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इस तालाब के चारों ओर खाण्डव वन क्षेत्र था यह वन अब भी थोड़ा बहुत बचा है। इस वन में कदम्ब के पेड़ हैं जो पहले महाभारत काल में ही होते थे। इस वन में होने के कारण लोग इसे बनी का तालाब भी कहते हैं। यह तालाब इस क्षेत्र का सबसे बड़ा तालाब है। ऐसे तालाब वर्षा जल संरक्षण के अच्छे प्राकृतिक स्रोत हैं जो हमारी मिट्टी में भी नमी बनाए रखते हैं।
गांव के बुजुर्ग लोग इस तालाब के बारे में बताते हैं कि महाभारत के श्लोक के अनुसार युद्घ की समाप्ति पर दुर्योधन युद्घ क्षेत्र से आकर तालाब में छिप गया तो भीम ने पीछा करके अपने उत्तेजित वाणी से उसे बाहर निकाला। तब भीम ने कृष्ण का इशारा पाकर गदायुद्ध के नियमों के विपरीत दुर्योधन की जांघ तोड़ दी और दुर्योधन मारा गया। यहीं पर बलराम व कृष्ण का विवाद हुआ। अब भी इस तालाब के चारों ओर गड्ढे हैं। ज़मीन भी इस जगह पर ऊंची-नीची है। इस कारण गांव का नाम भी खरड पड़ा। महाभारत में उस तालाब को द्वैपायन कहा गया है। आज भी इस तालाब के पास धार्मिक स्थान विद्यमान है। यह इसका प्रमाण है कि प्राचीन काल से ही लोग त्योहारों पर तालाबों पर भी दिए जलाते हैं और इनके संरक्षण की भगवान से कामना करते हैं।

इस प्राचीन तालाब के उत्तर की ओर एक घाट बना है। जिसमें 12 सीढ़ियां बनी हुई हैं। इसके बायीं ओर शिला पर कुछ लिखा हुआ है। जो अधिक समय होने के कारण स्पष्ट रूप से नहीं पढ़ा जा सका। तालाब के पास मन्दिर होने के कारण साधु संतों का निवास रहा है। हमें ऐसे तालाबों के संरक्षण की जरूरत है। इन्हें बचाने के लिए सरकार को भी पहल करनी होगी। इन तालाबों की सबसे अधिक जरूरत स्थानीय लोगों को है। इसलिए ग्रामीण समुदाय को भी इसकी पहल के लिए आगे आना होगा। पहले लोग अपने गांव के सार्वजनिक स्थानों के लिए श्रम दान करते थे। फिर से उसी प्रवृत्ति को जागृत करना होगा। श्रमदान के माध्यम से ही हम अपनी इन ऐतिहासिक धरोहरों को बचा पायेंगे।