जगा रहा है जल

Submitted by Hindi on Mon, 04/25/2011 - 10:07
चट्टान सोयी है पत्थर-नींद
बूँद-बूँद कर अपने को
जगा रहा है जल

जल जगाता है
जब-तब इसे मेरे भीतर
एक पाखी गाता है