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बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय झांसी से भूगोल विषय में पी.एच.डी. की उपाधि हेतु प्रस्तुत शोध प्रबंध - 2008-09
भूमि उपयोग एवं जल संसाधन एक दूसरे के पूरक हैं, अत: जल संसाधन की उपलब्धता के अध्ययन के संबंध में भूमि उपयोग का अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है। भूमि उपयोग के प्रतिरूप का प्रभाव धरातलीय जल के पुनर्भरण पर पड़ता है। वन, झाड़ियों, उद्यानों, फसलों एवं घास के मैदानों द्वारा भूमि आच्छादित रहती है। भूमिगत जल के रिसाव को प्रभावित करने में वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। भूमि उपयोग का अध्ययन हम निम्न बिंदुओं में करते हैं।
भूमि उपयोग प्रतिरूप :
भूमि उपयोग भौगोलिक अध्ययन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। वास्तविक रूप में भूमि उपयोग शब्द स्वत: वर्णात्मक है। परंतु प्रयोग पारस्परिक शब्द उपयोग तथा भूमि संसाधन उपयोग के अर्थ की व्याख्या में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। फॉक्स के अनुसार - भूमि उपयोग, के अंतर्गत भू-भाग प्राकृत प्रदत्त विशेषताओं के अनुरूप रहता है। इस प्रकार यदि कोई भू-भाग प्राकृत मानवीय प्रभाव से वंचित है अथवा उसका उपयोग प्राकृतिक रूप से हो रहा है, तो उस भाग के लिये ‘‘भूमि प्रयोग’’ शब्द का प्रयोग उचित होगा। यदि किसी भू-भाग पर मानवीय छाप अंकित है या मानव अपनी आवश्यकता के अनुरूप उपयोग कर रहा है तो उस भू-भाग के लिये भूमि उपयोग शब्द का योग अधिक उचित होगा। इस प्रकार मानव के उपयोग के साथ भूमि संसाधन इकाई बन जाती है। जब भू-भाग का प्राकृतिक रूप लुप्त हो जाता हैं तथा मानवीय क्रियाओं का योगदान महत्त्वपूर्ण हो जाता है, तो उसे भूमि उपयोग कहते हैं। किसी स्थान की भूमि जल संसाधन उपयोग को अनेक प्रकार से प्रभावित करती है, क्योंकि जिन स्थानों की भूमि समतल होती हैं, पेड़-पौधे अधिक होते हैं, जल का अधिक पुनर्भरण होता है। जबकि इसके विपरीत क्षेत्र जहाँ पर वर्षा के बाद पानी बहकर नदियों में चला जाता है, और जल स्तर काफी नीचे चला जाता है। अत: जल संसाधन की उपलब्धता के अध्ययन में भूमि उपयोग प्रारूप का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
इटावा जनपद का भूमि नियोजन करने से पूर्व भूमि का वर्गीकरण करना अति आवश्यक है। जनपद में भूमि का जो विस्तृत उपयोग हुआ है, उसमें प्रथम कृषि, द्वितीय वन एवं कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि तथा वर्तमान परती व ऊसर अथवा कृषि के आयोग्य भूमि का भी स्थान प्रमुख है। उन्हीं के आधार पर तालिका संख्या 4.1 के अनुसार भूमि उपयोग का सामान्य वर्गीकरण प्रस्तुत किया गया है। भूमि उपयोग का वितरण तालिका संख्या 4.1 में दर्शाया गया है।
भूमि उपयोग का उपरोक्त वर्गीकरण भारत सरकार द्वारा स्वीकृत वर्गीकरण के अनुसार है। यह वर्गीकरण मूलत: कृषि उन्मुख है तथा कृषि भूमि के उपयोग से संबंधित है। इस वर्गीकरण में कृषि के लिये उपलब्ध, अनुपलब्ध भूमियों का विवरण दिया गया है।
इटावा जनपद में भूमि उपयोग :
किसी भी प्रदेश में कृषि भूमि उपयोग का प्रतिरूप अनेक भौतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और आर्थिक कारणों से प्रभावित रहता है। इसके निर्धारण में ऐतिहासिक और राजनैतिक कारण भी महत्त्वपूर्ण होते हैं।
(1) कुल भौगोलिक क्षेत्र :
इटावा जनपद का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 245380 हेक्टेयर है। इस भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 59.89 क्षेत्र शुद्ध बोया गया क्षेत्र के अंतर्गत, 14.69 प्रतिशत क्षेत्र वनों के अंतर्गत, 8.44 प्रतिशत क्षेत्र कृषि के अतिरिक्त - अन्य उपयोग की भूमि, 6.27, वर्तमान परती, 4.84 प्रतिशत ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमि, 2.62 प्रतिशत कृषि योग्य बंजर भूमि, 2.11 प्रतिशत, अन्य परती 0.89 प्रतिशत, उद्यानों, बागों, वृक्षों एवं झाड़ियों का क्षेत्रफल 0.26 प्रतिशत क्षेत्र चारागाह के अंतर्गत आता है।
(2) वनों के अंतर्गत क्षेत्रफल :
वन पारिस्थितिकी संतुलन के लिये अत्यंत आवश्यक है और क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वनों के अभाव में वर्षा तथा भौमिक निस्यंदन में वृद्धि नहीं हो सकती। यद्यपि वन अधिक मात्रा में जल का उपयोग करते हैं तथापि वे अपनी पत्तीदार तथा ह्यूमस संपन्न पृष्ठीय आवरण के कारण जल के अंत:श्रवण की दर में भी वृद्धि करते हैं, और अंत्तोगत्वा वर्षा विहीन अवधि में धाराओं को जल प्रदान करते हैं। भौमिक जल आपूर्ति के संबंध में वन आवरण के प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। भौमिक जल का स्तर वनविहीन क्षेत्र में निम्न होना सुनिश्चित है, और घरेलू आवश्यकता एवं सिंचाई के लिये जल की प्राप्ति कठिनाई से होती है।
इटावा जनपद में वनों के अंतर्गत 36054 हेक्टेयर क्षेत्र है। जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 14.69 प्रतिशत है। पर्यावरण तथा देश के औद्योगिक उपयोग हेतु और विस्तार के लिये आदर्श अवस्थाओं में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 30 प्रतिशत विस्तार वनों के अंतर्गत होना चाहिए। जबकि जनपद में वन क्षेत्र केवल 14.69 प्रतिशत है। इटावा जनपद में सभी विकासखंडों में वनों का वितरण समान नहीं है। वनों की इस असमानता को मानचित्र संख्या 4.1 तथा तालिका संख्या 4.2 में दर्शाया गया है।
(अ) उच्च अनुपात के क्षेत्र (20 प्रतिशत से अधिक) -
