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जल चेतना - तकनीकी पत्रिका, जुलाई 2015

जलाशयों को अब पूरी दुनिया में कचरा डालने का स्थान माना जाने लगा है। जल प्रदूषित करने में हमारा देश भी पीछे नहीं है। संयुक्त राष्ट्र की प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने लोगों को दूषित जल पिलाने में बेल्जियम तथा मोरक्को के बाद तीसरे स्थान पर है। भारत मानव आबादी के लिहाज से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। यहाँ की ज्यादातर मानव आबादी जलाशयों के किनारे ही रहा करती है और अपने घरों का कूड़ा-कचरा आदि उसी में डाला करती है। ऐसे में यहाँ के जलाशय भी पूरी तरह से प्रदूषण युक्त हो गए हैं। उदाहरण-गोमुख से करीब 300 किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता तय कर हरिद्वार तक आते-आते गंगा के निर्मल जल में करीब 80 मिलियन लीटर सीवर का मैल घुल जाता है, तो जरा सोचिए गंगा की 2525 किलोमीटर की लम्बी यात्रा के दौरान कितना कूड़ा-कचरा घुलता होगा। जल संरक्षण के लिये काम करने वाले एक संगठन, ‘एवरीथिंग एबाउट वाटर प्राइवेट लिमिटेड’ के अनुसार गंगा नदी में प्रतिवर्ष करीब 1.3 अरब लीटर गन्दा पानी और 25 करोड़ लीटर औद्योगिक कचरा बहा दिया जाता है।
अकेले दिल्ली महानगर में एक दिन में वजीराबाद से ओखला होकर गुजरने वाली यमुना नदी में लगभग 25000 लाख लीटर से अधिक मल-मूत्र और घरों का गन्दा पानी डाला जाता है। कमोबेश यही हाल विश्व की नदियों व जलाशयों का है जिसकी वजह से आज हमारे जलाशयों का जल न तो पीने लायक रह गया है और न ही जल जीवों के रहने लायक। आज पूरा विश्व प्रदूषित जल की विभिषिका का दंश झेल रहा है। प्रदूषित जल पीने से प्रतिवर्ष लाखों लोग मारे जाते हैं।
जल प्रदूषण की परिभाषा

जल प्रदूषण को मापने के लिये बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) परीक्षण
इस परीक्षण में ऑक्सीजन और O2 की मात्रा मापी जाती है जो जल के एक नमूने में जीवाणुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों को नष्ट करने के लिये आवश्यक होती है। घर की गन्दी नाली से निकले गन्दे पदार्थों की बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड की वैल्यू 200 से 400 पीपीएम ऑक्सीजन (एक लीटर गन्दे जल के लिये) होती है जबकि पीने के स्वच्छ जल के बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) एक पीपीएम से कम होनी चाहिए।
जल प्रदूषण से उत्पन्न समस्याएँ

