नदियों- झीलों की पहचान पानी से है। नदियों को देखें तो कुछ नदियाँ, सदानीरा हैं, जिनमें हमेशा पानी रहता है,कुछ ऐसी हैं, जिनमें किसी मौसम विशेष में पानी आता है। गंगा-यमुना जैसी नदियाँ सदानीरा हैं, थोड़ी-बहुत घट-बढ़ के साथ उनमें पानी का ऐसा अकाल नहीं पड़ता कि लोग त्राहि-त्राहि करने लगें। लेकिन अब ये हालात बदलते दिख रहे हैं।
इधर यमुना सूख रही है, जिससे दिल्ली और हरियाणा में जल संकट पैदा हो रहा है। उधर, निचले इलाकों में गंगा का पानी भी तट छोड़ गया है। बनारस के घाट गंगा का प्रवाह सिकुड़ जाने के कारण सूने नजर आने लगे हैं। यमुना का जल संकट देश की राजधानी के अलावा हरियाणा और यूपी के लिये भी दिक्कतें पैदा करने वाला है।
हाल में ( 2 मई, 2018) हालात ये हुए कि हथनी कुण्ड बैराज से यमुना का जल-स्तर घटकर मात्र 1348 क्यूसेक रह गया, जिसके चलते उत्तर प्रदेश को पानी की सप्लाई बन्द करनी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से दिल्ली को 352 क्यूसेक पानी की सप्लाई यमुना से की जा रही है और दिल्ली इसकी मात्रा लगातार बढ़ाने की माँग करता रहा है। पर समस्या यह है कि जिस हरियाण से उसे यमुना का पानी मिलना चाहिये, वह खुद संकट में है।
यमुना में पानी की कमी के चलते हरियाणा में सभी 8 हाइडल प्रोजेक्ट यूनिटें बन्द करनी पड़ी है। हरियाणा के कई जिलों की खेती बाड़ी भी इससे प्रभावित हो रही है और किसानो को अपनी फसल बचाने के लाले पड़ रहे हैं। यूपी में मोक्षदायिनी गंगा का भी ऐसा ही बुरा हाल है। हाल ही में केन्द्रीय जल आयोग की बनारस इकाई ने गंगा का जल-स्तर 58.07 मीटर दर्ज किया जो वर्ष 2017 में 29 जून को दर्ज किये गये न्यूनतम जलस्तर से 20 सेंटीमीटर कम है।
गंगा में पानी की कमी की खबरों के प्रकाश में आने के बाद बनारस के जिलाधिकारी ने स्थिति का जायजा लिया और उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र भेजकर कानपुर व नरौरा बैराज से अतिरिक्त जल छोड़ने का अनुरोध किया गया है। बनारस (काशी) के धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व के मद्देनजर ही गंगा के सतत प्रवाह की जरूरत नहीं है, बल्कि इस इलाके के पेयजल संकट को दूर करने में भी उसकी भूमिका है। माना जा रहा है कि अगर गंगा के जल-स्तर को बढ़ाया नहीं गया, तो लोगों के सामने प्यास से मरने के हालात बन जाएँगे।
अहम सवाल है कि आखिर गंगा-यमुना का पानी कहाँ जा रहा है? आम तौर पर गर्मियों में जब पर्वतों की बर्फ पिघलती है तो हिमालय से फूटने वाली गंगा-यमुना आदि नदियों का जल-स्तर सर्दियों की तुलना में बढ़ जाता है। लेकिन अब टिहरी जैसे विशालकाय बाँधों में यह पानी रोका जाने लगा है ताकि उससे बिजली बनाई जा सके और किसी आपातकालीन जरूरत के लिये उसे सहेजा जा सके। यह पानी मानसून आने पर ही छोड़ा जाता है। ऐसे में गर्मियो में ये सदानीरा नदियाँ भी अब सूखी नजर आने लगी हैं। एक समस्या लीकेज की है।
हरियाणा से दिल्ली को जो पानी कच्ची नहर के जरिये मिलता है, लेकिन नहर में कायम दरारों की वजह से पानी की बेतहाशा बर्बादी होती है। हरियाणा हर रोज कच्ची मुनक नहर से 330 क्यूसेक पानी छोड़ता है लेकिन इसमें से प्रतिदिन करीब 150 क्यूसेक पानी बर्बाद हो जाता है। इससे दिल्ली को महज 170 से 180 क्यूसेक पानी ही मिल पाता है।
दिल्ली हाई कोर्ट इस मुद्दे को गम्भीरता से लेकर दोनों राज्यों की सरकारों से मुनक नहर की अविलम्ब मरम्मत करने का आदेश दे चुका है दिल्ली जल बोर्ड भी इसके लिये समझौते के तहत 28.16 करोड़ रुपए का भुगतान कर चुका है, लेकिन नहर की मरम्मत नहीं कराई गई। पानी की बर्बादी भी एक मसला है।
महाराष्ट्र में 2013 में क्रिकेट के आईपीएल के आयोजन के वक्त क्रिकेट मैदानों को हरा भरा रखने के लिये लाखों लीटर पानी के दुरुपयोग का मुद्दा उठा था, जो इस साल भी चेन्नई को इसके मैचों के आयोजन से दूर करने की अहम वजह बन गया। भविष्य में ऐसे संकट न हों, इसके लिये जरूरी है कि देश के हर गाँव और शहर के हर घर में पानी के संरक्षण के लिये वहाँ की परिस्थितियों के अनुसार जल संग्रहण का काम होना चाहिये। भूमिगत जल को वर्षाजल से रिचार्ज करने की जरूरत है ताकि नदियों पर निर्भरता घटे।
वर्षा का पानी तत्काल बहने से रोका जाए और उसे प्राकृतिक जल चक्र से जोड़ा जा सके। तालाबों व कुओं को वर्षा जल से जीवित करने और उन्हें लगातार रिचार्ज करते रहने की भी जरूरत है। शहरों की पानी की जरूरत को आस-पास की नदियों के बजाय जल संरक्षण की उन व्यवस्थाओं से जोड़ने की जरूरत है, जो वर्षा जल का संग्रह करके पूरे साल पानी की सप्लाई दे सकती हैं।
Source
राष्ट्रीय सहारा, 5 मई 2018