अनिल पुसदकर
दो दिनों पहले रायपुर रेलवे स्टेशन मे चल रहे गोरखधंधे का जब खुलासा हुआ तो लगा लालच ने इंसान और शैतान के बीच का फ़र्क़ लगभग खत्म कर दिया है। मिनरल वाटर की बिक्री जमकर हो सके इसलिये प्लेटफ़ार्म के सारे वाटरकूलर बंद कर दिये जाते थे। 44-45 डिग्री की भीषण गर्मी मे उबलता पानी छोड़ यात्री मज़बूर होकर मिनरल वाटर खरीदने लगे थे। ये गोरखधंधा खूब फ़ल-फ़ूल रहा था मगर बुरा हो दैनिक भास्कर के युवा रिपोर्टर सुदीप त्रिपाठी का जिसने पूरे खेल का भंडाफोड़ दिया।
सहसा विश्वास नहीं हुआ कि आदमी इतना भी गिर सकता है। लोग पीने के लिये मिनरल वाटर की बोतल खरीदें। इसलिए प्लेटफ़ार्म के सभी वाटरकूलरों को योजनाबद्ध ढंग से बंद कर दिया जाता था। ये सिलसिला पता नहीं कितने दिनों से चल रहा था और कितने दिनों तक़ चलता, अगर सुदीप की नज़र उस पर नहीं पड़ती।
लोग शायद इसे तकनीकी खराबी मान रहे थे और भीषण गर्मी मे प्यास से व्याकुल यात्री जब प्लेटफ़ार्म आने पर डिब्बों से उतर कर कूलर तक़ पहुंचते तो उबलता-खौलता पानी उनकी बेचैनी और बढ़ा कर उन्हें बोतल मे बंद पानी खरीदने पर मज़बूर कर देता। निश्चित ही लालच में डूबे प्यास के इस बेरहम धंधे में रेलवे के लोग भी शामिल होंगे। अगर ऐसा नहीं होता तो सुदीप की रिपोर्ट छपने के बाद दूसरे दिन रेलवे प्रशासन बेशर्मी से सारे वाटरकूलर गलती से बंद रह जाने की बात नहीं कहता। इतना ही नही सिर्फ़ गलती हो गई कह कर रेलवे प्रशासन ने इस पूरे मामले को बिना जांच किये ठण्डे बस्ते में भी डाल दिया जो इस बात का सबूत है कि यदी जांच होती तो कोई न कोई फ़ंसता।
खैर जो भी हो सुदीप की मेहनत रंग लाई और अब रायपुर रेलवे प्लेटफ़ार्म के सारे के सारे वाटरकूलर चालू हो गये है। यात्रियों को शीतल पेयजल मिल रहा है और अब जिसे बोतलबंद पानी खरीदना है वही खरीद रहा है, मज़बूरी में कोई नहीं खरीद रहा है। हो सकता है सुदीप ने रायपुर के जिस गोरखधंधे पर से पर्दा हटाया है वो गंदा धंदा दूसरे स्टेशनो पर भी चल रहा हो। अगर कहीं स्टेशन का कूलर बंद मिले तो समझ लिजिए कि लालची लोग चंद सिक्कों के लालच में प्यास बेच रहे हैं!
लेखक- अनिल पुसदकर
साभार - अमीर धरती, गरीब लोग
Tags- Railway Station, Bottled water, Thirst
दो दिनों पहले रायपुर रेलवे स्टेशन मे चल रहे गोरखधंधे का जब खुलासा हुआ तो लगा लालच ने इंसान और शैतान के बीच का फ़र्क़ लगभग खत्म कर दिया है। मिनरल वाटर की बिक्री जमकर हो सके इसलिये प्लेटफ़ार्म के सारे वाटरकूलर बंद कर दिये जाते थे। 44-45 डिग्री की भीषण गर्मी मे उबलता पानी छोड़ यात्री मज़बूर होकर मिनरल वाटर खरीदने लगे थे। ये गोरखधंधा खूब फ़ल-फ़ूल रहा था मगर बुरा हो दैनिक भास्कर के युवा रिपोर्टर सुदीप त्रिपाठी का जिसने पूरे खेल का भंडाफोड़ दिया।
सहसा विश्वास नहीं हुआ कि आदमी इतना भी गिर सकता है। लोग पीने के लिये मिनरल वाटर की बोतल खरीदें। इसलिए प्लेटफ़ार्म के सभी वाटरकूलरों को योजनाबद्ध ढंग से बंद कर दिया जाता था। ये सिलसिला पता नहीं कितने दिनों से चल रहा था और कितने दिनों तक़ चलता, अगर सुदीप की नज़र उस पर नहीं पड़ती।
लोग शायद इसे तकनीकी खराबी मान रहे थे और भीषण गर्मी मे प्यास से व्याकुल यात्री जब प्लेटफ़ार्म आने पर डिब्बों से उतर कर कूलर तक़ पहुंचते तो उबलता-खौलता पानी उनकी बेचैनी और बढ़ा कर उन्हें बोतल मे बंद पानी खरीदने पर मज़बूर कर देता। निश्चित ही लालच में डूबे प्यास के इस बेरहम धंधे में रेलवे के लोग भी शामिल होंगे। अगर ऐसा नहीं होता तो सुदीप की रिपोर्ट छपने के बाद दूसरे दिन रेलवे प्रशासन बेशर्मी से सारे वाटरकूलर गलती से बंद रह जाने की बात नहीं कहता। इतना ही नही सिर्फ़ गलती हो गई कह कर रेलवे प्रशासन ने इस पूरे मामले को बिना जांच किये ठण्डे बस्ते में भी डाल दिया जो इस बात का सबूत है कि यदी जांच होती तो कोई न कोई फ़ंसता।
खैर जो भी हो सुदीप की मेहनत रंग लाई और अब रायपुर रेलवे प्लेटफ़ार्म के सारे के सारे वाटरकूलर चालू हो गये है। यात्रियों को शीतल पेयजल मिल रहा है और अब जिसे बोतलबंद पानी खरीदना है वही खरीद रहा है, मज़बूरी में कोई नहीं खरीद रहा है। हो सकता है सुदीप ने रायपुर के जिस गोरखधंधे पर से पर्दा हटाया है वो गंदा धंदा दूसरे स्टेशनो पर भी चल रहा हो। अगर कहीं स्टेशन का कूलर बंद मिले तो समझ लिजिए कि लालची लोग चंद सिक्कों के लालच में प्यास बेच रहे हैं!
लेखक- अनिल पुसदकर
साभार - अमीर धरती, गरीब लोग
Tags- Railway Station, Bottled water, Thirst