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दैनिक भास्कर (ईपेपर), 09 मार्च 2013

यमुना से जुड़ी सरकारी संस्थाओं में से अपर यमुना रिवर बोर्ड नामक संस्था का ज़िम्मा केवल यह है कि विभिन्न राज्यों के बीच तय करार के मुताबिक ही जल का बँटवारा हो। इस बोर्ड की भूमिका महज मध्यस्थ की तरह है लेकिन यह किसी राज्य को आदेश देने की स्थिति में नहीं है। यमुना स्टैंडिंग कमेटी का काम केवल यह देखना है कि बाढ़ क्षेत्र में कोई भी निर्माण न हो और यदि हो तो वह सुरक्षित हो लेकिन यदि कोई कमेटी की बात नहीं सुनता तो ये कुछ नहीं कर सकती। दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन (डीयूएसी) केवल परामर्श देने तक सीमित है हालांकि उसने स्वत: संज्ञान लेकर यमुना किनारे बने मिलेनियम डिपो हटाने के लिए डीडीए व डीटीसी को निर्देश दिए लेकिन दोनों ही एजेंसियों ने डीयूएसी का ही मखौल बनाया। डिपो आज भी अपनी जगह है। सेंट्रल ग्राउंड वाटर अथॉरिटी ने यमुना बाढ़ क्षेत्र को सुरक्षित घोषित कर रखा है। अथॉरिटी का ज़िम्मा यह देखना है कि यमुना बाढ़ क्षेत्र में कोई पानी निकालकर उसका व्यावसायिक इस्तेमाल न करे। एक एजेंसी का नाम है वाटर क्वालिटी असेसमेंट अथॉरिटी जिसके बारे में पब्लिक डोमेन में कुछ पता ही नहीं है कि उसके पास काम क्या है? सीपीसीबी के मानक तो नजर भी आते हैं लेकिन इस अथॉरिटी के किसी मानक के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
मालूम हो कि संविधान के सूची- 1 में एंट्री नंबर 56 के मुताबिक बहुराज्यीय नदियों के प्रबंधन का ज़िम्मा केंद्र का है। लेकिन इस एंट्री के तहत कोई कानून नहीं बना है, इसलिए केंद्र किसी भी नदी के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी नहीं लेता। जल एवं पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड व अमेरिका में कई नदियों के लिए केंद्रीय एजेंसियाँ हैं। यूरोप में डेन्यूब नामक नदी सात देशों से गुजरती है उसके प्रदूषण में सुधार के लिए वहां इंटरनेशनल डेन्यूब कमीशन बना जिसके फैसले सातों देशों को मान्य हैं और नदी की हालत में सुधार है। उसी तर्ज पर यमुना के लिए भी एक कमीशन बनाए जाने की जरूरत है।