स्वच्छता मिशन से प्रेरित होकर उठाया कदम
घर में शौचालय बनवाकर गाँव की ब्रांड एम्बेसडर बन रहीं महिलाएँ
एनसीआर में शामिल महाभारतकालीन शहर मेरठ में भले ही विकास की अन्धाधुन्ध दौड़ क्यों न चल रही हो। लेकिन तेज रफ्तार भरे इस शहर के कई गाँव ऐसे हैं जो आज भी जिन्दगी की बुनियादी सुविधाओं के अभाव में गुजारने को मजबूर हैं। गंगा यमुना तहजीब की गवाह दोआबा भूमि कहलाने वाले मेरठ में गंगाजल से फसलें लहलहाती थीं।
विकास की दौड़ ने हवाईअड्डे, शॉपिंग मॉल और बहुमंजिला इमारतें तो शहर में खड़ी कर दीं। लेकिन इनके अन्धेरे में खेत-खलिहान खोते चले गए। खेतों में गेहूँ, गन्ने की जगह खड़ी होने वाली इमारतों, मॉल्स, फ्लाईओवर और सड़कों ने महज खाद्यान्न का संकट ही खड़ा नहीं किया, बल्कि उन तमाम ग्रामीण औरतों से शौचालय का वो अधिकार भी छीन लिया जो सवेरे चार बजे उठकर दिशा-मैदान के लिये सीधे इन खेतों की शरण में जाती थीं।
नई दुल्हन से लेकर गाँव की बूढ़ी काकी के शरीर में फिट टाइम मशीन सुबह चार बजे का अलार्म बजाकर उन्हें खेत में जाने को इशारा करती, क्योंकि सूरज निकलने से पहले अगर दिशा-मैदान से हल्की नहीं हुईं, तो दिन भर पेट दबाकर ही बैठना होगा।
सूरज ढलने से पहले तक कोई महिला खेत में अपनी प्राकृतिक जरूरत को पूरा करने कैसे जा सकती हैं क्योंकि उस समय तो खेतों में काम चलता है, घर में शौचालय न होने के कारण केवल आदमियों को ही हक है कि वो दिन में जब चाहें तब खेत में जाकर पेट हल्का कर सकते थे। लेकिन खेत की जगह सड़कें बनने से उन तमाम ग्रामीण महिलाओं के सामने शौच का संकट खड़ा हो गया, जिनके घर में शौचालय नहीं था, बल्कि इस निजी जरुरत को पूरा करने के लिये उन्हें खेत का सहारा लेना पड़ता था।
शहर में एक तरफ बहुमंजिला इमारतों की कतारें सज रही हैं। मल्टीस्टोरी भव्य ऊँची इमारतें सिर उठा रही हैं। वहीं इन गगनचुम्बी इमारतों के कदमों में आने वाले गाँवों में लोग आज भी शौच के लिये खेतों में जाते हैं। आर्थिक अभाव होने के कारण इनके पास पक्का मकान तो दूर शौचालय भी नहीं है।
मेरठ शहर से सटे गाँव और मलिन बस्तियों की महिलाएँ आज भी शौच के लिये खुले मैदानों में जाती हैं। चाहे बीमारी हो या परेशानी लेकिन इनका काम सुबह पौ फटने से पहले उठकर खेत में शौच के लिये जाना है।
लेकिन गाँवों की कुछ महिलाएँ अशिक्षा और आर्थिक कमजोरी के कारण फलफूल रही इस गलत परम्परा को अँगूठा दिखाते हुए उससे आगे निकल पड़ी हैं। इन महिलाओं ने पाई-पाई पैसे जोड़कर घर में शौचालय का निर्माण कराया है। अपने इस काम के लिये परिवार में विरोध झेला। आज प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान से जुड़कर ये महिलाएँ गाँव में स्वच्छता की ब्रांड एम्बेसडर मानी जाती हैं। जिनकी सोच ने न केवल उनके परिवार की जिन्दगी बदली, बल्कि समाज को सफाई का महत्त्व बताया।
खेतों में शौच के लिये जाते समय जिन महिलाओं के पैर संक्रमित हो जाते थे। आज वही महिलाएँ गाँव के घरों में जाकर लोगों को शौचालय का महत्त्व बताती हैं। घर की बहू-बेटियों की इज्जत घूँघट में नहीं बल्कि खुले में शौच न जाने से बनती है।
