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कुरुक्षेत्र, जून 2008
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना की नीतिगत रूपरेखा ग्रामीण बेरोजगारी और गरीबी की समस्या के निदान हेतु एक सबल आधार तैयार करती है। समाज के आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के लोग इस सन्दर्भ में बड़े प्रयास की अपेक्षा भी करते हैं। परन्तु योजना की वास्तविक सफलता इसके सक्षम क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। नियोजित विकास प्रक्रिया के प्रथम दो दशकों में भारत की विकास युक्ति मूलतः संवृद्धि केन्द्रित थी। यह माना गया था कि उत्पादन और उत्पादिता बढ़ाकर गरीबी एवं बेरोजगारी की समस्या का निदान किया जा सकता है। दृष्टि यह थी कि विविध क्षेत्रों में उत्पादन और उत्पादिता बढ़ने पर सभी वर्गों को लाभ होगा और आधारभूत उद्योगों में विनियोग द्वारा अर्थव्यवस्था स्वयंस्फूर्त अवस्था में पहुँच सकती है। इस विकास युक्ति के सकारात्मक परिणाम आए। अर्थव्यवस्था में भारी आधारभूत उद्योगों की सशक्त शृंखला बनी। मशीन बनाने वाले उद्योगों का विकास हुआ। कृषि क्षेत्र में हरित क्रान्ति का सफल क्रियान्वयन हुआ। खाद्यान्नों में आत्म-निर्भरता प्राप्त कर ली गई। परन्तु वितरणात्मक न्याय की दृष्टि से विकास के लिए विकास की इस नीति के परिणाम अधिक उत्साहवर्धक नहीं रहे।
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के आरम्भ में ही नीति निर्माता इस विचारधारा से सहमत हो गये कि उत्पादन बढ़ने से समान मात्रा में गरीबी और बेरोजगारी का समाधान नहीं होता है बल्कि लाभों का असमान वितरण होने के कारण समस्या बढ़ जाती है। यह अनुभव किया गया कि औद्योगिक प्रगति और हरित क्रान्ति के लाभ समाज के लक्ष्य समूह के लोगों को नहीं मिल सके हैं। फलतः गरीबी, बेरोजगारी और असमानता की समस्या बढ़ती गयी। ग्रामीण क्षेत्र से दबावकारी पलायन बढ़ता गया। इसलिए चतुर्थ पंचवर्षीय योजना से ‘सामाजिक न्याय के साथ विकास’ की युक्ति अंगीकृत की गई। यह माना गया कि गरीबों को उत्पादक बनाने के लिए प्रत्यक्ष प्रयासों की आवश्यकता है। यह परिकल्पना क्रमशः जोर पकड़ती गयी तथा आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों के सहायतार्थ चलाये गये कार्यक्रमों में तदर्थता और अपर्याप्तता का तत्व बना रहा। ग्रामीण क्षेत्र से श्रमिकों का पलायन रोकने और काम के अधिकार की जरूरत लगातार अनुभव की जाती रही। अन्ततः राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना से देश की ग्रामीण जनता को रोजगार का वैधानिक अधिकार प्राप्त हुआ।
ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी की व्यापकता एवं सघनता के निवारण तथा ग्रामीण क्षेत्र में उत्पादक रोजगार बढ़ाने की दृष्टि से सितम्बर, 2005 में ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम पारित किया गया। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून का उद्देश्य वर्ष में 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराकर गैर कृषि अवधि के दौरान अकुशल ग्रामीणों का गाँव से पलायन रोकना है। इसके अनुसार इच्छुक ग्रामीण परिवारों को रोजगार प्राप्त करने का वैधानिक अधिकार प्राप्त हो गया। ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम की व्यवस्थानुसार प्रथम चरण में 2 फरवरी, 2006 से देश चयनित अधिक पिछड़े 200 जिलों में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना लागू की गयी। वर्ष 2007-08 में इस योजना का विस्तार एनआरईजीए के अन्तर्गत कार्य कर रहे पुरुष एवं महिलाएँ 130 अन्य जिलों में किया गया।
