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तुलसीराम बाला बोरकर 20 साल पहले अपना गांव छोड़कर दूसरे गांव में रोजी रोटी के लिए गये थे। लेकिन आज वो अपने गांव में बागवानी खेती करके नगदी उत्पाद ले रहे हैं। इसी साल दो एकड़ खेती में फूलों की उपज करके तुलसीराम बोरकर ने दो लाख तीस हजार रुपयो का नगद मुनाफा कमाया। बेरोजगार तुलसीराम गांव क्यों वापस आएं, गांव में ऐसा क्या परिवर्तन हुआ, बेरोजगारी और गरीबी से उठकर वो प्रगतिशील किसान कैसे बने? इन सवालों के पीछे एक कामयाबी का सफर है। यह सफर सिर्फ तुलसीदास का नहीं बल्कि उनके गांव का है और गांव के अन्य किसानों का है। वो गांव जो आज पूरे देश के लिए ग्रामविकास की पाठशाला बन चुका है और जिसे ‘हिवरे बाजार’ कहा जाता है।
महात्मा गांधी ने कहा था, ‘सच्चा लोकतंत्र केन्द्र में बैठे हुये 20 आदमी नहीं चला सकते हैं, वह तो नीचे से हर एक गांव में लोगों द्वारा चलाई जानी चाहिये। सत्ता के केन्द्र इस समय दिल्ली, कलकत्ता व मुंबई जैसे महानगरों में हैं। मैं उसे भारत के सात लाख गांवों में बांटना चाहूंगा।’
गांधी के ग्राम-स्वराज की परिकल्पना का आदर्श और यथार्थ रूप है महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित ‘हिवरे बाजार’ ग्राम। अपने उत्कृष्ट कार्यो की वजह से ही यह गांव पूरे देश के लिए विकास का उदाहरण बन गया है।
‘हिवरे बाजार’ की आदर्श ग्राम बनने की नींव पड़ी 9 अगसत 1989 को। इससे पूर्व गांव की स्थिति खराब थी। रोजगार के अभाव में लोग पलायन कर रहे थे। 1972 से 1989 तक बार-बार यह गांव सूखे की चपेट में आ जाता था। पर्याप्त वर्षा के अभाव में फसलें बर्बाद होती थीं। लगभग 168 परिवार गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करते थे। गांव में कमाई का कोई साधन नहीं था। गांव में न तो शिक्षा की पर्याप्त सुविधा थी न ही उचित चिकित्सा व्यवस्था ही उपलब्ध थी। अपराधीकरण बढ़ता ही जा रहा था। गांव में आए दिन पुलिस का आना आम बात हो गई थी।
ऐसे में गांव के सुधार एवं पुनर्निर्माण की बात ‘हिवरे बाजार’ के कुछ युवाओं में आई। उन्होंने एकजुट होकर संकल्प लिया कि सामूहिक प्रयास से गांव को सुधारा जाये। पहले तो इनकी बातों को लोगों ने हल्के में लिया। इनके संकल्पों को पानी का बुलबुला कहकर उपेक्षा की गई। लेकिन उनके दृढ़निश्चय को देखते हुए गांव वालो ने 9 अगस्त 1989 को ग्राम व्यवस्था की बागडोर युवाओं को सौंप दी। उन्होंने गांव की समस्याओं को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और जुट गए गांव का कायापलट करने में।
युवाओं के मुखिया बने पोपट राव पवार। पवार ने एम काम तक पढ़ाई की है। साथ ही वे पढ़ाई के समय महाराष्ट्र राज्य के प्रथम श्रेणी क्रिकेट खिलाड़ी भी थे।
