गंगा बेसिन : संरक्षण एवं चुनौतियों पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय समागम आरम्भ
सदियों से इस क्षेत्र के लोगों की जीवनदायिनी गंगा के प्रवाह को संबल देने वाली ये नदियाँ अपने ही लोगों, सरकार एवं प्रशासन की उपेक्षा तथा अतिक्रमण का दंश झेल रहीं हैं। पूरा गंगा बेसिन इन्हीं संकट के दौर से गुजर रहा है। गंगा के हिफाज़त का मतलब हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक पूरी जिन्दगी की हिफाज़त है। इन्हीं ज्वलन्त सवालों को लेकर गंगा मुक्ति आन्दोलन, साझा संस्कृति मंच और सर्व सेवा संघ की ओर से तीन दिवसीय राष्ट्रीय समागम का शुभारम्भ वाराणसी से हुआ। सिन्धु घाटी की सभ्यता के पतन के बाद अनेक सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही पनपीं और विकसित हुईं हैं लेकिन आधुनिक सभ्यता नदियों को ही मारने पर आमादा है। वरुणा और असि नदियों के बीच का भू-भाग वाराणसी के नाम से जाना जाता है और इस शहर की पहचान इन नदियों के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा है। विकास के मौजूदा मॉडल के कारण ये नदियाँ अस्तित्व संकट का दंश झेल रही हैं।
सदियों से इस क्षेत्र के लोगों की जीवनदायिनी गंगा के प्रवाह को संबल देने वाली ये नदियाँ अपने ही लोगों, सरकार एवं प्रशासन की उपेक्षा तथा अतिक्रमण का दंश झेल रहीं हैं। पूरा गंगा बेसिन इन्हीं संकट के दौर से गुजर रहा है। गंगा के हिफाज़त का मतलब हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक पूरी जिन्दगी की हिफाज़त है। इन्हीं ज्वलन्त सवालों को लेकर गंगा मुक्ति आन्दोलन, साझा संस्कृति मंच और सर्व सेवा संघ की ओर से तीन दिवसीय राष्ट्रीय समागम का शुभारम्भ वाराणसी से हुआ।
इस समागम का उद्घाटन गंगा मुक्ति आन्दोलन के पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ साथी विजय सरकार, गंगा मुक्ति आन्दोलन के संयोजक अनिल प्रकाश, दिल्ली जल बोर्ड के नेता राम प्रकाश, राज्यसभा सदस्य अली अनवर, सुनील सहस्त्रबुद्धे ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए विजय सरकार ने कहा नदियों ने सभ्यता को आगे बढ़ाने का काम किया, लेकिन शैतानी सभ्यता नदियों को ही मारने पर आमादा है। गंगा बेसिन से पूरे समुदाय का नाता है। इसका भी साम्प्रदायीकरण करने की तैयारी की जा रही है। आज पूरे भारत में पर्यावरण का संकट, शान्ति का संकट और सह अस्तित्व का संकट है, इसे चुनौती के रूप में कबूल करना होगा।
इसके उपरान्त ' गंगा बेसिन : संरक्षण और चुनौतियाँ' विषय पर बहस आरम्भ हुई। इसका शुभारम्भ गंगा मुक्ति आन्दोलन के राष्ट्रीय संयोजक अनिल प्रकाश के बीज वक्तव्य से हुआ। उन्होंने कहा कि गंगा तथा अन्य नदियों से करोड़ों लोगों की जीविका और जिनका सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन इनसे जुड़ा है। लगभग नौ राज्यों की नदियों का पानी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गंगा में मिलती है। इन नदियों के प्रदूषण का असर भी गंगा पर पड़ता है।
