हाइड्रोलॉजी में साइंटोमेट्रिक्स: एक समीक्षा पत्र

Submitted by Shivendra on Fri, 01/31/2020 - 11:26
Source
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रूड़की

सारांश

जैसा कि तकनीकी प्रगति होती है, किसी भी क्षेत्र में काम करने के रुझान में एक बदलाव होता है। जब किसी भी अनुसंधान डोमेन के मौजूदा रुझानों का अध्ययन किया जाता है, फिर उभरते रुझानों को देखने और नए विकास का प्रस्ताव करने की सिफारिश की जाती है। बिब्लियोमेट्रिक विश्लेषण और साइंटोमेट्रिक मैपिंग एक समय अवधि में शोध कार्यों का अध्ययन करके शोधकर्ताओ की मानसिकता तथा रुझान में परिवर्तन दिखा सकते हैं। इसके अलावा वर्तमान में जल क्षेत्र में अनुसंधान के सवालों की पहचान करके, किसी भी क्षेत्र में भविष्य में अनुसंधान के बारे में जानकारी हो सकती है। साइंटोमेट्रिक्स किसी भी प्रकार के प्रकाशित वैज्ञानिक साहित्य का मात्रात्मक और गुणात्मक अध्ययन है। यह अलग-अलग समय अवधि पर विचार के साथ किया जा सकता है जो उस समय अवधि में अध्ययन के विशेष क्षेत्र के अनुसंधान में रुझान का संकेत दे सकता है। जलविज्ञान वह विज्ञान है जो पृथ्वी पर सभी प्रकार के जल, इसकी घटना, वितरण और परिसंचरण, इसके भौतिक और रासायनिक गुणों, पर्यावरण पर इसके प्रभावों और सभी रूपों के जीवन से संबंधित है। चूंकि पानी सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों में से एक है और इसकी कमी और अप्रभावी प्रबंधन के कारण इन दिनों इसे बहुत महत्व मिला है, इसलिए जल क्षेत्र में अनुसंधान भी बढ़ाया गया है। कई डेटाबेस (जैसे वेबऑफसाइंस, स्कोप्स) ने भारत में पिछले कुछ दशकों में हाइड्रोलॉजिकल शोध में वृद्धि का संकेत दिया है। विभिन्न संगठनों और विश्वविद्यालयों के कई शोधकर्ताओं ने विभिन्न मंचों पर कई विदेशी शोधकर्ताओं के सहयोग से विभिन्न वैज्ञानिक लेख प्रकाशित किए हैं। इसलिए इस तरह के साहित्य की उपयोगिता का पता लगाने में बिब्लियोमेट्रिक विश्लेषण और साइंटोमेट्रिक मैपिंग बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं। प्रस्तुत समीक्षा लेख साइंटोमेट्रिक्स के विकास और भारत में हाइड्रोलॉजिकल रिसर्च में इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालेगें।

की-वड्र्स: साइंटोमेट्रिक्स, बिब्लियोमेट्रिक, हाइड्रोलॉजी, वैज्ञानिक पत्रिकाएँ, लेखकों, उद्धरण

Abstract:

As technology progresses, there is a change in the trend of working in any field. When the current trends of any research domain are studied, then it is recommended to look at emerging trends and propose new developments in that particular study domain. Changes in the mindsets and attitudes regarding the research of researchers can be shown with the help of bibilometric and scientometric mapping.Apart from this, by identifying the gap areas in research from the water sector at present, one can get information about future research in this field. Scientometrics is a quantitative and qualitative study of any type of published scientific literature. This can be done with consideration of different time periods which may indicate trends in the research of a particular field of study over that time period.Hydrology is the science that deals with all types of water on the earth, its occurrence, distribution and circulation, its physical and chemical properties, its effects on the environment and all forms of life. Since water is one of the most important natural resources and due to its scarcity and ineffective management, it has gained a lot of importance these days, so research in water sector has also been increased.Several databases (eg. Web of Science, Scopus) have indicated an increase in hydrological research in India in the last few decades. Many researchers from various organizations and universities have published various scientific articles at different forums in collaboration with many foreign researchers.Therefore, bibliometric analysis and scientometric mapping can prove very useful in finding the utility of such literature. The review articles presented will throw light on the development of scientometrics and its utility in hydrological research in India.

Key words: Scientometrics, Bibilometrics, Hydrology, Scientific Articles, Citations of Authors

परिचय

जब नए विचारों और ज्ञान को बड़े पैमाने पर फैलाया जाता है, तो वे बड़े प्रभाव और इसके विपरीत प्रभाव भी पैदा करते हैं। दुनिया कुछ महान शोध निष्कर्षों को भूल जाती है, जबकि अन्य तेज गति से दुनिया को प्रभावित कर जाते हैं या कुछ धीरे-धीरे फैलते हैं (Gao et al., 2013)। ऐसी समस्या से निपटने के लिए अधिक विकसित वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धति विकसित की जानी चाहिए।

बिब्लियोमेट्रिक एक ऐसा क्षेत्र है जो किसी भी डोमेन में शोध को मात्राबद्ध और प्रबंधित करने में काफी मददगार है। यह विभिन्न सांख्यिकीय और गणितीय उपकरणों का उपयोग करके वैज्ञानिक और तकनीकी गतिविधियों का मात्रात्मक विश्लेषण करता है। बिब्लियोमेट्रिक अध्ययन के लिए उपयोग किए गए डेटा मुख्य रूप से शोधकर्ता के संचार की गतिविधि द्वारा उत्पादित जानकारी से उपजा है। बिब्लियोमेट्रिक शब्द पहली बार 1968 में एलन प्रिचार्ड द्वारा गढ़ा गया था और 1980 के दशक में लोकप्रिय हो गया था।