शौचालय बनने के बाद आत्मविश्वास से लबरेज ये महिलाएँ आज बस्ती की दूसरी महिलाओं को खुले में शौच के नुकसान बताते हुए कहती हैं हर घर में शौचालय जरूर होना चाहिए। यह हमारी इज्जत व सेहत का सवाल है। इससे पर्यावरण भी साफ रहता है। खुले में मल त्याग करने से उस पर मक्खियाँ बैठती हैं, जो उड़कर घरों में आकर खाना-पानी गन्दा करती हैं। गन्दगी के साथ डायरिया, पीलिया जैसे रोग फैलाती हैं। जब यही मल बरसात में नालियों में बहकर जाता है तो बदबू, गन्दगी फैलाता है इससे रोग पनपते हैं। मल बहकर नदियों और तालाबों के पानी को प्रदूषित करता है फिर इसी पानी को हमारे पशु और हम लोग पीते हैं। यह हमारे पाचन क्रिया को प्रभावित कर हमारे बच्चों को बीमार बनाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो स्वच्छता अभियान चलाया है। उसके तहत इन महिलाओं ने अपने गाँवों में जागरुकता फैलाने का काम शुरू कर दिया है।
स्वच्छ भारत मिशन से उपजी नई सोच, लेकिन मुश्किल है डगर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2015 को महात्मा गाँधी की जयन्ती पर देश में स्वच्छ भारत अभियान का शुभारम्भ कर देशवासियों को एक नई सोच दी कि स्वच्छ रहें स्वस्थ रहें। इस अभियान के तहत प्रधानमंत्री ने विषेशतौर पर गाँवों में शौचालय निर्माण पर जोर दिया, ताकि गाँव में रहने वाली देश की बड़ी आबादी जो आज भी स्वच्छता के अधिकार से वंचित है। उसे अपना हक मिले और वो एक सेहतमन्द जीवन जी सके।
अभियान के तहत गाँवों में 2 अक्टूबर 2019 तक सम्पूर्ण शौचालय निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 150वीं जयन्ती जब देश मनाए तो देश के हर गाँव में शौचालय हो। महात्मा गाँधी के स्वच्छ भारत के सपने को हकीकत में तब्दील करने के लिये उठाया गया यह कदम अब गाँवों में अपना रंग दिखाने लगा है। हालांकि भ्रष्टाचार, अशिक्षा और गाँवों में पानी की कमी के साथ शौचालय बनाने के लिये मिलने वाली छोटी रकम अभी भी इस अभियान को पूरा करने में रोड़ा लगाए हुए हैं जिसका असर गाँवों में साफतौर पर देखा जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने अभियान के तहत पाँच सालों में 2 करोड़ ग्रामीण शौचालयों के निर्माण का लक्ष्य रखा है। इसके लिये 1 लाख 96 करोड़ रुपए का बजट तय किया है जिसका बड़ा भाग विश्व बैंक के जरिए भारत को मिलेगा। लोगों में शौचालय और सफाई के प्रति जागरुकता लाने के लिये अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा, सचिन तेंदुलकर और अमिताभ बच्चन जैसे चेहरों को इसका ब्रांड एम्बेसडर बनाया ताकि देश की जनता अपने चहेते अभिनेताओं के मुँह से सफाई के लाभ जाने और उसे जीवन में अपनाए।
स्वच्छता अभियान के शुभारम्भ के वक्त जब शौचालयों की स्थिति का सर्वे हुआ तो पता चला कि देश में आज भी 67 प्रतिशत ग्रामीण घरों में शौचालय का अभाव है। आज भी करोड़ों भारतीय खुले में शौच करते हैं। अन्य देशों से तुलना करें तो भारत खुले में शौच के लिये नम्बर वन है। जहाँ 48 प्रतिशत आबादी खुले में शौच जाती है।
अफगानिस्तान में 15 प्रतिशत, कांगो में 08 प्रतिशत, बांग्लादेश और बुरुंडी में 03 प्रतिशत जनता खुले में शौच जाने को मजबूर है। इसके चलते देश में शौचालय कम और बीमारियाँ कहीं ज्यादा हैं।
