जिला देहरादून के अंतर्गत जौनसार बावर एक जनजातीय क्षेत्र है जहां पीने के पानी को यहां के बुजुर्गों ने बेहद खूबसूरत तरह से संरक्षित करने का प्रयास किया है जिसकी वजह से कोई भी राहगीर यहां गांवों आते वक्त ऐसी जगहों पर अपनी प्यास भुजा सकते है जीवनदायी जलस्रोतों की सुंदरता बनाये रखना व उनका संरक्षण करना पुरानी पीढ़ी से सीखना चाहिए, जहां कहीं भी गांव बसे है उसके अड़ोस-पड़ोस में कोई जलधारा, बावड़ी, नावा (नौला), गदेरा, कुवां जरूर है, ये भी संभव है कि उनमें से कुछ में जल की मात्रा घटी होगी या कुछ बिल्कुल सूख गये होगें ।
पहाड़ो में हम देखते है कि जिन जलस्रोतों से गांव की जलापूर्ति होती है वो पत्थर या लड़की की सुदंर कारीगरी से निर्मित किए गये, बहुत से जगहों पर मान्यता है कि यदि स्रोतों को अपवित्र किया तो वो सूख जायेगें इसलिए लोग जूते तक दूर खोल कर जाते थे
खैर! गर्मी का दौर शुरू हो चुका है जेठ-आषाड़ की तपिश अपना रौद्ररूप दिखा सकती है इसलिए देश के बड़े हिस्से को पेयजल प्रदाता व सींचने वाला पहाड़ स्वयं पेयजल के लिए तड़पता नजर आयेगा, बड़े-बड़े बांध जहां जल का विशाल भण्डार मौजूद है वो भी वायुमंडल दृष्टिभ्रम से ज्यादा कुछ नहीं लगेगा ।
बहुत से उदाहरण है कि नीचे विशाल जलाशय है और उसके ऊपर या आसपास के गांव पेयजल के लिए तरसते है और बच्चों, महिलाओं का अधिकांश समय पानी लाने में ही व्यतीत होगा है । बांध तो बने लेकिन उसके नियोजन में अगल-बगल को नजरअंदाज किया गया, जिसने थोड़ा बहुत कमा लिया वो पलायन कर गये बाकि नियति मान खप रहे है