साइंटोमेट्रिक्स वैज्ञानिक प्रकाशनों के विश्लेषण के लिए एक और पद्धति है। साइंटोमेट्रिक्स की परिभाषा ‘‘उन मात्रात्मक तरीकों का अनुप्रयोग है जो एक सूचना प्रक्रिया के रूप में देखे गए विज्ञान के विश्लेषण के साथ काम कर रहे हैं’’ (Nalimov-Mulchenko, 1969) साइंटोमेट्रिक्स किसी दिए गए वैज्ञानिक क्षेत्र के विकास को ट्रेस करने का एक प्रभावी उपकरण साबित हो सकता है, जो अनुसन्धान में उभरते हुए अंतराल क्षेत्रों की पहचान, उभरती हुई शोध समस्याओं और वैज्ञानिक योगदान के मूल्यांकन और किसी संस्थान या देश की अनुसंधान उत्पादकता साबित करने में सक्षम है

जलविज्ञान की प्राचीन काल से शुरू होने वाली एक विशाल पृष्ठभूमि है। इसका संबंध पृथ्वी के सभी जल, इसकी घटना, वितरण और परिसंचरण, इसके भौतिक और रासायनिक गुणों, पर्यावरण पर इसके प्रभावों और सभी रूपों के जीवन से है। इसकी सामाजिक-आर्थिक प्रासंगिकता है क्योंकि पानी सीधे लोगों के जीवन स्तर को प्रभावित करता है। इसकी भौगोलिक विविधता भी है। जल विज्ञान को अन्य विज्ञानों जैसे मौसम विज्ञान, भूविज्ञान, सांख्यिकी, रसायन विज्ञान, भौतिकी और द्रव यांत्रिकी से भी समर्थन मिलता है। जलवायु परिवर्तन और अप्रभावी प्रबंधित मानव गतिविधियों से जल संसाधन और जलविज्ञान चक्र बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, जिसने वैश्विक स्तर पर प्रभाव दिखाया है। (Barnett et al., 2008; Milly et al., 2008 Wagener et al., 2010 vogel, 2011) बाढ़, सूखा, मृदा अपरदन, जलवायु परिवर्तन और जल संबंधी विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए जल के संचलन पर शोध किया जाता है। नदी के जल प्रबंधन में नदी की गुणवत्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है (Wang et al., 2016)। इसके अलावा पानी की कमी हमारे देश में एक ज्वलंत मुद्दा है जिस पर चर्चा की जानी चाहिए और समाधान प्रत्येक सूक्ष्म और प्रमुख प्लेटफार्मों पर पाए जाने चाहिए।

जलविज्ञान क्षेत्र में महत्वपूर्ण शोध 1930 के दशक से किया गया था, इसलिए इसे काफी युवा विज्ञान कहा जा सकता है। आधुनिक प्रौद्योगिकी के विकास के कारण पिछले कुछ दशकों के दौरान हाइड्रोलॉजिकल अनुसंधान में तेजी से वृद्धि देखी जा सकती है। इस अवधि में अधिक विकसित सैद्धांतिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण का अध्ययन और विकास किया गया है।

भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) आगमन और विकास के साथ, जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन के लिए जलविज्ञान के लगभग सभी क्षेत्रों के लिए परिष्कृत हाइड्रोलॉजिकल मॉडलिंग प्रक्रियाएं विकसित की गई हैं । इन सभी कारकों ने देश में हो रहे पानी के क्षेत्र में अनुसंधान को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है जिसका प्रभाव IITs, IISc, जैसे विभिन्न प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों और NIH, रुड़की, CGWB, जल शक्ति मंत्रालय जैसे विभिन्न अन्य संस्थानों में तीव्र गति से बढ़ रहा है। इसलिए यह देश में अनुसंधान गतिविधियों को बेहतर तरीके से प्रबंधित करने और क्षेत्र में उभरते क्षेत्रों का पता लगाने की चुनौती प्रस्तुत करता है जो समाज और देश के विकास में सहायक हो सकते हैं ।

पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों के शोध प्रभाव का पता लगाने के लिए इम्पैक्ट फैक्टर जैसी विभिन्न विधियाँ हैं, लेकिन ये तकनीकें कभी-कभी वैज्ञानिक कार्यों के वास्तविक प्रभाव को मापने के लिए अक्षम होती हैं क्योंकि जलविज्ञान का अनुशासनात्मक चरित्र ऐसा है कि 2 साल के इम्पैक्ट फैक्टर की गणना करने के लिए उपयोग किए जाने वाले समय विंडो के बाद बड़े पैमाने पर उद्धरण होते हैं। इसी कारणवश 2 साल का इम्पैक्ट फैक्टर, अपने आप में जल विज्ञान पत्रिकाओं के उद्धरण प्रभाव को सार्थक नहीं करता है। ‘Declaration on Research Assessment (DORA), http://www.ascb.org/dora/, की सिफारिशें, एक उपयोगी दिशानिर्देश प्रदान करती हैं, जिसका उपयोग हाइड्रोलॉजिक अनुसंधान की उत्पादकता का आकलन करने के लिए किया जा सकता है। इसीलिए जलविज्ञान क्षेत्र के लिए बिब्लियोमेट्रिक या साइंटोमेट्रिक्स जैसी मात्रात्मक तकनीक बहुत फायदेमंद है।

