मुंशी राम बिजनौर के जुझारू सांसद हैं। वे अपने जिले की जल समस्याओं से न केवल परिचित हैं, बल्कि उसका समाधान भी सुझाते हैं कि अगर नदी के रास्ते को साफ रखा जाये तो बाढ़ की समस्या सुलझ सकती है। वे नदी के अधिशेष जल को सूखा ग्रस्त इलाकों में ले जाने की भी वकालत करते हैं। लेकिन वे इंगित करते हैं कि लिफ्ट करके पानी को दूसरी जगह पहुँचाना उचित नहीं है, हमें नदी के सहज गुरुत्वाकर्षण को प्रयोग में लाना चाहिये। हरित प्रदेश की माँग का पुरजोर समर्थन करते मुंशी राम लंबे समय से सामाजिक कार्यकर्ता बतौर अपने जिले में सक्रिय रहे हैं।
आपके जिले से कई पहाड़ी नदियाँ होकर गुजरती हैं। इससे कौन सी जल संबंधी समस्यायें आती हैं?
बिजनौर लोकसभा क्षेत्र उत्तरांचल की सीमाओं से जुड़ा है। पहाड़ी नदियाँ बिजनौर से होकर गुजरतीं हैं। इन नदियों की ढंग से सफाई होती नहीं है, इसलिये बरसात के दौरान नदियों में पानी बढ़ जाता है और नदी का मार्ग बदल जाता है। पिछले पंद्रह बीस वर्षों में गंगा नदी ने आठ से दस किलोमीटर तक का कटाव किया है, बिजनौर की ढेर सारी भूमि समाप्त कर दी है, खड़ी फसल तबाह कर दी है।
इसका क्या समाधान आप देखते हैं?
अगर हम नदी के रास्ते को साफ रखें तो यह समस्या काफी मिट सकती है। इसके साथ जल सरंक्षण के प्रयास भी होने जरूरी हैं। अगर जगह जगह छोटे बाँध बनाकर पानी को रोक दिया जाये तो तेज प्रवाह की समस्या काफी मिट सकती है। मैंने लोक सभा के माध्यम से अपनी बात रखी है कि नदियों के पानी का उचित इस्तेमाल करना चाहिये। छोटी नदी के पानी को रोककर स्थानीय लोगों को सिंचाई जैसी सुविधायें दिलवानी चाहिये। बड़ी नदियों की जल क्षमता हमें पता ही है। मानसून में सबका जलस्तर बढ़ जाता है, इस अधिशेष पानी को उन क्षेत्रों में पहुंचाना चाहिये जहाँ पानी उपलब्ध नहीं है। ऐसे में यह बाढ़ का पानी जो अमूमन विनाश लाता है, वरदान बन सकता है।
बाढ़ के पानी को किस प्रकार मोड़ा जा सकता है? नदियाँ मानसून में अक्सर प्रवाह बदलती हैं। बिहार में तो लगभग हर साल इस वजह से बाढ़ आती है। इसका क्या हल है?
देखिये, पानी को जो भी निचली जगह मिलेगी वह उसी रास्ते पर बहेगा। यदि आप उसके प्राकृतिक रास्ते को बचाये रखते हैं तो वह कहीं और नहीं जायेगा, बाढ़ नहीं आयेगी। पहाड़ी का वह थल जहाँ से वह निकलती है, किसी नदी का हैड होता है। टेल है समुद्र। समुद्र व पहाड़ी के बीच में निचले भू भाग पर पानी भरने से बाढ़ आती है। इसलिये हमें इस पानी को मोड़ कर गुरुत्वाकर्षण के माध्यम से सूखा ग्रस्त क्षेत्र में ले जाना चाहिये। अगर हम पानी को लिफ्ट करके पहुंचाते हैं तो लागत बहुत आयेगी व उपयोगिता कम रह जायेगी। पानी रोकने के लिये बने हमारे बैराज बालू से अटे पड़े हैं। लाखों क्यूबिक मीटर बालू जमी पड़ी है। जितना पानी वह एकत्र कर सकते हैं उतना नहीं कर पाते हैं। अगर हम इस रेत को साफ कर सकें तो काफी पानी उपलब्ध हो सकेगा। इसी तरह नदियों के रास्ते की भी सफाई करने की जरुरत है। इससे नदियों का मार्ग बदलने की संभावना कम हो जायेगी व बाढ़ से नुकसान भी कम होगा। हमारी कई सारी नदियाँ वन क्षेत्र से भी होकर गुजरती हैं। वहाँ भी हम तालाब इत्यादि में पानी जमा कर सकते हैं। इससे वनों व वहाँ के पशुओं को भी फायदा होगा।
यह त तो हुई बाढ़ की बात। गाँवों में पानी की उपलब्धता किस तरह बढ़ायी जा सकती है?
