गंगा वैसी की वैसी है

Submitted by RuralWater on Mon, 12/25/2017 - 11:23
Source
अमर उजाला, 25 दिसम्बर 2017

गंगा की सफाई में फिर से वही ढील दी जा रही है, जो हम तीन दशकों से देखते आ रहे हैं, तो मुझे निजी तौर पर तकलीफ होती है। पिछले सप्ताह कैग की रिपोर्ट आई, जिससे पता लगा कि विगत 31 मार्च तक राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन अपने बजट में से 2,133 करोड़ रुपए खर्च ही नहीं कर पाया था। यह खबर आश्चर्यजनक भी है और शर्मनाक भी, क्योंकि बहुत कुछ किया जा सकता था इस राशि से। खर्च नहीं हुआ है पैसा, तो इसके पीछे लापरवाही ही हो सकती है। जब भी खबर मिलती है कि गंगा की सफाई में फिर से वही ढील दी जा रही है, जो हम तीन दशकों से देखते आ रहे हैं, तो मुझे निजी तौर पर तकलीफ होती है। पिछले सप्ताह कैग की रिपोर्ट आई, जिससे पता लगा कि विगत 31 मार्च तक राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन अपने बजट में से 2,133 करोड़ रुपए खर्च ही नहीं कर पाया था। यह खबर आश्चर्यजनक भी है और शर्मनाक भी, क्योंकि बहुत कुछ किया जा सकता था इस राशि से। खर्च नहीं हुआ है पैसा, तो इसके पीछे लापरवाही ही हो सकती है। इस खबर ने मेरे दिल को इतनी चोट पहुँचाई कि मैं बहुत मायूस होकर यह लेख लिख रही हूँ।

गंगा की सफाई की उम्मीद मैं तब से कर रही हूँ, जब से यह प्रयास शुरू हुआ था 1985 में। हुआ ऐसा कि राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री बन जाने के कुछ महीने बाद मेरे दोस्त मार्तंड सिंह ने मुझसे अनुरोध किया कि मैं गंगा पर एक रिपोर्ट तैयार करुँ, जिसके आधार पर इनटेक गंगा की सफाई पर एक योजना बनाना चाहती थी। इनटेक प्राचीन इमारतों और भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिये उस समय नया-नया बना था और गंगा की सफाई इस संस्था की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर थी।

मार्तंड के भाई अरुण सिंह उस समय राजीव गाँधी के सबसे करीबी सलाहकार माने जातेे थे, सो उनके द्वारा राजीव गाँधी से गंगा एक्शन प्लान को मंजूरी मिली। इनटेक के हाथों में इस योजना को अमल में लाने की जिम्मेदारी रहती तो सम्भव है आज गंगा का हाल इतना सुधर गया होता कि हम गंगा को प्रतीक बनाकर देश को बाकी नदियों की सफाई में लग गए होते।

अफसोस कि राजीव गाँधी ने इस योजना को सरकारी बना दिया और इस पर इतने करोड़ रुपए लगाने का प्रावधान किया कि हमारे भ्रष्ट राजनीतिज्ञ और अधिकारी इस योजना को सोने की मुर्गी के रूप में देखने लगे। गंगा की सफाई के नाम पर ऊपर से नीचे तक पैसा भ्रष्ट अधिकारियों की जेबों में जाता रहा। सो नरेन्द्र मोदी जब वाराणसी आये थे अपना नामांकन पत्र भरने और भरते समय जब उन्होंने कहा था कि उनको माँ गंगा ने बुलाया है, तब मुझे उम्मीद जगी थी कि गंगा की सफाई पर वह विशेष तौर पर ध्यान रखेंगे।

बहुत अफसोस की बात है कि उन्होंने ऐसा नहीं किया है अभी तक। सो गंगा की सफाई उसी लापरवाही से की जा रही है, जैसे दशकों से होती आई है। इससे भी ज्यादा अफसोस इस बात को लेकर होता है कि आज नदियों को साफ करने के आधुनिक तरीके हैं, जिनके जरिए दुनिया की कई नदियाँ साफ की गई हैं। इन तरीकों को अपनाने के बदले पिछले तीन वर्षों में मोदी सरकार यही तय करने में लगी रही कि सफाई की जिम्मेदारी किसकी होनी चाहिए - केंद्र सरकार की, उन राज्य सरकारों की जहाँ से गंगा बहती है या उन नगर पालिकाओं की, जिनके शहरों की गन्दगी गंगा को प्रदूषित करती है।

सो प्रधानमंत्री जी, मैं आपसे विनम्रता से अनुरोध करना चाहूँगी कि जितनी जल्दी हो सकता है, गंगा की सफाई आप अपने हाथों में ले लें। जब तक आप ऐसा नहीं करेंगे, तब तक माँ गंगा का हाल वही रहेगा, जो अभी तक रहा है। नर्मदा के अलावा देश की सारी नदियों का इतना बुरा हाल है कि शायद ही दुनिया में कोई दूसरा देश होगा, जहाँ इतनी गन्दी नदियाँ देखने को मिलें। लंदन की टेम्स, पेरिस की सेन और जर्मनी की राइन नदियाँ की कभी उतनी ही प्रदूषित थीं, जितनी आज गंगा है। आधुनिक तकनीकों से उनकी इतनी सफाई हुई है कि उनका पानी पीने लायक हो गया है। कितनी शर्म की बात है कि पवित्र गंगाजल प्रदूषित है।