एक कमरे के मकान में बनवाया शौचालय
उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर के छोटे से गाँव दायमपुर निवासी गीता, स्वच्छता अभियान से प्रेरित होकर अपने घर में शौचालय बनवाई। वह मलिन बस्ती में एक कमरे के मकान में रहती है। पति कुर्सी बनाता है। तीन बच्चों के साथ चार हजार रुपया महीना आय से घर चलाना उसके लिये रोजाना एक चुनौती है। लेकिन सेहत की खातिर उसने मासिक खर्च से पैसा बचाकर चुनौतियों को मात देते हुए घर में शौचालय बनवाया।
बच्चे की पढ़ाई का खर्चा काटा। नए कपड़े नहीं खरीदे। त्योहारों पर खर्चा नहीं किया। किसी रिश्तेदार के यहाँ नहीं गए। पाई-पाई रकम जोड़कर, छोटे से घर में सुन्दर शौचालय बनाने का सपना साकार किया। आज वो शान से कहती है कि मेरा परिवार शौच के लिये बाहर नहीं जाता। हमारे एक कमरे के मकान में पक्का शौचालय है।
तीन बच्चों की माँ गीता आज अपनी बस्ती और गाँव की सेलिब्रिटी है। जिसने छोटी सी आय में हर महीने 700-800 रुपए जोड़कर अपने घर में शौचालय बनवाया। इसमें उसका साथ पति संजय और बच्चों ने दिया।
परिवार की सीमित आय में कुछ भी नया करना नामुमकिन है। गीता ने अपनी सूझ-बूझ से नामुमकिन को मुमकिन कर दिया। गीता कहती है, ‘हम लोग खेतों में शौच के लिये जाते थे, कोई मेहमान घर आ जाये तो उसे बाहर शौच के लिये ले जाना। उसके सामने खुद बाहर शौच के लिये जाने में बहुत शर्म आती थी। हमारे कई रिश्तेदारों ने हमारे यहाँ इसलिये आना छोड़ दिया था क्योंकि हमारे घर में शौचालय नहीं था और उन्हें खेत में शौच के लिये जाना पड़ता था।’
गीता कहती हैं, ‘दूसरे बच्चे के समय मैं आठ माह की गर्भवती थी। घर में शौचालय न होने के कारण खेत में जाना पड़ता था, बरसात के दिनों में खेत में शौच के लिये जाते समय मेरा पैर फिसल गया। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था कि मैं नहीं बचूँगी। लेकिन किसी तरह मुझे बचाया गया। उस दिन मैंने सोच लिया था कि घर में शौचालय जरूर बनवाऊँगी उसके बाद पति की मदद से हर महीने पैसे जोड़ना शुरू किया। आज मेरा बच्चा तीन साल का है। हमारे घर में शौचालय बन गया। हम उसका प्रयोग करते हैं और सफाई का पूरा ध्यान रखते हैं। शौचालय बनवाने में हमें बहुत दिक्कतें आईं। रोजाना अपनी गुल्लक में थोड़े-थोड़े पैसे जोड़ती और सोचती कि आखिर कब वो दिन आएगा, जब शौचालय बनेगा। महीने के आखिर में पैसे गिनती कि कब पैसे पूरे हों और हम शौचालय निर्माण कराएँ। तब कहीं 20 हजार रुपए जोड़कर शौचालय बनवाया। अब मुझे या मेरे बच्चों को शौच के लिये खेतों में नहीं जाना पड़ता। कड़कती ठंड में सुबह अन्धेरे में नहीं उठना पड़ता और न ही आबरू एवं जान पर आफत है। अब बरसात में मेरे और बच्चों के पैर खेतों में पड़े मल व गन्दगी से गुजरने के कारण गलते नहीं हैं। घर में शौचालय बनने से मेरी आधी परेशानी हल हो गई। मैं बहुत खुश हूँ। रिश्तेदारों के सामने मुझे शर्मिन्दा नहीं होना पड़ता।’