पवार और अन्य युवाओं ने सबसे पहले गांव की कौन-कौन सी समस्याएं हैं, उनका खाका तैयार किया। उनके कारणों को जानने की कोशिश की तथा उनका निवारण क्या हो सकता है, इस पर विचार किया। पवार ने गांव की समस्या ध्यान में रखते हुए एक स्वयंसेवी संस्था का गठन किया। उसके माध्यम से एक पंचसूत्री कार्यक्रम तैयार किया। पीने का पानी, खेती के लिए सिंचाई, शिक्षा, आरोग्य सुविधा, पशुखाद्य, सड़क, बिजली और रोजगार को प्राथमिकता दी गई।
पंचसूत्री कार्यक्रम के तहत आदर्श गांव योजना का अमल प्रस्तावित था। इस पंचसूत्री कार्यक्रम को ग्रामसभा की अनुमति आवश्यक था। उसके बाद ही योजना के तहत विकास के लिए निधि और अन्य लाभ मिल सकते थे। 14 अगस्त 1994 के दिन हिवरे बाजार की ग्रामसभा ने इस पंचसूत्री कार्यक्रम को हरी झंडी दी और आदर्श गांव योजना में सहभाग लिया। इसी दिन पाणलोट विकास कार्यक्रम का अमल भी सुनिश्चित किया गया। इस कार्यक्रम के लिए यशवंत कृषि ग्राम और पाणलोट विकास ट्रस्ट का गठन भी किया गया। पाणलोट विकास कार्यक्रम के अंतर्गत दो तालाब, 42 मातीनाला बांध, पांच सिमेंट बांध, 9 सिमेंट संरक्षित जल डैम का निर्माण हुआ है।
गांव के विकास में लोगों के श्रमदान का योगदान सबसे बड़ा है। श्रमदान के कारण लोगों में एकजुटता हो गई है। पाणलोट विकास कार्य के लिए महाराष्ट्र सरकार ने 66 लाख रुपये की मंजूरी दी है। सामूहिक खेती, स्वयंसेवी बचत कट परिवार नियोजन आदि कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। हिवरे बाजार नाम एक ब्रांड बन चुका है जिसका उपयोग कर किसान अपना उत्पादन बेचते हैं।पाणलोट विकास कार्य से गांव की खेती में बदलाव आया। भूजल का स्तर 20 से 70 फीट तक ऊपर आया। फसल उत्पाद के चक्र में बदलाव आया। ज्वार और बाजरा के बजाय किसान प्याज, आलू और बागवानी फसलों का उत्पाद करने लगे। इसके कारण उनका आर्थिक स्तर और जीवनस्तर बढ़ गया। 1990 के पहले गांव के लोगों की औसत कमाई 732 रुपये सालाना थी। आज यह कमाई 99,000 रुपये तक है। पूरे गांव की खेती कमाई 8.23 लाख से बढ़कर 1292 लाख तक पहुंची है। आज लगभग सभी परिवार गरीबी रेखा के ऊपर है।
दूध उत्पादन 300 लीटर प्रतिदिन से 3000 लीटर तक पहुंच गया है। गांव में रोजगार के साधन बढ़ गये हैं। क्षारग्रस्त जमीन उपज के योग्य हो गई है। किसानों को बैंक से कर्ज मिलने लगा। एक सूखा गांव हराभरा हो गया है। इसी कारण जो लोग गांव छोड़ गये थे वो वापस आ गये हैं। आसपास के आठ गांवों में भी पाणलोट विकास के तहत हिवरे बाजार की स्वंयसेवी संस्था ने काम किया है जिससे उन गांवों में भी बेहतर परिणाम नजर आ रहे हैं।
गांव में चराईबंदी के कारण घास का उत्पाद बढ़ा है। 1994 में घास उत्पाद 200 टन से बढ़कर 6000 टन तक हो गया। जंगल संर्वधन और पर्यावरण रक्षण के काम के लिए महाराष्ट्र सरकार ने हिवरे बाजार को संत तुकाराम वनग्राम पुरस्कार (2006-08) से सम्मानित किया। पाणलोट विकास कार्य के लिए 2008 में हिवरे बाजार को प्रथम राष्ट्रीय जल पुरस्कार राष्ट्रपति के हाथों प्रदान किया गया।
