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नेशनल दुनिया, 08 मार्च 2013

उन्होंने 2011 के कटु अनुभवों को याद दिलाते हुए बताया कि वर्ष 1999 में उच्चतम न्यायालय ने यमुना में 10 क्यूमैक्स पानी अनवरत छोड़ने का निर्णय दिया था। निर्णय के बावजूद 12 वर्ष तक कोई पानी नहीं छोड़ा गया। इसलिए हमने दो साल पहले दो मार्च, 2011 से लेकर 15 अप्रैल 2011 तक ‘किसान बचाओ, यमुना बचाओ’ का आंदोलन किया।
74 किसानों और साधु-संतों के 15 दिन जंतर-मंतर पर अनशन और हजारों के धरना देने के बाद सरकार के साथ वार्ता हुई। यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी, तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश, जल संरक्षण मंत्री सलमान खुर्शीद से आंदोलनकारियों की बातचीत हुई। सरकार ने यमुना में 10 क्यूमैक्स पानी छह मई, 2013 को छोड़ा था और तिगुना पानी छोड़ने का वायदा किया था, लेकिन केंद्र सरकार ने आंदोलनकारियों के लौट जाने पर पानी नहीं छोड़ा। जनता के विश्वास को छला गया।
आंदोलनकारियों के तेवरों से हरियाणा की चिंता बढ़ी
यमुना मुक्ति यात्रा में शामिल आंदोलनकारियों में दिल्ली के साथ हरियाणा सरकार के खिलाफ आक्रोश व्याप्त है। पानी के मुद्दे पर पहले ही प्रदेश सरकार के दिल्ली व पंजाब से तकरार रहती है। ऐसे में हरियाणा पर यमुना में पानी छोड़ने के लिए दबाव बढ़ सकता है। आंदोलनकारी पद-यात्रा को दिल्ली से हथिनीकुंड बैराज तक ले जा सकते हैं। ऐसे में आशंका व्यक्त की जा रही है कि यात्रा को दिल्ली में प्रवेश से पूर्व ही रोक लिया जाए। आंदोलनकारियों के तेवरों को देखते हुए दिल्ली से अधिक हरियाणा सरकार की चिंता बढ़ गई है।
ऊपर से दिल्ली के लिए पानी छोड़ने का दबाव गर्मी के सीजन में हरियाणा पर रहता है। आंदोलनकारियों के तेवर तीखे होते जा रहे हैं और उनके द्वारा यमुना में पानी छोड़ने की मांग की जा रही है। माना जा रहा है कि संतों व आंदोलनकारियों दबाव में केंद्र हरियाणा को यमुना के प्रवाह को जीवित रखने के लिए पानी छोड़ने के निर्देश दे सकती है।