वैज्ञानिक प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य विज्ञान को आगे बढ़ाने में जुटे हुए साथियों के लिए नए, महत्वपूर्ण निष्कर्षों का संचार करना है। विश्व स्तर पर, सामाजिक और तकनीकी परिवर्तनों का प्रकाशन परिदृश्य पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। कुछ अन्य विषयों की तरह, जलविज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशन की अपनी चुनौतियां हैं, उदाहरण के लिए खुले डेटा और खुले मॉडल की नीति पर जोर, जलविज्ञान पत्रिकाओं का अपेक्षाकृत कम इम्पैक्ट फैक्टर, आदि। अधिकांश जलविज्ञान पत्रिकाएं अंतःविषय प्रकाशन आवश्यकताओं के लिए रणनीतिक रूप से प्रतिक्रिया दे रही हैं, उदाहरण के लिए, विषयों के एक विविध सेट से संपादकों और समीक्षकों का चयन करना (Quinn et al. 2018)। यह भी तर्क दिया जाता है कि जलविज्ञान शोध में अनुसंधान एजेंडा को आज की समस्याओं से इतनी संकीर्णता से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, और विभिन्न एजेंसियां 21वीं सदी में, बुनियादी और लागू दोनों तरह के अनुसंधानों को संबोधित करने के लिए इसके अलावा अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए अभिनव एजेंडा विकसित कर रही हैं। इसके अलावा जितना ज्ञात है उसमें, भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा जलविज्ञान क्षेत्र में एक साइंटोमेट्रिक विश्लेषण अभी तक नहीं किया गया है। साइंटोमेट्रिक अध्ययन न केवल अंतराल वाले क्षेत्र, उभरते रुझानों, और जलविज्ञान के अनुसंधान को आगे ले जाने के संभावित अवसरों को उजागर करेगा, बल्कि Sustainable Development goals (SDG) को संबोधित करने के लिए भारत में नीति नियोजकों को एक रोडमैप प्रदान करेगा।

साहित्य की समीक्षा

भारतीय जलविज्ञान क्षेत्र पर साइंटोमेट्रिक्स पर प्रारंभिक अध्ययनों में से एक का 1994 तक पता लगाया जा सकता है। Furqan Ullah (1994) ने 1981-93 की अवधि में जर्नल ऑफ हाइड्रोलॉजिस्ट में भारतीय हाइड्रोलॉजिस्ट के योगदान का अध्ययन किया। पत्रिका के सभी संस्करणों का विश्लेषण किया गया। जर्नल के सभी संस्करणों के कुल 2145 में से, कुल 163 यानी 7.6ः पत्रों का भारतीय लेखकों द्वारा योगदान दिया गया था। पत्रिका की लोकप्रियता को देखते हुए, यह बहुत महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। वर्षवार विश्लेषण, भारतीय लेखकों का परिमाणीकरण, संबद्ध संगठन चाहे भारतीय संस्थान हों या विदेशी, अन्य घरेलू और विदेशी लेखकों के साथ सहयोग, अधिकतम प्रकाशन वाले शोधकर्ता का विश्लेषण इस पत्रिका में किया गया है। जलविज्ञान की 14 व्यापक श्रेणियों में विस्तृत विषय-वार विश्लेषण किया गया था। इस विश्लेषण से पता चलता है की भूजल जलविज्ञान को भारतीय शोधकर्ताओं के लिए पसंदीदा माना गया है फिर भू-आकृति (Geomorphology) विज्ञान को न्यूनतम महत्व दिया गया है। सहयोग पैटर्न का भी अध्ययन किया गया है और यह पता चला है कि दो लेखक पत्रों की संख्या सबसे ज्यादा है। जलविज्ञान अनुसन्धान में शामिल अनुसंधान संस्थानों को भी तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया था अर्थात् शैक्षिक, अनुसंधान और अन्य। इसके अलावा, उनका विस्तृत विश्लेषण के पश्चात यह यह निष्कर्ष निकाला गया कि जो शोधकर्ता उच्चतम डिग्री के लिए काम कर रहे थे उनके पास प्रकाशनों का उच्च अनुपात था। जलविज्ञान के क्षेत्र में संस्थानों का भी अध्ययन किया गया। यह निष्कर्ष निकाला गया है कि अग्रणी दो संगठन NGRI हैदराबाद और IISc बेंगलुरू थे। उच्चतम प्रकाशनों वाले लेखकों का अध्ययन किया गया और परिणाम प्रस्तुत किए गए। इन लेखकों की ग्रन्थकारिता (Authorship) पैटर्न (जैसे पहले लेखक, दूसरे लेखक ...) का भी अध्ययन किया गया। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह अध्ययन मैन्युअल रूप से किया गया था वो भी एकल पत्रिका के लिए भी जो कि वर्तमान जलविज्ञान क्षेत्र के दायरे पर विचार किया जाए तो लगभग असंभव कार्य है।

