जल संसाधन के प्रबंधन में जनभागीदारी का महत्व

Submitted by Hindi on Mon, 12/26/2011 - 10:29
Source
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, चतुर्थ राष्ट्रीय जल संगोष्ठी, 16-17 दिसम्बर 2011

प्रकृति में प्राणी मात्र का अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए जल की आवश्यकता होती है। जीव जन्तु तथा पेड़-पौधे सभी का जीवन जल पर निर्भर है। जल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मानव के अविरल विकास में इसकी आवश्यकता निरंतर बनी रहती है। अतः यह कहना उचित होगा कि जल ही हमारा जीवन है। जल का मुख्य स्रोत वर्षा है। भारत वर्ष में वर्षा वर्ष के कुछ महीनों में ही होती है, इस कारण वर्षा के रूप में प्राप्त होने वाले जल के सदुपयोग की दृष्टि से इसका संरक्षण अति आवश्यक है। जल संरक्षण से तात्पर्य है कि जल के व्यर्थ बहाव का रोकना एवं इसका सर्वोत्तम लाभदायक उपयोग करना, क्योंकि जल बहुत बहुमूल्य है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसकी जनसंख्या का लगभग 70% कृषि या कृषि आधारित उद्योगों पर निर्भर करता है। देश की बढ़ती हुई जनसंख्या, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण तथा अन्य विकास के कारण मानव की मूलभूत आवश्यकता जल की मांग भी निरंतर बढ़ती जा रही है। हर क्षेत्र में जल की उपलब्धता सीमित होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि उसका संरक्षण प्रभावी रूप से किया जाए तथा जल संसाधन के प्रबंधन में अपनी सक्रिय भागीदारी से जल के सदुपयोग एवं आधुनिक तथा वैज्ञानिक पद्धति अपनाते हुए इसकी सुरक्षा के लिए एक सच्चे नागरिक का कर्तव्य निभाते हुए देश के विकास में सहयोग करें।

कृषि प्रधान देश होने के कारण इस देश की स्थिति बहुत कुछ कृषि पर निर्भर करती है। देशा अधिकांश कृषक समुदाय ग्रामों में निवास करता है जो अपनी पैदावार के लिए वर्षा के जल, भूजल तथा नदियों, नहरों के जल पर निर्भर रहता है। ग्रामों की पूरी अर्थव्यवस्था ही जल संसाधनों पर आधारित है। आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए देश में खेती की पैदावार बहुत अच्छी होनी चाहिए जिसके लिए देश में जल संसाधन तथा सिंचाई साधनों का व्यापक तथा सुव्यवस्थित होना बहुत आवश्यक है।

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