इस प्रकार द्वितीय चरण में इस योजना का विस्तार 330 जिलों में कर दिया गया। आरम्भ में यह लक्ष्य रखा गया था कि 5 वर्षों की अवधि में इस योजना का विस्तार ग्रामीण क्षेत्र के सभी जिलों में कर दिया जायेगा। इस योजना में केन्द्र सरकार की मुख्य भूमिका है। इस योजना में मजदूरी भुगतान की समस्त लागत, सामग्री लागत का 75 प्रतिशत और प्रशासनिक लागत का कुछ अंश केन्द्र सरकार वहन करेगी। राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ता, सामग्री लागत का 25 प्रतिशत और प्रशासनिक लागत का कुछ अंश वहन करेंगी। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना माँग आधारित रोजगार कार्यक्रम है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्र के जरूरतमन्द प्रत्येक परिवार को 100 दिन का सुनिश्चित अकुशल रोजगार प्रदान करना है। पहले से चल रहे ‘सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना’ और ‘काम के बदले अनाज योजना’ को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना में सम्मिलित कर लिया गया है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के अन्तर्गत जल संरक्षण, सूखा निवारण, वनों के विस्तार, वृक्षारोपण, भूमि संरक्षण, उद्धरण एवं विकास, बाढ़ नियन्त्रण, जल प्लावन से प्रभावित क्षेत्रों से जल निकास की व्यवस्था, ग्रामीण सम्बन्धिता बढ़ाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में सर्वकालिक सड़कों के निर्माण आदि कार्यक्रमों में ग्रामीण परिवारों को रोजगार प्रदान किया जायेगा। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना की मुख्य बातें निम्नवत हैं:
1. प्रत्येक वित्तीय वर्ष में प्रत्येक गरीबी की रेखा से नीचे के परिवार को, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करना चाहें, कम से कम 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जायेगा।
2. गाँव में निवास करने वाले गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवार के सदस्य इसके अन्तर्गत अकुशल रोजगार पाने के लिए पंजीकरण करा सकता है।3. सभी योग्य आवेदकों को आवेदन की तिथि से 15 दिनों के भीतर फोटोयुक्त रोजगार कार्ड जारी किया जाना चाहिए।4. रोजगार कार्डधारी आवेदक द्वारा काम की माँग किये जाने पर, उन्हें 15 दिनों के भीतर सूचित किया जायेगा तथा उसे कार्य आवण्टित किया जाना चाहिए।5. योजना के अन्तर्गत प्रारम्भ किये जाने वाले कार्यों में जल एवं मिट्टी संरक्षण, वन रोपण तथा भूमि विकास कार्य को प्राथमिकता दिया जाना चाहिए।6. गाँव के लिए परियोजनाओं की सिफारिश ग्राम सभा द्वारा की जानी चाहिए जिसका अनुमोदन जिला पंचायत द्वारा होना चाहिए।7. मजदूरी का भुगतान 15 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए। मजदूरी की राशि के मामले में राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचित कृषि श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी का नियम लागू होगा।8. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के अन्तर्गत महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण की व्यवस्था की गयी है।9. कार्ड धारक को काम माँगने पर यदि 15 दिनों तक रोजगार नहीं दिया तो उसके लिए बेरोजगारी भत्ता दिये जाने की व्यवस्था है।10. इस योजना के अन्तर्गत कार्य करने वाले श्रमिक को यदि कार्य के दौरान चोट लग जाती है या वह घायल हो जाता है तो उसकी निःशुल्क चिकित्सा की जायेगी और मृत्यु की दशा में 25000 रुपए का भुगतान किया जायेगा।