Singh और Furqan Ullah के 2008 के एक अन्य प्रकाशन में, जलविज्ञान सहित विज्ञान में रुड़की शहर के योगदान का मूल्यांकन किया। लेकिन देशव्यापी पैमाने पर इस प्रकार के अध्ययनों की कमी है। जल क्षेत्र के क्षेत्र में किए गए बिब्लियोमेट्रिक और साइंटोमेट्रिक अध्ययन के विभिन्न उदाहरण हैं ।

जैव प्रद्योगिकी (Biosorption Technology) जो अनिवार्य रूप से एक जल उपचार है पर शोध प्रकाशन जिसे 1991 -2004 तक प्रकाशित किया गया उनका विश्लेषण Yun Shan Ho (2008) द्वारा किया गया था। की-वर्ड के रूप में केवल इपवेवतचजपवद का उपयोग करके पर्यावरण इंजीनियरिंग, पर्यावरण विज्ञान और जल संसाधनों इन तीन विषय श्रेणियों में एक सौ तिरासी पत्रिकाओं को सूचीबद्ध किया गया था। परिणाम दर्शाता है कि कुछ प्रारंभिक वर्षों के दौरान संख्या में गिरावट को छोड़कर संबंधित विषय में प्रकाशनों की संख्या 1991 के बाद से बढ़ रही है। ऑथरशिप का पैटर्न, प्रकाशन का देश, उद्धरण विश्लेषण के आधार पर प्रकाशनों के मात्रात्मक विश्लेषण का उत्पादन किया गया है। साथ ही लेखकों के आधार पर संदर्भ विश्लेषण का हवाला दिया गया है। इस अध्ययन ने बताया है कि जैव प्रौद्योगिकी में सबसे अधिक उत्पादक देश अमेरिका, कनाडा और भारत हैं ।

Sun et al., (2011) ने मुहाना प्रदूषण (estuary pollution) पर 1991-2010 से उत्पादित शोध प्रकाशनों पर अध्ययन किया। WoS-SCI (Web of Science-Science Citation Index) विस्तारित डेटा का विश्लेषण की-वर्ड चयन की मदद से किया गया है। पिछले अध्ययनों की तरह ही देशवार वितरण, एकल लेखकों या लेखकों के सहयोग, एकल या कई संस्थानों के लेखकों, दस्तावेजों के प्रकार, प्रकाशनों की भाषा और विषय श्रेणियों और पत्रिकाओं में आउटपुट के वितरण जैसे आंकड़ों का विश्लेषण करते समय कुछ मापदंडों को ध्यान में रखा गया है। अध्ययन ने इन मापदंडों के आधार पर मात्रात्मक परिणाम उत्पन्न किए और प्रत्येक श्रेणी में आधारित विस्तृत आउटपुट दिए हैं।

निर्मित आद्र्र भूमि (Constructed Wetlands) पर बिब्लियोमेट्रिक अध्ययर्न Zhi and ji (2012) द्वारा किया गया है। WoS डेटाबेस का उपयोग करके विश्लेषण किया गया है। संबंधित विषय से संबंधित कई की-वर्ड चुने गए हैं और वेटलैंड रिसर्च में अलग-अलग कीवर्ड के अनुसार प्रकाशन की भाषा, जर्नल प्रकाशनों के पैटर्न, देशों और संस्थानों के प्रदर्शन और लेखकों के जोर के आधार पर ग्रंथ सूची विश्लेषण उत्पन्न किया गया है। एमएस-एक्सेल का उपयोग डेटा विश्लेषण के लिए किया गया है। इस शोध अध्ययन ने अंत में भविष्य के कुछ प्रचलित विषयों को इंगित किया है जिनका ठीक से पता लगाया जाना बाकी है।

Raymond et al., 2014 ने 1977 से 2011 तक समय-समय पर अनुसंधान आउटपुट का विश्लेषण करके दक्षिण अफ्रीका में पानी से संबंधित शोध में क्रांतिकारी बदलावों का अध्ययन किया। समय को इस अध्ययन के लिए तीन भागों में वर्गीकृत किया गया था (1977-1991, 1991-2001, 2001-2011) और की-वर्ड के साथ कुछ सवालों को साइंटोमेट्रिक मैपिंग के लिए उठाया गया है। इस अध्ययन ने इन समय अवधि में शोध अध्ययनों में पाए गए अधिकांश खोज शब्दों का विश्लेषण करके क्रांतिकारी बदलावों का अनुमान लगाया है। प्रारंभ में अनुसंधान पानी से संबंधित हाइड्रोलिक और इंजीनियरिंग गतिविधियों पर केंद्रित था जो कि आगे के वर्षों में पानी की गुणवत्ता की कमी, जल योजना और प्रबंधन में स्थानांतरित कर दिया गया है। जल क्षेत्र में संधारणीय विकास दक्षिण अफ्रीका में अनुसंधान का केंद्र बन गया है।

भूजल अध्ययन के लिए बिब्लियोमेट्रिक दृष्टिकोण को Niu et al., (2014) द्वारा अपनाया गया है। अध्ययन में SCIE डेटा बेस उपयोगी है। 1993-2012 के बीस साल के शोध कार्य को भूजल से संबंधित खोज शब्दों का उपयोग करके खोजा गया। परिणाम तीन मानदंडों को ध्यान में रखते हुए प्रकाशित किए गए थे (ए) अनुसंधान उत्पादन के रुझान (बी) विषय श्रेणियों और प्रमुख पत्रिकाओं पर आधारित (सी) अनुसंधान संस्थानों के भौगोलिक वितरण पर आधारित (डी) भूजल अनुसंधान में प्रचलित विषय और भूजल अनुसंधान में बढ़ते विषय।

