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राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, चतुर्थ राष्ट्रीय जल संगोष्ठी, 16-17 दिसम्बर 2011
किसी भी देश अथवा क्षेत्र के विकास में जल संसाधन के विकास का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। जल संसाधन के समुचित प्रबंधन एवं उपयोग से बाढ़ नियंत्रण, जलविद्युत उत्पादन, पेयजल, कल-कारखानों, ताप व आण्विक ऊर्जा उत्पादन हेतु जलापूर्ति, सिंचाई, आदि में मदद मिलती है। अंततः मानव समाज के आर्थिक व सामाजिक विकास में एक मजबूत कड़ी के रूप में सहायक साबित होती है। जल स्रोतों के विकास व प्रबंधन हेतु विभिन्न द्रव चालित संरचानाओं के निर्माण व यंत्रों के स्थापना की आवश्यकता पड़ती है।
जलगतिय संरचनाओं/ यंत्रों का परिकल्पन विभिन्न प्रयोगों तथा दीर्घकालीन अनुभवों से प्राप्त सूत्रों (इम्पिरिकल फार्मूले) पर आधारित होता है साथ ही जल गति अभियांत्रिकी में कई जटिल/ अज्ञात समस्याएं उत्पन्न हो जाती है जिसका निदान उपलब्ध सूत्रों/ यंत्रों के निर्माण के पूर्व यह जानने के इच्छुक रहते हैं कि उनके द्वारा परिकल्पित संरचना/यंत्र वास्तविक रूप में निर्माणोपरान्त किस प्रकार कार्य करेगा। उनके मन में उठ रही शंकाओं का समाधान हो जाए इन्हीं शंकाओं को दूर करने, परिकल्पित संरचना/यंत्र का निर्माण/स्थापना के बाद उनके कार्य एवं द्रवीय व्यवहार को जानने, विभिन्न जटिल जलगति समस्याओं के निदान, पर्याप्त, किफायती व टिकाऊ परिकल्पन आदि के लिए इनका प्रतिरूप अध्ययन एक सफलतम माध्यम है।
प्रतिरूप अध्ययन में मुख्यतः मूल संरचना/यंत्र का छोटे/बड़े आकार प्रतिरूप तैयार कर उसमें जल प्रवाहित कर उसके प्रवाह से संबंधी कारक तथा वेग वितरण, दाब, जल प्रवाह का व्यवहार, उसके परिकल्पन की पर्याप्तता आदि का अध्ययन किया जाता है। जलगतिय प्रतिरूप अध्ययन मुख्यतः फ्राउड के सादृश्यता का सिद्धांत रेयनाल्ड के सादृश्यता का सिद्धान्त आदि के आधार पर भौतिकीय, इलैक्ट्रानिक/विद्युतीय एवं गणितीय/संख्या सूचक प्रतिरूपण के माध्यम से सम्पादित किया जाता है।
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जलगतिय संरचनाओं/ यंत्रों का परिकल्पन विभिन्न प्रयोगों तथा दीर्घकालीन अनुभवों से प्राप्त सूत्रों (इम्पिरिकल फार्मूले) पर आधारित होता है साथ ही जल गति अभियांत्रिकी में कई जटिल/ अज्ञात समस्याएं उत्पन्न हो जाती है जिसका निदान उपलब्ध सूत्रों/ यंत्रों के निर्माण के पूर्व यह जानने के इच्छुक रहते हैं कि उनके द्वारा परिकल्पित संरचना/यंत्र वास्तविक रूप में निर्माणोपरान्त किस प्रकार कार्य करेगा। उनके मन में उठ रही शंकाओं का समाधान हो जाए इन्हीं शंकाओं को दूर करने, परिकल्पित संरचना/यंत्र का निर्माण/स्थापना के बाद उनके कार्य एवं द्रवीय व्यवहार को जानने, विभिन्न जटिल जलगति समस्याओं के निदान, पर्याप्त, किफायती व टिकाऊ परिकल्पन आदि के लिए इनका प्रतिरूप अध्ययन एक सफलतम माध्यम है।
प्रतिरूप अध्ययन में मुख्यतः मूल संरचना/यंत्र का छोटे/बड़े आकार प्रतिरूप तैयार कर उसमें जल प्रवाहित कर उसके प्रवाह से संबंधी कारक तथा वेग वितरण, दाब, जल प्रवाह का व्यवहार, उसके परिकल्पन की पर्याप्तता आदि का अध्ययन किया जाता है। जलगतिय प्रतिरूप अध्ययन मुख्यतः फ्राउड के सादृश्यता का सिद्धांत रेयनाल्ड के सादृश्यता का सिद्धान्त आदि के आधार पर भौतिकीय, इलैक्ट्रानिक/विद्युतीय एवं गणितीय/संख्या सूचक प्रतिरूपण के माध्यम से सम्पादित किया जाता है।
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