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यू-ट्यूब, 24 मई 2012
हमारे देश की 10 करोड़ जनजातीय आबादी, जिसे हमने बोझ मान रखा है, वास्तव में अत्यंत स्वाभिमानी, सक्षम और पराक्रमी हैं। आज के आधुनिक विकास के पैमाने पर वे जरूर पिछड़े हुए दिखाई देते हैं, लेकिन बुद्धिमत्ता और जीवटता में हमसे कतई कम नहीं हैं। इस सबके लिए सिर्फ योजनाओं और आर्थिक संसाधनों की जरूरत नहीं है, बल्कि काम करने की अच्छी नीयत और जनजातीय समाज के बारे में बेहतर समझ की जरूरत है। आज देश की बड़ी समस्या नक्सलवाद के समाधान की भी यही दिशा हो सकती है। हमारे इन आदिवासी भाइयों ने झाबुआ स्थित हाथीपावा की पहाड़ी पर श्रम की गंगा बहा कर महज चार घंटे में करीब तीन हजार रनिंग वाटर कंटूर और दो छोटी तलैयों का निर्माण किया। इससे वर्षा के दौरान पानी इन जल संरचनाओं में संग्रहित होकर जमीन में उतरेगा। धरती की प्यास इससे बुझेगी, तो गांव और शहर के सभी लोगों को लाभ मिलेगा।