हमें याद रखना होगा देश में इंदौर में प्रसारित जल सबसे महंगा है। इंदौर वासियों को घरों तक पानी पहुंचाने से सरकार को जितना खर्च करना पड़ता है उतना शायद देश के किसी शहर में नहीं होता। नल न आने पर सड़क पार के बोरिंग से एक बाल्टी पानी लाना आपको महंगा लगता है, तब फिर जलूद (नर्मदा) से इंदौर तक एक बाल्टी पानी लाने में आपके क्या हाल होंगे? कितना छलकेगा पानी? असंभव है ना यह तो फिर जमूद से इंदौर तक की यात्रा करते पानी का मोल पहचानना होगा।डग-डग नीर के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध मालवा आए दिन सूखे की चपेट में होता है। मरुस्थल होते जा रहे इस पठार पर पानी की कमी भयावह संकेत दे रही है। पानी की यह संकट हमें ही झेलना है, इसलिए जरूरी है बूंद-बूंद पानी के महत्व को महसूस किया जाए।
इंदौर मालवा का सबसे बड़ा शहर है। पर इतिहास साक्षी है कि यह कोई बहुत पुराना नगर नहीं है। 1715 के आसपास यह क्षेत्र ओंकारेश्वर से उज्जैन के मध्य यात्रा का एक खुशनुमा पड़ाव हुआ था। आज यह महानगर में तब्दील होता एक शहर है, जो मुम्बई का स्वरूप लेता जा रहा है। जमीन का यह टुकड़ा बाजीराव पेशवा ने मल्हारराव होल्कर को 1733 में पुरस्कार के रूप में दिया था। होल्करों की राजधानी यह सन् 1818 में ही बना। इसके नगर नियोजन की योजना सन् 1918 में सर पेट्रिकगेडेस ने बनाई, लेकिन इसकी विकास यात्रा 1818 में नगर-पालिका, 1878 में रेलवे, 1906 में बिजली और 1907 में टेलीफोन के साथ शुरू हो आगे बढ़ती गयी। किसी महानगर की जरूरतों में पानी भी महत्वपूर्ण होता है सर्वप्रथम नगर में व्यवस्थित जल प्रदाय की सुविधा 1860 में ही तुकोजीराव (प्रथम) के जमाने में की गई और शहर सर्वसुविधायुक्त आधुनिकीकरण की तरफ बढ़ता गया। सन् 1905 तक नगर को पानी सिरपुर, पिपल्यापाला, तथा लिम्बोदी तालाब से मिलता रहा। 1921 में बिलावली तालाब जुड़ा, लेकिन पानी बगैर साफ किए दिया जाता था।
कच्चा पानी कैसे साफ हो? कच्चे पानी को निथारने की व्यवस्था लाबरिया भेरु क्षेत्र में लकड़ी के पीठों के पास नहर भण्डारा क्षेत्र में थी । सन् 1925-26 के भयंकर सूखे ने इस व्यवस्था को चरमराकर रख दिया क्योंकि इतनी सुनियोजित व्यवस्था के बावजूद तब सवा लाख की आबादी को पानी की किल्लत होने लगी और 1939 में यशवंत सागर योजना सामने आई। इस योजना से शहर को प्रतिदिन 45 लाख गैलन पानी प्रदाय हो सका। 1965-66 में फिर शहर में जल संकट गहराया क्योंकि नगर की जनसंख्या 4 लाख पार करने लगी थी। विकल्प के रूप में ‘नर्मदा जल योजना’ ने आकार लिया। सर्वे स्वीकृति एवं योजना निर्माण एक लम्बी प्रक्रिया थी जिसके चलते 31 जनवरी 1978 को माँ नर्मदा का पवित्र जल इंदौर की धरती पर उतरा। यह एक ऐसा विषय था जिसमें पानी को किल्लत दूर होने के साथ-साथ नर्मदा जल की पवित्रता मुख्य थी। एक और महत्वपूर्ण घटना है 25 अप्रैल 1990 को रेल से नर्मदा का जल इंदौर से ढोया गया था। 1991 से पूरा जल 380 लाख गैलन प्रतिदिन इंदौर को प्राप्त होने लगा।
इंदौर मालवा का प्रमुख औद्योगिक शहर के इतिहास पर एक नजर डालते हैं, तो नर्मदा जल के नगर प्रवेश पर प्रसन्नता होती है लगता है शहर में पानी की मात्रा में बढ़ोत्री होती गई है। पानी होगा तभी तो वितरण होगा पर यह वितरण कितना कठिन है यह जानना बेहद जरूरी है। 31 मई 1991 से यशवंत सागर ने व्यवस्था का साथ छोड़ दिया और शहर केवल एक समय पानी पा कर अपना काम चला रहा है। केवल नर्मदा के जल पर निर्भरता ने यह सोचने को बाध्य किया है यह व्यवस्था कितनी और कैसी होगी। करोड़ो रुपये व्यय होते हैं इस व्यवस्था को बनाए रखने में। कितना महंगा है, यह बूंद-बूंद जल? क्या इसके अपव्यय से होने वाली हानि पर सोचते है हम? सरकार आप तक पानी पहुंचाती रह सकती है। पर नागरिकों का सहयोग ही अपव्यय को रोक सकता है। हमें समझना होगा कि पानी की बचत ही पानी की उपलब्धता है। एक कपड़ा पूरी वाशिंग मशीन या एक बाल्टी पानी में धोना? बगैर टोटी वाले नल? टपकते नल? भरी बाल्टी को ढोल देना? हम महिलाओं को सोचना चाहिए कि हम तो हर कार्य को पाप और पुण्य से जोड़ती हैं, तो फिर व्यर्थ निरर्थक बहाव पानी का? हां यदि कहूँ कि पानी की सच्चे मायने में कद्र करना ही पुण्य है और अनावश्यक अपव्यय पाप।
हमें याद रखना होगा देश में इंदौर में प्रसारित जल सबसे महंगा है। इंदौर वासियों को घरों तक पानी पहुंचाने से सरकार को जितना खर्च करना पड़ता है उतना शायद देश के किसी शहर में नहीं होता। नल न आने पर सड़क पार के बोरिंग से एक बाल्टी पानी लाना आपको महंगा लगता है, तब फिर जलूद (नर्मदा) से इंदौर तक एक बाल्टी पानी लाने में आपके क्या हाल होंगे? कितना छलकेगा पानी? असंभव है ना यह तो फिर जमूद से इंदौर तक की यात्रा करते पानी का मोल पहचानना होगा। आइए एक छोटा सा संकल्प ले पानी को हम बचायेगें, जलसंकट से मुक्ति पायेंगे।
ये बूंदें मोती तुल्य है – इन्हें संभालिए...
लेखिका डॉ. स्वाति तिवारी काफी लंबे अर्से से लेखन। आकाशवाणी व दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण। पटकथा लेखन, परिवार परामर्श केन्द्रों पर आधारित लघु फिल्म निर्माण। तीन कहानी संग्रह का प्रकाशन। इंदौर लेखिका संघ की संस्थापक अध्यक्ष।