे। इस कारण घटनाएं ज्यादा नुकसानकारी रहीं। जलवायु परिवर्तन भी बड़ा कारण है, जिसने बाढ़ की विभीषिका को बढ़ा दिया है। समय रहते नहीं चेते तो इंसानी करतूतों का बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। जिस तरह से जलवायु परिवर्तन में बदलाव हो रहे हैं, उनसे आने वाले समय में ज्यादा से ज्यादा मौसमी कहर का सामना करना पड़ सकता है। बेशक, हमें प्रमुख विकास परियोजनाओं संबंधी फैसले करने ही होते हैं, लेकिन सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इनके कार्यान्वयन ऐसे न हों, जिनसे जलवायु परिवर्तन की स्थिति में और ज्यादा बिगाड़ आने का अंदेशा पैदा हो जाए।
इस महीने के शुरुआती दिनों में आईपीसी की छठीं आकलन रिपोर्ट जारी की गई जिसमें इस बाबत चेताया गया है। लेकिन कहीं से भी नहीं लगता कि सरकार के कान पर जूं भी रेंगी हो। वह जमीनी स्थिति से अनभिज्ञ बनी हुई है।
'जलवायु परिवर्तन’ ने बारिश होने के तौर-तरीकों को बदल डाला है। कभी बेतहाशा बारिश होती है, तो कभी बेहद घनी। इस साल बल्कि कहें बीते सालों में बरसात ज्यादा तो कहीं बेहद घनी हुई है। जरूरी हो गया है कि ज्यादा से ज्यादा स्थानिक निगरानी की जाए। पूर्वानुमान सटीक होने चाहिए जिनमें ज्यादा समय अंतराल को कवर किया जाता हो। भीषणता से निपटने के लिए यथासंभव तैयारी की जानी चाहिए। मानव-निर्मित और प्राकृतिक अवसंरचनात्मक आधारों के रखरखाव और परिचालन में सुधार होने चाहिए।
क्या कहा जा सकता है कि हम इन तमाम एहतियात की परवाह कर रहे हैं? मौजूदा मानसून में बाढ़ की घटनाओं को देखें तो पाएंगे कि कहीं से भी नहीं लगता कि ऐसी कोई तैयारी है, या ऐसी मनस्थिति है। कुछ उदाहरणों से इस सच्चाई को समझा जा सकता है।
इंसानी हरकतों से स्थिति में बिगाड़
महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के जिलों खासकर रायगढ़ (सावित्री नदी), रत्नागिरी (बाव नदी और वशिष्टि नदी) और सिंधुदुर्ग (गाड नदी) में 22-23 जुलाई 2021 को अप्रत्याशित और बेतहाशा बाढ़ आई। कुछ इंसानी हरकतों के चलते इस क्षेत्र को गंभीर बाढ़ का सामना करना पड़ा। कोयना बांध से पानी छोड़ा जाना, एश बांध क्षतिग्रस्त होना और बाढ़-संभावित इलाकों में भवन निर्माण जैसे कारकों के साथ ही अनेक ऐसे कारक रहे जिनके लिए मानवीय गतिविधियों को जिम्मेवार ठहराया जा सकता है। महाराष्ट्र में बीते समय इस प्रकार की आपदाओं से कोई सबक नहीं सीखा जाना भी प्रमुख कारक रहा जिसके चलते इस क्षेत्र में अभूतपूर्व बाढ़ आई।
गोवा के निकटवर्ती क्षेत्रों (महादायी नदी और खादेरपार नदी) और कर्नाटक (अग्नाशिनी नदी) में भी उन्हीं दिनों जल उच्चतम स्तर (एचएफएल) तक पहुंच गया। महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले (वर्धा नदी), तेलंगाना के आदिलाबाद जिले (पेनगांगना नदी) और हरियाणा के पलवल जिले में (यमुना नदी) में उसी हफ्ते जल स्तर एचएफएल को पार कर गया। कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड और हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में जुलाई और अगस्त के महीनों में फ्लैश फ्लड, भूस्खलन की बेहिसाब घटनाएं हुईं, जिनमें जान- माल का खासा नुकसान हुआ। इन हिमालयी राज्यों में संवेदनशील पहाड़ों पर जल-बिजली परियोजनाओं, सड़कों, इमारतों और अन्य निर्माण कार्यों के लिए बेतहाशा खुदाई की गई। इससे फ्लैश फ्लड और भूस्खलन के लिए माकूल हालात बन गए।