Navaneetharishan and Sivakumar (2015) ने श्रीलंका में संबद्धता वाले जल संसाधन क्षेत्र में अनुसंधान प्रकाशनों की कुल संख्या का विश्लेषण किया है। उन्होंने स्कोप्स डेटाबेस से लगभग 42 शोध के आंकड़ों का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया है कि पत्रिका के लेख प्रकाशन 86.26% की हिस्सेदारी के साथ शोध प्रकाशनों का नेतृत्व कर रहे थे, जबकि पुस्तक अध्याय और मुद्रित सामग्री केवल 0.1% की हिस्सेदारी वाले अनुसंधान प्रकाशनों में से सबसे कम पसंदीदा प्रकार हैं ।

Wang et al., (2016) ने नदी के पानी की गुणवत्ता के आकलन और सिमुलेशन के क्षेत्र से वैज्ञानिक लेखों का बिब्लियोमेट्रिक विश्लेषण किया है। अध्ययन में 2000 से 2014 Science Citation Index Expanded (SCIE) और Social Science Citation Index (SSCI) डेटाबेस का उपयोग किया गया है। अध्ययन ने विभिन्न श्रेणियों में आउटपुट दिए हैं। (ए) प्रकाशन आउटपुट पर आधारित (बी) विषय श्रेणियों और पत्रिकाओं के आधार पर (सी) मुख्य लेखक (डी) देशानुसार वितरण (इ) अनुसंधान संस्थानों के आधार पर (एफ) प्रचलित विषयों पर आधारित भूजल अनुसंधान के क्षेत्र में अंतः विषय सहयोग का अध्ययन Barthel and Seidl (2017) द्वारा किया गया है। 1990-2014 के प्रकाशनों को अध्ययन में लिया गया और कई पद्धतियों का उपयोग किया गया। यह पता चला है कि केवल कुछ पेपर में बहु-विषयक दृष्टिकोण होता है और बड़ी संख्या में प्रकाशन एकल लेखक के होते हैं । पर्यावरण मूल्यांकन और मॉडलिंग अनुप्रयोगों के शोध विषयों में बिब्लियोमेट्रिक अध्ययन संख्या में बहुत सीमित हैं।

Zare et al., (2017) ने एकीकृत वाटरशेड मूल्यांकन और प्रबंधन (IWAM) डोमेन में साहित्य के बिब्लियोमेट्रिक विश्लेषण के लिए आठ चरण पद्धति का उपयोग किया; (1) विषय को परिभाषित करते हुए, (2) अध्ययन की सीमा, डेटा के स्रोतों का चयन, (3)पुनः प्राप्त करना (4) डेटा का पूर्व-प्रसंस्करण (5) विश्लेषण, (6) गुणवत्ता की जाँच, (7) विज़ुअलाइज़ेशन, (8) मूल्यांकन।

Wen et al., 2017 ने साइंटोमेट्रिक विश्लेषण के लिए तीन क्लस्टरिंग तकनीक का पता लगाया जर्नल क्लस्टर (JJCR),साझा लेखक की-वर्ड (SAK) और साझा शब्द संदर्भ संयोजन (TWCR) के माध्यम से WoS डेटाबेस में प्रकाशन समूहों, संख्या प्रकाशनों, उद्धरणों और लेखकों का विश्लेषण किया गया है। जबकि अध्ययन का मुख्य उद्देश्य त्रिकोणासन तकनीक (तीन क्रॉस-टेबल की तुलना) का विश्लेषण करना है जो उपर्युक्त विभिन्न बिब्लियोमेट्रिक दृष्टिकोणों के परिणामों से संबंधित है। तीनों दृष्टिकोणों ने पत्रिका के नाम, साझा किए गए की-वर्ड और साझा शीर्षक शब्दों-उद्धृत संदर्भ संयोजनों का उपयोग करके प्रकाशित लेखों के समूह बनाए गए। ‘‘यूट्रोफिकेशन जल गुणवत्ता के लिए खतरा’’ (COV = 0.40) को अधिक बहु-विषयक दिखाया गया है जबकि ‘‘उन्नत ऑक्सीकरण तकनीकें’’ जो कि जल उपचार प्रक्रिया पर फार्मास्यूटिकल (एंटीबायोटिक्स) निष्कर्षण’’ (COV = 1.26) के विषय में तैनात है कम बहु-विषयक दिखाया गया है।