इस वर्ग के अंतर्गत दो विकासखंड चकरनगर एवं बढ़पुरा आते हैं। जिसमें क्रमश: विकासखंड के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 32.4 एवं 23.14 प्रतिशत क्षेत्र वनों के अंतर्गत आता है। यह क्षेत्र जनपद के दक्षिण एवं दक्षिण-पश्चिम भाग में अवस्थित है। यमुना एवं चंबल यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं। परिणामत: बीहड़ का अधिक विकास हुआ है।
(ब) मध्यम अनुपात के क्षेत्र (10 से 20 प्रतिशत) -
इस वर्ग के अंतर्गत जनपद का एक मात्र विकासखंड महेवा, जो जनपद के लगभग दक्षिण पूर्व दिशा में अवस्थित है, सम्मिलित किया गया है। यहाँ पर वनों का क्षेत्रफल विकासखंड के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 10.32 प्रतिशत है।
(स) निम्न अनुपात के क्षेत्र (10 प्रतिशत से कम) -
इस वर्ग के अंतर्गत जनपद के 5 विकासखंड आते हैं। इन विकासखंडों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल में वनों का प्रतिशत, वनों की भौगोलिक स्थिति निम्न प्रकार है - ताखा 9.75 प्रतिशत, जसवंतनगर 8.36 प्रतिशत, बसरेहर 8.06 प्रतिशत, सैफई 8.02 प्रतिशत एवं भर्थना विकासखंड में 6.39 प्रतिशत वन क्षेत्र है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जनपद में वन क्षेत्र कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का केवल 14.64 प्रतिशत है। साथ ही हम देखते हैं कि जनपद में उत्तर से दक्षिण पश्चिम की ओर जाने पर वन क्षेत्र के विस्तार का कारण कृषि योग्य क्षेत्र में कमी एवं कृषि के अयोग्य भूमि में वृद्धि होना है। यहाँ यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है कि - जनपद में दक्षिण से उत्तर की ओर जाने पर वर्षा में क्रमिक वृद्धि होती जाती है।
(3) कृषि योग्य बंजर भूमि -
कृषि योग्य बंजर भूमि वह है जिस पर प्रतिकूल दशाओं के कारण कृषि नहीं की जा सकती है और जो भूमि 5 वर्षों से अधिक समय से परती रही हो, उसे इस श्रेणी में सम्मिलित किया जाता है। बंजर भूमि का जल संसाधन के पुनर्भरण पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है क्योंकि पेड़-पौधे जल को अवशोषित करते हैं एवं पानी के बहाव को कम कर देते हैं। इसके विपरीत बंजर भूमि में पानी बहकर सीधा नदियों में चला जाता है। अत: जल संसाधन की उपलब्धता पर बंजर भूमि का अधिक प्रभाव पड़ता है। फलत: इसका अध्ययन आवश्यक है। अध्ययन क्षेत्र में कृषि योग्य बंजर भूमि के अंतर्गत क्षेत्रफल का वितरण तालिका संख्या 4.4 में प्रदर्शित किया गया है।
इटावा जनपद में कृषि योग्य बंजर भूमि के अंतर्गत क्षेत्र का मानचित्र संख्या 4.2 में दर्शाया गया है।
(अ) उच्च अनुपात के क्षेत्र (4 प्रतिशत से अधिक) -
इस वर्ग के अंतर्गत जनपद का एक मात्र विकासखंड ‘ताखा’ आता है। इस विकासखंड में कृषि योग्य बंजर भूमि 4.75 प्रतिशत है। यह विकासखंड जनपद के उत्तर पूर्व में स्थित है।
(ब) मध्यम अनुपात के क्षेत्र (2-4 के मध्य)
इस वर्ग के अंतर्गत जनपद के चार विकासखंडों को सम्मिलित किया गया है। जिसमें बढ़पुरा विकासखंड 3.40 प्रतिशत, भर्थना विकासखंड 3.13 प्रतिशत, बसरेहर 2.89 प्रतिशत तथा जसवंतनगर विकासखंड में 2.46 प्रतिशत कृषि योग्य बंजर भूमि है। जसवंतनगर एवं बढ़पुरा विकासखंड के अंतर्गत कुल भौगोलिक क्षेत्रफल की 11.88 प्रतिशत भूमि कृषि योग्य बंजर भूमि है।
(स) निम्न अनुपात के क्षेत्र (2 प्रतिशत से कम) -
इस वर्ग के अंतर्गत जनपद के निम्न तीन विकासखंडों को सम्मिलित किया गया है। जो सैफई, महेवा एवं चकरनगर हैं। जिनमें क्रमश: 1.79, 1.34 एवं 1.32 प्रतिशत कृषि योग्य बंजर भूमि है। बीहड़ क्षेत्र का अधिक विस्तार होने के कारण इस वर्ग के विकासखंडों में कृषि योग्य बंजर भूमि नगण्य है।उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कृषि योग्य बंजर भूमि का सभी विकासखंडों का सम्मिलित औसत 2.72 प्रतिशत है। जनपद के उत्तर-पूर्वी भाग में कृषि योग्य बंजर भूमि कम है, उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर जाने पर इसका प्रतिशत बढ़ता है। इसका मुख्य कारण दक्षिण भाग में विषम धरातल एवं सिंचाई के साधनों का सीमित होना है।
(4) परती भूमि -
परती भूमि के अंतर्गत वह भूमि सम्मिलित की गयी है जो कभी कृषि के अंतर्गत थी। परंतु किसी कारणवश अब वह कृषि के उपयोग में नहीं लाई जाती है। इस प्रकार की भूमि को परती भूमि में सम्मिलित किया गया है। पुरानी परती भूमि क्षेत्र भौमिक जल में वर्तमान परती भूमि की अपेक्षा तुलनात्मक रूप से समृद्ध होता है। अत: इसका भी अध्ययन आवश्यक हो जाता है।(1) वर्तमान परती भूमि -
वर्तमान परती भूमि में वह भूमि सम्मिलित की जाती है, जो छ: माह से लेकर दो वर्ष तक कृषि कार्य में नहीं ली गई है। वर्तमान भूमि का विकासखंड वार वितरण इस तालिका संख्या 4.6 में दर्शाया जा रहा है।
जनपद इटावा में वर्तमान परती भूमि 20221.64 हेक्टेयर अर्थात जनपद के कुल क्षेत्रफल का 8.24 प्रतिशत है। जनपद की वर्तमान परती भूमि के क्षेत्र को प्रतिशत के आधार पर निम्न संवर्गों में बाँटा गया है जो मानचित्र सं. 4.3 में प्रदर्शित किया गया है-
(अ) उच्च अनुपात के क्षेत्र (10 प्रतिशत से अधिक) -
इस संवर्ग में जनपद के दो विकासखंड बढ़पुरा व सैफई आते हैं, जो जनपद के उत्तर एवं दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं। संबंधित विकासखंड के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का क्रमश: 18.11 एवं 11.58 प्रतिशत क्षेत्र वर्तमान परती भूमि के अंतर्गत आता है।
(ब) मध्यम अनुपात के क्षेत्र (5 से 10 प्रतिशत के मध्य) -
इस संवर्ग के अंतर्गत जनपद के जिन 4 विकासखंडों को शामिल किया गया है, वे भर्थना, ताखा, बसरेहर एवं जसवंतनगर हैं। जिनमें वर्तमान परती भूमि क्रमश: 7.34, 7.07, 5.86 एवं 5.41 प्रतिशत है। भर्थना, ताखा एवं बसरेहर जनपद के उत्तर-पूर्वी भाग पर स्थित हैं जो लगभग मैदानी हैं जबकि जसवंतनगर जनपद के उत्तरी-पश्चिमी भाग में स्थित है।
(स) निम्न अनुपात के क्षेत्र (5 प्रतिशत से कम) -
इस संवर्ग के अंतर्गत जनपद के दो विकासखंड चकरनगर एवं महेवा आते हैं। जिनमें क्रमश: कुल क्षेत्रफल का 4.71 प्रतिशत एवं 4.56 प्रतिश्त क्षेत्र वर्तमान परती भूमि के अंतर्गत आता है। चकरनगर एवं महेवा विकासखंडों में चंबल, यमुना एवं उनकी सहायक नदियों ने बीहड़ भू-भाग का निर्माण किया है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वर्तमान परती भूमि के अंतर्गत जनपद में लगभग 47.92 प्रतिशत क्षेत्र विकासखंड उच्च अनुपात के अंतर्गत 16.63 क्षेत्र आता है। किसानों की दयनीय स्थिति के कारण भूमि कभी-कभी एक दो साल तक परती रह जाती है।
(2) अन्य परती भूमि -
अन्य परती भूमि के अंतर्गत वह भूमि सम्मिलित की जाती है जो पिछले 8-10 वर्ष में कृषि कार्य से उपयोग नहीं की गई।अन्य परती बनने के कई कारक हैं। जिनमें यह माना गया है कि भूमि की उर्वरा शक्ति एक निश्चित सीमा के उपरांत कम होने लगती है। इसलिये पर्याप्त क्षेत्रफल एवं उर्वरा शक्ति को पुन: प्राप्त करने के उद्देश्य से किसान भूमि पर कृषि करना बंद कर देता है परिणामत: घास फूस आदि से भूमि फिर से अपनी उर्वरा शक्ति प्राप्त करती है।
जनपद इटावा में अन्य परती भूमि के वितरण को तालिका सं. 4.8 के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है -
जनपद इटावा में अन्य परती भूमि के अंतर्गत 5820.32 हेक्टेयर भूमि है जो जनपद के कुल क्षेत्रफल का 2.37 प्रतिशत है। जनपद की अन्य परती भूमि को हमने तीन संवर्गों में विभाजित किया है। जिसे मानचित्र संख्या 4.4 में दर्शाया जा रहा है।
(अ) उच्च अनुपात के क्षेत्र (3 प्रतिशत से अधिक) -
इस संवर्ग के अंतर्गत जनपद का एक मात्र विकासखंड बसरेहर आता है जो जनपद के उत्तरी भाग में अवस्थित है। समतल क्षेत्र होने के कारण उत्पादन अधिक होता है। इस विकासखंड के अंतर्गत जनपद के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 3.31 प्रतिशत भाग अन्य परती के अंतर्गत रखा गया है।
(ब) मध्य अनुपात के क्षेत्र (2 से 3 प्रतिशत के मध्य) -
इस क्षेत्र के अंतर्गत जनपद के तीन विकासखंड ताखा, भर्थना एवं चकरनगर आते हैं। जिनमें कुल अन्य परती भूमि का क्रमश: 2.78, 2.36 एवं 2.01 प्रतिशत क्षेत्र आता है। इसमें अन्य परती भूमि बनने के मुख्य कारण अनउपजाऊ कृषि क्षेत्र एवं चकरनगर विकासखंड में ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृति के विकास का परिणाम है।
(स) निम्न अनुपात के क्षेत्र (2 से कम) -
निम्न परती भूमि के क्षेत्र के अंतर्गत जनपद के पश्चिम भाग का आधे से अधिक क्षेत्र आता है। जबकि एक विकासखंड जनपद के पूर्वी भाग में स्थित है। इन विकासखंडों में सैफई, बढ़पुरा महेवा एवं जसवंतनगर है, जो जनपद में अन्य परती भूमि के क्षेत्रफल का क्रमश: 1.98, 1.78, 1.45 एवं 1.42 प्रतिशत क्षेत्र रखते हैं।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अन्य परती भूमि के क्षेत्रफल के अंतर्गत उच्च अनुपात के क्षेत्रफल का 16.23 प्रतिशत क्षेत्र, मध्यम अनुपात के अंतर्गत 38.35 प्रतिशत क्षेत्र एवं निम्न अनुपात के अंतर्गत 45.42 प्रतिशत क्षेत्र आता है।
(5) ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमि -
ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमि उस भू-भाग को कहते हैं जिस पर सामान्यत: कृषि न की जा सके। यहाँ तक कि उस पर चारागाह व वनों का विस्तार भी नहीं किया जा सकता है। लेकिन बहुत अधिक खर्च करने पर अत्यधिक प्रयास द्वारा कृषि की जा सकती है। जैसे पर्वतीय भागों के चट्टानी ढाल, अत्यधिक अपरदित भूमि बोल्डर युक्त रेतीली भूमि अत्यधिक कटी-फटी भूमि आदि। ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमि वितरण को निम्न तालिका में प्रस्तुत किया जा रहा है।
जनपद इटावा में ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमि के अंतर्गत 11589.33 हेक्टेयर भूमि है जो जनपद के कुल क्षेत्रफल का 4.72 प्रतिशत है। जनपद में ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमि को विकासखंड वार निम्न संवर्ग श्रेणी में प्रदर्शित किया गया है।
यद्यपि ऊसर एवं कृषि अयोग्य भूमि धरातलीय जल के पुनर्भरण के अनुपात में वृद्धि करती है। तथापि इसका प्रभाव चट्टानी एवं पथरीली पट्टियों में घटता जाता है। यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है।
तालिका संख्या 4.11 एवं मानचित्र संख्या से स्पष्ट है कि जनपद में सबसे अधिक ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमि विकासखंड बढ़पुरा में है। यह विकासखंड जनपद के दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित है। जिसका अधिकांश भाग बीहड़ है। जिस पर कृषि कार्य करना बहुत मुश्किल है। इसमें जनपद के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 7.93 प्रतिशत क्षेत्र ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमि के अंतर्गत आता है। इसके अतिरिक्त चकरनगर विकासखंड भी जनपद के कुल क्षेत्रफल का 6.61 भाग कृषि अनुपयुक्त भूमि रखने से उच्च अनुपात संवर्ग में है।
जनपद में ताखा विकासखंड मध्यम श्रेणी के अंतर्गत आता है। जो जनपद के उत्तर-पूर्वी कोने पर स्थित है। इस विकासखंड में कुल भौगोलिक क्षेत्रफल की 4.81 प्रतिशत भूमि ऊसर एवं कृषि के अयोग्य है।
जनपद के यह पाँच विकासखंड निम्न संवर्ग के अंतर्गत आते हैं। जिनमें भर्थना, जसवंतनगर, बसरेहर, महेवा एवं सैफई विकासखंडों में कुल क्षेत्रफल की क्रमश: 3.89, 3.47, 3.12, 3.07 एवं 2.53 प्रतिशत भूमि ऊसर एवं कृषि के अयोग्य है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जनपद इटावा में कुल ऊसर एवं कृषि अयोग्य भूमि का 35.43 प्रतिशत क्षेत्र आता है। जबकि जनपद में सकल भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.84 प्रतिशत ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमि के अंतर्गत है।
(6) कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि -
वह भूमि जो अधिवासों, सड़कों, रेलवेलाइनों, नदियों, कब्रिस्तानों एवं जलाशयों आदि से घिरी रहती है, इस संवर्ग में आती है। इसके अंतर्गत जनपद में 20708.33 हेक्टेयर भूमि आती है। जो सकल भौगोलिक क्षेत्रफल का 8.44 प्रतिशत है। इस भूमि में कुछ जलाशय भी उपलब्ध हैं जो कि भौमिक जल बेसिनों के पुनर्भरण में सहयोगी हैं और प्राय: उच्च जल स्तर बनाते हैं। अध्ययन क्षेत्र में विकासखंडवार कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि को तालिका संख्या 4.12 में प्रस्तुत किया गया है।
जनपद इटावा में कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि को विकास खंड वार निम्न संवर्गों में रखा गया है।
उच्च अनुपात संवर्ग के क्षेत्र के अंतर्गत जनपद का बढ़पुरा विकासखंड आता है। जिसमें जनपद के कुल क्षेत्रफल का 10.46 प्रतिशत क्षेत्र आता है। जनपद के दक्षिण-पश्चिम भाग में महेवा, चकरनगर एवं भर्थना विकासखंड मध्यम अनुपात के क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। जो जनपद के कुल क्षेत्रफल का क्रमश: 9.54, 9.47 एवं 8.93 कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि रखते हैं। जनपद के पश्चिमी एवं उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित जसवंतनगर, सैफई, ताखा एवं बसरेहर विकासखंड निम्न अनुपात क्षेत्र वर्ग के अंतर्गत आते हैं। जो क्रमश: विकासखंड के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल की 7.63, 6.55, 6.52 एवं 6.51 प्रतिशत कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि रखते हैं।
(7) चारागाह -
चारागाह के अंतर्गत वह भूमि सम्मिलित की गयी है, जो स्थाई चाारागाह हैं। इसमें पशुचारण क्रिया संयोग होती है। पशुचारण विशेषकर चारागाहों के अतिरिक्त वनों की परती भूमि में भी होती है। गाँवों की पंचायती भूमि गाँव पंचायत जंगलों एवं ग्राम सभाओं की परती भूमि पर पशुचारण होता है। चारागाह अधिक मात्रा में जल का उपयोग करते हैं। वे अपनी पत्तीदार ह्यूमन संपन्न पृष्ठीय आवरण के कारण जल के अंत:स्रवण की दर में वृद्धि करते हैं। चारागाह तेजी से बहते हुए जल की गति कम करके मृदा अपरदन रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं, साथ ही जल स्तर पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। इस वर्गीकरण के अंतर्गत जनपद इटावा में 630.33 हेक्टेयर भूमि है। जो सकल भौगोलिक क्षेत्रफल का 0.26 प्रतिशत है। जनपद इटावा में विकासखंडवार चारागाह के अंतर्गत क्षेत्रफल तालिका संख्या 4.14 में प्रस्तुत किया गया है -
अध्ययन क्षेत्र में चारागाहों के वितरण को विकासखंड वार निम्नलिखित संवर्गों में प्रस्तुत किया गया है –
तालिका संख्या 4.15 से स्पष्ट होता है कि चारागाह के अंतर्गत सर्वाधिक भूमि जनपद के ताखा विकासखंड में 243.67 हेक्टेयर है, जो जनपद के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 0.85 प्रतिशत है। तदुपरांत जनपद के उत्तरी भाग में स्थित भर्थना, बसरेहर एवं सैफई का नंबर आता है जिनमें जनपद के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का क्रमश: 0.45, 0.43 एवं 0.31 प्रतिशत क्षेत्र चारागाह के अंतर्गत आता है। अंत में जसवंतनगर, बढ़पुरा, महेवा एवं चकरनगर विकासखंडों का स्थान आता है जिनमें अपने भौगोलिक क्षेत्रफल का 0.02 एवं 0.01 प्रतिशत भूमि चारागाह के अंतर्गत है। इस दृष्टि से अंतिम विकासखंड चकरनगर आता है, जहाँ पर किसी भी प्रकार के चारागाह उपलब्ध नहीं है।
अत: स्पष्ट है कि जनपद में चारागाह का वितरण असमान है। जनपद में जहाँ यंत्रीकरण अधिक है, वहाँ कृषि योग्य पशुओं में भारी कमी हुई है। इसके फलस्वरूप लोगों का चारागाह की ओर से ध्यान हटकर इस भूमि को भी अन्य उपयोग में लेने की ओर गया है। जबकि जनपद में जहाँ यंत्रीकरण निम्नस्तर का है। वहाँ तुलनात्मक रूप से चारागाह की भूमि अधिक है।
(8) उद्यानों बागों वृक्षों एवं झाड़ियों का क्षेत्र -
पेड़ पौधे जल संसाधन की उपलब्धता को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण घटक हैं। जब मानसून हवाएँ क्षेत्र के ऊपर से होकर गुजरती है तो पेड़-पौधे ठंडा करने का कार्य करते हैं। अर्थात वहाँ अधिक वृष्टि होती है। पेड़-पौधे होने के कारण जब वर्षा का जल धरातल पर पड़ता है तो वह जल बहाव की रफ्तार को कम कर देते हैं जिससे अधिक जल का पुनर्भरण होता है। अत: भौगोलिक जल उपलब्धता के संबंध में वन आवरण के प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
इटावा जनपद में उद्यानों, बागों वृक्षों एवं झाड़ियों के क्षेत्र के अंतर्गत 2194 हेक्टेयर भूमि है जो जनपद के सकल भौगोलिक क्षेत्रफल का 0.89 प्रतिशत है। जनपद इटावा में विकास खंडवार उद्यानों, बागों वृक्षों एवं झाड़ियों का वितरण निम्न तालिका में प्रस्तुत किया जा रहा है।
अध्ययन क्षेत्र में उद्यानों, बागों, वृक्षों एवं झाड़ियों के क्षेत्रफल को निम्न संवर्गों में रख सकते हैं –
