Source
कृषि चौपाल, जून 2016
देशभर में सूखे की मार पड़ी है। दस राज्यों के 300 जिले बुरी तरह चपेट में हैं। सरकार हर सम्भव कार्य कर रही है। बाकायदा निगरानी के लिये केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में मंत्रियों की एक टीम बना दी गई है। दुष्प्रभावित राज्यों को फौरी मदद के लिये आवश्यक धनराशि भेज दी गई है। मराठवाड़ा क्षेत्र में जलदूत नाम से पानी की स्पेशल ट्रेन चलाई गई है। केन्द्र सरकार सूखे से निपटने के लिये क्या कुछ ठोस प्रयास कर रही है, इन तमाम बिन्दुओं पर केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री मोहनभाई कुंदरिया से ‘कृषि चौपाल’ के सम्पादक महेन्द्र बोरा और ललित पांडे ने विस्तार से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंशः
देशभर में सूखा पड़ा है लेकिन केन्द्र सरकार हालात से निपट नहीं पा रही है?
ऐसा बिल्कुल नहीं है। हमारी सरकार सूखे पर बेहद चिंतित और गम्भीर है। हम हर सम्भव कोशिश कर रहे हैं। दस राज्यों के 300 जिलों में सूखा पड़ा है। हमारे अधिकारियों की कमेटी ने इन जिलों में जाकर स्थिति का आकलन किया है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी के अध्यक्षता में मंत्रियों की एक कमेटी भी बनाई गई है। सुविधाएं और पैसा सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भेजा गया है। हमारे कृषि वैज्ञानिक भी स्थिति का आकलन कर रहे हैं, साथ ही यह अध्ययन भी कर रहे हैं कि कम पानी में कौन सी फसल उगाई जा सकती है और पशुपालन के लिये कम संसाधनों में कौन सी घास उगाई जा सकती है। सूखे से निपटने के लिये हम क्या-क्या कर रहे हैं और क्या-क्या करने वाले हैं इसकी रिपोर्ट संसद में भी रखी गई है।
लेकिन केन्द्र सरकार तब जागी जब सुप्रीम कोर्ट ने सूखे पर सख्ती दिखाई?
सुप्रीम कोर्ट के कहने से पहले से ही हम अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। कमेटी के सदस्यों को प्रत्येक क्षेत्र में कई-कई दिन तक दौरा करना पड़ता है उसके बाद ही राहत सामग्री भेजी जाती है। हमारी सरकार ग्राम-गरीब-किसान के प्रति बेहद संवेदनशील और प्रतिबद्ध है। इसलिए बजट में इस तबके का खास ध्यान रखा गया है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों को प्राकृतिक आपदा, ओला, बाढ़ आदि से काफी फायदा होने वाला है। इसी तरह प्रधानमंत्री सिंचाई योजना भी बहुत बड़ी योजना है। हम खेत तक पानी पहुँचाना चाहते हैं। हम ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। फर्टिलाइजर का कम इस्तेमाल करना चाहते हैं। ये चीजें फसलों के लिये ही नहीं बल्कि मानव जीवन के लिये भी खतरा है। हमने जो सॉइल हेल्थ कार्ड योजना शुरू की थी उससे अब तक मात्र दो साल में 14 करोड़ किसान लाभान्वित हुए हैं।
इसमें खेत की मिट्टी की जाँच कर किसानों को यह बताया जाता है कि वे कौन सी फसल बोयें और कौन सी खाद का इस्तेमाल करें। किसानों को कम खर्च पर अधिक उत्पादन मिल सके यही इस योजना का उद्देश्य है। पूसा में इस बार विशाल स्तर पर कृषि मेले का आयोजन किया। इसके लिये हमने लगातार तीन महीने तक कड़ी मेहनत की। पूरे देशभर के किसानों ने उसमें भाग लिया। वहाँ कम से कम खर्च पर अधिक से अधिक उत्पादन लेने की तकनीक किसानों को बताई गई। इससे लाखों किसानों को लाभ मिल रहा है। पिछले महीने 1 से 6 अप्रैल तक देशभर में कृषि गोष्ठियों का आयोजन किया गया।
सूखे से निपटने में केन्द्र सरकार ने ऐसी तत्परता नहीं दिखाई, जबकि पिछले दो सालों से किसान सूखे की मार झेल रहे थे। जब स्थिति बिल्कुल साफ थी तो फिर ऐसा क्यों?
मैंने अभी कहा न कि गाँव-गरीब-किसान हमारी प्राथमिकता में हैं। सूखे के मामले में पहले राज्य सरकारों को सूचना देनी होती है, लेकिन राज्यों ने सूचना देर से दी। दस राज्यों ने सूखे की स्थिति बताई तो वहाँ मुआवजा भेज दिया गया है। बल्कि हमने तो यह भी कह दिया है कि राज्य सरकारें अपने डिजास्टर फंड से 10 प्रतिशत खर्च कर सकते हैं। किसी को भूखा नहीं सोना चाहिए, ये हमारी जिम्मेदारी है। मैं स्वयं एक गरीब किसान परिवार से हूँ और किसानों की व्यथा-वेदना से भलीभाँति वाकिफ हूँ। भारत सरकार सूखाग्रस्त क्षेत्रों में हरसंभव मदद के लिये चिंतित है और यह जिम्मेदारी भी सरकार की है। लेकिन राज्य सरकारों को भी ईमानदारी के साथ सूखाग्रस्त क्षेत्रों तक मदद पहुँचानी चाहिए।
आप सूखे की जिम्मेदारी राज्यों पर डाल रहे हैं, लेकिन भाजपा शासित राज्यों जैसे गुजरात और हरियाणा ने ही सूखे की जानकारी नहीं दी। इन राज्यों का कहना है कि बारिश कम हुई, सूखा नहीं पड़ा?