‘‘बिब्लियोमेट्रिक ’’ R प्रोग्रामिंग भाषा में विकसित एक टूल है जिसका उपयोग ।Aria and Cuccurullo (2017) द्वारा प्रभावी विज्ञान मानचित्रण के लिए किया गया है। R भाषा डेटा फ्रेम में डेटा स्कोप्स और वेब ऑफ़ साइंस से अधिग्रहीत ऑर उपयोग किया गया है। 1985 से 2015 तक प्रबंधन, व्यवसाय और सार्वजनिक प्रशासन के विषयों पर केवल अंग्रेजी में लेखों का बिब्लियोमेट्रिक विश्लेषण करता है। इस टूल ने डेटा संग्रह संबंध में निम्नलिखित 10 शीर्ष में मुख्य जानकारी की विस्तृत वर्णनात्मक तालिका तैयार की है; अधिकांश उत्पादक लेखक, अधिकांश उद्धृत पत्र, अधिकांश उत्पादक देश, सबसे लगातार पत्रिकाएं, सबसे लगातार की-वर्ड, अधिकांश उद्धृत संदर्भ, अधिकांश उद्धृत लेखक इस टूल ने की-वड्र्स के क्लस्टर मैप, सह-घटना का नेटवर्क मैप और देश के सहय¨ग के नेटवर्क मैप पर क्लस्टर मैप भी बनाए। हिस्टोरिओग्राफ भी उत्पन्न हुआ है। यह अध्ययन बताता है कि ‘‘ बिब्लियोमेट्रिक ’’ R टूल बहुत व्यापक टूल है। इस टूल के मुख्य लाभ यह हैं कि यह खुला स्रोत टूल है और अन्य सांख्यिकीय और ग्राफिकल पैकेजों के साथ संगत होने के लिए बहुत लचीला है।

जलीय पारिस्थितिक तंत्र के यूट्रोफिकेशन में अनुसधान क्षेत्र में कई वैज्ञानिक तरीकों को De costa et al., (2018) ने लागू किया गया है। WoS डेटाबेस से इस विषय पर 2001 से 2006 तक का डेटा प्राप्त किया गया। कुछ महत्वपूर्ण की वर्ड का उपयोग किया गया और प्रासंगिक जानकारी को लेखों से बरकरार रखा गया यानी प्रकाशन का वर्ष, प्रथम लेखक का नाम और मेलिंग पता, लेखको की संस्थाओं का पता, की-वड्र्स आदि। अध्ययन की अवधि के दौरान विषय पर प्रकाशनों मे लौकिक रुझानों का अध्ययन करने के लिए प्रतिगमन विश्लेषण (Regression Analysis) किया गया है। सबसे अधिक प्रकाशन वाले देशों की पहचान संबंधित लेखक के पते से की गई और की-वर्ड ने अधिकांश शोध किए गए पर्यावरण और संबधित समूहों का सुझाव दिया गया है। पत्राचार विश्लेषण (Corresponding Analysis CA) एक R पैकेज है जो सम्बंधित वर्षों के बीच सम्बन्ध दिखाने के लिए की-वड्र्स के आधार पर ची स्क्वायर टेस्ट का उपयोग करके परिणाम उत्पन्न करता है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी नेटवर्क सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण (Social Networking Analysis SNA) का उपयोग करके बनाया गया है। देशों के भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक आर्थिक मुद्दों का उपयोग करते हुए थिस्सोनोमेट्रिक विश्लेषण भी किया गया है और उन अपेक्षित देशों का पता लगाया है जिनका उच्च मानव विकास और बड़े क्षेत्र में अधिक संख्या में वैज्ञानिक लेख प्रकाशित करते हैं।

Chhatar (2018) ने अपनी टिप्पणी में विभिन्न प्रकार के साइंटोमेट्रिक संकेतकों का उल्लेख किया है, जैसे कि सहयोगात्मक सूचकांक, सहयोग की डिग्री, सह-प्रमाणीकरण सूचकांक, गतिविधि सूचकांक आदि। हाल ही में, कुछ लेखक साइंटोमेट्रिक्स के कुछ नए टूलों के साथ आए हैं और कुछ ने साइंटोमेट्रिक्स के सैद्धांतिक पहलुओं को देखा है। Brindha and Murugesapandian (2016) ने विभिन्न तकनीकों पर विस्तार से और हाल ही में साइंटोमेट्रिक विश्लेषण के लिए उन्नत वैज्ञानिक टूल विकसित किए हैं। उन्होंने अपनी आयामिता (एक, दो और बहुआयामी तकनीक) के आधार पर कई प्रकार की साइंटोमेट्रिक तकनीकों पर भी टिप्पणी की, जो मुख्य रूप से गणना, की-वर्ड, उद्धरण आदि और उनकी घटनाओं की संख्या पर आधारित है।

Tanudjaja and Kow (2017) द्वारा एक ओपन सोर्स टूल बिबिक्सकेल (BibExcel) का उपयोग किया गया है। उन्होंने वैज्ञानिक प्रकाशन जो नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर (NUS) के साथ सहयोग रखते हैं उनकी ग्रन्थ सूचि बनायी है और जिन्होंने संस्थान के प्रकाशन को पाँच वर्षों (2012-2017) के समय में उद्धृत किया है। परिणाम VOSViewer की मदद से दिखाए गए हैं। हालाँकि परिणामों में Bib Excel का उपयोग करते हुए विभिन्न नेटवर्क मानचित्र बनाए गए थे, लेकिन उन्होंने अध्ययन में कुछ सीमाओं को दर्ज किया जो कि उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले वेबऑफ़ साइंस डेटा के संवर्धन और शोधन के संबंध में थे।

Eck Waltman (2018) ने स्वतंत्र रूप से उपलब्ध टूल Cite Net Explorer का प्रदर्शन किया है, जो प्रकाशित वैज्ञानिक लेखों के विभिन्न उद्धरणों के क्लस्टर मानचित्र तैयार करने के लिए और क्रमशः उन क्लस्टरिंग समाधानों का विश्लेषण करने के लिए, Citations Network Explorer और VOSviewer का संक्षिप्त नाम है। Cit Net Explorer में पहले से निर्मित मौजूदा क्लस्टरिंग तकनीकों का उपयोग वेब ऑफ साइंस डेटाबेस से खरीदे गए डेटा पर किया गया है।

