महाराष्ट्र के सुखाडग्रस्त जिला अहमदनगर का एक गांव हिवरे बाजार पर्यावरण संबंधी समस्या के कारण गर्त में जा रहा था. लेकिन एक दशक से भी कम समय में इसके हालात बदल गए, अब इसे देश के सबसे समृद्ध गांवों में गिना जाने लगा है. यह सब किसी जादू की छड़ी से नहीं बल्कि यहां के लोगों की सामान्य बुद्धि से संभव हुआ है. यह सब उन्होंने सरकारी योजनाओं के जरिए प्राकृतिक संसाधनों, वनों, जल और मिट्टी को पुनर्जीवित कर एक मजबूत नेतृत्व से किया. इस काम में उनका आदर्श अन्ना हजारे का गांव रालेगन सिद्धी था. अब हिवरे बाजार पूरे अहमदनगर जिले के लिए उदहरण बन गया है, जहां लोग उसकी योजनाओं की नकल करते हैं. प्रस्तुत है, उस गांव की यात्रा कर लौटी नेहा सखूजा की यह खबर-
एक दशक पहले सुंदरबाई गायकवाड़ ने अपनी जिंदगी का सबसे कठिन फैसला लिया और मुंबई छोडकर अपने गांव लौट आई. मुंबई की मलिन बस्तियों में अनिश्चित जिंदगी भी उसे अपने सूखाग्रस्त गांव से बेहतर लगती थी जहां अक्सर फसलें बरबाद हो जाती थीं. मगर अब गायकवाड़ को अपने निर्णय पर पछतावा नहीं है. वे कहती हैं 'इस मैंने अपनी 8 एकड़ जमीन पर प्याज बोकर 80,000 रुपये कमाए. अब मैं एक दैनिक मजदूर नहीं हूं.
गायकवाड़ 1998 में अपने गांव लौटी जब उसने सुना कि राज्य सरकार का रोजगार गारंटी स्कीम (ईजीएस) उसके गांव में लागू होने जा रहा है. वे कहती हैं 'मांग के आधार पर काम का वादा निश्चत तौर गर लुभावना था, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण साबित हुआ जल संरक्षण का काम जिसे गांव के लोगों ने इस योजना के तहत अपनाया था.' गायकवाड़ ने जल्द ही बंटाई के 2 हेक्टेयर जमीन पर खेती शुरू कर दी. वाटरशेड के काम के जरिये खेती में निश्चित आय की गारंटी हो गई और ईजीएस से मिलने वाली मजदूरी ने पूरक का काम किया. 2007 में उसने बैंक से लोन लेकर 3 हेक्टेयर जमीन खरीदी और उसपर प्याज उगाना शुरू कर दिया. गारंटर के तौर पर ग्राम सभा (ग्राम परिषद) खड़ी थी. अब उसे ईजीएस की जरूरत नहीं रही, ठीक अपने ग्रामीणों की तरह.
घर वापसी
गायकवाड़ की कहानी हिवरे बाजार की किस्मत के पलटने की दास्तां है. पिछले दशक में, जो काम की तलाश में गांव छोड़ गए थे वे अब धीरे-धीरे लौटने लगे हैं. पंचायत के आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार पुणे और मुंबई से 1992 और 2002 के बीच 40 परिवार गांव लौट आए हैं. वे 1970 के दशक अंत और 1980 के दशक की शुरुआत में बाहर चले गए थे. इन परिवारों की वापसी के साथ 2007 में घरों की संख्या में 216 की वृद्धि हुई. यह उल्टा पलायन 1995 में ईजीएस के कार्यान्वयन के साथ शुरू हुआ, लेकिन बदलाव के बीज कुछ साल पहले बोए गए थे.
1970 के दशक में, हिवरे बाजार, अपने हिन्द केसरी पहलवानों के लिए प्रसिद्ध था, मगर पर्यावरण क्षरण के खिलाफ लड़ाई हार चुका था. यहां वार्षिक वर्षा सिर्फ 400 मिमी होती थी (महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र जिसमें यह जिला पडता है में 882 मिमी बारिश होती है), गांव के आसपास के पहाड़ों में वनों की रक्षा की जरूरत थी, मगर वे यह कर नहीं पा रहे थे. 'इस नग्न पहाड़ी ने गाँव के बुजुर्गों को भी सकते में डाल दिया. कभी वहां मोगरा फूल और फलों के बगान हुआ करते थे. ' 1975 से 1980 के बीच गांव के सरपंच अर्जुन पवार याद करते हुए बताते हैं. पहाड़ियों के उजाड होने के साथ-साथ खेत भी बर्बाद बंजर हो गए. गांव को गंभीर जलसंकट का सामना करना पड़ा उनके परम्परागत जल भंडारण प्रणाली खंडहर में तब्दील हो गए.
1989-90 में मुश्किल से 12 प्रतिशत भूमि पर खेती की जा रही थी. गांव के कुओं में मानसून के दौरान ही पानी होता था. कई परिवार को दूसरी जगह बसने लगे पहले तो खास मौसम में फिर स्थायी रूप से. यहाँ तक कि सरकारी अधिकारी भी गांव छोड कर चले गए और शीघ्र ही हिवरे बाजार पनिश्मेंट पोस्टिंग वाली जगह बन गया. 50 वर्षीय महिला शकुंतला साम्बोले, जो अब आंगनवाडी सहायिका है उन दिनों को याद करती हैं जब यहां पानी उपलब्ध नहीं था. 'मैंने अपने 7 एकड़ (2.8 हेक्टेयर) जमीन को छोड़ दिया और एक कृषि मजदूर बन गई, एक दिन में 40 रुपये कमाने वाली.' अब उसने 4 एकड़ (1.6 हेक्टेयर) अधिक जमीन खरीद लिया है और टमाटर और प्याज की खेती करती हैं. वह एक दिन में 100 रुपए के आसपास सिर्फ सब्जी बेचकर कमाती हैं.
आज, गांव के 216 परिवारों में से एक चौथाई करोड़पति हैं. हिवरे बाजार के सरपंच, पोपट राव पवार कहते हैं 50 से अधिक परिवारों की वार्षिक आय 10 लाख रुपए से अधिक है. गांव की प्रति व्यक्ति आय देश के शीर्ष 10 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों के औसत आय (890 रुपये प्रति माह) की दोगुनी है. पिछले 15 वर्षों में औसत आय 20 गुनी हो गई है.
ईजीएस क्रियान्वयन
हिवरे बाजार ने यह चमत्कार ईजीएस निधियों का उपयोग करके गांव की भूमि और जल संसाधनों को पुनर्जीवित करते हुए किया है. उन्होंने जल संरक्षण संरचनाओं और वनों के तरह की उत्पादक परिसंपत्तियों का निर्माण किया है. पवार कहते हैं 'वृष्टि छाया क्षेत्र में रहते हुए प्रतिवर्ष 400 मिमी वर्षा के सहारे इतना खुशहाल होना तभी संभव है जब आप जल प्रबंधन का तरीका जानते हों.'
हालांकि गांव में प्रतिवर्तन की बयार ईजीएस के कार्यान्वयन से बही पर लोगों ने पुनरुद्धार की दिशा में पहले से ही काम शुरू कर दिया था. 1989 के पंचायत चुनावों में पवार की निर्विरोध जीत मील का पत्थर साबित हुई, उन्होंने जीत के साथ ही जल संरक्षण के लिए काम शुरू कर दिया.
यह जिला 1992 में संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम के अंतर्गत लाया गया. 1993 में, जिला सामाजिक वानिकी विभाग ने पूरी तरह से बरबाद गांव के 70 हेक्टेयर जंगल और गांव के कुओं के पुनरोद्धार में पवार की मदद की. श्रम दान के जरिये पंचायत ने वर्षा और भूजल पुनर्भरण संरक्षण के लिए पहाड़ियों के आसपास 40000 समोच्च खंतियां बनाई. ग्रामीणों ने वृक्षारोपण और वन पुनर्जनन की गतिविधियां शुरू कर दी. मानसून के तुरंत बाद गांव के कई कुओं में 20 से 70 हेक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी एकत्र हो गया.
1994 में ग्राम सभा ने ईजीएस के तहत वाटरशेड कार्यों को लागू करने के लिए 12 एजेंसियों से संपर्क किया. गांव ने वर्ष 1995-2000 के दौरान पारिस्थितिक उत्थान के लिए अपनी पंचवर्षीय योजना तैयार की. इस योजना के आधार पर ही ईजीएस को लागू किया गया था. ऐसा सुनिश्चित किया गया कि परियोजना में शामिल सभी विभाग एक एकीकृत योजना के तहत काम करें.
1994 में महाराष्ट्र सरकार ने हिवरे बाजार को आदर्श ग्राम योजना (एजीवाई) के तहत शामिल कर लिया. एजीवाई पांच सिद्धांतों: शराब, पेड़ कटाई और मुक्त चराई पर प्रतिबंध और परिवार नियोजन व विकास कार्य के लिए श्रम योगदान पर आधारित थी. इनका पहला काम वनभूमि में वृक्षारोपण और लोगों को वहाँ चराई से रोकना था. इसे लागू करने के लिए गांव ने के एक और पंचवर्षीय योजना बनाई.
जल संरक्षण को केंद्रीय भूमिका में रखते हुए विकास का एक एकीकृत मॉडल अपनाया गया. एजीवाई के तहत विकास कार्यों के लिए कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में यशवंत कृषि, ग्रामीण और वाटरशेड विकास ट्रस्ट, नामक एक एनजीओ बनाया गया. पवार कहते हैं 'गाँवों और सरकार को विकास में भागीदार होना चाहिए, लेकिन संचालक की भूमिका गांव की ही होगी.'
गांव ने अपना सारा फंड जल संरक्षण, भूजल रिचार्जिंग और वर्षाजल एकत्र करने के लिए सतह भंडारण प्रणालियों के निर्माण पर व्यय किया. 70 हेक्टेयर वन से अधिकांश कुओं के उपचार में मदद मिली. राज्य सरकार ने ईजीएस के अंतर्गत इस गांव में 1000 हेक्टेयर भूमि के उपचार के लिए, 4000 रु प्रति हेक्टेयर की दर से 42 लाख रुपए खर्च किए.
चमत्कार पानी का
हिवरे बाजार को अब अपने निवेश का लाभ मिलना है. कुओं की संख्या 97 से बढ़कर 217 हो गई है. सिंचित भूमि 1999 में 120 हेक्टेयर के मुकाबले 2006 में 260 हेक्टेयर हो गई है. घास का उत्पादन 2000 में 100 टन से 2004 में 6000 टन हो गया है. अधिक घास की उपलब्धता के कारण दुधारू पशुओं की संख्या 1998 में 20 से 2003 में 340 हो गई है. 1990 के दशक के मध्य में दूध का उत्पादन प्रति दिन 150 लीटर था जो अब 4000 लीटर हो गया है. 2005-06 में कृषि से आय लगभग 2.48 करोड़ की आय हुई.
सर्वेक्षण के मुताबिक 1995 में 180 में से 168 परिवार गरीबी रेखा के नीचे थे. 1998 के सर्वेक्षण में यह संख्या 53 हो गई. अब वहाँ केवल तीन परिवार इस श्रेणी में हैं. गांव ने गरीबी रेखा के लिए अपने अलग मानदंड तय किए हैं. जो लोग इन मानदंडों में प्रति वर्ष 10 हजार रु. भी नहीं खर्च कर पाते वे इस श्रेणी में आते हैं. ये मापदंड आधिकारिक गरीबी रेखा से लगभग तीन गुना हैं. कोई भी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एनआरईजीए) के तहत काम नहीं मांगता जिसे ईजीएस से बदल दिया गया है.
साभार- डाउन टू अर्थInput format