जल स्तर व पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिये जिला व तहसील स्तर पर सीवरेज लाइन होनी चाहिये। इस सीवरेज लाइन में पूरे इलाके का व्यर्थ पानी इकठ्ठा हो सकता है। इस पानी को साफ कर सिंचाई के लिये भी इस्तेमाल हो सकता है व ठोस कचड़े को अलग कर खाद इत्यादि के भी काम में ला सकते हैं। व्यर्थ पानी का इससे बेहतर उपयोग नहीं हो सकता। ग्रामीण क्षेत्रों में व्यर्थ पानी को नालियों के जरिये गाँव से बाहर एक तालाब बनाकर इकठ्ठा किया जा सकता है। इससे गाँव का जलस्तर भी बढ़ जायेगा।
गंदा पानी तालाब में इकठ्ठा करने से बीमारियाँ फैल सकती हैं। मच्छर भी आ सकते हैं। हाँ। लेकिन दवाई वगैराह डालकर इस पर काबू पाया जा सकता है। सफाई तो जरूरी है ही।
आपने अभी पानी को उठाकर पहुंचाने व गुरुत्वाकर्षण के जरिये पहुँचाने में फर्क किया। आप पानी को उठाने के बजाय पानी के गुरुत्वाकर्षण यानी सहज प्रवाह पर बल देते हैं। ऐसा क्यों?
नदियों को जोड़ने की परियोजना में तो पानी को लिफ्ट करने की बात है? नदियों को लिफ्ट के जरिये जोड़ने की योजना चल रही है। एक नदी अपने से निचले स्तर पर बहती दूसरी नदी को गुरुत्वाकर्षण से पानी दे तो सकती है लेकिन वह निचले सतह की नदी से पानी लिफ्ट के जरिये ही ले सकती है। मेरा यह मानना है कि इतने सारे पानी को लिफ्ट से ले जाना व्यावहारिक नहीं है। पानी को जैनरेटर इत्यादि के माध्यम से उठाने का खर्चा व्यावहारिक नहीं रहेगा। गुरुत्वाकर्षण से ही नदियों को जोड़ा जाना चाहिये। हमारे पास सभी नदियों के जल-स्तर व जल क्षमता के आंकड़े हैं, उनके आधार पर हम निर्धारित कर सकते हैं कि किन नदियों को ग्रैविटी से पानी पहुँचाया जा सकता है। सबसे अच्छा तरीका यह है कि हम नदी के हैड पर यानी पहाड़ी से ही नहर बनाकर पानी को मोड़ दें। इससे ग्रैविटी काफी अच्छी मिलेगी व पानी को सूखा ग्रस्त इलाके तक पहुँचाने में मदद भी मिलेगी।
इस परियोजना में क्या बहुत अधिक खर्च नहीं आयेगा?
देखिये, पैसा तो खर्च होता ही है। हर साल बाढ़ नियंत्रण में सरकार के करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। अगर आपको बाढ़ से निजात पानी है व ऐसी जगह भी पानी पहुँचाना है जहाँ उसका सदुपयोग हो जाये तो इन परियोजनाओं को लागू करना ही होगा। अगर हम अधिशेष पानी को नहर के जरिये दूसरी जगह मोड़ दें तो काफी लाभदायक हो सकता है।
नहर खुली हो या बंद?
