अक्सर आपने कुछ वर्षों में मौसम में अप्रत्याशित परिवर्तन देखे होंगे बढ़ती गर्मी और ठंड का कम होना आम लोगों में स्वाभाविक ही चर्चा का विषय है। ये पर्यावरण की सामान्य प्रक्रिया नही है बल्कि वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की उच्च सांद्रता अधिक गर्मी बढ़ाने के लिए जिम्मेवार है। पहले जान लेते है आखिर ये ग्लोबल वॉर्मिंग या वैश्विक तापमान में वृद्धि क्या है?
ग्लोबल वार्मिंग एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। यह पृथ्वी के औसत तापमान में हो रही वृद्धि को दिखाता है। पृथ्वी के लिए प्रकाश और गर्मी का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्रोत सूर्य है। जब भी सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर पड़ता है तो उससे पहले कुछ प्रकाश किरणें परावर्तित होकर अंतरिक्ष में लौट जाती है और कुछ किरणों को हमारे वायुमंडल में मौजूद ग्रीन हाउस गैसें परावर्तित होने से रोक लेती हैं इसे ही ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं। इसी प्रभाव के कारण पृथ्वी पर गर्मी बनी रहती है अगर यह न हो तो पृथ्वी पर बहुत ठंड होगी जिसके कारण जीवन संभव ही नहीं है। लेकिन इन ग्रीन हाउस गैसों के असंतुलित रूप से बढ़ने के कारण ये सूरज की ज्यादा गर्मी को सोखने लगी और इस तरह पृथ्वी का तापमान बढ़ने लगा और यही जलवायु परिवर्तन की समस्या है।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण मानसून के पैटर्न में बदलाव भी आता है जिसकी वजह से कहीं सूखा तो कहीं अधिक बारिश से बाढ़ जैसे हालात पैदा होते हैं। तापमान में बढ़ोतरी के कारण वनों में आग लगने जैसी घटनाओं में वृद्धि हो जाती है। जिससे प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीवो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। वातावरण में गर्मी बढ़ने के कारण उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में जमी हुई बर्फ पिघल रही है जिससे समुद्र के स्तर में भी बढ़ोतरी हो रही है। इसके साथ ही प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ने की वजह से जन-धन की हानि एवं परिसंपत्तियों को भी नुकसान पहुंचता है।
ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करना एक चुनौती तो है पर यह कार्य असंभव नहीं। लोगों को जीवाश्म ईंधन की निर्भरता को कम करना होगा चीजों को रिसाइकल करते हुए उन का पुनः उपयोग करना पड़ेगा। कटते हुए जंगलों पर तत्काल रोक लगानी पड़ेगी। व्यक्तिगत वाहनों से आवागमन करने की जगह सार्वजनिक वाहनों से आवागमन करने को वरीयता देनी पड़ेगी। ऐसे उपकरण जो कार्बन का उत्सर्जन करते हैं उनका कम उपयोग करना पड़ेगा।