गांव के विकास में लोगों के श्रमदान का योगदान सबसे बड़ा है। श्रमदान के कारण लोगों में एकजुटता हो गई है। पाणलोट विकास कार्य के लिए महाराष्ट्र सरकार ने 66 लाख रुपये की मंजूरी दी है। सामूहिक खेती, स्वयंसेवी बचत कट परिवार नियोजन आदि कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। हिवरे बाजार नाम एक ब्रांड बन चुका है जिसका उपयोग कर किसान अपना उत्पादन बेचते हैं।
पूरे देश में आंगनबाड़ियों का जो हाल है वे किसी से छिपा नहीं है। लेकिन यहां की आंगनबाड़ी इसकी अपवाद है। लगभग आधे एकड़ में फैली है ये आंगनबाड़ी। इस आंगनबाड़ी के आंगन में फिसलपट्टी है, पर्याप्त खेल-खिलौने हैं, प्रत्येक बच्चे के लिये पोषणाहार हेतु अलग-अलग बर्तन, स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था है। बच्चों का नियमित परीक्षण होता है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ईरुबाई मारूति कहती हैं कि जब इन बच्चों की जिम्मेदारी मेरी है तो फिर मैं क्यों काम करने से कतराऊं! मैं कुछ गड़बड़ भी करती हूं तो फिर मुझे ग्रामसभा में जवाब देना होता हैं। वे बड़े गर्व से कहती हैं कि मेरी आंगनबाड़ी को केन्द्र सरकार से सर्वश्रेष्ठ आंगनबाड़ी का पुरस्कार मिला है।
पोपटराव जहां भी जाते हैं वहां पर बच्चों, महिलाओं और किसानों को ले जाते हैं। इससे इन लोगों का एक्सपोजर होता है और गांव की सामूहिक दृष्टि मजबूत होती है। यही कारण है कि 1989 के बाद से यहां चुनाव नहीं हुये। तारीख आती है और निर्विरोध सत्ता सौंप दी जाती है पोपट राव पवार के हाथों में। पारदर्शिता यहां मुंह नहीं चिढ़ाती है। यहां पंचायत भवन में प्रतिमाह पैसों का पूरा रिकार्ड लिखकर टांग दिया जाता है। पंचायत सचिव ज्ञानेश्वर लक्ष्मण कहते हैं कि साल के अंत में ग्रामसभा का पूरा रिकार्ड गांव वालों के सामने और बाहरी लोगों को बुलाकर बताया जाता है।पोपटराव बताते हैं कि हमारे गांव में पहले से ही दो आंगनबाड़ी थीं। फिर तीसरी आंगनबाड़ी बनाने का आर्डर आया। हम सब लोगों ने विचार किया कि हमारे यहां बच्चों की संख्या उतनी तो है नहीं कि तीसरी आंगनबाड़ी आनी चाहिये, फिर उसके लिये संसाधन वगैरह भी चाहिये। हम उतनी निगरानी भी नहीं रख पायेंगे। सो, हमने शासन को पत्र लिखकर तीसरी आंगनबाड़ी को वापिस लौटा दिया।
पहले गांव के बच्चों को पांचवीं के बाद से ही बाहर जाना पड़ता था, जिससे अधिकांश बालिकाएं ड्राप आऊट हो जाती थीं। अब गांव का स्कूल हायर सेकेण्ड्री तक कर दिया गया है। स्कूल का समय शासन के अनुसार नहीं चलता है, बल्कि ग्रामसभा तय करती है स्कूल का समय। स्कूल में मध्याह्न भोजन भिक्षा के रूप में नहीं बल्कि बच्चों के अधिकार के रूप में मिलता है। शिक्षिका शोभा थांगे कहती हैं कि हम लोग ग्रीष्मकालीन अवकाश में भी आते हैं। यहां पढ़ाई किसी बड़े कान्वेंट स्कूल से बेहतर होती है। यही कारण है कि आज, हिवरे बाजार में आसपास के गांव और शहरों से 40 प्रतिशत छात्र-छात्राएं आते हैं। पोपटराव कहते हैं कि हमारे यहां शिक्षकों को ग्रामसभा में तो आना जरूरी है लेकिन चुनाव डयूटी में जाने की आवश्यकता नहीं है।
