इंग्लैंड टेम्स को जिंदा कर सकता है तो हम यमुना को क्यों नहीं!

Submitted by Hindi on Mon, 03/11/2013 - 15:47
1974 में वाटर पॉल्यूशन कंट्रोल एक्ट बना था जिसके तहत नदी में अशोधित व अर्धशोधित सीवेज या औद्योगिक पानी डालना गैर-कानूनी है। लेकिन देश की राजधानी में ही खुल्लमखुल्ला इसे नदी में डाला जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि यमुना में हथिनी कुंड से इटावा तक 10 क्यूमेक्स (घन मीटर प्रति सेकंड) जल लगातार बहना चाहिए लेकिन उसका ध्यान नहीं रखा जाता। दिल्ली में यमुना के मैला होने की सबसे बड़ी वजह है यहां के छोटे-बड़े 22 नालों का यमुना में मिलना और वजीराबाद से आगे नाम मात्र के लिए भी ताज़ा पानी का न बहना। जानकारों का मानना है कि यमुना को साफ करने के लिए लंदन की टेम्स नदी प्रोजेक्ट के कुछ सबक लिए जा सकते हैं। हालांकि यमुना और टेम्स दोनों नदियों में कई बड़ी असमानताएं हैं लेकिन टेम्स की तर्ज पर यमुना में सीवर के नालों को रोककर इसकी सेहत में सुधार किया जा सकता है। यमुना की आज जो दशा है - बुरी तरह मैली और जैविक रूप से मृत, वही हालत 1950 के दशक में लंदन में टेम्स नदी की थी। लेकिन छह दशक बाद आज टेम्स इंग्लैंड की सबसे स्वच्छ नदियों में से एक है। अब इसमें डॉल्फिन से लेकर सी हॉर्स तक हर तरह की मछलियां नजर आ रही हैं। इस बदलाव को लाने में ब्रिटेन को करीब 824 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े हैं। अब वहां भविष्य के लिए 'सुपर सीवर' बनाने की योजना है। इस पर 5 बिलियन पाउंड (41000 करोड़ रुपए) की लागत का अनुमान है। सुपर सीवर एक बहुत मोटा पाइप होगा जिसे टेम्स नदी के नीचे-नीचे डाला जाएगा। इसके जरिए ट्रीटेड सीवर समुद्र में पहुंचेगा।

मालूम हो कि 1974 में वाटर पॉल्यूशन कंट्रोल एक्ट बना था जिसके तहत नदी में अशोधित व अर्धशोधित सीवेज या औद्योगिक पानी डालना गैर-कानूनी है। लेकिन देश की राजधानी में ही खुल्लमखुल्ला इसे नदी में डाला जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि यमुना में हथिनी कुंड से इटावा तक (जहां चंबल इसमें मिलती है) 10 क्यूमेक्स (घन मीटर प्रति सेकंड) जल लगातार बहना चाहिए लेकिन उसका ध्यान नहीं रखा जाता। टेम्स नदी ट्रस्ट के कार्यकारी निदेशक रॉबर्ट ऑट्स ने हाल ही में अपने दिल्ली दौरे के दौरान कहा कि 'यमुना की स्थिति टेम्स के बहुत अलग है इसलिए इसे केवल उसी तर्ज पर नहीं सुरक्षित किया जा सकता। केवल एक बात जो दोनों नदियों में समान हो सकती है कि इसमें सीवर का एक बूंद भी न डाला जाए। दूसरी बात यह भी है कि टेम्स पूरे वर्ष बारिश के चलते भरी रहती है जबकि यमुना केवल मानसून के समय भरती है।'

यमुना जिए अभियान के मनोज मिश्र कहते हैं कि जब यमुना में सीवर का गिरना बंद होगा तो यह भ्रम भी टूटेगा कि शहर से एक नदी गुजरती है। सीवर के न डालने से जब यमुना सूख जाएगी तो यह जरूरी हो जाएगा कि इसमें पानी डाला जाए। सीवर को टेम्स प्रोजेक्ट की तर्ज पर बाइपास किया जाए। वहां तो ट्रीटमेंट प्लांट से शोधित पानी को समुद्र में बहाया जाता है लेकिन दिल्ली में ऐसा संभव नहीं है। इसका उपाय सुझाते हुए मिश्र ने वेपकॉस नामक संस्था के एक अध्ययन का हवाला दिया। इसमें बताया गया था कि राजधानी में वजीराबाद से यमुना के समानांतर सीवर बहने के लिए एक नहर बनाना संभव है। ओखला ट्रीटमेंट प्लांट में उसका शोधन करने के बाद उस पानी को आगरा नहर में डाला जा सकता है।

यमुना की दुर्दशा केंद्र व राज्य सरकारों के साथ-साथ न्यायपालिका की असफलता भी है। अदालत में मामला चलते हुए 19 साल हो गए लेकिन यमुना की दशा में एक फीसदी का अंतर भी नहीं आया। यमुना की दशा में एक काम नेशनल यमुना कंजर्वेशन अथॉरिटी के निर्देश पर होता है जिसके चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री हैं। यह उनकी विफलता है। यह दिल्ली सरकार की भी नाकामयाबी है जब बुनियादी ढांचे की, पैसे की, तकनीकी व जानकारी की कमी नहीं है तो फिर स्थिति क्यों नहीं बदलती। दरअसल इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए।
हिमांशु ठक्कर, नदी विशेषज्ञ

हम नदी की सोच को भूल गए हैं। हम उसे पानी के एक स्रोत या रियल एस्टेट की तरह मानते हैं। हम जब तक नदी के अस्तित्व को शहर की सोच के साथ नहीं जोड़ेंगे, सरकार व समाज यह नहीं समझेगा कि जीवन में नदी का महत्व कितना है तब तक बदलाव नहीं आ सकता।
रवि अग्रवाल, टॉक्सिक लिंक के निदेशक