तालिका संख्या 4.17 से स्पष्ट है कि उच्च अनुपात वर्ग में जनपद के महेवा, ताखा, सैफई एवं भर्थना विकासखंड का नाम आता है। इन विकास खंडों में सकल भौगोलिक क्षेत्रफल का क्रमश: 1.33, 1.09, 1.08 एवं 1.02 प्रतिशत उद्यानों, बागों एवं झाड़ियों के अंतर्गत आता है। मध्यम वर्ग के अंतर्गत जनपद में दो विकासखंडों को सम्मिलित किया गया है। जिनमें जसवंतनगर एवं बसरेहर का नाम आता है। जो क्रमश: सकल भौगोलिक क्षेत्रफल का 0.93 एवं 0.79 प्रतिशत भूमि पर उद्यानों, बागों, वृक्षों एवं झाड़ियों को रखते हैं, ये विकासखंड जनपद के उत्तर पश्चिम सीमा पर स्थित हैं।
निम्न संवर्ग के अंतर्गत जनपद के दो विकासखंडों- बढ़पुरा और चकरनगर को सम्मिलित किया गया है। बढ़पुरा और चकरनगर विकासखंड क्रमश: कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 0.59 एवं 0.53 प्रतिशत क्षेत्र में उद्यानों, बागों, वृक्षों एवं झाड़ियों को रखते हैं। यह विकासखंड जनपद के दक्षिण पश्चिम भाग में स्थित है, इन विकासखंडों में बागों, उद्यानों, वृक्षों की कमी का प्रमुख कारण इस क्षेत्र में जल संसाधन की कमी तथा बीहड़ी भू-भाग का विकसित हो जाना हो जाना है।
(9) शुद्ध बोया गया क्षेत्र -
फसल के शुद्ध बोये गये क्षेत्रफल से तात्पर्य वह वास्तविक क्षेत्रफल होता है, जिस पर कृषि की जाती है। व्यवहारिकता में खेतों की मेड़ों को भी निरा बोये गये क्षेत्रफल में सम्मिलित किया जाता है। फसलों एवं सिंचित क्षेत्र की प्रादेशिक भिन्नत: का प्रभाव धरातलीय जल के पुनर्भरण की दर पर पड़ता है। क्योंकि फसलों एवं सिंचाई की भिन्नता का प्रभाव भूमिगत जल के उतार-चढ़ाव में दृष्टिगोचर होता है। शुद्ध बोये गये क्षेत्रफल का प्रादेशिक वितरण मानचित्र संख्या 4.9 में दर्शाया गया है।
अध्ययन क्षेत्र में शुद्ध बोये गये क्षेत्रफल का प्रादेशिक वितरण मानचित्र संख्या 4.9 में दर्शाया गया है।
(अ) उच्च अनुपात के क्षेत्र (70 प्रतिशत से अधिक) -
इस संवर्ग के अंतर्गत एक मात्र जसवंतनगर विकासखंड आता है। जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 70.11 प्रतिशत है। यह विकासखंड जनपद के उत्तर पश्चिम दिशा में दोमट मिट्टी का क्षेत्र है।
(ब) मध्यम अनुपात के क्षेत्र (50 से 70 प्रतिशत तक) -
जनपद में मध्यम अनुपात के क्षेत्र में 5 विकासखंड सम्मिलित हैं। जिनमें बसरेहर विकासखंड में सकल भौगोलिक क्षेत्रफल का 69.00 प्रतिशत महेवा में 68.37 प्रतिशत भर्थना में, 66.49 प्रतिशत, सैफई में 66.16 प्रतिशत एवं ताखा में 62.37 प्रतिशत शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल है। सभी विकास खंड मैदानी एवं बलुई दोमट मिट्टी से युक्त है।
(स) निम्न अनुपात के क्षेत्र (50 प्रतिशत से कम) -
निरा बोये गये फसलों के क्षेत्र का न्यूनतम अनुपात बढ़पुरा एवं चकरनगर विकासखंडों में देखने को मिलता है। जहाँ कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का क्रमश: 46.63 एवं 42.57 प्रतिशत क्षेत्र आता है। बीहड़ क्षेत्र का अधिक विस्तार होने के कारण इस क्षेत्र में भी कृषि सीमित मात्रा में है।
निरा बोये गये क्षेत्र के स्थानीय वितरण के प्रतिरूपों पर भू- आकृति एवं उच्चावच का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त वन क्षेत्रों का विस्तार भी कृषि क्षेत्र को कम करता है। जलवायु की दशायें विशेषकर वर्षा की मात्रा, तीव्रता एवं नियमितता, प्राकृतिक वनस्पति और मिट्टियों के प्रकार का व्यापक प्रभाव भी कृषि पर देखा जाता है। इसके अतिरिक्त सामाजिक आर्थिक कारणों में ग्रामीण जनसंख्या का घनत्व तथा उसकी आर्थिक एवं तकनीकी क्षमता और कृषि की लाभप्रदता आदि भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।
कृषि भूमि उपयोग दक्षता :
कृषि भूमि उपयोग दक्षता कृषि भूमि उपयोग की वर्तमान दशा एवं भावी संभावनाओं को प्रदर्शित करती है। इसको निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है -
कृषि भूमि उपयोग दक्षता =शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल/समस्त कृषि भूमि = ×100
समस्त कृषित क्षेत्रफल से तात्पर्य शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल तथा समस्त परती भूमि का योग है। कृषित भूमि उपयोग दक्षता यह प्रदर्शित करती है कि समस्त उपलब्ध कृषि भूमि में से कितने प्रतिशत क्षेत्र में ये फसलें ली जाती हैं। सिंचाई साधनों का प्रभाव कृषि भूमि दक्षता पर पड़ता है। जिन क्षेत्रों में सिंचाई के साधन पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं वहाँ उनका प्रभाव कृषि भूमि दक्षता एवं धरातलीय जल के पुनर्भरण पर पड़ता है। क्योंकि फसलों एवं सिंचाई अवधि की भिन्नता का प्रभाव भूमिगत जल के उतार-चढ़ाव में दृष्टिगोचर होता है। जनपद में कृषि भूमि दक्षता का वितरण निम्नलिखित तालिका द्वारा प्रदर्शित किया जा रहा है –
तालिका संख्या 4.20 से स्पष्ट है कि जनपद इटावा में शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल 140651.01 हेक्टेयर है, जो समस्त कृषित क्षेत्रफल का 81.07 प्रतिशत है। अध्ययन क्षेत्र की कृषि उपयोग दक्षता को निम्न संवर्गों के अंतर्गत स्पष्ट किया गया है।
(अ) उच्च अनुपात के क्षेत्र - (90 प्रतिशत से अधिक) -
इस संवर्ग के अंतर्गत जनपद के दो विकासखंड महेवा एवं जसवंतनगर आते हैं। यहाँ कृषि भूमि उपयोग दक्षता क्रमश: 91.92 एवं 91.13 प्रतिशत है। जसवंतनगर विकासखंड जनपद के उत्तर पश्चिम किनारे पर स्थित है जबकि विकासखंड महेवा पूर्वी भाग में औरैया जनपद की सीमा निर्धारित करता है। यहाँ की मिट्टी उपजाऊ है एवं सिंचाई सुविधाओं का पर्याप्त विकास हुआ है। परिणामत: परती भूमि की कमी एवं शुद्ध बोये क्षेत्र की अधिकता के कारण कृषि उपयोग दक्षता अति उच्च है।
(ब) मध्यम अनुपात के क्षेत्र (80 से 90 प्रतिशत के मध्य) -
