गर्मी बढ़ी, बढ़ी दिल्ली की प्यास

Submitted by admin on Sat, 05/29/2010 - 11:23
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जनसत्ता, 28 मई 2010
दिल्ली में जल संकटदिल्ली में जल संकटजैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है दिल्ली में पानी का संकट भी बढ़ता जा रहा है। इस संकट ने अमीर-गरीब की खाई को पाट दिया है। विपक्ष के साथ सत्ता पक्ष के नेता भी सड़क पर आने लगे हैं। पीने वाले पानी खरीदकर अपना काम चला रहे हैं तो गरीब बेहाल हैं। माफिया का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है। दिल्ली जल बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रमेश नेगी ही नहीं, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी इस मामले में अपनी बेबसी जाहिर करती हैं। दिल्ली के भूजल पर कहने को केंद्रीय भूजल प्राधिकरण का नियंत्रण है, जो बड़ी मुश्किल से दिल्ली के उपराज्यपाल की बनाई कमेटी की सिफारिश से ट्यूबवैल लगाने की इजाजत देता है लेकिन गैर कानूनी ढंग से लगे ट्यूबवैल बंद करने से रोकने का ठीक कानून नहीं बन पाया।

दिल्ली में जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है। हर साल एक मीटर जलस्तर गिर रहा है। उसे ठीक करने के लिए बरसाती पानी रोकने और रिचार्ज करने के प्रयोग को आम जनता का सहयोग नहीं मिल रहा है। यह जल-आंदोलन बनने की बजाए सरकारी कर्मकांड बन गया है। रमेश नेगी बताते हैं कि अब बड़ी संस्थाओं, होटलों को कनेक्शन तभी दिया जाता है जब वे वर्षा-जल संग्रह की व्यवस्था करते हैं। दिल्ली की बनावट ऐसी है कि इसमें पुराने जल स्रोतों को ठीक करके जलाशय बढ़ाया जा सकता है। इसमें बहुशासन प्रणाली आड़े आती है। दिल्ली विकास प्राधिकरण ने जमीन का बेतहाशा अधिग्रहण कर पुरानी चीजों को एक तरह से ढक दिया है। यमुना का पानी सबसे बड़ा स्रोत हो सकता था। लेकिन यमुना को साफ करने के नाम पर करोड़ों रुपए बरबाद किए जा चुके हैं। अदालती आदेश से यमुना में गिराए जाने वाले 17 नालों के मुहाने पर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाने थे। दिल्ली की पूरी सीवर प्रणाली वैसे ही ध्वस्त हो चुकी है। नाले का गंदा पानी ट्रीटमेंट प्लांट होते हुए यमुना में जाना चाहिए वह सीधे यमुना में गिरता है।

रमेश नेगी कहते हैं कि बिजली में तो यह विकल्प है कि आप जमीन के ऊपर से कहीं से भी बिजली का लाइन ले जा सकते हैं। पानी तो आसपास से ही आएगा और उसके लिए भी पाइप डालना होगा। दूर-दराज से पानी लाया नहीं जा सकता है। आसपास के राज्यों में भी पानी की मांग बढ़ती जा रही है इसलिए साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद हरियाणा मुनक नहर के रास्ते 85 एमजीडी पानी नहीं दे रहा है जो उसे इसी अप्रैल से ही देना था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हस्तक्षेप से कुछ मसला सुलझा है लेकिन यह समस्या का स्थायी हल नहीं है। दिल्ली की आबादी में हर साल पांच लाख अतिरिक्त लोग जुड़ते हैं। अभी भी दिल्ली के तीस फीसदी से ज्यादा इलाके में जल बोर्ड की लाइन नहीं डली है। उनमें भी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रति व्यक्ति सकल जल आपूर्ति 255 लीटर है। 27 फीसद लोगों को रोज तीन घंटे भी पानी नहीं मिलता। 55 फीसद लोगों को तीन से छह घंटे पानी हर रोज मिलता है। अब नेगी खुद कहते हैं कि रोज दो घंटे पानी सभी को उपलब्ध कराना चुनौती है।