गीता के गाँव में 350 परिवार निवास करते हैं। इसमें से कुल 100 परिवार ऐसे हैं, जिनके घर में शौचालय बना है। लेकिन गीता की सोच और प्रयास के बाद गाँव के अधिकांश घरों में शौचालय निर्माण शुरू हो गया है। 50 परिवारों ने तो स्वच्छता मिशन के तहत शौचालय निर्माण के लिये आवेदन किया है। गीता की सोच के बादल पूरे गाँव की महिलाओं की सोच बदली है और वो भी घर में पक्के शौचालय का निर्माण करा रही हैं।
शौचालय से चमका सुन्दर का घर
रजपुरा ब्लॉक की रहने वाली सुन्दर आज पूरे इलाके के घरों में काम करने वाली सुन्दर नहीं बल्कि सुन्दर आंटी के नाम से जानी जाती है। सुन्दर ने अपने घर में शौचालय बनवाने की बात पति से कही, तो शराब के नशे में धुत रहने वाले पति ने जवान बेटियों की इज्जत की परवाह किये बिना शौचालय बनवाने से इसलिये इनकार कर दिया, क्योंकि वो अपने नशे की रकम को शौचालय बनवाने में नहीं खपा सकता था। दो जवान बेटियों और एक बेटे की माँ सुन्दर करती भी तो क्या। बेटियों की शादी-व्याह की उम्र हो रही थी और पति को शराब पीने से फुर्सत नहीं थे।
सुन्दर बताती है, ‘एक बार खेत में शौच के लिये गई बड़ी बेटी को कुत्ते ने काट लिया। पूरे पैर में संक्रमण हो गया। लम्बा इलाज चला डर था कहीं टाँग न काटनी पड़ जाये। उस दिन सुन्दर ने ठान लिया अब चाहे जो हो घर में शौचालय जरूर बनवाएगी। पति को छोड़ना पड़े तो वो कदम भी उठाएगी। सुन्दर ने घरों में झाड़ू-पौछा किया। खाली समय में कपड़े सिलने शुरू किये और शौचालय के लिये पैसे जमा करने लगी। सुन्दर के गाँव में अधिकांश घरों में शौचालय था, लेकिन जब मेरी बेटियाँ खेत में शौच को जाती तो मोहल्ले के लड़कों की कातर निगाहें उन्हें ताकती। बेटियों की सुरक्षा मेरी बड़ी जिम्मेदारी थी। बच्चों की मदद से घरों में काम करके सुन्दर ने पैसे जोड़े और घर पर शौचालय बनवाया। उन्हीं दिनों सुन्दर की बड़ी बेटी कविता का विवाह भी तय हो गया। शादी के घर में मेहमान आये और खेत में शौच के लिये जाएँ यह सुन्दर को गवारा नहीं। उसने बेटे की मदद से खुद ही शौचालय बनवाया। दरवाजे की जगह पुरानी साड़ियों का पर्दा डाला और इस्तेमाल शुरू किया। आज सुन्दर के घर में पक्का शौचालय है जिसमें दरवाजे भी लग चुके हैं।’ सुन्दर कहती हैं कि आदमी चाहे छोटा हो या बड़ा खेत में शौच जाना अच्छी बात नहीं।
अब गाँवों में खेत भी नहीं रहे। बड़ी इमारतें, पक्की सड़कें और तेजी से हो रहे विकास के कारण गाँवों के खेत-मैदान भी खत्म हो चुके हैं जहाँ शौच के लिये जाते थे। इसलिये घर में शौचालय न होना और ज्यादा परेशानी का कारण बन गया है। क्योंंकि गाँवों में खेत नहीं बचे तो शौच के लिये कहाँ जाएँ। आँधी, तूफान और बरसात में शौच के लिये खुले में जाने में बहुत परेशानी होती थी।
अनपढ़ सुन्दर आज रिश्तेदारी में जहाँ भी जाती हैं, वहीं लोगों को स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनने वाले शौचालय की जानकारी देती हैं और लोगों को घरों में शौचालय बनवाने के लिये प्रेरित करती हैं। सुन्दर की दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है, बेटे के विवाह की तैयारी में हैं। घर में शौचालय होने से वो अपने आप को किसी से कम नहीं आँकती।
स्वच्छता मिशन ने बदली सोच
