Source
भगीरथ - अप्रैल-जून, 2009, केन्द्रीय जल आयोग, भारत
निरंतर बढ़ती जनसंख्या से पूरे विश्व में स्वच्छ पानी की भारी कमी महसूस की जा रही है और इससे निबटने के लिये वैज्ञानिक भी ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। इस रस्साकशी में पानी बचाने, गंदे पानी को उपयोगी बनाने हेतु भी नई-नई तकनीक ईजाद की जा रही है। पिछले दिनों हुई अन्तरराष्ट्रीय जल संसद में वेटलैंड तकनीक की ओर ध्यान खींचा गया। प्राचीन होते हुए भी सबसे बेहतर और सस्ती तकनीक स्वीकार्य की गई है। इसके अंतर्गत घरों से निकलने वाले गंदे पानी को साफ किया जाता है ताकि नहाने-धोने, सिंचाई के लिये उसका पुनः उपयोग किया जा सके। इसका प्रयोग और विस्तार एशिया के देशों में ज्यादा हुआ है। अविकसित और विकासशील दोनों प्रकार के देश इस तकनीक से लाभ उठाकर विकास की ओर अग्रसर हो सकते हैं लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इसे तरजीह दी है विकासशील देशों के बजाय अविकसित देशों ने वर्तमान में दुनिया भर में केवल दस हजार वेटलैंड हैं जो जरूरत से काफी कम हैं।
पानी को साफ करने के लिये बायोलॉजिकल कंट्रोल के इस्तेमाल की तकनीक वेटलैंड कहलाती है।
आज जब कि प्रत्येक नदी, तालाब और सागर का जल दूषित होता जा रहा है। प्रत्येक घरों, फैक्ट्रियों व अन्य दूसरे क्षेत्रों से बहुत सारा गंदा पानी बहकर नदियों में मिलकर प्रदूषण फैला रहा है ऐसे में इस तकनीक की उपयोगिता और महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
शहरों का जल संकट समाप्त करने के लिये यह तकनीक सबसे मुफीद और सस्ती मानी गई है। देश में प्रतिदिन 33 हजार मिलियन लीटर सीवेज निकलता है जबकि ट्रीटमेंट प्लांट और अन्य स्रोतों की मदद से 7 हजार मिलियन लीटर जल ही शुद्ध हो पाता है। वर्तमान में संसार के लगभग 90 देश इस तकनीक का लाभ उठा रहे हैं।
ऐसे बनता है वेटलैंड
कॉलोनी, घर, फैक्ट्री या किसी संस्थान में एक मीटर गहरा गड्ढा खोदा जाता है। उसकी लंबाई-चौड़ाई पानी की आवक पर निर्भर है। उसके किनारों को प्लास्टिक से सील कर दिया जाता है जिससे गंदा पानी रिचार्ज होकर जमीन में न जा सके। गड्ढे को छोटी बजरी से ढककर ऊपर से घास के सुदृढ़ दिखाने वाला नलबांस पौधा लगाया जाता है। गड्ढे में प्रदूषित पानी पहुँचने के बाद वह दो तीन दिन में स्वच्छ होकर सतह पर आ जाता है और इस्तेमाल के काबिल हो जाता है।
हाइब्रीड घास के जरिए वेटलैंड प्रोजेक्ट लगाए जा सकते हैं। इससे खतरनाक जहरीले पदार्थों से दूषित हो चुके पानी को साफ किया जाता है। प्राकृतिक वेटलैंड प्रकृति को लगातार फायदा पहुँचाते हैं।
वेटलैंड कैसे काम करता
गड्ढे में बजरी, छलनी का काम करती है। नलबांस दूषित पानी में पाए जाने वाले पदार्थों को सोखता है और पानी में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाता है। पौधों की जड़ें गहराई तक पहुँचकर ढाई सौ प्रकार के बेक्टीरियों से मुकाबला कर गंदे पानी में विद्यमान अपशिष्टों को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाता है।
इस तकनीक से लाभ
वेटलैंड प्लांट चूँकि विकेन्द्रीकरण पद्धति है इसलिये कॉलोनी और टाउनशिप में भी सुगमतापूर्वक अपनाई जा सकती है। इससे अहम बात यह कि इसमें विद्युत की जरूरत बहुत कम होती है यहाँ तक कि कृत्रिम वेटलैंड तकनीक से कम खर्च पर बिना बिजली उपोग के जल शुद्ध किया जा सकता है। जहाँ सिवर लाइन नहीं है उनके लिये यह सिस्टम बहुत अच्छा है। यह तकनीक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानदंडों पर भी खरी उतरती है।
आवश्यकता इस बात की है कि साफ पानी उपलब्ध कराने हेतु तथा पर्यावरण संतुलन कायम करने हेतु वेटलैंड तकनीक को ज्यादा से ज्यादा प्रयोग में लाया जाना चाहिए। कहना अनावश्यक होगा कि इस तकनीक के विस्तार के लिये पर्याप्त जल जागरण जरूरी है।
लेखक परिचय
डॉ. सेवा नन्दवाल
98, डी.के.-1, स्कीम 74-सी, विजय नगर, इन्दौर-452010