गांव में एएनएम आती नहीं है, बल्कि यहीं रहती है। गांव के हर बच्चे का टीकाकरण हुआ है। हर गर्भवती महिला को आयरन फोलिक एसिड की गोलियां मिलती हैं। स्थानीय स्तर पर मिलने वाली समस्त स्वास्थ्य सुविधाएं गांव में गारंटी के साथ मिल जाएंगी।
गांव में राशन व्यवस्था की बात करें तो राशन दुकान संचालक आबादास थांगे बहुत ही बेबाक तरीके से कहते हैं, ”राशन व्यवस्था में यहां पर सबसे पहले तो प्रत्येक कार्डधारी को राशन बांट दिया जाता है लेकिन उसके बाद राशन बचने पर ग्रामसभा तय करती है कि इस राशन का क्या होगा? ग्रामसभा कहती है कि इसे अमुक परिवार को दे दीजिये तो मुझे देना होता है। मैं मना नहीं कर सकता हूं। मुझे फूड इंस्पेक्टर को रिश्वत नहीं देनी पड़ती है। मेरी तौल में कुछ दिक्कत हो तो मुझसे ग्रामसभा में जवाब तलब किया जाता है। और जब मुझे रिश्वत नहीं देना है तो फिर मैं फर्जीवाड़ा क्यों करूं?”
गांव के सारे महत्वपूर्ण निर्णय जहां पर बैठकर लिये जाते हैं, उस जगह का नाम है ‘ग्राम संसद।’ इसकी बनावट भी दिल्ली के संसद भवन की ही तरह है। पोपट राव कहते हैं कि पहले तो गांव में महीने में दो ग्रामसभा ही होती थीं, लेकिन हमने बाद में अपनी जरूरत के मुताबिक ग्रामसभाएं करनी शुरू कीं। हम हर महीने में चार ग्रामसभाएं करते हैं। दरअसल, हमारी यह ग्रामसभा एक निर्णय सभा है, हम ग्रामसभा में कोशिश करते हैं कि हर व्यक्ति आये और बात करे। महिलाएं विशेष रूप से आये और अपनी बात रखें। इस बात के समर्थन में जुम्बर बाई यादव कहती हैं कि मैंने ग्रामसभा में यह कहा कि ग्राम के सार्वजनिक शौचालयों में महिलाओं का नाम लिखा जाना चाहिये और यह हुआ।
यहीं नहीं ग्रामसभा ने कुछ और फैसले लिये जिनके बगैर हिवरे बाजार की बात अधूरी होगी। हिवरे बाजार की ग्रामसभा ने गांव के रहमान सैयद के एकमात्र मुस्लिम परिवार के लिये श्रमदान और पंचायत की ओर से मस्जिद बनाने का फैसला लिया। ग्रामसभा ने यह भी सोचा कि सरपंच तो इतनी जगह घूमते हैं। उनके लिए वाहन की व्यवस्था होनी चाहिए। दस दिनों में पांच लाख रुपये की व्यवस्था हो गई। वाहन आया और अब यह वाहन गांव का वाहन है।
पोपटराव जहां भी जाते हैं वहां पर बच्चों, महिलाओं और किसानों को ले जाते हैं। इससे इन लोगों का एक्सपोजर होता है और गांव की सामूहिक दृष्टि मजबूत होती है। यही कारण है कि 1989 के बाद से यहां चुनाव नहीं हुये। तारीख आती है और निर्विरोध सत्ता सौंप दी जाती है पोपट राव पवार के हाथों में। पारदर्शिता यहां मुंह नहीं चिढ़ाती है। यहां पंचायत भवन में प्रतिमाह पैसों का पूरा रिकार्ड लिखकर टांग दिया जाता है। पंचायत सचिव ज्ञानेश्वर लक्ष्मण कहते हैं कि साल के अंत में ग्रामसभा का पूरा रिकार्ड गांव वालों के सामने और बाहरी लोगों को बुलाकर बताया जाता है।