सुन्दर और गीता की तरह ही मेरठ की अम्बेडकर नगर मलिन बस्ती में रहने वाली वन्दना ने भी लोगों के घरों में खाना बनाकर और बर्तन माँजकर पैसे जोड़े और शौचालय बनवाया। उसके इस काम में उसका साथ उन लोगों ने भी दिया जहाँ वो काम करने जाती है। वन्दना ने उन परिवारों से शौचालय बनवाने के लिये मदद माँगी, तो उन्होंने वन्दना का साथ दिया।
अम्बेडकर नगर मेरठ की एक मलिन बस्ती है, वहाँ रहने वाले 50 से अधिक परिवारों में शौचालय नहीं हैं। वन्दना बताती है कि अभी तक बस्ती की अधिकांश औरतें और लड़कियाँ सभी खेत में शौच के लिये जाती थीं। लेकिन पिछले दिनों बस्ती के बाहर पक्की सड़क बनना शुरू हुआ तो सारे खेत विकास की जद में आ गए। खेत को काटकर पुल और सड़क बन गए। ऐसे में हम सभी के सामने बड़ी परेशानी शौच के लिये कहाँ जाएँ आने लगी। आदमी तो कहीं भी जाकर काम चला लेते, लेकिन औरतें बहुत परेशान रहती।
कुछ समय पहले वन्दना की पड़ोसन ने घर में पक्का शौचालय बनवाया तो वन्दना और उसके बच्चे पड़ोसन के यहाँ शौच के लिये जाते। लेकिन दूसरे का घर आखिर कब तक काम आता। एक दिन पड़ोसन से शौचालय को लेकर विवाद हो गया, तो वन्दना ने सोच लिया कि घर में शौचालय जरूर बनवाऊँगी। वन्दना कहती है कि मैं जहाँ खाना बनाने जाती हूँ, उन साहब से मैंने शौचालय बनवाने के लिये एडवांस पैसा माँगा। कोई भी आदमी 15 हजार रुपए एडवांस मुझे क्यों देगा। लेकिन मेरे मालिक ने मुझसे पैसे का कारण पूछा तो मैंने बताया कि घर में शौचालय बनवाना हैं, तो उन्होंने मुझे नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान के बारे में बताया। उन्हीं की मदद से मेरा आवेदन स्वच्छता अभियान में शौचालय निर्माण के लिये हुआ। मेरे घर में शौचालय बना।
आज वन्दना बस्ती की दूसरी औरतों को भी स्वच्छता अभियान के तहत घर में शौचालय बनवाने की जानकारी देती हैं। जिसका असर बस्ती में दिखाई देता है। जिन 50 घरों में शौचालय नहीं था वहाँ कई परिवारों में अब अपना निजी शौचालय है। वन्दना कहती हैं भले मेरे बच्चे अभी छोटे हैं, लेकिन शौचालय तो जिन्दगी की पहली जरूरत है जो हर घर में जरूर होना चाहिए। जो लोग गरीब हैं, उनके लिये प्रधानमंत्री की यह शौचालय निर्माण योजना बहुत ही अच्छी है।
जिले में वर्तमान स्थिति
मेरठ जिले में पंचायती राज विभाग द्वारा गाँवों में स्वच्छ शौचालयों के निर्माण की वर्तमान स्थिति देखें तो जिले में 12,000 व्यक्तिगत शौचालायों का निर्माण होना बाकी है। इसमें से मार्च 2016 तक 11408 पर्सनल शौचालय का निर्माण गाँवों में हुआ है। वही लोगों ने निजी तौर पर भी कई शौचालयों का निर्माण कराया है। ये शौचालय आँगनबाड़ी केन्द्रों, स्कूलों के अलावा घरों में भी बनवाए गए हैं।
पूरे मेरठ मंडल की स्थिति देखें तो मेरठ मंडल के बुुलन्दशहर जिले के बाद सर्वाधिक शौचालय बनाने का काम तेजी से केवल मेरठ जिले में हुआ है, जो स्वच्छता की अच्छी पहल है। मेरठ मंडल में शामिल गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलन्दशहर, मेरठ, हापुड़ और बागपत सभी छह जिलों में अब तक एक साल में 47278 शौचालयों का निर्माण हो चुका है।
मेरठ मंडल में आने वाले छह जिलों में पंचायती राज विभाग द्वारा गाँवों में हुए शौचालय निर्माण की जिलेवार स्थिति पर एक नजर। इसमें छह जिलों में मेरठ दूसरे नम्बर पर आता है, जो एक शुभ संकेत है।