1. प्रदूषित जल पीने से ‘त्वचा रोग’, पीलिया, टाइफाइड, पेचीस, हैजा, एवं कैंसर जैसी जल जन्य बीमारियाँ होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
2. प्रदूषित जल में निवास करने वाले जलीय जीव-जन्तु तेजी से स्वच्छ व प्राकृतिक जल के अभाव में मरने लगते हैं। कई तो प्रदूषित जल की वजह से विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गए हैं।
3. जलाशयों में परमाणु विस्फोटों से उत्पन्न रेडियोधर्मी पदार्थ जैसे कार्बन 14, स्ट्रांशियम-99, कैल्शियम-173 तथा आयोडिन 131 की वजह से भी बहुत से जलीय जीव मारे जाते हैं। मानवों में इन रेडियोधर्मी प्रदूषकों की वजह से ल्यूकोमिया तथा कैंसर जैसे भयंकर रोग उत्पन्न हो जाते हैं तथा सन्तानों में अपंगता की सम्भावना बढ़ जाती है।
जल प्रदूषण पर नियंत्रण
जल प्रदूषण को रोकने व जलाशयों को शुद्ध रखने के लिये आज विश्व के लगभग सभी देशों के सरकारी तथा अथवा गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रयास किया जा रहा है और भारी मात्रा में पैसा खर्च किया जा रहा है फिर भी जलाशयों की सफाई नहीं हो पा रही है कारण जल में रहने वाले जीवों की निरन्तर होती कमी है क्योंकि जल जीव न सिर्फ जलीय पारितंत्र (Ecosystem) को सन्तुलित रखते हैं बल्कि जलाशयों को शुद्ध भी करते हैं। अतः जलाशयों में पर्याप्त मात्रा में जल जीवों का होना अति आवश्यक है। ये जल जीव जलाशयों की गन्दगी को बड़ी मात्रा में बिना किसी गम्भीर हानि से बचा लेते हैं अथवा जटिल कार्बनिक यौगिकों को सरल यौगिकों में बदल देते हैं। जल जीवों द्वारा जल का शुद्धिकरण कैसे होता है इसकी जानकारी आपको निम्नांकित पंक्तियों से प्राप्त हो सकती है।
जीवाणुओं द्वारा जल शोधन
अज्ञानतावश कुछ लोग पशुओं अथवा मनुष्यों के मरने पर उनके शवों को सीधे जलाशयों में प्रवाहित कर देते हैं जिसके सड़ने से भारी मात्रा में जल अशुद्ध हो जाता है। ऐसे मृत प्राणियों को जल्दी से सड़ाने में कुछ नन्हें जीवाणु मृत जीवों के शरीर में वृद्धि करके उनके जटिल कार्बनिक यौगिकों को सरल पदार्थों में जैसे-कार्बन डाइऑक्साइड, पानी, नाइट्रेट, सल्फेट इत्यादि में बदल देते हैं। उनके द्वारा अपघटित पदार्थ एक आवश्यक तत्व के रूप में पुनः जीवधारियों के लिये उपयोगी हो जाता है। क्लोस्ट्रीडियम ब्युटीरियम (Clostridium Butyrium) नामक जीवाणु जलाशयों में उपस्थित जूट, पटसन, तथा सनई आदि के तनों को जल्दी से सड़ा देते हैं जिसकी वजह से वह ज्यादा दिनों तक पानी में नहीं रह पाता इससे जल्द ही पानी स्वच्छ हो जाता है।
कुछ जीवाणु समुद्र में अथवा अन्य जलस्रोतों में फैले खनिज तेलों को सोखकर समुद्री पारितंत्र को बचाते हैं जैसे कि सर्वविदित है समुद्र एक देश से दूसरे देश के लिये व्यापार करने के सबसे सस्ते व सुलभ मार्ग हैं ऐसे में ज्यादातर देशों का व्यापार समुद्री मार्ग से ही बड़े-बड़े जहाजों द्वारा होता है और जाहिर सी बात है जहाँ ज्यादा धमा चौकड़ी होगी वहाँ दुर्घटनाएँ भी होंगी। ऐसे में जब कभी तेल से भरे जहाज समुद्र में टकराते हैं तो भारी मात्रा में खनिज तेल निकलकर समुद्र के ऊपरी तल पर बिखर जाता है जिससे जल में रहने वाले जीवों की भारी हानि होती है। ऐसे में समुद्र में फैले तेल की सफाई कैसे की जाय यह बहुत बड़ी चुनौती है।
भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. आनन्द चक्रवर्ती ने पहली बार विश्व में किसी भी जीव का पहला पेटेन्ट करवाया था। यह जीवाणु स्यूडोमोनास नामक जीवाणु की एक किस्म थी जो तेलभक्षी थी। इस जीवाणु को लेकर डॉ. चक्रवर्ती ने बड़ी रोचक पहल की। उन्होंने एक ऐसी कम्पनी खोली जो समुद्र तल में या अन्य स्थान पर फैले तेल को साफ करने का काम करती है। इस कार्य को सम्पन्न करने के लिये उन्होंने तेल-भक्षी जीव स्यूडोमानस का प्रयोग किया। यह जैव-प्रौद्योगिकी प्रयोग की एक रोचक और हैरतअंगेज करने वाली पहल थी।