इस संवर्ग के अंतर्गत जनपद के 5 विकासखंडों को सम्मिलित किया गया है। जिनमें बसरेहर, भर्थना, चकरनगर, ताखा एवं सैफई क्रमश: 87.81, 87.27, 86.42, 86.35 एवं 83.00 प्रतिशत कृषि भूमि उपयोग दक्षता रखते हैं। जनसंख्या का कृषि पर भार अधिक होने के कारण कृषि भूमि उपयोग दक्षता मध्यम स्तर की है।
(स) निम्न कृषि भूमि उपयोग दक्षता के क्षेत्र (80 प्रतिशत से कम) -
इस वर्ग के अंतर्गत जनपद का एक मात्र विकासखंड बढ़पुरा आता है जो कृषि भूमि उपयोग दक्षता का 57.30 प्रतिशत रखता है। यह विकासखंड जनपद के दक्षिण पश्चिम भाग में मध्यप्रदेश एवं जिला आगरा की सीमा बनाता है। इस विकास खंड में जनपद की एक बड़ी नदी चंबल गुजरती है। जिसने कटाव करके दोनों ओर समीपवर्ती क्षेत्रों को बीहड़ बना दिया है। फलत: कृषि भूमि उपयोग दक्षता कम है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जनपद के मैदानी भाग में जनसंख्या का दबाव अधिक है। कृषि भूमि उपयोग दक्षता उच्च वर्ग दर्शाती है। जिन क्षेत्रों में बीहड़ क्षेत्र का विस्तार है सिंचाई की सुविधाओं का अभाव है तथा जनसंख्या का दबाव भी कम है वहाँ कृषि भूमि उपयोग दक्षता निम्न देखने को मिलती है।
शस्य स्वरूप :
किसी भी क्षेत्र विशेष का शस्य प्रतिरूप उसके भौतिक आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों की परस्पर प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न व विकसित होता है। अत: शस्य प्रतिरूप इन कारकों के सम्मिलित प्रभावों का घोतक है। फसल प्रतिरूप में समाज के मांग के अनुरूप समय- 2 पर परिवर्तन होता है।शस्य स्वरूप पर जलवायु कारकों का विशेष प्रभाव पड़ता है, जिनमें जलसंसाधन का विशेष महत्त्व है। अत: शस्य स्वरूप का अध्ययन आवश्यक है।
किसी क्षेत्र में उगाई जाने वाली विविध फसलों के क्षेत्रीय वितरण से बने प्रतिरूप को शस्य प्रतिरूप कहा जाता है। इसके अंतर्गत एक प्रदेश के विभिन्न फसलों के प्रतिशत की मात्रा का पता लगाकर उसका सापेक्षित महत्त्व ज्ञात किया जा सकता है। संपूर्ण संभाग के शस्य स्वरूप को निर्धारित करने वाले कारकों में मिट्टी, वर्षा, सिंचाई स्रोत का आकार, श्रमशक्ति, पशुशक्ति, पूँजी, यातायात एवं बाजार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अत: भौतिक कारकों में वर्षा की मात्रा एवं वितरण का स्थान सर्वोपरि है।
तालिका सं. 4.22 में संभाग के विभिन्न फसल समूहों की स्थिति प्रदर्शित की गयी है।
उपरोक्त तालिकानुसार इटावा जनपद में अनाज की फसलों का क्षेत्रफल सर्वाधिक 77.32 प्रतिशत है। जबकि दलहन तिलहन व अन्य फसलों के अंतर्गत सकल फसल क्षेत्रफल का क्रमश: 6.92, 6.42 एवं 9.34 प्रतिशत आता है।
शस्य संयोजन :
शस्य संयोजन के अंतर्गत कृषि क्षेत्र विशेष में उत्पन्न की जाने वाली सभी फसलों का अध्ययन होता है। किसी इकाई क्षेत्र में एक या दो विशिष्ट फसलें होती हैं और उन्हीं के साथ अन्य अनेक गौण फसलें पैदा की जाती हैं। कृषक मुख्य फसल के साथ कोई न कोई खाद्यान्न, दलहन, तिलहन या रेशेदार फसल की खेती करते हैं। प्राय: यह भी देखने को मिलता है कि यदि विशिष्ट क्षेत्र में दलहन या तिलहन की फसल वरीयता क्रम में हैं तो उसके साथ ही कृषक कोई न कोई खाद्यान्न फसल अवश्य उत्पन्न करता है। इस प्रकार किसी क्षेत्र या प्रदेश में उत्पन्न की जाने वाली प्रमुख फसलों के समूह के शस्य संयोजन कहते हैं। किसी भी क्षेत्र के फसल संयोजन का स्वरूप उस क्षेत्र विशेष के भौतिक वातावरण (जलवायु, जल, प्रवाह, मृदा, तथा सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा संस्थागत) की देन होता है। इस प्रकार यह मानव तथा भौतिक वातावरण के संबंधों को प्रदर्शित करता है।
अध्ययन क्षेत्र में जनपदीय स्तर पर शस्य संयोजन का निर्धारण करने के लिये दोई, थामस तथा रफी उल्लाह की विधियों का प्रयोग किया गया है। यद्यपि इन भूगोल वेत्ताओं ने शस्य संयोजन निर्धारण में बीवर महोदय के ही गणितीय मॉडल में क्षेत्रीय आवश्यकतानुसार संशोधन करके शस्य संयोजन का निर्धारण किया है, क्योंकि बीवर महोदय के सूत्र a2/N1 केवल उन्हीं क्षेत्रों के शस्य संयोजन का निर्धारण करने के लिये उपयुक्त है जिन क्षेत्रों में कम संख्या में फसलें उगाई जाती हैं तथा फसलों के वास्तविक क्षेत्रफल में अंतर मिलता है। बीवर महोदय के गणितीय मॉडल का सैद्धांतिक आधार यह है कि सभी फसलों के अंतर्गत ही कृषि भूमि समान रूप से संलग्न हो। उदाहरण के लिये यदि किसी क्षेत्र में एक ही फसल है तो इसका अर्थ यह है कि उस फसल का क्षेत्र 100 प्रतिशत है यदि दो फसलें हैं तो इसका अर्थ यह है कि उस फसल के अंतर्गत 50 प्रतिशत क्षेत्र संलग्न है तीन फसलों की स्थिति में 33.33 प्रतिशत क्षेत्र सम्मिलित है। इसी प्रकार दस फसलों में 10 प्रतिशत कृषित क्षो सम्मिलित होना चाहिये सर्वप्रथम सकल कृषि क्षेत्र से अनेक फसलों का अधिकृत भूमि उपयोग प्रतिशत ज्ञात कर अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया जाता है, तत्पश्चात अधिकृत तथा सैद्धांतिक प्रतिशत अंतर ज्ञात कर उनका वर्ग निकाला जाता है तथा सभी वर्गों का योग ज्ञात करके फसलों की संख्या का भाग दिया जाता है। इस क्रम में सर्वोचित व्यवस्था (न्यूनतम मूल्य) को ही शस्य संयोजन में स्थान दिया जाता है। शस्य संयोजन में प्रसरण सूत्र प्रयोग किया गया है। चूँकि अध्ययन क्षेत्र में विकासखंड स्तर पर विभिन्न फसलों के वितरण में बहुत अधिक भिन्नता मिलती है, और विभिन्न विकासखंडों में अनेक फसलें उगाई जाती हैं। जिससे उनके वितरण क्षेत्र में पर्याप्त अंतर नहीं मिलता जिससे बीबर महोदय की विधि के आधार पर विकासखंड स्तर पर शस्य संयोजन का निर्धारण अनुपयुक्त है। इसलिये किक काजू दोई की विधि के आधार पर गणना की गयी है। दोई महोदय की विधि बीवर की ही संशोधित विधि है। जिसमें दोई महोदय ने d2/N के स्थान पर d2 को ही शस्य संयोजन का आधार माना है। दोई महोदय की गणना के आधार पर अध्ययन क्षेत्र में शस्य संयोजन का निर्धारण करके यह पाया गया है कि विकासखंड स्तर शस्य संयोजन के निर्धारण में इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है अध्ययन क्षेत्र में शस्य संयोजन क्षेत्र की गणना करते समय उन फसलों को ही सम्मिलित किया गया है, जिनका क्षेत्रफल सकल कृषि क्षेत्र में 2 प्रतिशत से अधिक की भागेदारी कर रहा है। इस प्रकार दस फसलों तक कृषि क्षेत्र को सम्मिलित करके शस्य संयोजन का निर्धारण किया गया है।