योग्य परिवारों के वयस्क सदस्य रोजगार हेतु पंचायतों में अपना पंजीकरण कराते हैं और रोजगार कार्ड प्राप्त करते हैं। पंजीकृत व्यक्ति कम से कम 14 दिन के लगातार कार्य के लिए पंचायतों या कार्यक्रम अधिकारी को अपना लिखित आवेदन करते हैं। पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी कार्य प्रदान करने की सूचना का पत्र प्रार्थी को देंगे। उसके निवास से 5 कि.मी. की सीमा में काम देंगे। यदि 5 कि.मी. से अधिक दूरी पर कार्य दिया जाता है तो अतिरिक्त मजदूरी दी जायेगी।योग्य परिवारों के वयस्क सदस्य रोजगार हेतु पंचायतों में अपना पंजीकरण कराते हैं और रोजगार कार्ड प्राप्त करते हैं। पंजीकृत व्यक्ति कम से कम 14 दिन के लगातार कार्य के लिए पंचायतों या कार्यक्रम अधिकारी को अपना लिखित आवेदन करते हैं। पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी कार्य प्रदान करने की सूचना का पत्र प्रार्थी को देंगे। उसके निवास से 5 कि.मी. की सीमा में काम देंगे। यदि 5 कि.मी. से अधिक दूरी पर कार्य दिया जाता है तो अतिरिक्त मजदूरी दी जायेगी। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम नीतिगत आधार पर गव्यात्मक है। यह माँग आधारित कार्यक्रम हैं। माँगने पर काम उपलब्ध कराया जायेगा। इस कार्यक्रम के प्रति ग्रामीण क्षेत्र में उत्साह है और लोग इस कार्यक्रम में अपनी भागीदारी बढ़ाने को तत्पर हैं। बजट 2008-09 में यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना अब देश के सभी 596 ग्रामीण जिलों में लागू कर दी जायेगी। बजट प्रस्ताव में इस योजना के लिए 2008-09 हेतु 16000 करोड़ रुपए आवण्टित किये गये हैं और आवश्यकता पड़ने पर अधिक धनराशि की व्यवस्था किये जाने का संकेत दिया गया है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के अन्तर्गत अब तक की प्रगति सामान्य है। ग्रामीण क्षेत्र में इसका चलन बढ़ रहा है। लोगों में कार्य उपलब्धता के लिए विश्वास बढ़ रहा है। इस योजना के अन्तर्गत 2007-08 में 2.61 करोड़ ग्रामीण परिवारों ने कार्य माँगा है। उसमें से 2.57 करोड़ ग्रामीण परिवारों को वर्ष 2007-08 में लगभग 85 करोड़ मनुष्य-दिवस का कार्य प्रदान किया गया है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के लिए वर्ष 2007-08 में 12000 रुपए का प्रावधान किया गया था। इसमें से 30 जनवरी, 2008 तक लगभग 10500 करोड़ रुपए व्यय किये जा चुके हैं। इस योजना के लिए अधिक धनराशि आवण्टित किये जाने से ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसरों का विस्तार होगा। वित्त मन्त्री ने यह भी विचार व्यक्त किया है कि जब तक अर्थव्यवस्था की वार्षिक संवृद्धि दर 8.5 प्रतिशत बनी रहती है, यह ग्रामीण समाज के सभी वर्गों के लिए कार्य देने में समर्थ रहेगा। वित्त मन्त्री ने अपने बजट भाषण में भी यह कहा है कि अनुसूचित जन जातियों विशेष कर महिलाओं के सशक्तीकरण की दृष्टि से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना एक ऐतिहासिक प्रयास के रूप में प्रतिष्ठित हुआ है।
ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने की यह अब तक की सबसे सुदृढ़ योजना है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना सरकार का अग्रणी एवं प्रचारित कार्यक्रम है। इसके दूरगामी प्रभाव सम्भावित हैं। यह सरकार का एक महत्वपूर्ण ‘फ्लैगशिप’ कार्यक्रम है। खेती और सम्बद्ध क्रियाओं के पूर्वतः विद्यमान रोजगार अवसरों के अतिरिक्त श्रमिक को 100 दिन का अतिरिक्त सुनिश्चित रोजगार मिलने पर उसमें निश्चितता आयेगी। गाँव से पलायन रुकेगा। गाँवों से बलात पलायन होता है क्योंकि गाँव में काम के अवसर नहीं है। विशेषकर जब कृषि में कार्य नहीं होता है। नगरों की अत्यन्त अस्वास्थ्यकर एवं कष्टकारी दशाओं में किसी प्रकार जीवन-बसर करने से मुक्ति मिलेगी। नगरीय क्षेत्र के कई अकुशल कार्य अक्सर अत्यन्त श्रम साध्य और कष्टकारी होते हैं। यदि ऐसा ही कार्य उन्हें गाँव में मिल सकेगा तो अपने परिवार के साथ रह सकेंगे और उनका जीवन-यापन उनके दमघोंटू नगरीय जीवन से श्रेयस्कर होगा। ग्रामीण क्षेत्र में समाजोपयोगी उत्पादक परिसम्पत्ति का सृजन होगा। उत्पादन सम्भावना बढ़ेगी। अतः ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार सृजन और गरीबी निवारण में यह कार्यक्रम लाभदायक होगा।