गंगा में हिमालय क्षेत्र में टिहरी तथा अन्य स्थानों पर बाँध बना दिए गए। इससे गंगा के जल प्रवाह में भारी कमी आई है। 16 बाँध बँध चुके हैं, 13 बाँधों का निर्माण जारी है और 54 बाँधों के प्रोजेक्ट प्रस्तावित हैं। एक तो पहले ही हिमालय के सघन वनों की कटाई से हिमालय क्षतिग्रस्त था, इन बाँधों के कारण हिमालय क्षेत्र में तबाही मचने का सिलसिला शुरू हो चुका है। केदारनाथ धाम में हुआ दिल दहलाने वाला हादसा उसका एक जीता-जागता उदाहरण है। पूरा हिमालय क्षेत्र प्रलय क्षेत्र बनता जा रहा है।
नेपाल में भी हाई डैमों के निर्माण की बात चलती रहती है। फरक्का बैराज बनने के बाद सिल्ट के उड़ाई की प्रक्रिया रुक गई और नदी का तल ऊपर उठता गया। सहायक नदियों की उड़ाई प्रक्रिया भी रुक गई और बाढ़ तथा जल जमाव क्षेत्र हर साल बढ़ने लगा। मालदा और मुर्शिदाबाद जिलों में भारी कटाव हुआ है। बिहार में भी बाढ़-कटाव का प्रकोप बहुत बढ़ा है।
जल-जमाव बढ़ने के कारण डेढ़ करोड़ एकड़ से ज्यादा भूमि ऊसर हुई है। हर साल लगभग 75 हजार एकड़ अतिरिक्त भूमि ऊसर होती जा रही है। 20 लाख मछुआरे कंगाल हो गए। इसके सवाल को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में मामला दायर किया गया है। केन्द्र सरकार के प्रस्तावित इलाहाबाद से डायमंड हारबर तक 16 बैराजों के निर्माण गंगा पर जीने वाले करोड़ों लोगों का अस्तिव पर खतरा उत्पन्न होगा।
बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के मुख्यमन्त्रियों के विरोध के बाद सरकार का रुख नरम पड़ा है। उन्होंने यह समागम बनारस से विकास की गलत धारा के विरोध की लड़ाई को एक नया आयाम देगा। अब वक्त है, एक साथ मिलकर लड़ने की।
राज्य सभा सदस्य अली अनवर ने कहा कि गंगा माई को कमाई का ज़रिया बनाना खतरनाक है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार की नजर गंगा नदी के किनारे की ज़मीन पर है और पानी के बाज़ारीकरण की प्रक्रिया को और तेज करने पर आमादा है। गंगा सिर्फ नदी का नाम नहीं है, बल्कि सभ्यता और संस्कृति का नाम तथा करोड़ों लोगों की जीवनरेखा है। गंगा जहाँ हिन्दुओं के आस्था का प्रतीक है तो मुसलमान भी बजू करते हैं। एक तहजीब है। कुदरत को मुट्ठी में करने की साज़िश खतरनाक है।
सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् जयन्त वंगोपाध्याय ने विकास के मॉडल पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि योजनाएँ गंगा बेसिन में रह रहे लोगों की सहमति के आधार पर बननी चाहिए। सरकारी तन्त्र बड़ी परियोजनाओं पर क्यों नहीं सहमति का रास्ता बनाती है। राजीव गाँधी से लेकर अब तक गंगा को लेकर अनेक परियोजनाएँ बनीं और करोड़ों रुपए खर्च हुए।
इस सत्र को दिल्ली जल बोर्ड के नेता राम कुमार, सोमनाथ त्रिपाठी सहित कई वक्ताओं ने सम्बोधित किया। कार्यक्रम का संचालन आनन्द प्रकाश तिवारी ने किया। कार्यक्रम के आरम्भ में प्रेरणा कला मंच के अजीत कुमार गौरव, धनरतन यादव, गणेश कुमार गौतम, अमित कुमार यादव, सुरेन्द्र कुमार और हरिश पाल गंगा मुक्ति आन्दोलन के रामपूजन, परिधि के उदय ने गीत की प्रस्तुति की। साझा संस्कृति मंच की ओर से जागृति राही देश के विभिन्न हिस्सों से आए आन्दोलनकारियों का स्वागत करते हुए कहा कि संघर्ष के लिये एकत्र हुए हैं। यह समागम बनारस की धरती से यह सन्देश देने में सफल होगा कि नदियों से खिलवाड़ करने के किसी भी इरादे को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने वरुणा और असि के सवाल पर तथा कोकाकोला के खिलाफ चल रहे संघर्ष को भी रेखांकित किया।
