जल प्रदूषण में एक प्रमुख तत्व है फ्लोराइड देश के कई हिस्सों के भूजल में फ्लोराइड पाया जाता है। फ्लोराइड युक्त जल लगातार पीने से फ्लोरोसिस नाम की बीमारी होती है। इससे हड्डियां टेढ़ी, खोखली और कमजोर होने लगती है। रीढ़ की हड्डी में भी यह धीरे-धीरे जमा होने लगता है। जिससे हमारी सामान्य दैनिक क्रियाएं भी प्रभावित होने लगती है। अपने पीने के जल स्रोतों को समय-समय पर परिक्षण कराते रहना चाहिए। इसमें किसी भी तरह का प्रदूषण घातक होगा। फ्लोराइड के संबंध में खबरदार करती डॉ. शांतिलाल चौबीसा की रिपोर्ट।
आप जो पानी हैंडपंप, बोरवेल एवं गहरे पारंपरिक कुएं-बावड़ियों से ले रहे हैं, क्या वह पीने योग्य अथवा हानि रहित है? भले ही इनका पानी दिखने में साफ दिखाई देता हो, परंतु इनमें न दिखाई देने वाला 'विषैला' रसायन फ्लोराइड हो सकता है। जब इसकी मात्रा पीने के पानी में 1 या 1.5 पीपीएम से अधिक हो, तो लंबी अवधि तक इसका सेवन करने पर यह किसी भी उम्र के स्त्री-पुरुष को अपने घातक असर का शिकार बना लेता है।
फ्लोराइड जल एवं भोजन के माध्यम से शरीर में प्रवेश होने पर रक्त परिवहन तंत्र द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंच कर धीरे-धीरे इनमें जमने लगता है। यह मां और गर्भस्थ शिशु के बीच स्थित दीवार को भी आसानी से भेद सकता है। यह लिंगभेद नहीं करता और साथ ही उन अंगों को ज्यादा प्रभावित करता है, जिनमें कैल्शियम तत्व की बहुलता हो।
इसलिए इसके विषैले प्रभाव दांतों एवं हडि्डयों में पहले एवं तेज गति से देखने को मिलते हैं। दांतों पर पड़ी हल्की गहरी आड़ी धारियां एवं धब्बे फ्लोराइड 'विष' की पहचान है। इसके असर से हडि्डयां खोखली और कमजोर होने से टेढ़ी-मेढ़ी होने लगती हैं। फ्लोराइड युक्त क्षेत्रों में बसे लोगों में पेट दर्द, गैस बनना, डायरिया जैसी शिकायतें आमतौर पर पाई जाती है। इनमें भोजन के प्रति रूचि भी कम हो जाती है। फ्लोराइड भोजन नली की आंतरिक दीवार को धीरे-धीरे हानि अथवा क्षति पहुंचाता है। इस कारण पाचन क्रिया प्रभावित होती है।
यह अति संवेदनशील एवं सक्रिय अंग मस्तिष्क की तंत्रिकाओं (न्यूरोंस) को तोड़ने एवं नष्ट करने की क्षमता रखता है। इस वजह से मनुष्य की सक्रियता एवं दैनिक क्रियाएं प्रभावित और अनियंत्रित होने लगती हैं। पेशाब पर नियंत्रण खोना, व्यक्ति का सुस्त होना जैसे लक्षण भी तंत्रिकाओं पर इसके घातक असर की वजह से दिखाई देने लगते हैं। फ्लोराइड की वजह से आने वाली पीढ़ियां भी प्रभावित हो सकती हैं।
कैसे बचें
पीने के पानी के स्रोतों (हैंडपंप, बोरवेल, कुएं-बावड़ी) के जल में जलदाय विभाग अथवा जल रसायन परीक्षण प्रयोगशाला से फ्लोराइड की उपस्थिति एवं इसकी मात्रा की जांच करवाएं। फ्लोराइड होने पर इन स्रोतों पर डिफ्लोराइडेशन प्लांट लगवाना चाहिए। इसकी लागत कम है, जिसकी जानकारी जलदाय विभाग से भी ली जा सकती है। भोजन में पत्तेदार हरी सब्जियां, दूध-दही, नीबू, आंवला, हरी फलियां इत्यादि का समावेश करें।