अप्रवेश्य शैलः
इस शब्द का प्रयोग जलविज्ञान में होता है, अप्रवेश्य शैल वे शैल होते हैं जिनके आर-पार अधस्तल में आमतौर पर पाए जाने वाले दाबों और अवस्थाओं में जल व अन्य द्रव नहीं गुजर सकते। अप्रवेश्य शैल दो प्रकार के हो सकते हैं :- सरंध्र शैल जैसे मृत्तिका अथवा असरंध्र शैल जैसे कोई संहत ग्रेनाइट। प्रथम स्थिति में छिद्र इतने छोटे होते हैं कि उनमें से पानी अतिमंद केशिका-विसर्पण के अतिरिक्त आर-पार गुजर नहीं सकता। पारगम्यता की दृष्टी से यद्यपि छिद्र आवश्यक हैं परन्तु वे काफी बड़े साइज के और परस्पर सम्बद्ध होने चाहिएँ ताकि द्रवों को संचलन के लिए मुक्त और अविच्छिन्न मार्ग मिल सके।
अन्य स्रोतों से
भूपर्पटी में पाए जाने वाले एक प्रकार के शैल, जिनमें वर्षा का जल मुक्तरूप से प्रवेश नहीं कर सकता। ये संरंध्री (जैसे मृत्तिका) अथवा असंरंध्री (जैसे अविदरित ग्रैनाइट) भी हो सकते हैं।