दोई का शस्य संयोजन प्रदेश -
बीवर का प्रसरण सूत्र Q = d2/N के स्थान पर दोई महोदय ने अंतरों के वर्ग का योग अर्थात Q = d2 को ही शस्य संयोजन का आधार माना है इससे बीवर की पद्धति की अपेक्षा फसलों की संख्या में बहुत ही अंतर आ जाता है।
जनपद इटावा में शस्य संयोजन प्रदेश (दोई के अनुसार) मानचित्र संख्या 4.11 तथा तालिका संख्या 4.23 में प्रदर्शित किया गया है।
(अ) सात फसल सम्मिश्रण प्रदेश -
जनपद में चकरनगर एवं बढ़पुरा विकासखंड इस सम्मिश्रण प्रदेश के अंतर्गत आते हैं। यह विकासखंड जनपद के दक्षिणी भाग में यमुना, गंगा, दोआब एवं पार क्षेत्र में आते हैं। यहाँ बलुई एवं बलुई दोमट मिट्टी का बाहुल्य है। नदियों के कटाव के कारण अधिकांश भाग असमतल है अत: सिंचाई आदि का विकास नहीं हो सका है इन विकासखंडों में सात फसल समिश्रण के अंतर्गत चकरनगर विकासखंड में मुख्यत: बाजरा, लाही, गेहूँ, अरहर, चना, जौ एवं ज्वार तथा बढ़पुरा विकासखंड में गेहूँ, बाजरा, लाही, चावल, चना एवं अरहर के फसलों की खेती की जाती है।
(ब) तीन फसल सम्मिश्रण प्रदेश :
इस प्रदेश के अंतर्गत जनपद के चार विकासखंड क्रमश: भर्थना, ताखा, महेवा एवं जसवंतनगर आते हैं। भर्थना, ताखा एवं महेवा विकासखंड जनपद के पूर्वी भाग में एवं जसवंतनगर विकासखंड जनपद के उत्तरी-पश्चिमी भाग में अवस्थित है। इन विकासखंडों में उपजाऊ दोमट मिट्टी होने के साथ सिंचाई सुविधाओं का अधिक विकास हुआ है। विकासखंड भर्थना में गेहूँ, चावल एवं बाजरा, ताखा विकासखंड में गेहूँ, चावल एवं मक्का, महेवा विकासखंड में गेहूँ, बाजरा एवं चावल एवं जसवंतनगर विकासखंड में भी मुख्यत: गेहूँ, बाजरा एवं चावल की फसलें ली जाती है।
(स) दो फसल सम्मिश्रण प्रदेश :
इस सम्मिश्रण प्रदेश के अंतर्गत जनपद इटावा के दो विकासखंडों सैफई एवं बसरेहर को सम्मिलित किया गया है। ये विकासखंड जनपद के उत्तरी भाग में अवस्थित है। यहाँ की मिट्टियाँ दोमट से चीका दोमट वाली है तथा सिंचाई सुविधाओं का पर्याप्त विकास हुआ है। विकासखंड सैफई एवं बसरेहर में गेहूँ एवं चावल की फसलें ली जाती हैं।
कृषि उत्पादकता :
प्रो. सफी के सूत्र के आधार पर अध्ययन क्षेत्र में कृषि क्षमता को निर्धारित करने का प्रयास किया गया है। जनपद की दस फसलों से प्राप्त उपज को दसों फसलों के कुल क्षेत्र से विभाजित किया जाता है। जिससे प्रति हेक्टेयर उपज ज्ञात हो जाती है। तत्पश्चात राष्ट्रीय स्तर पर उन्हीं फसलों से प्राप्त कुल उपज को उन्हीं फसलों के क्षेत्रफल से विभाजित करके प्रति हेक्टेयर उपज ज्ञात की गयी। इसके उपरांत जनपद की प्रति हेक्टेयर उपज में राष्ट्रीय स्तर की प्रति हेक्टेयर उपज का भाग दिया गया। इस प्रक्रिया से विकासखंड स्तर पर कृषि उत्पादकता ज्ञात की गयी हैं तथा सूची में 100 का गुणा करके उत्पादकता गुणांक ज्ञात किया गया है-
सारणी क्रमांक 4.24 में विकासखंड स्तर पर अध्ययन क्षेत्र की कृषि उत्पादकता के स्तर का चित्र प्रस्तुत कर रही है। प्रो. सफी के सूत्र के आधार पर अध्ययन क्षेत्र की कृषि उत्पादकता सूची 15996 प्राप्त की गयी है। जिसे अभी सामान्य कहा जा सकता है। जसवंतनगर विकासखंड वरीयता क्रम में सर्वाधिक निचले स्तर को प्रकट कर रहा है। इसी प्रकार सर्वाधिक उच्च स्तर को दर्शाने वाला विकासखंड सैफई है। जिसकी कृषि उत्पादकता सूची 18012 है। अन्य विकासखंड इन दोनों सीमाओं के मध्य अपनी स्थिति को दर्शा रहे हैं।
अध्ययन क्षेत्र में विकासखंड स्तर पर कृषि उत्पादता के स्तर को सारणी क्रमांक 4.25 में दर्शाया गया है। जिसके अनुसार निम्न कृषि उत्पादकता को दर्शाने वाले दो विकासखंड बढ़पुरा एवं चकरनगर जो अपनी प्राकृतिक स्थिति के कारण तमाम प्रयासों के बावजूद कृषि उत्पादकता के ऊँचे स्तर को नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं। मध्यम उत्पादकता स्तर वाले विकासखंड ‘ताखा’ 161.11, ‘जसवंत नगर’ 160.91 एवं ‘महेवा’ 160.81 हैं जो 150 से 165 कृषि उत्पादकता गुणांक के मध्य स्थित है। तीन विकासखंड सैफई, भर्थना एवं बसरेहर सर्वाधिक उच्च उत्पादकता स्तर का प्रदर्शन कर रहे हैं और यह 165 कृषि उत्पादकता गुणांक से अधिक के वर्ग में स्थित हैं। उत्पादकता स्तर की दृष्टि से देखा जाये तो अध्ययन क्षेत्र औसत रूप में मध्यम उत्पादकता वाला है। जिसकी उत्पादकता सूची 15996 तथा उत्पादकता गुणांक 159.96 है।
कृषि गहनता :
कृषि गहनता का अभिप्राय किसी कृषि क्षेत्र में फसलों की आकृति से है। अर्थात एक निश्चित कृषि क्षेत्र पर एक फसल वर्ष में कितनी वार उत्पन्न की जाती है। फसलों की यही आकृति उस क्षेत्र विशेष की शस्य गहनता कहलाती है।
अत: कृषि गहनता को एक ही वर्ष में एक से अनेक फसलों की उत्पादन मात्रा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। सिंह बी. बी. (1979) ने शस्य गहनता के आकलन हेतु निम्न सूत्र का प्रयोग किया है।
