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‘बूँदों की संस्कृति से साभार’, सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरनमेंट, नई दिल्ली, 1998
भारत के हिमालय पार के क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर का लद्दाख का सर्द रेगिस्तान और कारगिल क्षेत्र तथा हिमाचल प्रदेश की लाहौल और स्पीति घाटियाँ आती हैं।

1. लद्दाख
तिब्बती पठार के एक किनारे पर स्थित लद्दाख में हर साल सिर्फ 140 मिमी बरसात होती है। शुष्क थार मरुभूमि के अधिकांश भागों में भी लद्दाख से ज्यादा पानी बरसता है। इसके भी पूर्वी और मध्यवर्ती क्षेत्रों में तो 100 मिमी से भी कम बरसात होती है।
दक्षिण-पश्चिमी इलाकों में बसे गाँवों की स्थिति थोड़ी बेहतर है। इसी क्षेत्र में बसे कारगिल में सालाना 239 मिमी बरसात होती है। और सर्दियों के मौसम में तो सारा पानी तथा ओस, सब जम जाती हैं और उनका सिंचाई में प्रयोग नहीं हो सकता।
एक बार में तो लग सकता है कि ऐसी मुश्किल जलवायु में मनुष्य नहीं रह सकता। पर स्थानीय लोगों ने अपने सीमित साधनों का बुद्धिमानीपूर्ण और अधिकतम सम्भव उपयोग करने की विधियाँ खोज निकाली हैं और इस क्रम में एक गौरवपूर्ण सभ्यता का निर्माण भी किया है। यह सही है कि लद्दाख के काफी बड़े इलाके में अभी भी आबादी नहीं है। यहाँ की कुल जमीन के मात्र 0.6 फीसदी हिस्से अर्थात 57,716 हेक्टेयर तक ही लोगों की पहुँच है। और इसकी भी मात्र 28.23 फीसदी जमीन पर ही खेती होती है।



इन मुश्किलों के बावजूद लद्दाखी लोगों ने सिंचाई की एक अद्भुत प्रणाली विकसित की है। सोतों का पानी लोगों द्वारा निर्मित जलमार्गों से शाम के समय एक छोटे तालाब में जिसे स्थानीय तौर पर जिंग कहा जाता है, आता है। ग्लेशियरों से आये इस संचित जल से अगले दिन खेतों की सिंचाई की जाती है।1,2
दुर्लभ-पानी के बँटवारे में गड़बड़ न हो, इसके लिये गाँव वाले हर खेती के मौसम में एक अधिकार चुरपुन का चुनाव करते हैं। चुरपुन ही देखता है कि हर किसान को उसकी जमीन के अनुपात में पानी मिल जाये। वह यह ख्याल भी रखता है कि कोई खेत बिना सिंचित न रह जाये। इसलिये, पानी के उपयोग को लेकर बहुत कम विवाद होते हैं। जलमार्गों की मरम्मत सब लोग मिल-जुलकर करते हैं। जिले का करीब पूरा सिंचित क्षेत्र पारम्परिक जलमार्गों से भरा है जिनका निर्माण और रख-रखाव गाँव के लोग ही करते हैं।
लद्दाखी लोगों के जीवन में सोतों का महत्त्व इतना ज्यादा है कि उनकी पूजा की जाती है। कपड़े धोने जैसा कोई भी काम इनके अन्दर करने की इजाजत नहीं है जिससे इनका पानी गन्दा हो जाये। दुर्भाग्य से लेह के शहरी इलाकों के लोगों के नजरिए में अब बदलाव आ रहा है।2
2. लाहौल और स्पीति
पूरब में तिब्बत और उत्तर में लद्दाख से घिरा हिमाचल प्रदेश का लाहौल और स्पीति जिला समुद्र से 3,048-4,572 मीटर की ऊँचाई पर बसा है। इस जिले का क्षेत्रफल 12.2 लाख हेक्टेयर है और यह देश के सबसे बड़े जिलों में से एक है। पर 1981 में यहाँ की आबादी सिर्फ 32,000 थी। इस प्रकार यह दुनिया का सबसे ज्यादा ऊँचाई वाला आबाद इलाका तो है, पर यह जनसंख्या सबसे विरल घनत्व वाले इलाकों में भी एक है।