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना की नीतिगत रूपरेखा ग्रामीण बेरोजगारी और गरीबी की समस्या के निदान हेतु एक सबल आधार तैयार करती है। समाज के आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के लोग इस सन्दर्भ में बड़े प्रयास की अपेक्षा भी करते हैं। परन्तु योजना की वास्तविक सफलता इसके सक्षम क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। यह कहा गया है कि योजना के क्रियान्वयन में कमियां हैं। काम माँगने वाले अधिकांश परिवारों को काम मिल तो जाता है परन्तु बहुत कम परिवारों को 100 दिन का पूर्ण रोजगार मिल पाता है। यह अनुमान किया गया है कि 2006-07 में कार्य पाने वालों में से केवल 30 प्रतिशत को 100 दिन का रोजगार प्राप्त हुआ था। वर्ष 2007-08 में भी बहुत कम परिवारों को 100 दिन का पूरा रोजगार मिल सका है।
ऐसी दशा में कार्यक्रम की मूल भावना की पूर्ति नहीं हो पा रही है। इस सन्दर्भ में भारत के कण्ट्रोलर एण्ड ऑडीटर जनरल (सी.ए.जी.) ने भी ध्यान आकृष्ट किया है। भारत के कण्ट्रोलर एण्ड ऑडीटर जनरल ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के क्रियान्वयन के निष्पादन ऑडिट में महत्वपूर्ण कमियां पायी हैं और योजना का अतिरिक्त प्रसार करने से पूर्व इन कमियों के निराकरण करने की सलाह सरकार को दी है। इसी प्रकार ग्रामीण विकास मन्त्रालय के अनुसार राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के लिए 2007-08 में आवण्टित राशि का दिसम्बर 2007 तक 60 प्रतिशत भाग ही व्यय किया जा सका है। माँगने वाले सभी लोगों को रोजगार भी नहीं उपलब्ध कराया जा सका है। अतः राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना का क्रियान्वयन पक्ष सुदृढ़ बनाया जाना चाहिए और इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना वांछित है ताकि देश की बेरोजगार श्रम शक्ति इसके प्रावधानों से अवगत हो सके और इसमें अपनी भागीदारी बढ़ाए।
(लेखक इलाहाबाद डिग्री कॉलेज के अर्थशास्त्र विभाग में रीडर हैं।)
चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के आरम्भ में ही नीति निर्माता इस विचारधारा से सहमत हो गये कि उत्पादन बढ़ने से समान मात्रा में गरीबी और बेरोजगारी का समाधान नहीं होता है बल्कि लाभों का असमान वितरण होने के कारण समस्या बढ़ जाती है। यह अनुभव किया गया कि औद्योगिक प्रगति और हरित क्रान्ति के लाभ समाज के लक्ष्य समूह के लोगों को नहीं मिल सके हैं। फलतः गरीबी, बेरोजगारी और असमानता की समस्या बढ़ती गयी। ग्रामीण क्षेत्र से दबावकारी पलायन बढ़ता गया। इसलिए चतुर्थ पंचवर्षीय योजना से ‘सामाजिक न्याय के साथ विकास’ की युक्ति अंगीकृत की गई। यह माना गया कि गरीबों को उत्पादक बनाने के लिए प्रत्यक्ष प्रयासों की आवश्यकता है। यह परिकल्पना क्रमशः जोर पकड़ती गयी तथा आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों के सहायतार्थ चलाये गये कार्यक्रमों में तदर्थता और अपर्याप्तता का तत्व बना रहा। ग्रामीण क्षेत्र से श्रमिकों का पलायन रोकने और काम के अधिकार की जरूरत लगातार अनुभव की जाती रही। अन्ततः राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना से देश की ग्रामीण जनता को रोजगार का वैधानिक अधिकार प्राप्त हुआ।
ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी की व्यापकता एवं सघनता के निवारण तथा ग्रामीण क्षेत्र में उत्पादक रोजगार बढ़ाने की दृष्टि से सितम्बर, 2005 में ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम पारित किया गया। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून का उद्देश्य वर्ष में 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराकर गैर कृषि अवधि के दौरान अकुशल ग्रामीणों का गाँव से पलायन रोकना है। इसके अनुसार इच्छुक ग्रामीण परिवारों को रोजगार प्राप्त करने का वैधानिक अधिकार प्राप्त हो गया। ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम की व्यवस्थानुसार प्रथम चरण में 2 फरवरी, 2006 से देश चयनित अधिक पिछड़े 200 जिलों में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना लागू की गयी। वर्ष 2007-08 में इस योजना का विस्तार एनआरईजीए के अन्तर्गत कार्य कर रहे पुरुष एवं महिलाएँ 130 अन्य जिलों में किया गया।
इस प्रकार द्वितीय चरण में इस योजना का विस्तार 330 जिलों में कर दिया गया। आरम्भ में यह लक्ष्य रखा गया था कि 5 वर्षों की अवधि में इस योजना का विस्तार ग्रामीण क्षेत्र के सभी जिलों में कर दिया जायेगा। इस योजना में केन्द्र सरकार की मुख्य भूमिका है। इस योजना में मजदूरी भुगतान की समस्त लागत, सामग्री लागत का 75 प्रतिशत और प्रशासनिक लागत का कुछ अंश केन्द्र सरकार वहन करेगी। राज्य सरकारें बेरोजगारी भत्ता, सामग्री लागत का 25 प्रतिशत और प्रशासनिक लागत का कुछ अंश वहन करेंगी। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना माँग आधारित रोजगार कार्यक्रम है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्र के जरूरतमन्द प्रत्येक परिवार को 100 दिन का सुनिश्चित अकुशल रोजगार प्रदान करना है। पहले से चल रहे ‘सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना’ और ‘काम के बदले अनाज योजना’ को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना में सम्मिलित कर लिया गया है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के अन्तर्गत जल संरक्षण, सूखा निवारण, वनों के विस्तार, वृक्षारोपण, भूमि संरक्षण, उद्धरण एवं विकास, बाढ़ नियन्त्रण, जल प्लावन से प्रभावित क्षेत्रों से जल निकास की व्यवस्था, ग्रामीण सम्बन्धिता बढ़ाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में सर्वकालिक सड़कों के निर्माण आदि कार्यक्रमों में ग्रामीण परिवारों को रोजगार प्रदान किया जायेगा। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना की मुख्य बातें निम्नवत हैं:
1. प्रत्येक वित्तीय वर्ष में प्रत्येक गरीबी की रेखा से नीचे के परिवार को, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करना चाहें, कम से कम 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जायेगा।
2. गाँव में निवास करने वाले गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवार के सदस्य इसके अन्तर्गत अकुशल रोजगार पाने के लिए पंजीकरण करा सकता है।3. सभी योग्य आवेदकों को आवेदन की तिथि से 15 दिनों के भीतर फोटोयुक्त रोजगार कार्ड जारी किया जाना चाहिए।4. रोजगार कार्डधारी आवेदक द्वारा काम की माँग किये जाने पर, उन्हें 15 दिनों के भीतर सूचित किया जायेगा तथा उसे कार्य आवण्टित किया जाना चाहिए।5. योजना के अन्तर्गत प्रारम्भ किये जाने वाले कार्यों में जल एवं मिट्टी संरक्षण, वन रोपण तथा भूमि विकास कार्य को प्राथमिकता दिया जाना चाहिए।