इन्हीं सफल परीक्षणों की शृंखला में डॉ. आनंद चक्रवर्ती ने सुपरबग की रचना की है। ये सुपरबग समुद्र समुद्र में फैले तेल को पीकर उसको समाप्त कर देते हैं। तेल की सफाई के लिये अब हमारे देश में भी नन्हें जीवों की मदद ली जाने लगी है। कुछ समय पूर्व उड़ीसा तट पर फैले तेल की सफाई में इस तकनीक का सफल प्रयोग किया जा चुका है, इसके लिये ‘ऑयली वोट्स-एस’ यानी तेल भक्षी मिश्रण तैयार किया गया था जो पाँच ऐसे सूक्ष्म जीवों को लेकर बना था जिसमें हाइड्रोकार्बन तैलीय गन्दगी, सल्फर यौगिक आदि को चट कर जाने की क्षमता थी। इन्हें तेल से प्रभावित तटीय भूमि को साफ करने में महारत हासिल है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन सूक्ष्म जीवों को लक्ष्य यानी ‘टारगेट अटैक’ के लिये बेहतरीन तरीके से प्रयोग किया जा सकता है।
हमारे कुछ सार्वजनिक स्थलों, जलाशयों, आदि में अपशिष्ट पदार्थों, सड़े-गले पदार्थों, एवं मल-मूत्र के एकत्रित होने से वहाँ भारी दुर्गन्ध एवं रोग उत्पन्न हो जाने की सम्भावना रहती है। ऐसे समय में कुछ भूमि के जीवाणु इन पदार्थों का अपघटन कर देते हैं जिसकी वजह से वहाँ फैलने वाली गन्दगी समाप्त हो जाती है और सभी जटिल कार्बनिक पदार्थ, सरल अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित हो जाते हैं।
इसके अन्तर्गत कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) निर्मित होती है जिसका उपयोग शैवाल (Algae) करके ऑक्सीजन (O2) मुक्त करती है और अपघटन में ऑक्सीजन (O2) का उपयोग होता है।
बैक्टीरियोफेज विषाणु द्वारा जल शोधन
नालियों, सीवरों, तालाबों तथा नदियों के प्रदूषित जल में उपस्थित रोगजनिक जीवाणुओं (Pathogenic Bacteria) का फेजेज (Phages) भक्षण करके जल को शुद्ध कर देते हैं।
शैवालों द्वारा जल शोधन

ये शैवाल पानी में पाये जाने वाले हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं। इस प्रकार झीलों, तालाबों, नदियों तथा अन्य जलस्रोतों को शुद्ध रखने में शैवालों का प्रयोग करना आवश्यक है। यह शैवाल बिना किसी गम्भीर हानि के जलाशयों की गन्दगी को पचा लेते हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक सिल्वा एवं पेपनफस ने सन 1953 के अनुसार गण-क्लोरोकूकेल्स, वाल्वोकेल्स तथा यूग्लीनोफाइसी के अनेक शैवाल सदस्य वाहित मल के पानी के सतह पर उगते हुए पाये जाते हैं। ये शैवाल इस पानी को ऑक्सीजन (O2) प्रदान करते हैं तथा खनिज लवणों का अवशोषण करके जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में विघटित कर देते हैं जैसे सेंडेस्मस, माइक्रोएक्टीनम, पारोबोट्रिस, क्लेमाइडोमोनास तथा युग्लीना आदि।
पक्षियों, कछुओं तथा मछलियों द्वारा जल शोधन
जहाँ गिद्धों, लकड़बग्घों, सुअरों, सियारों आदि से थलीय तथा वायवीय इलाका शुद्ध होता रहता है ठीक उसी तरह कुछ मछलियों, पक्षियों तथा कछुओं (सॉफ्ट शेल्ड टर्टल) द्वारा जलीय परितंत्र शुद्ध होता है। जल में फेंके गए मृत पशुओं एवं वनस्पतियों आदि को खाकर ये जल जीव वातावरण को शुद्ध करते हैं। जलाशयों में इनके कमी से मृत जीव जन्तुओं का शरीर काफी दिनों तक सड़ता रहता है तथा जल प्रदूषित होता रहता है।
गंगा की सफाई में डॉल्फिनों का योगदान

उपरोक्त बातों से यह स्पष्ट होता है कि अगर हम लोग वाकई में जलाशयों को प्रदूषण मुक्त रखना चाहते हैं तो हमें जल शोधन की अनेक विधियों के साथ-साथ जल जीवों को भी बचाना होगा अन्यथा हम कभी भी जलाशयों की सफाई नहीं कर पाएँगे।
सम्पर्क करें
सुरेश कुमार कुशवाहा, ग्राम-पोस्ट चिरांव, तहसील कोरांव, जिला इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश 212306, मो. न. 9984863681, ईमेल : suresh998486@gmail.com
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