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राजस्थान पत्रिका, 02 अगस्त, 2017
विकास के प्रतिमानों को स्पर्श करने के लिये बाँधों की निर्माण की आवश्यकता को अनदेखा नहीं किया जा सकता। लेकिन नदियों के जलस्तर में गिरावट के कारण उनके प्रवाह क्षेत्र में हो रहे अनावश्यक निर्माणों पर रोक लगाई जानी चाहिए थी। बस्तियाँ और बाजार नदियों के मुहाने तक ही नहीं चले गए बल्कि उनके पेटे में भी उतर गए। अब ऐसे में नदियों को प्रकृति जब कभी अपनी पूरी स्वच्छन्दता के साथ बहने का अवसर देती है, किनारे बसी बस्तियों में हाहाकार मच जाता है। सामान्य बरसात में भी देश के विभिन्न हिस्सों में नदियों ने रौद्र रूप धारण कर लिया है। इस कारण हजारों लोगों को सुरक्षित ठिकाने की तलाश में अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। पश्चिमी राजस्थान को रेगिस्तानी प्रदेश के तौर पर पहचाना जाता है, लेकिन वहाँ भी एक बड़े हिस्से में बाढ़ के हालात हैं।
सवाल यह है कि प्रकृति कुपित है या विकास के नाम पर हमने ही कुछ ऐसा कर लिया है कि बादल सामान्य से अधिक पानी बरसाने लगे। सामान्य बारिश भी आसमान से गिरती आफत प्रतीत होने लगती है। इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिये विकास के नाम पर नदियों के साथ हुए बर्ताव को समझना आवश्यक है।
वर्तमान में देश के कई हिस्सों में बरसात हो रही है, लेकिन अधिकांश जगहों पर इस स्थिति से निबटने की तैयारी ही नहीं थी। नदियों पर बड़े-बड़े बाँध बना लेने के बाद हमने यह मान लिया है कि हर स्थिति में पानी की आवक की मात्रा पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
बाँधों के निर्माण के बाद नदियों का जलस्तर प्रवाह क्षेत्र में अपने सामान्य प्रवाह पर प्रतिबन्ध के कारण बहुत नीचे चला गया है। विकास के प्रतिमानों को स्पर्श करने के लिये बाँधों की निर्माण की आवश्यकता को अनदेखा नहीं किया जा सकता। लेकिन नदियों के जलस्तर में गिरावट के कारण उनके प्रवाह क्षेत्र में हो रहे अनावश्यक निर्माणों पर रोक लगाई जानी चाहिए थी। बस्तियाँ और बाजार नदियों के मुहाने तक ही नहीं चले गए बल्कि उनके पेटे में भी उतर गए।
अब ऐसे में नदियों को प्रकृति जब कभी अपनी पूरी स्वच्छन्दता के साथ बहने का अवसर देती है, किनारे बसी बस्तियों में हाहाकार मच जाता है।
नदियाँ उस भूभाग में एकत्र हुए पानी के किसी बड़े जलस्रोत तक निकासी का मार्ग हुआ करती थी। जब यह मार्ग ही अवरुद्ध हो गए तो बारिश के पानी ने सड़कों और बस्तियों में एकत्र होना शुरू कर दिया। पानी को सहज प्रवाह का मार्ग नहीं मिलता तो फिर वह सामान्य जनजीवन को अस्त-व्यस्त करता है। नदियों के साथ ही तालाबों में एकत्र पानी की भी भूगर्भीय जलस्तर को कायम रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।
जब रिहायशी बस्तियों की जरूरत बढ़ी तो इनमें से अधिकांश तालाबों को पाट दिया गया। नदियों ने तो मानव सभ्यता के प्रारम्भ से ही मनुष्य के सुख को सींचा है। नदियों ने यदि रौद्र रूप धारण किया है तो उसके पीछे छुपे दर्द को समझना होगा।
मनुष्य की सामर्थ्य और नदियों की शक्ति में सामंजस्य नहीं होगा तो विध्वंस उन्मुक्त अट्टहास करेगा ही। नदियों के इस कोप को समझा जाये और उनके प्रवाह को मर्यादा का सम्मान किया जाए।