समागम के दूसरे सत्र की अध्यक्षता सिद्धार्थ भाई ने की। इस सत्र को सम्बोधित करते हुए स्वामी गांगेय हंस ने कहा कि नदियों का संकट मात्र धरती का नहीं पूरे ब्रह्माण्ड का संकट है। नदियों के प्रवाह में अवरोध खतरे की घंटी है। वेदों में भी इसका जिक्र है। विकास के मॉडल की चर्चा करते हुए कहा कि विज्ञान ने दिया कम है और छीना अधिक है। केदारनाथ की आपदा इसी का मात्र एक संकेत है। औसत आय तो बढ़ा, लेकिन मानवता का पैमाना घट गया। पानी से ज्यादा बिजली उत्पादन की बात की जा रही है।
सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् के चन्द्रमौलि ने पावर प्रजेंटेशन के माध्यम से बताया कि ग्लेशियर खिसक रहा है। गंगा सिर्फ जल नहीं है बल्कि उसमें उत्तराखण्ड की जड़ी-बूटी का अंश है। सबसे ज्यादा ऑक्सीजन है। उसमें स्वयं को साफ करने की क्षमता है। उन्होंने मनेरी डैम बनने के पहले और उसके बाद की स्थिति को रेखांकित किया। उन्होंने यह चेताया कि गंगा को खत्म होने से यदि नहीं बचाते हैं तो भारत की जीवन रेखा खत्म हो जाएगी।
राज्यसभा के सदस्य के अनिल साहनी ने कहा कि जितना पैसा गंगा की सफाई के नाम पर खर्च हो रहा है, गन्दगी उतनी ही बढ़ रही है। एक फरक्का ने कितनों से रोज़गार छीन लिया। उन्होंने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के कारण आश्रित समुदाय का अस्तित्व खतरे में हैं। संसद में विरोध तो करेंगे ही, साथ ही सड़क पर भी लड़ाई लड़ेंगे।
इण्डिया वाटर पोर्टल के सिराज केसर ने कहा कि संचार तकनीक का सुन्दर इस्तेमाल कर संघर्ष की आवाज को बुलन्द कर सकते हैं। इण्डिया वाटर पोर्टल जल प्रबंधन के कार्य से जुड़े लोगों के बीच इससे सम्बन्धित जानकारी बाँटने का एक खुला और संयुक्त मंच है।
अंग्रेजी, हिन्दी और कन्नड़ भाषाओं में जल-विशेषज्ञों के अमूल्य अनुभवों को उसे संकलित करने, प्रौद्योगिकी की सहायता से उसकी उपयोगिता में संवर्धन करने और तत्पश्चात इंटरनेट के माध्यम से समुदाय के उपयोगार्थ उसका व्यापक प्रसारण किए जाने के प्रयासों की चर्चा की। उन्होंने बुन्देलखण्ड में तालाब बनाने के प्रयासों की चर्चा करते हुए इसे एक ठोस कदम बताया। उन्होंने कहा कि जैव विविधता के बिना पानी की शुद्धता मुमकिन नहीं है।
वहीं कपिन्द्र तिवारी ने कहा गंगा के साथ-साथ छोटी नदियों का भी सवाल उठाया। सरकार छोटी नदियों को मानती ही नहीं है। समाज सत्ता और राजसत्ता के तालमेल के अभाव में सारा खेल बिगड़ रहा है। बलिया की भागर नदी खत्म हो गई। असि भी सूख गई। वरुणा मे सीवेज का जल ही बचा है। नदी की ऊपरी धारा अन्तरधारा जीवित रखती है। उन्होंने उत्तराखण्ड में बड़े बाँधों के खिलाफ चल रहे संघर्ष और केदारनाथ की त्रासदी को विस्तार से रेखांकित किया।
महेश विक्रम ने इसे विकास के मॉडल के खिलाफ लड़ाई बताया। कार्यक्रम का संचालन वल्लभाचार्य करते हुए वरुणा और असि के संघर्ष को बताया। इस सत्र का समापन नीता चौबे के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। इसके उपरान्त देश के विभिन्न हिस्सों से आए लोगों ने मुद्दों पर सामूहिक चर्चा की।
सदियों से इस क्षेत्र के लोगों की जीवनदायिनी गंगा के प्रवाह को संबल देने वाली ये नदियाँ अपने ही लोगों, सरकार एवं प्रशासन की उपेक्षा तथा अतिक्रमण का दंश झेल रहीं हैं। पूरा गंगा बेसिन इन्हीं संकट के दौर से गुजर रहा है। गंगा के हिफाज़त का मतलब हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक पूरी जिन्दगी की हिफाज़त है। इन्हीं ज्वलन्त सवालों को लेकर गंगा मुक्ति आन्दोलन, साझा संस्कृति मंच और सर्व सेवा संघ की ओर से तीन दिवसीय राष्ट्रीय समागम का शुभारम्भ वाराणसी से हुआ। सिन्धु घाटी की सभ्यता के पतन के बाद अनेक सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही पनपीं और विकसित हुईं हैं लेकिन आधुनिक सभ्यता नदियों को ही मारने पर आमादा है। वरुणा और असि नदियों के बीच का भू-भाग वाराणसी के नाम से जाना जाता है और इस शहर की पहचान इन नदियों के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा है। विकास के मौजूदा मॉडल के कारण ये नदियाँ अस्तित्व संकट का दंश झेल रही हैं।
सदियों से इस क्षेत्र के लोगों की जीवनदायिनी गंगा के प्रवाह को संबल देने वाली ये नदियाँ अपने ही लोगों, सरकार एवं प्रशासन की उपेक्षा तथा अतिक्रमण का दंश झेल रहीं हैं। पूरा गंगा बेसिन इन्हीं संकट के दौर से गुजर रहा है। गंगा के हिफाज़त का मतलब हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक पूरी जिन्दगी की हिफाज़त है। इन्हीं ज्वलन्त सवालों को लेकर गंगा मुक्ति आन्दोलन, साझा संस्कृति मंच और सर्व सेवा संघ की ओर से तीन दिवसीय राष्ट्रीय समागम का शुभारम्भ वाराणसी से हुआ।
इस समागम का उद्घाटन गंगा मुक्ति आन्दोलन के पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ साथी विजय सरकार, गंगा मुक्ति आन्दोलन के संयोजक अनिल प्रकाश, दिल्ली जल बोर्ड के नेता राम प्रकाश, राज्यसभा सदस्य अली अनवर, सुनील सहस्त्रबुद्धे ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए विजय सरकार ने कहा नदियों ने सभ्यता को आगे बढ़ाने का काम किया, लेकिन शैतानी सभ्यता नदियों को ही मारने पर आमादा है। गंगा बेसिन से पूरे समुदाय का नाता है। इसका भी साम्प्रदायीकरण करने की तैयारी की जा रही है। आज पूरे भारत में पर्यावरण का संकट, शान्ति का संकट और सह अस्तित्व का संकट है, इसे चुनौती के रूप में कबूल करना होगा।
इसके उपरान्त ' गंगा बेसिन : संरक्षण और चुनौतियाँ' विषय पर बहस आरम्भ हुई। इसका शुभारम्भ गंगा मुक्ति आन्दोलन के राष्ट्रीय संयोजक अनिल प्रकाश के बीज वक्तव्य से हुआ। उन्होंने कहा कि गंगा तथा अन्य नदियों से करोड़ों लोगों की जीविका और जिनका सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन इनसे जुड़ा है। लगभग नौ राज्यों की नदियों का पानी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गंगा में मिलती है। इन नदियों के प्रदूषण का असर भी गंगा पर पड़ता है।