निष्कर्ष

मुख्य रूप से जलविज्ञान के क्षेत्र से साइंटोमेट्रिक्स और बिब्लियोमेट्रिक से संबंधित लेखों की समीक्षा की गई है। ये लेख बताते हैं कि जलविज्ञान के विभिन्न उप डोमेन में कई अध्ययन किए गए हैं। इन विश्लेषणों के लिए विभिन्न प्रकार की कार्य प्रणाली विकसित की गईं हैं। क्षेत्र में उन्नति दिखाने के लिए कई सूचकांक पहले ही विकसित किए जा चुके हैं। साइंटोमेट्रिक विश्लेषण करने के लिए विभिन्न प्रकार के खुले स्रोत टूल उपलब्ध हैं। लेकिन किसी भी देश के किसी भी विशेष वैज्ञानिक क्षेत्र में ऐसे अध्ययनों का अभाव है जो बड़ी संख्या में डेटा को कवर करता है। भारत में भी इस तरह के अध्ययन का अभाव है। भारत में, कई संस्थान हाइड्रोलॉजिकल रिसर्च में काम कर रहे हैं, इसलिए बड़ी संख्या में प्रकाशन उत्पन्न हो रहे हैं। इस तरह के अनुसंधान के प्रभाव का पता लगाने के लिए, भारत में जलविज्ञान संबंधी साइंटोमेट्रिक्स पर आधारित शोध करने की सलाह दी जाती है।

References

• Aria, M., & Cuccurullo, C. (2017). bibliometrix: An R-tool for comprehensive science mapping

• analysis. Journal of Informetrics, 11(4), 959-975.

• Balaram, P. (2004). Science, scientists and scientometrics. Current Science, 86(5), 623-624.

• Barthel, R., &Seidl, R. (2017). Interdisciplinary collaboration between natural and social sciences–Status and trends exemplified in groundwater research. PlOS one, 12(1), e0170754.

• Boyack, K. W., Klavans, R., & Börner, K. (2005). Mapping the backbone ofscience. Scientometrics, 64(3), pp351-374.

• Brinda, T. & Dr. Murugesapandian N. (2016). Scientometrics tools and techniques: An overview.Shanlax International Journal of Arts, Science & Humanities, Vol: 4(2). pp 90-92.

• Chattar, D.C. (2018). Measuring the growth of science through scientometrics indicators: A

• theoretical consideration. Journal of Advancements in Library Sciences, Vol: 5(2), pp87-90.

• Chen, X., Zhang, Y., Zhou, Y., & Zhang, Z. (2013). Analysis of hydrogeological parameters andnumerical modeling groundwater in a karst watershed, southwest China. Carbonates and

evaporites, 28(1-2), pp89-94.

• Choi, M., Lin, B., Hamm, R., Viehweger, G., Tolera, H., & Kolb, T. (2013). Site groundwater

• management strategies: groundwater metal remediation using Permeable Reactive Barriers.

• Conference paper. https://www.researchgate.net/publication/260517033

• Clark, M P and R B Hanson (2017). The citation impact of hydrology journals, Water Resources

• Research, 53, 4533-4541.

• Costa, Jessica Alves da & Souza; Joao Paulo de; Teixeira, Ana Paula; Nabout, Joao Carlos &

• Carneiro, Fernanda Melo (2018). Eutrophication in aquatic ecosystems: a scientometric study. ActaLimnological Brasiliensia, Vol: 30. http://dx.doi.org/10.1590/S2179-975X3016.

• Duran-Sanchez, Amador; Alvarez-Garcia, Jose & Maria de la Cruz del Rio-Rama (2018). Sustainablewater resources management: A bibliometric overview, Water, Vol: 10 (9), 1191, pp3-19. DOI:10.3390/w10091191.

• Eck, Nees Jan Van & Waltman Ludo (2017). Citation-based clustering of publications using

 

• CitNetExplorer and VOSviewer. Scientometrics, 111, pp1053-1070. DOI: 10.1007/s11192-017-2300-7.

• Famiglietti, J. S., & Rodell, M. (2013). Water in the balance. Science, 340(6138), pp1300-1301.

• Garg, Kailash Chandra (2018). Whither scientometrics in India. Journal of scientometrics 7(3),pp215-218.

• Ho, Y. S. (2008). Bibliometric analysis of biosorption technology in water treatment research from1991 to 2004. International Journal of Environment and pollution, 34(1-4), pp1-13.

• Jiang, D.K. and Liu, Z.K. (2014) Research on Application of Balanced Scorecard in the GovernmentPerformance Appraisal. Open Journal of Social Sciences, 2, 91-96.

• Jyoti, D K, Banwet and S G Deshmukh (2006). Balanced scorecard for performance evaluation ofR&D organization: a conceptual model. Jl. Scientific & Industrial Research, Vol. 65, pp. 879-886.

• Navaneethakrishnan, S. & Sivakumar, S.S. (2015). Bibliometric Analysis of Water ResourceDevelopment and Utilization Based Research Studies in Sri Lanka. International Journal of Scientific& Engineering, Vol: 6, Issue 8, pp1432-1439.