मार्च 2016 तक शौचालय की स्थिति
जिले का नाम | व्यक्तिगत शौचालय का निर्माण | निर्माण का प्रतिशत |
बुलन्दशहर | 17288 | 100 प्रतिशत |
मेरठ | 11408 | 95 प्रतिशत |
हापुड़ | 8381 | 86 प्रतिशत |
बागपत | 6356 | 86 प्रतिशत |
गाजियाबाद | 3825 | 84 प्रतिशत |
गौतमबुद्ध नगर | 1125 | 84 प्रतिशत |
कुल | 47278 | 96 प्रतिशत |
जिले में ब्लॉकवार बने शौचालय की स्थिति
जिले में कुल विधानसभा- 05
जिले में कुल ब्लॉक- 12
जिले में कुल ग्राम पंचायतें- 459
जिले की आबादी- 36 लाख
ब्लॉक का नाम | निर्मित शौचालय 2015 तक |
हस्तिनापुर | 260 |
माछरा | 927 |
दौराला | 158 |
परीक्षितगढ़ | 1091 |
जानी | 465 |
मवाना | 117 |
सरूरपुर | 239 |
खरखौदा | 598 |
रजपुरा | 454 |
सरधना | 175 |
रोहटा | 150 |
कुल योग | 4826 शौचालय |
यूरिनरी संक्रमण की शिकार अधिकांश ग्रामीण औरतें
मेरठ जिले की 459 ग्राम पंचायतों में अधिकांश गाँवों की महिलाएँ यूरिनरी संक्रमण से गुजर रही हैं। लाला लाजपत राय मेडिकल अस्पताल में महिला रोग विभाग की एचओडी और वरिष्ठ गायकनोलॉजिस्ट डॉ. कीर्ति दुबे कहती हैं कि अधिकांश महिलाएँ पेट में दर्द, पेशाब में पीलापन, पेशाब में दर्द, ब्लेडर में दर्द, अनियमित माहवारी, पेशाब में जलन की समस्या लेकर आती हैं। रोजाना 250 मरीजों की ओपीडी करती हूँ। इसमें बड़ा आँकड़ा उन महिलाओं का होता है जो यूरिन की समस्या से ग्रसित हैं। इसका सबसे बड़ा कारण दिन भर पेट को दबाए रखना, समय पर अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन शरीर से न होने के कारण यूरिन में संक्रमण की वजह बन जाता है। यूटीआई से पीड़ित ये महिलाएँ घंटों अपनी प्राकृतिक जरूरत को दबाकर नियंत्रित करके रखती हैं। शरीर से समय पर अपशिष्ट के बाहर न निकलने के कारण ब्लेडर पर दबाव आता है। कई महिलाएँ बार-बार शौचालय न जाने के डर से कम पानी पीती हैं, लेकिन इसका बुरा असर भी सीधे ब्लेडर पर पड़कर नई बीमारियाँ पैदा करता है।
महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीषा तोमर कहती हैं कि शरीर की सबसे बड़ी निजी जरूरत शौच और पेशाब को दबाए रखने में माहिर अधिकांश ग्रामीण महिलाएँ जब शौचालय की परेशानी लेकर आती हैं, तो पूछने पर बताती हैं घर में शौचालय नहीं है इसलिये कम पानी पीती हैं। कम पानी पीने से किडनी में स्टोन की समस्या बढ़ी है। डॉ तोमर कहती हैं कि महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा 60 गुना अधिक तेजी से संक्रमण जल्दी और ज्यादा फैलने के चांस होते हैं। महज शौचालय न होना ही इसका कारण नहीं हैं, बल्कि गन्दे शौचालय का इस्तेेमाल करने से भी संक्रमण होता है। इससे बचने के लिये खूब पानी पिएँ और सफाई का ख्याल रखते हुए उसका समय पर निष्कासन हो। लेकिन मेरठ के गाँवों में आज भी कई परिवारों में शौचालय न होने के कारण महिलाएँ इस समस्या से निजात नहीं पा रही हैं।
स्वच्छ भारत अभियान की रकम ने बढ़ाया हौसला, लेकिन पानी है समस्या का कारण
2 अक्टूबर 2019 तक सम्पूर्ण शौचालय निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 150वीं जयन्ती जब देश मनाए तो देश के हर गाँव में शौचालय हो। महात्मा गाँधी के स्वच्छ भारत के सपने को हकीकत में तब्दील करने के लिये उठाया गया यह कदम अब गाँवों में अपना रंग दिखाने लगा है। हालांकि भ्रष्टाचार, अशिक्षा और गाँवों में पानी की कमी के साथ शौचालय बनाने के लिये मिलने वाली छोटी रकम अभी भी इस अभियान को पूरा करने में रोड़ा लगाए हुए हैं जिसका असर गाँवों में साफतौर पर देखा जा सकता है।
जिले में रजपुरा, माछरा, दौराला, खरखौदा जैसे पिछड़े इलाके के ब्लॉकों से सटे गाँवों में रहने वाली महिलाएँ कहती हैं कि जब से स्वच्छ भारत अभियान आया है। हमारा कुछ हौसला तो बढ़ा है। कम-से-कम 12,000 रुपए की मदद सरकार से मिल जाती है जो शौचालय बनाने के लिये जरूरी है। हालांकि एक शौचालय बनाने में कम-से-कम 20 हजार रुपए का खर्चा आता है। ऐसे में बची रकम जुटाना इन ग्रामीणों के लिये बड़ी चुनौती है। लेकिन इस चुनौती का सामना करते हुए महिलाएँ आगे बढ़ रही हैं। ताकि सेहत, सफाई और इज्जत से समझौता न करना पडे। क्योंकि जहाँ हमारे पास घर चलाने और खाने को भी पैसे नहीं, ऐसे में इन महिलाओं को जो मिले वही काफी है। गाँवों में शौचालय बनवाने की राशि की किल्लत के साथ एक बड़ी समस्या शौचालय में इस्तेमाल होने वाले पानी की कमी है। मेरठ के अधिकांश गाँवों में आज भी पानी के लिये हैण्डपम्प और सरकारी नलके, नदी और तालाब का इस्तेमाल होता है। तालाब ही पानी का मुख्य स्रोत हैं। ऐसे में घर में शौचालय बनने के बाद उसकी सफाई और इस्तेमाल के पानी की पूर्ति कैसे करें यह बड़ी समस्या है। देहात के इलाकों में आज भी पाइपलाइन या टंकी की मदद से पानी सप्लाई नहीं है। यह भी एक वजह है कि गाँव के लोग शौचालय बनवाने से कतरा रहे हैं। क्योंकि शौचालय बनने के बाद उसमें इस्तेमाल के लिये पानी कहाँ से लाएँगे। सरकार को गाँवों में पानी की उचित व्यवस्था भी करनी होगी। जिले के गाँवों में अभी भी शुष्क शौचालय की संख्या 1751 से अधिक है, जिनकी सफाई स्वयं ग्रामीण करते हैं। मल उठाने का काम किया जाता है। इसमें खरखौदा ब्लॉक में सर्वाधिक 298 सूखा शौचालय हैं। अगर सरकार पानी की व्यवस्था गाँवों में करा पाई तो मैला ढोने के काम से एक बड़े वर्ग को आजादी मिल सकती है। साथ ही गाँवों में शौचालयों की स्थिति में सुधार आएगा।आशा बहुएँ भी देंगी जानकारी
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में गाँवों में शौचालयों की स्थिति सुधारने के लिये आशा बहुओं और आँगनबाड़ी कार्यकत्रियों को भी इसकी जिम्मेदारी सौंपी हैं। आशा बहुएँ और आँगनबाड़ी कार्यकत्रियाँ गाँवों में घर-घर जाकर लोगों विशेषकर महिलाओं को खुले में शौच जाने के नुकसान बताएँगी। साथ ही उन्हें घर में शौचालय बनाकर उसके इस्तेमाल के लिये प्रेरित करेंगी।
मेरठ जिले की 459 ग्राम पंचायतों के हर घर में यह सर्वे कार्य चलेगा। ताकि जिन घरों में शौचालय नहीं हैं, वहाँ शौचालय बनाएँ जाएँ। साथ ही महिलाएँ घर में शौच जाने के लिये प्रेरित हों। इसके लिये कर्मियों को अलग से भुगतान करने पर भी सरकार विचार कर रही है। जिले का महिला एवं बाल विकास विभाग, स्वास्थ्य विभाग और जिला पंचायती राज विभाग इनकी मॉनिटरिंग करेगा। ताकि जिन घरों में शौचालय नहीं हैं, वहाँ शौचालय बनाया जा सके।