अभी इन 70 फीसद इलाकों के हिसाब से पानी की मांग करीब एक हजार एमजीडी है। जबकि आपूर्ति 820-830 एमजीडी हो रही है। गर्मी में पानी की मांग और बढ़ रही है। मुनक नहर से 85 एमजीडी पानी आने के इंतजार में बवाना और ओखला जल शोधन संयंत्र में धूल उड़ रही है। यह स्थिति तब है जब 12 अप्रैल 1994 को तब के मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना के सत्याग्रह के बाद दिल्ली को राज्य मानकर पानी समझौता हुआ था।

मुख्यमंत्री बार-बार पानी का सही बंटवारा और रिसाव कम करने पर जोर देती हैं। नेगी कहते हैं कि इसके लिए एक साथ कई स्तरों पर प्रयास हो रहे हैं। एक तो पानी के लिए नया मास्टर प्लान 2021 बन रहा है जो एक साल में तैयार हो जाएगा। उसमें नए जलाशय आदि का ब्योरा होगा। अतिरिक्त पानी रेणुका बांध से मिल सकता है। हिमाचल प्रदेश की सरकार से 275 एमजीडी पानी के लिए हुए समझौते के तहत उसे 215 करोड़ रुपए दिए गए हैं। पानी की मुख्य लाइन 12 हजार किलोमीटर है, उसमें से 3 हजार किलोमीटर हर साल बदली जा रही है। दो साल में पूरा लाइन नई होगी तो रिसाव कम होगा। अभी लीकेज 42 फीसद से घटकर 30 फीसद तक आ चुका है। इसे 20 फीसद तक ले जाने का प्रयास हो रहा है। अंतराष्ट्रीय मानक 15 का है वैसे जापान और सिंगापुर में यह पांच फीसद है।

रमेश नेगी कहते हैं कि बिजली के फाल्ट दिखते हैं। पानी के लाइन तो जमीन के अंदर हैं। इसलिए पता करना मुश्किल है। फिर भी रिसाव कम करने का प्रयास युद्ध स्तर पर हो रहा है। इस लीकेज को कम करके 200-250 एमजीडी पानी बचाया जा सकता है। उसी तरह पानी का समान बंटवारा करने का प्रयास हो रहा है। बोर्ड का लक्ष्य तो है कि हर रोज दो घंटा सुबह और इतना ही शाम को सभी को पानी मिले। लेकिन यह कब हो पाएगा कहना संभव नहीं है।

मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का मानना है कि बिजली चोरी (टीएंडडी लास) 52 से घटकर 18-20 आते ही बिजली संकट पर काबू पा लिया गया। इसमें पांच साल का समय लगा। लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि बिजली के दाम कम करने की बात होने लगी है। वे इस अस्वाभाविक नहीं मानती कि निजी कंपनियों ने अतिरिक्त बिजली बेचकर पैसे कमाए। उनके मुताबिक वे तो कारोबार के लिए ही आई हैं दूसरे इससे सरकार को भी लाभ हो रहा है उसे सबसिडी नहीं देनी पड़ेगी और धीरे-धीरे उसे भी लाभ होने लगेगा।

लीकेज कम कर काफी बड़े इलाके की प्यास बुझाई जा सकती है। इसका प्रयास बरसाती पानी को अनिवार्य रूप से जमा कर किया जा रहा है। भूजल के गिरते स्तर को रोकने के लिए देर-सवेर नया कानून को बनाना ही पड़ेगा। इसी के साथ पानी का सही तरीके से वितरण करना होगा। दिल्लीवासियों को पानी के सीमित उपयोग की आदत डालनी होगी। अतिरिक्त पानी जुटाना कठिन काम है। काफी प्रयास के बावजूद हरियाणा ने दिल्ली के 85 एमजीडी पानी देना नहीं शुरु किया। इसके लिए प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा है। हर राज्य में पानी की मांग बढ़ रहा है इसलिए पानी कम मानकर उसका किफायत से इस्तेमाल करने की आदत डालनी होगी।

आने वाले समय में तो यह समस्या और भयावह होनी है। रेणुका बांध अब बनना शुरू होगा। बांध बनना शुरू होने के पांच साल बाद पानी मिलेगा। तब तक दिल्ली की मांग आज से काफी ज्यादा हो जाएगी। इस समस्या को बढ़ाने में बढ़ती आबादी के साथ-साथ बहुशासन प्रणाली जल बोर्ड में भ्रष्टाचार आदि दोषी हैं।