गंगा में हिमालय क्षेत्र में टिहरी तथा अन्य स्थानों पर बाँध बना दिए गए। इससे गंगा के जल प्रवाह में भारी कमी आई है। 16 बाँध बँध चुके हैं, 13 बाँधों का निर्माण जारी है और 54 बाँधों के प्रोजेक्ट प्रस्तावित हैं। एक तो पहले ही हिमालय के सघन वनों की कटाई से हिमालय क्षतिग्रस्त था, इन बाँधों के कारण हिमालय क्षेत्र में तबाही मचने का सिलसिला शुरू हो चुका है। केदारनाथ धाम में हुआ दिल दहलाने वाला हादसा उसका एक जीता-जागता उदाहरण है। पूरा हिमालय क्षेत्र प्रलय क्षेत्र बनता जा रहा है।
नेपाल में भी हाई डैमों के निर्माण की बात चलती रहती है। फरक्का बैराज बनने के बाद सिल्ट के उड़ाई की प्रक्रिया रुक गई और नदी का तल ऊपर उठता गया। सहायक नदियों की उड़ाई प्रक्रिया भी रुक गई और बाढ़ तथा जल जमाव क्षेत्र हर साल बढ़ने लगा। मालदा और मुर्शिदाबाद जिलों में भारी कटाव हुआ है। बिहार में भी बाढ़-कटाव का प्रकोप बहुत बढ़ा है।
जल-जमाव बढ़ने के कारण डेढ़ करोड़ एकड़ से ज्यादा भूमि ऊसर हुई है। हर साल लगभग 75 हजार एकड़ अतिरिक्त भूमि ऊसर होती जा रही है। 20 लाख मछुआरे कंगाल हो गए। इसके सवाल को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में मामला दायर किया गया है। केन्द्र सरकार के प्रस्तावित इलाहाबाद से डायमंड हारबर तक 16 बैराजों के निर्माण गंगा पर जीने वाले करोड़ों लोगों का अस्तिव पर खतरा उत्पन्न होगा।
बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के मुख्यमन्त्रियों के विरोध के बाद सरकार का रुख नरम पड़ा है। उन्होंने यह समागम बनारस से विकास की गलत धारा के विरोध की लड़ाई को एक नया आयाम देगा। अब वक्त है, एक साथ मिलकर लड़ने की।
राज्य सभा सदस्य अली अनवर ने कहा कि गंगा माई को कमाई का ज़रिया बनाना खतरनाक है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार की नजर गंगा नदी के किनारे की ज़मीन पर है और पानी के बाज़ारीकरण की प्रक्रिया को और तेज करने पर आमादा है। गंगा सिर्फ नदी का नाम नहीं है, बल्कि सभ्यता और संस्कृति का नाम तथा करोड़ों लोगों की जीवनरेखा है। गंगा जहाँ हिन्दुओं के आस्था का प्रतीक है तो मुसलमान भी बजू करते हैं। एक तहजीब है। कुदरत को मुट्ठी में करने की साज़िश खतरनाक है।
सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् जयन्त वंगोपाध्याय ने विकास के मॉडल पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि योजनाएँ गंगा बेसिन में रह रहे लोगों की सहमति के आधार पर बननी चाहिए। सरकारी तन्त्र बड़ी परियोजनाओं पर क्यों नहीं सहमति का रास्ता बनाती है। राजीव गाँधी से लेकर अब तक गंगा को लेकर अनेक परियोजनाएँ बनीं और करोड़ों रुपए खर्च हुए।
इस सत्र को दिल्ली जल बोर्ड के नेता राम कुमार, सोमनाथ त्रिपाठी सहित कई वक्ताओं ने सम्बोधित किया। कार्यक्रम का संचालन आनन्द प्रकाश तिवारी ने किया। कार्यक्रम के आरम्भ में प्रेरणा कला मंच के अजीत कुमार गौरव, धनरतन यादव, गणेश कुमार गौतम, अमित कुमार यादव, सुरेन्द्र कुमार और हरिश पाल गंगा मुक्ति आन्दोलन के रामपूजन, परिधि के उदय ने गीत की प्रस्तुति की। साझा संस्कृति मंच की ओर से जागृति राही देश के विभिन्न हिस्सों से आए आन्दोलनकारियों का स्वागत करते हुए कहा कि संघर्ष के लिये एकत्र हुए हैं। यह समागम बनारस की धरती से यह सन्देश देने में सफल होगा कि नदियों से खिलवाड़ करने के किसी भी इरादे को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने वरुणा और असि के सवाल पर तथा कोकाकोला के खिलाफ चल रहे संघर्ष को भी रेखांकित किया।