कृषि गहनता = कुल फसल क्षेत्र/शुद्ध बोया गया क्षेत्र × 100
कृषि गहनता सघन कृषि का सूचकांक भी है। यह फसलों के क्षेत्रीय विस्तार में हुयी वृद्धि को भी प्रकट करता है। कृषि गहनता जितनी अधिक होगी कृषि भूमि का उपयोग उतना ही अधिक होगा।
उपरोक्त सूत्र के आधार पर इटावा जनपद की शस्य गहनता ज्ञात कर तालिका संख्या 4.26 एवं मानचित्र संख्या 4.13 में प्रदर्शित किया गया है।
तालिका संख्या 4.26 से स्पष्ट है जनपद इटावा में कुल फसल क्षेत्र 232599.66 एवं शुद्ध बोया गया क्षेत्र 146849.34 हे. अर्थात शस्य गहनता का प्रतिशत 158.39 है। अध्ययन क्षेत्र की शस्य गहनता के प्रारूप को निम्न संवर्गो में विभाजित किया गया है।
(अ) उच्च कृषि गहनता के क्षेत्र : (165 प्रतिशत से अधिक)
स्पष्ट है कि उच्च कृषि गहनता जनपद के तीन विकासखंडों में देखने को मिलती है। जिसका कारण सिंचाई सुविधाओं की उत्तम व्यवस्था एवं समतल उपजाऊ मैदानी भाग व उपजाऊ मिट्टी का होना है। इस संवर्ग की शस्य गहनता 174.32 प्रतिशत है। जनपद में उच्च कृषि गहनता वाले विकासखंड सैफई, भरथना एवं बसरेहर हैं, जो क्रमश: 181.31, 162.83 एवं 166.49 प्रतिशत कृषि गहनता रखते हैं।
(ब) मध्यम कृषि गहनता के क्षेत्र :
इस वर्ग के अंतर्गत जनपद के तीन विकासखंडों को शामिल किया गया है। जिसके अंतर्गत कृषि गहनता का प्रतिशत 162.82 प्रतिशत है। जनपद में विकासखंड ताखा 163.66 प्रतिशत, महेवा 162.83 प्रतिशत एवं जसवंतनगर की कृषि गहनता 161.97 प्रतिशत है। जसवंतनगर की कृषि गहनता 161.97 प्रतिशत है। जसवंतनगर विकासखंड जनपद के उत्तर पश्चिम कोने पर एवं ताखा विकासखंड जनपद के उत्तर पूर्वी कोने पर स्थित है। महेवा विकासखंड औरैया जनपद की सीमा बनाता है। यहाँ भी अधिकांश क्षेत्र समतल एवं मिट्टी उपजाऊ है। अत: मध्यम कृषि गहनता के अंतर्गत आता है।
(स) निम्न कृषि गहनता क्षेत्र (150 से कम) :
इस संवर्ग के अंतर्गत विकासखंड बढ़पुरा एवं चकरनगर आता है। जो जनपद के दक्षिण-पश्चिम भाग में चंबल एवं यमुना नदियों के अपवाह क्षेत्र में स्थित है। यहाँ निम्न कृषि गहनता होने का मुख्य कारण नदियों द्वारा कटाव करके बीहड़ (उत्खात स्थलाकृति) का निर्माण कर देना है। साथ ही साथ सिंचाई सुविधाओं का कम विकास हुआ है। बढ़पुरा विकासखंड कृषि गहनता का 141.99 प्रतिशत एवं चकरनगर कृषि गहनता का 113.67 प्रतिशत रखता है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जनपद में कृषि गहनता का स्तर मध्यम है। इसके निम्नलिखित कारण हैं -
1. वर्षा की अनियमितता
2. सिंचाई सुविधाओं की असुविधा
3. जोतों का छोटा होना
4. भूमि का असमतल होना
यदि जोतों का औसत आकार अधिक हो जाये, सिंचाई की सुविधाओं का पर्याप्त विकास हो जाये, एवं नहरों में वर्ष भर पानी उपलब्ध हो जाये। तो जनपद में शस्य गहनता का प्रतिशत बढ़ सकता है।
सिंचाई गहनता :
प्रकृति प्रदत्त संसाधनों में जल अत्यंत विशिष्ठ संसाधन है। यह समस्त जीव व वनस्पति जगत के अस्तित्व का आधार है। जल संसाधन के अति लाभदायक प्रयोग के कारण ही यह कहा जाता है कि जल ही जीवन है। जल सिंचाई से आशय मानवीय यंत्रीकरण के माध्यम से विभिन्न फसलों की उपज बढ़ाने के लिये जल के प्रयोग से है। कुछ अन्य निर्माण कार्यों के माध्यम भी मानव जल के संचय और प्रवाह को नियंत्रित करता है। ऐसे कार्यक्रमों से सिंचाई कार्यक्रम का निश्चय सिंचाई के लिये रखे गये जल द्वारा होता है। कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये सिंचाई एक उत्प्रेरक की भूमिका निर्वाह करती है। कृषि प्रधान अर्थ व्यवस्था और वर्षा का वार्षिक स्तर औसत रूप से 702.6 मिलीमीटर है। जो सम्य कृषि के आपेक्षित वर्षा स्तर से कम है। और निरपेक्ष रूप से वर्षा की मात्रा अत्यंत कम है। इसलिये व्यापक क्षेत्रों में एक से अधिक फसल उगाने और उत्पादकता बढ़ाने के लिये सिंचाई सुविधाओं का विकास आवश्यक है। सिंचाई गहनता का आशय शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल से है। इसे फसल गहनता की भाँति ही दर्शाया गया है। सिंचाई गहनता की गणना निम्नलिखित सूत्र के आधार पर की जाती है।
सिंचाई गहनता = सकल सिंचित क्षेत्र/शुद्ध सिंचित क्षेत्र × 100
अध्ययन क्षेत्र में फसल गहनता सूची तालिका क्रमांक 4.28 में दर्शायी गयी है।
तालिका क्रमांक 4.28 में जनपद इटावा में विकासखंड स्तर पर सिंचाई गहनता का चित्र प्रस्तुत कर रही है। तालिका से ज्ञात होता है कि जनपद की औसत सिंचाई गहनता के स्तर से प्रदर्शित करने वाले विकासखंडों में ताखा 173.01, बसरेहर 171.02, जसवंतनगर 164.99 प्रतिशत गहनता रखकर सर्वोच्च स्तर को प्राप्त कर रहे हैं। चौथे, पाँचवे एवं छठवें क्रम में सैफई, भर्थना एवं महेबा विकासखंड आते हैं, जो क्रमश: 151.02, 151.01 एवं 143.02 प्रतिशत सिंचाई गहनता के स्तर को प्राप्त कर रहे हैं। सिंचाई गहनता की दृष्टि से सर्वाधिक पिछड़ी स्थिति में चकरनगर एवं बढ़पुरा विकासखंड है जो क्रमश: 110.86 एवं 115.98 प्रतिशत सिंचाई गहनता दर्शाकर अन्य विकासखंडों की अपेक्षा निम्नतम स्थिति में है।
सिंचाई गहनता की दृष्टि से यदि देखा जाये तो अध्ययन क्षेत्र में मात्र तीन विकासखंडों की स्थिति उच्च गहनता वाली है। जिनकी सिंचाई गहनता 160 प्रतिशत से अधिक है। जबकि तीन विकासखंड 140-160 प्रतिशत के मध्य स्थित होने के कारण मध्यम सिंचाई गहनता को दर्शा रहे हैं, तथा दो विकासखंड चकरनगर एवं बढ़पुरा निम्न सिंचाई गहनता वाले हैं।
इटावा जनपद में जल संसाधन की उपलब्धता, उपयोगिता एवं प्रबंधन, शोध-प्रबंध 2008-09 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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