• Niu, B., Hong, S., Yuan, J., Peng, S., Wang, Z. & Zhang, X. (2014). Global trends in sediment-relatedresearch in earth science during 1992–2011: A bibliometric analysis. Scientometrics, 98(1), pp511-

• 529.

• Niu, B., Loaiciga, H. A., Wang, Z., Zhan, F. B. & Hong, S. (2014). Twenty years of global

• groundwater research: A Science Citation Index Expanded-based bibliometric survey (1993–

• 2012). Journal of Hydrology, 519, 966-975.

• Parker, P., Letcher, R., Jakeman, A., Beck, M. B., Harris, G., Argent, R. M., & Sullivan, P. (2002).Progress in integrated assessment and modelling. Environmental modelling & software, 17(3), pp209-217.

• Patel, Vimlesh (2018). A scientometric study of research productivity of the national institute of

• technology, Hamirpur (2013-2017). International journal of library information network and

knowledge, Vol: 3, Issue 2, pp22-33.

• Patel, Vimlesh (2018). Scientometric analysis of research productivity: A case study of national

• environmental engineering research institute, Nagpur. International journal of library informationnetwork and knowledge, Vol: 3, Issue 1, pp43-53.

• Quinn, Nevil, Bloschl, Gunter, Bardossy, Andras et.al. (2018). Joint editorial: Invigorating

• hydrological research through journal publications. Hydrology and earth system sciences, Vol: 22,pp5735-5739.http://doi.org/10.5194/hess-22-5735-2018.

• Rotmans, J. (1998). Methods for IA: The challenges and opportunities ahead. Environmental

Modeling & Assessment, 3(3), pp155-179.

• Scanlon, B. R., Healy, R. W., & Cook, P. G. (2002). Choosing appropriate techniques for quantifyinggroundwater recharge. Hydrogeology journal, 10(1), pp18-39.

• Selvavinayagam, A.V., Muthu, M. & Boopalan, E. (2018). Scientometrics, techniques, sources andtheir key points to analysis of LIS research: An overview. International journal of science andtechnology, Vol:8(1),pp10-18.

• Siebrits, Raymond, Winter, Kevin, & Jacobs, Inga (2014). Water research paradigm shifts in SouthAfrica. South African Journal of Science, Vol: 110, No.5-6, pp01-09.

• http://dx.doi.org/10.1590/sajs.2014/20130296.

• Singh, A., & Minsker, B. S. (2008). Uncertaintbyased multiobjective optimization of groundwater remediation design. Water resources research, 44(2).

• Singh,Yogendra & Ullah M. Furqan (2008). A small town in the world of big science: Contributionsof Roorkee to Scientific and Technological Research, 1996-2005. H. Kretschmer & F. Havemann. (Eds.): Proceedings of WIS 2008, Berlin, pp1-8.

• Sun, J., Wang, M. H., & Ho, Y. S. (2012). A historical review and bibliometric analysis of research onestuary pollution. Marine Pollution Bulletin, 64(1), pp13-21.

• Tanudjaja, Irine & Kow, Gerrie Yu (2018). Exploring bibliometric mapping in NUS using BibExceland VOSviewer. IFLA WLIC 2018, Kualalumpur, pp1-9. Licence: http://

• creativecommons.org/licenses/by 4.0

• Ullah, M. Furqan (1994). Contribution of Indian Hydrologists in Journal of Hydrology: Ascientometric analysis. Annals of Library Science and Documentation, Vol: 41, No.3, pp95-101.

• Wang, D., &Hejazi, M. (2011). Quantifying the relative contribution of the climate and direct humanimpacts on mean annual streamflow in the contiguous United States. Water Resources

Research, 47(10).

 

• Wang, Yuan, Xiang, Cuiyun, Zhao, Peng, Mao, Guozhu, & Du, Huibin (2016). A bibliometric

• analysis for the research on river water quality assessment and simulation during 2000–

• 2014. Scientometrics, 108(3), pp1333-1346.

• Wen, Bei, Horlings, Edwin, Zouwen, Marielle van der, & Besselaar, Peter Van den (2017). Mappingscience through bibliometric triangulation: An experimental approach applied to water

• research. Journal of the Association for Information Science and Technology, 68(3), pp724-738.DOI:10.1002/asi.23696.

• Wolf, B, Manfred Szerencsits and H Gaus (2014). Developing a documentation system for evaluatingthe societal impact of science. Procedia Computer Science (Elsevier), 33, 289-296.

• Yeung, Andy Wai Kan, (2018). Data visualization by alluvial diagrams for bibliometric reports,systematic reviews and meta analyses. Current Science Vol.115, No. 10, pp1942-1947.

• Doi:10.18520/cs/v115/i10/1942-1947.

• Youngblood, Mason & Lahti, David (2018). A bibliometric analysis of the interdisciplinary field ofcultural evolution. Palgrave Communications, 4:120, pp1-9. DOI:10.1057/s41599-018-0175-8

• Zare, Fateme, Elsawah, Sondoss, Iwanaga, Takuya, Jakeman, Anthony J., & Pierce, Suzanne A.(2017). Integrated water assessment and modelling: A bibliometric analysis of trends in the waterresource sector. Journal of Hydrology, 552, pp765-778.http://dx.doi.org/10.1016/j.jhydrol.2017.07.031.

• Zhi, W., & Ji, G. (2012). Constructed wetlands, 1991–2011: a review of research development,

• current trends, and future directions. Science of the Total Environment, 441, pp19-27.