राजस्थान की खुली नहर रेत से अटी पड़ी है किसी काम की नहीं रही है। बंद नहर में तो कई गुना अधिक लागत आयेगी जो मेरे ख्याल से व्यावहारिक नहीं होगा। छोटे मोटे नाले तो बंद हो सकते हैं लेकिन इतनी लंबी नहरों का बंद करना बहुत मंहगा हो जायेगा। और रही बात रेत जमा होने की तो रेत तो हर नहर में जमा होगी ही। नदी व नहर का पानी अपने साथ रेत लेकर ही चलता है। अगर पानी का बहाव तेज है तो रेत साथ बहती जायेगी और अगर कम है तो रेत नीचे बैठ जायेगी। नहर की सफाई तो हमें करनी ही होगी, भले ही नहर बंद हो या खुली। अगर नहर बंद है तो सफाई में बहुत मुश्किल आ सकती है। बंद नहर तो जिंदगी भर साफ नहीं हो पायेगी। रेत जमा होने की समस्या राजस्थान की ही नहीं सभी नहरों में है। रेत तो आपको साफ करनी ही होगी। अगर विभाग सफाई नहीं करते हैं तो उसकी मॉनीटरिंग होनी चाहिये। जो लोग पैसा खा जाते हैं व सफाई नहीं करते हैं उनके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिये।
आपने अठ्ठाइस नवंबर 2005 को संसद में प्रश्न पूछा था कि भूजल दोहन पर सरकार की क्या नीति है। आज भूजल का उससे कहीं अधिक दोहन हो रहा है। सरकार क्या कर रही है?
देखिये जिसे पानी की आवश्यकता है वह तो किसी न किसी रूप में पानी लेगा ही। प्रश्न यह है कि उसे किस तरह का पानी चाहिये-पीने के लिये चाहिये, सिंचाई के लिये चाहिये या अन्य किसी इस्तेमाल के लिये। अगर पेय जल नहीं चाहिये तो पेय जल की आपूर्ति करने के बजाय उसे रीसाइकिल्ड पानी देना चाहिये।
पानी की अनुपलब्धता को देखते हुये क्या हमें उन चीजों की ओर नहीं बढ़ना चाहिये जहाँ पानी कम खर्च होता हो?
मेरा मानना है कि मूल प्रश्न यह है कि जितना पानी हमारे पास उपलब्ध है, हम उसका सही इस्तेमाल कर लें। अगर हमने सही इस्तेमाल किया होता तो हमारे देश में बाढ़ की स्थिति नहीं आती। बाढ़ इस बात का संकेत है कि हम अपने पानी को सही प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं। अगर हम नदियों में अधिक पानी जाने न दें व बरसात के पानी को जल सरंक्षण के माध्यम से थामें तो बाढ़ रोकी जा सकती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में पानी उच्च वर्ग की मिल्कियत बनकर रह जाता है। कुंए, तालाब इत्यादि पर उच्च वर्ग का विशेषाधिकार रहता है। निम्न वर्ग पानी से वंचित रहा आता है। आपके क्षेत्र में क्या स्थिति है?
आप सही कह रहे हैं। वैसे भी अमीर वर्ग तो पंप लगाकर जमीन से पानी खींच सकते है लेकिन गरीब लोग पानी से वंचित रहते हैं। गाँव में पानी आसानी से उपलब्ध नहीं होता। हमारे क्षेत्र में भी यही हाल है। हैंड पंप की बहुत कमी है। हमारी सरकार से माँग रहती है कि हमें हैंड पंप मुहैया कराये जायें।
आपने सांसद निधि से कितनी राशि इस समस्या पर खर्च की है?
मेरी सांसद निधि के अब तक के कुल सात करोड़ में से छ: करोड़ छियानवे लाख ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क निर्माण में प्रयोग हुआ है। साढ़े तीन लाख रुपया केंद्रीय विद्यालय के निर्माण में खर्च हुआ है। पचास हजार शौचालय इत्यादि के निर्माण में खर्च हुआ है।