गुजरात में सूखे की स्थिति वैसी नहीं है, बारिश कम हुई है। नरेन्द्र मोदी जी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने वहाँ जल संरक्षण में काफी अच्छा काम किया था। उसी का विस्तार प्रधानमंत्री सिंचाई योजना है। नदी को नदी से जोड़ने की योजना है। गुजरात में सौराष्ट्र इलाका (पश्चिमी क्षेत्र) और कच्छ (उत्तरी गुजरात) में हर साल सूखा पड़ता था, लेकिन नरेन्द्र भाई ने इन इलाकों में हजारों किलोमीटर में तीन मीटर मोटी पाइप बिछाकर लाखों लोगों तक पानी पहुँचाया। नर्मदा के पानी को डायवर्ट करके ऐसा किया गया और यह 17 हजार करोड़ रुपये की योजना थी। वर्तमान में भी हमारी नदी जोड़ो योजना है। इसके अंतर्गत बाढ़ वाले इलाकों का पानी सूखे वाले क्षेत्रों में पहुँचाया जाएगा। ऐसा पूरे देश में किया जाएगा, जिससे बाढ़ और सूखाग्रस्त दोनों क्षेत्रों के लोगों को राहत मिलेगी।
ये तो भविष्य की बातें हुई। लेकिन सूखे पर केन्द्र सरकार जो आँकड़े दे रही है, उस पर सवाल उठ रहे हैं?
देखिए, राज्यों ने जो आँकड़े दिये और हमारी टीम ने जो अध्ययन किया -आँकड़े वहीं से आएंगे। लेकिन हम आँकड़ों के गणित में क्यों फँसें? हमारा उद्देश्य तो ये है कि कोई भूखा-प्यासा न सोये। पहली बार किसी सरकार ने सूखे पर सबसे ज्यादा पैसा दिया है।
लेकिन सूखे के कारण जो किसान मनरेगा में काम कर रहे हैं, उन्हें पैसे नहीं मिल रहे हैं। क्योंकि केन्द्र सरकार मनरेगा का पैसा नहीं भेज रही है?
मनरेगा का बजट 36 हजार करोड़ रुपये था, जिसे हमने बढ़ाकर 70 हजार करोड़ कर दिया। दूसरी बात मनरेगा का पैसा कभी न तो रोका गया है और न ही आगे रुकेगा। बल्कि सच्चाई तो यह कि मनरेगा में हम इतनी पारदर्शिता ले आये हैं कि पैसा सीधे मजदूरों के एकाउंट में जा रहा है। बीच में कोई गड़बड़झाला नहीं है। पहले मजदूरी का पैसा हाथ से दिया जाता था जिसमें कांग्रेस के लोग गड़बड़ कर जाते थे।
खैर, सूखे से किसान त्रस्त हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा और सपा को राजनीति सूझ रही है?
भाजपा कोई राजनीति नहीं कर रही है। बाकायदा हमने बुन्देलखण्ड में ट्रेन से पानी भिजवाया, लेकिन राज्य सरकार ने उसे रोक दिया। पानी पिलाना हमारा फर्ज है, लेकिन सपा ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया। ये तो कुदरत का कहर है, ऐसे में पानी पिलाना मानव धर्म है। अब आप ही बताइए, कौन कर रहा है राजनीति? जब चुनाव आएंगे तो तब की तब देख लेंगे, तब राजनीति भी कर लेंगे। लेकिन यह वक्त राजनीति का कतई नहीं है।
दालों के दाम आसमान छूने लगे हैं। भाजपा जब सत्ता में आती है तो दालों के दाम क्यों बढ़ जाते हैं?
ऐसा भाजपा की वजह से नहीं है, बल्कि दो साल से मानसून ठीक नहीं है जिससे बारिश बहुत कम हो रही है। इस कारण उत्पादन कम हो रहा है, जिससे चीजों के दाम बढ़ रहे हैं। हम तो अपने राज्यों में दो रुपये किलो गेहूँ और तीन रुपये किलो चावल दे रहे हैं। हमने दालों का समर्थन मूल्य 250 रुपये बढ़ा दिया है। जमाखोरों के यहाँ छापे मारे जा रहे हैं। बल्कि अब तो दालों को आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंतर्गत ले आये हैं। इससे स्टॉक पर एक लिमिट निर्धारित कर दी गई है। उससे ज्यादा कोई भी आढ़ती अपने यहाँ जमाखोरी नहीं कर सकता। अब इस बार बारिश अच्छी होने की उम्मीद है तो फसल भी अच्छी होगी। इससे भविष्य में दालों के दाम नीचे आएंगे।
सत्ता में रहने के बाद आपमें इस कदर सादगी कैसे?
मैं ऐसा ही हूँ, चाहे सत्ता में रहूँ या सड़क पर। जनता ने अपनी सेवा करने के लिये मुझे यहाँ तक भेजा है। मैं पाँच बार विधायक रहा। दो बार मंत्री रहा। अब दूसरी बार सांसद हूँ। पहली बार नौ हजार वोटों से जीता। इस बार 47 हजार वोटों से जीतकर आया हूँ। आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं।