नदी-घाट

Submitted by Hindi on Mon, 05/16/2011 - 09:22
पसरी चट्टानों पर कपड़े सूख रहे हैं
नहान-स्नान में डूबे नर-नारी
नदी को पवित्र कर रहे हैं
अपने श्रमशील विचार से-व्यवहार से

खेत काटकर आयी औरतों ने अँजुरी भर-भर
जल पिया और नदी को सदानीरा रहने का दिया असीस
तदर्थ चूल्हों में कहीं रोटियाँ पक रही हैं
कहीं बलक रहा है दाल-भात

आलू भुन रहे हैं आदिम आँच में अद्भुत सुगंध के साथ
अपने घाट पर अन्न-गंध से
नदी भी नहा उट्ठी है पोर-पोर
घाट के गूलर-जामुन दरख्तों की छायाएँ

हँसी-मजाक और सहकार से हैं आबाद
जिनका रोटी-पानी हो गया
बाँह का तकिया और गमछे का बिस्तर बना
डूबकर सो रहे हैं बिना बेंचे अपने घोड़े!

गनीमत है कि इस पहाड़ी नदी पर
अभी पड़ी नहीं किसी कुबेर की दीठ!

गेंहूँ-कटाई की ऋतु है यह
चहुँओर महुवा फूल की महक भी उठ रही है
दिशाएँ धूप के नशे में हैं!

रेत कलमुँहे बर्तनों का मुँह चमका रही है
अपने पानी में सुस्ता रही है नदी
घाम से व्याकुल बादल
घाट के पानी में उतर चुके हैं!