बाढ़ बनी मौत का कारण
हिमाचल प्रदेश में किन्नौर और लाहौल-स्पीति और उत्तराखंड में चमोली (तपोवन विष्णुगाड हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट) के लोग विध्वंसकारी परियोजनाओं के विरोध में सड़क पर उतर आए। अनेक जगहों पर लैंडस्लाइड डैम से स्थिति में ज्यादा बिगाड़ आया। अगस्त के शुरुआती दिनों में दामोदर नदी में बाढ़ से पश्चिम बंगाल के अनेक क्षेत्र प्रभावित हुए। इस कदर कि मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को दामोदर वैली कॉरपोरेशन डैम से पानी छोड़े जाने के खिलाफ चिट्ठी लिख भेजी। पानी छोड़े जाने से बाढ़ के हालात गंभीर हो गए थे। उसी सप्ताह ऐसी खबरें आई थीं कि बांधों से पानी छोड़े जाने से पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों और नदियों में बाढ़ आ गई।
बांधों से पानी छोड़ा जाना
अगस्त के पहले सप्ताह में ही मध्य प्रदेश और पूर्वी राजस्थान के बड़े हिस्से में भीषण बाढ़ आई। इन क्षेत्रों में बांधों से वड़ी मात्रा में पानी छोड़ा गया था। मध्य प्रदेश के दतिया जिले (सिंध नदी), राजस्थान के कोटा जिले (पार्वती नदी और चंबल नदी) और उत्तर प्रदेश के इटावा और औरैया जिलों (चंबल नदी और यमुना नदी) में भी जलस्तर एचएफएल से ऊपर चढ़ गया था। गंगा नदी में जलस्तर बढ़ गया। जलराशि बढ़ गई। बलिया में गंगा नदी में जलस्तर एचएफएल को पार कर गया। बिहार के गांधी घाट में भी गंगा का जल एचएफएल से ऊंचा था।
बिहार में हाथीदाह (पटना जिला) और भागलपुर जिले में गंगा नदी का जल एचएफएल से ऊंचा रहा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि अगस्त, 2016 में भी ऐसी ही भीषण वाढ़ राज्य में आई थी। 'फरक्का बांध ने खासी अड़चनें पैदा कर दी थीं। गंगा और इसकी जलवाहिकाओं में जल निकास अवरुद्ध हो गया था, गाद बढ़ गई थी, और प्रवाह धीमा पड़ गया था। हाथीदह में गंगा का स्तर एचएफएल से ऊंचा हो गया। सहसा विश्वास नहीं होगा कि पूरे 142 घंटे तक जलस्तर पिछले एचएफएल स्तर से 35 सेमी. ऊंचा बना रहा।
भागलपुर में नया एचएफएल स्तर पिछले एचएफएल स्तर से 4 सेमी. ऊंचा रहा और पूरे 86 घंटे तक इस स्तर पर बना रहा। इस प्रकार लंबे समय तक रहने वाली बाढ़ कहीं ज्यादा घातक होती है। आंध्र प्रदेश में अगस्त 5 को कृष्णा नदी पर पुलिचिंताला बांध का गेट नंबर 6 पानी के वेग में बह गया। कृष्णा नदी में बाढ़ आ गई। इन तमाम उदाहरणों से पता चलता है कि भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून आने वाले समय में और कहर बरपा सकता है। बाढ़ का विध्वंस जारी रह सकता है। जरूरी है कि मौसम पूर्वानुमान सटीक साबित हों। निगरानी तंत्र मुस्तैद रहे। तैयारी पूरी रहे। यह भी न करना होगा कि विकास के नाम पर कहर के हालात पैदा नहीं किए जाएं। यह भी जरूरी है कि मौसमी घटनाओं में से प्रत्येक का आकलन हो और अनुभवों से सीखा जाए।
- लेखक 'साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पिपुल' के कोऑर्डिनेटर हैं।