6. गाँव के लिए परियोजनाओं की सिफारिश ग्राम सभा द्वारा की जानी चाहिए जिसका अनुमोदन जिला पंचायत द्वारा होना चाहिए।7. मजदूरी का भुगतान 15 दिनों के भीतर किया जाना चाहिए। मजदूरी की राशि के मामले में राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचित कृषि श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी का नियम लागू होगा।8. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के अन्तर्गत महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण की व्यवस्था की गयी है।9. कार्ड धारक को काम माँगने पर यदि 15 दिनों तक रोजगार नहीं दिया तो उसके लिए बेरोजगारी भत्ता दिये जाने की व्यवस्था है।10. इस योजना के अन्तर्गत कार्य करने वाले श्रमिक को यदि कार्य के दौरान चोट लग जाती है या वह घायल हो जाता है तो उसकी निःशुल्क चिकित्सा की जायेगी और मृत्यु की दशा में 25000 रुपए का भुगतान किया जायेगा।
योग्य परिवारों के वयस्क सदस्य रोजगार हेतु पंचायतों में अपना पंजीकरण कराते हैं और रोजगार कार्ड प्राप्त करते हैं। पंजीकृत व्यक्ति कम से कम 14 दिन के लगातार कार्य के लिए पंचायतों या कार्यक्रम अधिकारी को अपना लिखित आवेदन करते हैं। पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी कार्य प्रदान करने की सूचना का पत्र प्रार्थी को देंगे। उसके निवास से 5 कि.मी. की सीमा में काम देंगे। यदि 5 कि.मी. से अधिक दूरी पर कार्य दिया जाता है तो अतिरिक्त मजदूरी दी जायेगी।योग्य परिवारों के वयस्क सदस्य रोजगार हेतु पंचायतों में अपना पंजीकरण कराते हैं और रोजगार कार्ड प्राप्त करते हैं। पंजीकृत व्यक्ति कम से कम 14 दिन के लगातार कार्य के लिए पंचायतों या कार्यक्रम अधिकारी को अपना लिखित आवेदन करते हैं। पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी कार्य प्रदान करने की सूचना का पत्र प्रार्थी को देंगे। उसके निवास से 5 कि.मी. की सीमा में काम देंगे। यदि 5 कि.मी. से अधिक दूरी पर कार्य दिया जाता है तो अतिरिक्त मजदूरी दी जायेगी। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम नीतिगत आधार पर गव्यात्मक है। यह माँग आधारित कार्यक्रम हैं। माँगने पर काम उपलब्ध कराया जायेगा। इस कार्यक्रम के प्रति ग्रामीण क्षेत्र में उत्साह है और लोग इस कार्यक्रम में अपनी भागीदारी बढ़ाने को तत्पर हैं। बजट 2008-09 में यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना अब देश के सभी 596 ग्रामीण जिलों में लागू कर दी जायेगी। बजट प्रस्ताव में इस योजना के लिए 2008-09 हेतु 16000 करोड़ रुपए आवण्टित किये गये हैं और आवश्यकता पड़ने पर अधिक धनराशि की व्यवस्था किये जाने का संकेत दिया गया है।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के अन्तर्गत अब तक की प्रगति सामान्य है। ग्रामीण क्षेत्र में इसका चलन बढ़ रहा है। लोगों में कार्य उपलब्धता के लिए विश्वास बढ़ रहा है। इस योजना के अन्तर्गत 2007-08 में 2.61 करोड़ ग्रामीण परिवारों ने कार्य माँगा है। उसमें से 2.57 करोड़ ग्रामीण परिवारों को वर्ष 2007-08 में लगभग 85 करोड़ मनुष्य-दिवस का कार्य प्रदान किया गया है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के लिए वर्ष 2007-08 में 12000 रुपए का प्रावधान किया गया था। इसमें से 30 जनवरी, 2008 तक लगभग 10500 करोड़ रुपए व्यय किये जा चुके हैं। इस योजना के लिए अधिक धनराशि आवण्टित किये जाने से ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के अवसरों का विस्तार होगा। वित्त मन्त्री ने यह भी विचार व्यक्त किया है कि जब तक अर्थव्यवस्था की वार्षिक संवृद्धि दर 8.5 प्रतिशत बनी रहती है, यह ग्रामीण समाज के सभी वर्गों के लिए कार्य देने में समर्थ रहेगा। वित्त मन्त्री ने अपने बजट भाषण में भी यह कहा है कि अनुसूचित जन जातियों विशेष कर महिलाओं के सशक्तीकरण की दृष्टि से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना एक ऐतिहासिक प्रयास के रूप में प्रतिष्ठित हुआ है।
ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने की यह अब तक की सबसे सुदृढ़ योजना है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना सरकार का अग्रणी एवं प्रचारित कार्यक्रम है। इसके दूरगामी प्रभाव सम्भावित हैं। यह सरकार का एक महत्वपूर्ण ‘फ्लैगशिप’ कार्यक्रम है। खेती और सम्बद्ध क्रियाओं के पूर्वतः विद्यमान रोजगार अवसरों के अतिरिक्त श्रमिक को 100 दिन का अतिरिक्त सुनिश्चित रोजगार मिलने पर उसमें निश्चितता आयेगी। गाँव से पलायन रुकेगा। गाँवों से बलात पलायन होता है क्योंकि गाँव में काम के अवसर नहीं है। विशेषकर जब कृषि में कार्य नहीं होता है। नगरों की अत्यन्त अस्वास्थ्यकर एवं कष्टकारी दशाओं में किसी प्रकार जीवन-बसर करने से मुक्ति मिलेगी। नगरीय क्षेत्र के कई अकुशल कार्य अक्सर अत्यन्त श्रम साध्य और कष्टकारी होते हैं। यदि ऐसा ही कार्य उन्हें गाँव में मिल सकेगा तो अपने परिवार के साथ रह सकेंगे और उनका जीवन-यापन उनके दमघोंटू नगरीय जीवन से श्रेयस्कर होगा। ग्रामीण क्षेत्र में समाजोपयोगी उत्पादक परिसम्पत्ति का सृजन होगा। उत्पादन सम्भावना बढ़ेगी। अतः ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार सृजन और गरीबी निवारण में यह कार्यक्रम लाभदायक होगा।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना की नीतिगत रूपरेखा ग्रामीण बेरोजगारी और गरीबी की समस्या के निदान हेतु एक सबल आधार तैयार करती है। समाज के आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग के लोग इस सन्दर्भ में बड़े प्रयास की अपेक्षा भी करते हैं। परन्तु योजना की वास्तविक सफलता इसके सक्षम क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। यह कहा गया है कि योजना के क्रियान्वयन में कमियां हैं। काम माँगने वाले अधिकांश परिवारों को काम मिल तो जाता है परन्तु बहुत कम परिवारों को 100 दिन का पूर्ण रोजगार मिल पाता है। यह अनुमान किया गया है कि 2006-07 में कार्य पाने वालों में से केवल 30 प्रतिशत को 100 दिन का रोजगार प्राप्त हुआ था। वर्ष 2007-08 में भी बहुत कम परिवारों को 100 दिन का पूरा रोजगार मिल सका है।
ऐसी दशा में कार्यक्रम की मूल भावना की पूर्ति नहीं हो पा रही है। इस सन्दर्भ में भारत के कण्ट्रोलर एण्ड ऑडीटर जनरल (सी.ए.जी.) ने भी ध्यान आकृष्ट किया है। भारत के कण्ट्रोलर एण्ड ऑडीटर जनरल ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के क्रियान्वयन के निष्पादन ऑडिट में महत्वपूर्ण कमियां पायी हैं और योजना का अतिरिक्त प्रसार करने से पूर्व इन कमियों के निराकरण करने की सलाह सरकार को दी है। इसी प्रकार ग्रामीण विकास मन्त्रालय के अनुसार राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के लिए 2007-08 में आवण्टित राशि का दिसम्बर 2007 तक 60 प्रतिशत भाग ही व्यय किया जा सका है। माँगने वाले सभी लोगों को रोजगार भी नहीं उपलब्ध कराया जा सका है। अतः राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना का क्रियान्वयन पक्ष सुदृढ़ बनाया जाना चाहिए और इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना वांछित है ताकि देश की बेरोजगार श्रम शक्ति इसके प्रावधानों से अवगत हो सके और इसमें अपनी भागीदारी बढ़ाए।
(लेखक इलाहाबाद डिग्री कॉलेज के अर्थशास्त्र विभाग में रीडर हैं।)