विडम्बना

Submitted by Hindi on Sat, 07/30/2011 - 09:02
बदलियों में पानी घट रहा
नदियों में प्रवाह
बातें भी अब कहाँ रहीं
अथाह
(उथलापन बार-बार दिखता
चरित्र है!)

घाटों पर निरापद न रही
प्यास
उतार पर है आँख का पानी

बेआब झील
एक पूरा शहर उदास करती है!