समागम के दूसरे सत्र की अध्यक्षता सिद्धार्थ भाई ने की। इस सत्र को सम्बोधित करते हुए स्वामी गांगेय हंस ने कहा कि नदियों का संकट मात्र धरती का नहीं पूरे ब्रह्माण्ड का संकट है। नदियों के प्रवाह में अवरोध खतरे की घंटी है। वेदों में भी इसका जिक्र है। विकास के मॉडल की चर्चा करते हुए कहा कि विज्ञान ने दिया कम है और छीना अधिक है। केदारनाथ की आपदा इसी का मात्र एक संकेत है। औसत आय तो बढ़ा, लेकिन मानवता का पैमाना घट गया। पानी से ज्यादा बिजली उत्पादन की बात की जा रही है।
सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् के चन्द्रमौलि ने पावर प्रजेंटेशन के माध्यम से बताया कि ग्लेशियर खिसक रहा है। गंगा सिर्फ जल नहीं है बल्कि उसमें उत्तराखण्ड की जड़ी-बूटी का अंश है। सबसे ज्यादा ऑक्सीजन है। उसमें स्वयं को साफ करने की क्षमता है। उन्होंने मनेरी डैम बनने के पहले और उसके बाद की स्थिति को रेखांकित किया। उन्होंने यह चेताया कि गंगा को खत्म होने से यदि नहीं बचाते हैं तो भारत की जीवन रेखा खत्म हो जाएगी।
राज्यसभा के सदस्य के अनिल साहनी ने कहा कि जितना पैसा गंगा की सफाई के नाम पर खर्च हो रहा है, गन्दगी उतनी ही बढ़ रही है। एक फरक्का ने कितनों से रोज़गार छीन लिया। उन्होंने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के कारण आश्रित समुदाय का अस्तित्व खतरे में हैं। संसद में विरोध तो करेंगे ही, साथ ही सड़क पर भी लड़ाई लड़ेंगे।
इण्डिया वाटर पोर्टल के सिराज केसर ने कहा कि संचार तकनीक का सुन्दर इस्तेमाल कर संघर्ष की आवाज को बुलन्द कर सकते हैं। इण्डिया वाटर पोर्टल जल प्रबंधन के कार्य से जुड़े लोगों के बीच इससे सम्बन्धित जानकारी बाँटने का एक खुला और संयुक्त मंच है।
अंग्रेजी, हिन्दी और कन्नड़ भाषाओं में जल-विशेषज्ञों के अमूल्य अनुभवों को उसे संकलित करने, प्रौद्योगिकी की सहायता से उसकी उपयोगिता में संवर्धन करने और तत्पश्चात इंटरनेट के माध्यम से समुदाय के उपयोगार्थ उसका व्यापक प्रसारण किए जाने के प्रयासों की चर्चा की। उन्होंने बुन्देलखण्ड में तालाब बनाने के प्रयासों की चर्चा करते हुए इसे एक ठोस कदम बताया। उन्होंने कहा कि जैव विविधता के बिना पानी की शुद्धता मुमकिन नहीं है।
वहीं कपिन्द्र तिवारी ने कहा गंगा के साथ-साथ छोटी नदियों का भी सवाल उठाया। सरकार छोटी नदियों को मानती ही नहीं है। समाज सत्ता और राजसत्ता के तालमेल के अभाव में सारा खेल बिगड़ रहा है। बलिया की भागर नदी खत्म हो गई। असि भी सूख गई। वरुणा मे सीवेज का जल ही बचा है। नदी की ऊपरी धारा अन्तरधारा जीवित रखती है। उन्होंने उत्तराखण्ड में बड़े बाँधों के खिलाफ चल रहे संघर्ष और केदारनाथ की त्रासदी को विस्तार से रेखांकित किया।
महेश विक्रम ने इसे विकास के मॉडल के खिलाफ लड़ाई बताया। कार्यक्रम का संचालन वल्लभाचार्य करते हुए वरुणा और असि के संघर्ष को बताया। इस सत्र का समापन नीता चौबे के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। इसके उपरान्त देश के विभिन्न हिस्सों से आए लोगों ने मुद्दों पर सामूहिक चर्चा की।